tag:blogger.com,1999:blog-26386090792677067272024-03-19T01:48:32.047-07:00राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहासAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/02623436407222236397noreply@blogger.comBlogger129125tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-49097410818477974292022-07-12T02:48:00.004-07:002022-07-12T02:48:34.213-07:00अवध, पूर्वांचल व बिहार के क्षत्रियों की गौरवगाथा (Rajputs from east India)<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPHhHNgZlaGx1ApsJVebzmCCQb1DOYltzMwip36JjIctoy8VQY-pvuFhK6VZmgmPMPQy5rkHq7FsmikEpQL8-jY8ifDxfS26pYGBU2zIJZCOTdjfdEkxHL1nbI2qyXdzz1eAsnu04iR4Cd7Kt7jKArvZAqEeYfyD-6PxSWl9RZZQ8-m5_lLjPUIiK8pA/s800/800px-Rajpoots_2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="611" data-original-width="800" height="244" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPHhHNgZlaGx1ApsJVebzmCCQb1DOYltzMwip36JjIctoy8VQY-pvuFhK6VZmgmPMPQy5rkHq7FsmikEpQL8-jY8ifDxfS26pYGBU2zIJZCOTdjfdEkxHL1nbI2qyXdzz1eAsnu04iR4Cd7Kt7jKArvZAqEeYfyD-6PxSWl9RZZQ8-m5_lLjPUIiK8pA/s320/800px-Rajpoots_2.png" width="320" /></a></div><br /><b>पुरबिया राजपूतों की शौर्यगाथा------</b><p></p><span style="color: red;"><b>Rajputs of east India , one of the greatest martial races of the world----<br /></b></span><br />10 अप्रैल 1796 ईस्वी को हरिद्वार के कुम्भ मेले का अंतिम दिन था,लेकिन सुबह की पहली किरण भावी विनाश का संकेत लेकर आई थी,<br />कुम्भ स्नान के दौरान ही नागा साधुओं का वहां स्नान के लिए आए पटियाला के सिक्ख सैनिको से विवाद हो गया।<br />इसके बाद पटियाला के साहिब सिंह ने 14 हजार जट्ट सिक्ख घुड़सवार सैनिको के साथ हरिद्वार में तीर्थयात्रियों का संहार और लूटपाट शुरू कर दिया।<br /><br />500 के लगभग निर्दोष तीर्थयात्री साधू संत और व्यापारी मारे गए,और हजारो को तलवार के वॉर से घायल कर दिया गया,हर की पैड़ी रक्त से लाल हो गयी।।सैंकड़ो साधु गंगा पार कर जान बचाते हुए डूब कर मर गए, कुछ तेज धार में बह गए।।<br /><br />इस नरसंहार में हजारो तीर्थयात्री और मारे जाते मगर सौभाग्य से वहां कैप्टन मुरे के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना की एक पुरबिया राजपूत बटालियन मौजूद थी,जिसके करीब एक हजार राजपूत सैनिक अवध पूर्वांचल और भोजपुर क्षेत्र से थे,<br /><br />उन्होंने अपनी जान पर खेलते हुए संख्याबल में कहीं ज्यादा साहिब सिंह पटियाला के जट्ट सिक्ख सैनिको को चुनौती दी,और उनका मुकाबला किया।।<br />और जल्द ही उन्हें हरिद्वार से भागने को विवश कर दिया और हजारो तीर्थयात्रियों साधुओ और व्यापारियो की जान बचाई।।<br /><br />1796 ईस्वी वो समय था जब उत्तर भारत में मुगल शक्ति दम तोड़ चुकी थी,राजपुताना के राजपूत मराठो पिंडारियों की लूटपाट और आपसी मतभेदों से कमजोर हो चुके थे,कहीं मराठा, सिक्ख, कहीं जाट,कहीं रुहेले, गूजर एकजुट होकर ताकतवर हो रहे थे,<br />ब्रिटिश अभी उत्तर भारत में ढंग से स्थापित नही हो पाए थे,<br />चारो तरफ अराजकता का माहौल था।।<br /><br />पुरबिया (अवध, पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार) राजपूत सैनिको के दम पर अंग्रेजो ने पहले अवध और बंगाल के नवाब को हराया,फिर भरतपुर के जाटों को हराया,उसके बाद होल्कर और सिंधिया को मात दी।<br />उसके बाद 1816 को नेपाल के गोरखों को हराया,1842 ईस्वी में अफगानिस्तान के पठानों पर अंग्रेजो ने राजपूतो के दम पर हराया,<br />1846 ईस्वी में अंग्रेजो ने सिक्खो को भी अंतिम मात इन्ही पुरबिया राजपूत सैनिको के दम पर दी थी।।<br /><br />कुल मिलाकर पुरबिया राजपूत शानदार यौद्धा थे,इनकी सैनिक योग्यता का लाभ अंग्रेजो ने उठाया पर ये अपनी जन्मभूमि पर एकजुट होकर बड़ा साम्राज्य स्थापित नही कर पाए।<br />अंग्रेज उनके बड़े प्रशंसक थे,लेकिन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम से अंग्रेजो की सोच बदल गयी।।भारत पर पूर्ण नियंत्रण करने के साथ ही अंग्रेजो ने देश में किसानो कारीगरो जमीदारो देशी रियासतो का शोषण शुरू कर दिया और धार्मिक अधिकारो को भी कुचलना शुरू कर दिया,देशी सैनिको को यूरोपियन की बजाय कम वेतन और सुविधाएं दी जाती थी।<br /><br />इन नीतियों से रुष्ट होकर 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में सबसे पहले पुरबिया सैनिको ने बगावत का झंडा बुलन्द किया,और पूर्वांचल अवध बिहार क्षेत्र में ब्रिटिश सेना के पुरबिया राजपूत सैनिक वहां के विद्रोही राजपूत जमीदारो के साथ मिल गए और इन इलाको से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ दिया।।सन 1857 के गदर में सबसे बड़ी भूमिका राजपूत ताल्लुकेदारों जमीदारो और ब्रिटिश सेना के पुरबिया राजपूत सैनिको ने ही निभाई थी और अंग्रेजो की सत्ता भारतवर्ष से उखाड़ फेकने को कटिबद्ध हुए थे।<br />तब जाकर अंग्रेजो ने उन सिक्खों ,जाटों और नेपाल के गोरखों की मदद ली जिन्हें अंग्रेजो ने इन्ही पुरबिया राजपूतो के दम पर अपने अधीन किया था, सिक्खों गोरखों और जाटों की मदद से अंग्रेजो ने 1857 की क्रांति को कुचल दिया और इसके बाद ब्रिटिश सेना में पुरबिया राजपूतो की भर्ती बन्द कर दी।।<br /><br />1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजो के विरुद्ध बगावत करने के कारण अब पुरबिया राजपूतों ब्राह्मणों की बजाय ब्रिटिश सेना में सिक्खों, गोरखों, जाटों ,पंजाबी मुसलमानो और राजपूताने और पहाड़ी क्षेत्र के राजपूतो की भर्ती बड़े पैमाने पर भर्ती की जाने लगी।।<br />और इसे मार्शल रेस थ्योरी का नाम दिया जो विशुद्ध रूप से राजनैतिक नीयत से प्रेरित थी जिसमे उन वर्गों को ताकतवर किया जाना था जिनसे उन्हें विद्रोह की आशंका नही थी।<br />हालाँकि बाद के दिनों में गहमर जैसी कुछ प्रसिद्ध जगहों से ब्रिटिश सेना में राजपूतो की भर्ती दोबारा की जाने लगी और अब फिर से भारतीय सेना में पूर्वांचल बिहार व अवध के राजपूतो की संख्या बढ़ने लगी है।<br /><br />बदले की भावना से ब्रिटिश शासन ने पंजाब ,वेस्ट यूपी के विकास पर बड़ा ध्यान दिया और जान बूझकर बिहार ,अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश को विकास से वंचित कर दिया।।<br />यही नही बिहार और पूर्वांचल में भूमिहार जाति को राजपूतो की कीमत पर जमीदारियां दी गयी।।<br />आज पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार का पिछड़ापन ब्रिटिशकाल से जारी नीतियों की देन है।<br /><br /><span style="color: red;"><i>भारतवर्ष में राजपूतो की कुल संख्या का लगभग 50% अवध पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में निवास करता है,</i></span><br /><br /><b>ऐतिहासिक काल में भी इस इलाके में मौर्य वंश(परमार राजपूत),<br />गुप्त (सोमवंशी राजपूत), बैस वंश (हर्षवर्धन),पाल वंश (सूर्यवंशी राजपूत), गहरवार वंश, चन्देल, हैहय-कलचुरी वंश के क्षत्रिय राजपूतों ने देशभर में एकछत्र साम्राज्य स्थापित किये थे।<br />इन्ही अवध व पूर्वांचल के राजपूतों ने सुहेलदेव बैस के नेतृत्व में महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को उसके एक लाख सैनिको के साथ मौत के घात उतारकर मुस्लिम हमलावरों को सबसे करारी मात दी थी।।</b><br /><br />पुरबिया राजपूत मालवा के मेदिनिराय और शिलादित्य (सलहदी) तंवर की सेना में शामिल होकर खानवा के युद्ध में राणा सांगा के नेतृत्व में बाबर से भी भिड़े थे,<br />अवध के नवाब शुजाउद्दौला की सेना के राजपूत सैनिको की चेतावनी के कारण ही अहमद शाह अब्दाली ने पानीपत के युद्ध 1761 ईस्वी में मराठो की हार के बाद उनके मृत सैनिको का हिन्दू रीती से अंतिम संस्कार की अनुमति दी थी।।<div><br />मध्यकाल में अवध पूर्वांचल बिहार के क्षत्रिय राजपूत सैन्य सेवा के लिए मालवा, दक्षिण भारत और देश के कई हिस्सों में जाकर स्थायी रूप से भी बस गए थे जिनके वंशज आज भी उन इलाको में मिलते हैं।उनके इन इलाको के अन्य राजपूतो से वैवाहिक सम्बन्ध न के बराबर हैं,मालवा महाराष्ट्र में इनकी बड़ी आबादी है।<br /><br />राजनीति में आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के राजपूत आगे हैं पर स्वतन्त्र न होकर अधिकतर दूसरे समाज के नेताओ के सूबेदारों के रूप में हैं।।<br />इन्हें फिर से अपनी खोई ताकत वापस लाने की सख्त जरूरत है।।<br /><br />Note---वर्तमान क्षेत्रीय पिछड़ेपन के कारण आज पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र राजस्थान पश्चिमी उत्तरप्रदेश में बिहार पूर्वांचल के लोगो को हेय दृष्टि से देखा जाता हैं,क्योंकि वो उनके इतिहास से परिचित नही हैं।<br />उनके प्राचीन और मध्यकालीन गौरव की जानकारी देने के लिए ही यह लेख लिखा गया है।।<br /><br />लेखक--श्री योगेन्द्र सिंह</div>Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-38036318644354750372020-05-10T02:35:00.002-07:002020-05-11T10:18:11.183-07:00कौन थे छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति प्रतापराव गुजर (Who was Prataprao Gujar)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbymIBkly-m4U3Kp6jT1-HXdPHr-K4scN5yTuqjlfCcjd1k9UpK4_ddowziOLPrliawQMxlw419nq-LbXAnUaLVSU_SDkXlMhg9njt0RmYX-U6OKqUTkjbhyVTEOdn2h3Mjnkyi0rWzX-T/s1600/FB_IMG_1589100328172.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1133" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbymIBkly-m4U3Kp6jT1-HXdPHr-K4scN5yTuqjlfCcjd1k9UpK4_ddowziOLPrliawQMxlw419nq-LbXAnUaLVSU_SDkXlMhg9njt0RmYX-U6OKqUTkjbhyVTEOdn2h3Mjnkyi0rWzX-T/s320/FB_IMG_1589100328172.jpg" width="305" /></a></div>
<br />
<h2 style="text-align: left;">
प्रतापराव गुजर (Who was Prataprao Gujar)---</h2>
<br />
एक बेहद हास्यास्पद प्रचार जो उत्तर भारत/ एनसीआर के पशुपालक गूजर/गुज्जर समुदाय द्वारा सोशल मीडिया पर किया जाता है वो यह कि हाईकोर्ट ने अपने किसी आदेश में छत्रपति शिवाजी महाराज को गूजर/गुज्जर जाति का होने की मान्यता दी है , यही नही इस दावे को हकीकत मानकर गूजर भाई छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती भी मनाते हैं!<br />
<br />
<b>आइये करते हैं गूजरों के इस दावे की पड़ताल</b><br />
<br />
<span style="color: red;">गूजर/गुज्जर जिस कोर्ट केस का लिंक शेयर करके छत्रपति शिवाजी महाराज को अपनी जाति से जोड़ते हैं दरअसल वो कोर्ट केस छत्रपति शिवाजी के सेनापति प्रतापराव गुजर के एक वंशज ने किया था जो सम्पत्ति विवाद था, उस आदेश में कहीं भी शिवाजी महाराज की जाति को लेकर कोई निर्णय नही दिया गया न ही यह उस मुकदमे का कोई हिस्सा था!!</span><br />
<span style="color: red;">वो सीधा सीधा संपत्ति विवाद था।</span><br />
<br />
<b>अब आइये जानिए कौन थे शिवाजी महाराज के प्रमुख सेनापति प्रतापराव गुजर??</b><br />
<span style="color: lime;"><b><br /></b></span>
<span style="color: lime;"><b>क्या प्रतापराव गुजर का सम्बन्ध उत्तर भारत की गूजर/गुज्जर बिरादरी से था??</b></span><br />
<span style="color: lime;"><b>क्या महाराष्ट्र में भी गूजर/गुज्जर बिरादरी की कोई आबादी है ??</b></span><br />
<br />
तो जानिए सच्चाई :-<br />
<br />
महाराष्ट्र में 96 कुली मराठा क्षत्रिय जाति में ही एक सूर्यवंशी कुल है गुजर!!<br />
जी हां ये <b>गुजर मराठा</b> कुल खुद को उत्तर भारत के बडगूजर राजपूतो का वंशज मानता है न कि उत्तर भारत के पशुपालक<br />
गूजर बिरादरी से अपना कोई सम्बन्ध मानता है...<br />
<br />
<span style="color: orange;"><b>प्रतापराव गुजर बडगूजर मराठा क्षत्रिय थे न कि पशुपालक गूजर/गुज्जर !!!</b></span><br />
<br />
प्रतापराव गुजर का जन्म सतारा के भोसारे गांव में 1615 ईस्वी मे हुआ था, इनका असली नाम कुड़तोजी गुजर था, इन्होंने मिर्जा राजा जयसिंह की सेना के विरुद्ध शिवाजी की ओर से लड़ते हुए बड़ी बहादुरी दिखाई थी, तो शिवाजी महाराज ने इनको "प्रतापराव" की उपाधि दी थी!!<br />
<br />
1674 ईसवी में प्रतापराव गुजर मुगल सेनापति बहलोल खान के विरुद्ध बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए, छत्रपति शिवाजी महाराज ने इनके बलिदान से प्रभावित होकर अपने पुत्र राजाराम का विवाह प्रतापराव गुजर की पुत्री जानकीबाई से किया।<br />
जानकीबाई अपने पति राजाराम की 30 वर्ष की आयु में मृत्यु हो जाने पर सती हो गयी थी।<br />
<br />
तो भाइयो ये थे महान शूरवीर मराठा सेनापति प्रतापराव गुजर जो बडगूजर मराठा कुल से थे ,<b>आज भी महाराष्ट्र के 96 कुली मराठो में गुजर वंश (बडगूजर) मिलता है ,</b><br />
<b>फेसबुक ट्विटर पर बहुत से गुजर मराठा हैं, इनका उत्तर भारत के पशुपालक गुज्जरों से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नही है।।</b><br />
<br />
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के अतिरिक्त तीन और गुर्जर नामधारी जातियां मिलती हैं उनका भी उत्तर भारत के गुज्जरों से कोई लिंक प्रमाणित नही है..<br />
<br />
<h3 style="text-align: left;">
इनमे पहले हैं लेवे गुर्जर या रेवे गुर्जर---</h3>
ये आधुनिक गुजरात के लेवा कुणबी (पाटीदार) जाति से है ,कुछ सदी पहले ही ये गुजरात से महाराष्ट्र के खानदेश इलाके में बस गए थे तो गुजरात से आने के कारण इन्हें महाराष्ट्र में लेवा गुर्जर कहा गया, इनके गुजरात के लेवा कुनबियों में रिश्ते भी हो जाते हैं और खानदेश के लोगो ने जानकारी दी कि इनके जाति प्रमाणपत्र में भी अक्सर लेवे पटेल लिखा होता है !!!<br />
<br />
<h3 style="text-align: left;">
दूसरे हैं डोरे गुर्जर---</h3>
<br />
ये खुद को सदियों पहले राजस्थान से महाराष्ट्र मे आकर बसे राजपूत ही मानते हैं इनके वंशनाम राजपूतो जैसे ही हैं,<br />
दरअसल कुछ मान्यताओं के अनुसार ये प्राचीन गुर्जरात्रा (आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान का गोडवाड़ इलाका) से बहुत पहले महाराष्ट्र में जाकर बसे वो राजपूत हैं जो कुछ समय बाद अलग जाति बन गए और गुर्जरात्रा से जाने के कारण गुर्जर कहलाए।<br />
इनका भी उत्तर भारत के पशुपालक गूजर/गुज्जर समाज से कोई सम्बन्ध प्रमाणित नही है!!!<br />
<br />
महाराष्ट्र की रेवे गुर्जर या डोरे गुर्जर बिरादरियों के कुल वंशनाम उत्तर भारत के गूजरो से नही मिलते।।<br />
<br />
<h3 style="text-align: left;">
तीसरी जाति है बडगूजर </h3>
<div>
महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में बडगूजर नामक एक अलग जाति भी मिलती है जो वर्तमान में न तो राजपूत है न मराठा और न ही गूजर।।</div>
<div>
ये भी भूतकाल में बडगूजर राजपूतों से अलग होकर बनी हुई जाति प्रतीत होती है।</div>
<br />
पर अब कुछ दशक से उत्तर भारत के पशुपालक गूजर/गुज्जर बिरादरी और महाराष्ट्र की गुर्जर नामधारी इन बिरादरियों में सम्पर्क हो गया है और पहचान बनाने व वोटबैंक दिखाने के लिये ये खुद को एक बताने लगे हैं, असल मे इनमे ऐतिहासिक या नस्लीय कोई भी साम्यता प्रमाणित नही होती !!<br />
<br />
अगर महाराष्ट्र की उपरोक्त गुर्जर नामधारी जातियों का सम्बन्ध उत्तर भारत के गूजरो से हो भी, तब भी <b>प्रतापराव गुजर मराठा</b> का इनसे कोई सम्बन्ध नही है<br />
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<br />
तो भाइयो महाराष्ट्र में उत्तर भारत के पशुपालक गूजर या गुज्जर समुदाय की कोई आबादी है ही नही!!<br />
<br />
जिन मराठा सेनापति प्रतापराव गुजर के नाम से ये उन्हें अपनी बिरादरी का होने का दावा करते हैं और प्रतापराव की पुत्री का विवाह शिवाजी महाराज के पुत्र से होने के कारण छत्रपति शिवाजी महाराज को भी गूजर या गुज्जर होने का हास्यास्पद दावा करते हैं उन <span style="color: red;"><i><b>महान यौद्धा प्रतापराव गुजर का भी उत्तर भारत के पशुपालक गुज्जर समुदाय से कोई सम्बन्ध नही है।।</b></i></span><br />
<br />
छत्रपति शिवाजी महाराज भोंसले और उनके पिता शाहजी भोंसले खुद को मेवाड़ के गुहिलोत राजपूतो का वंशज मानते थे यही ऐतिहासिक और प्रमाणित सत्य है ।<br />
<br />
महापुरुष सभी की साझा धरोहर होते हैं किंतु मिथ्या प्रचार या मिथ्याभिमान उचित नही है</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-17888754937418955642019-09-29T00:27:00.000-07:002019-10-25T23:28:01.969-07:00मौर्य क्षत्रिय राजपूत वंश (Maurya dynasty) <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg04h0K1juC3w8RsLuqYES33wN4u1Xb_sqz__uefvAC8ck6glrIOKytaj5G39KBYXAy20cCCoFK1vk00nww-m_OvKjcvfKY028joVirdmtX2rlA4EfvljIZMaLGHLT4cpD8rY0Q8fJagCfV/s1600/Chandragupt_maurya_Birla_mandir_6_dec_2009_31_cropped-e1449055891925.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="444" data-original-width="788" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg04h0K1juC3w8RsLuqYES33wN4u1Xb_sqz__uefvAC8ck6glrIOKytaj5G39KBYXAy20cCCoFK1vk00nww-m_OvKjcvfKY028joVirdmtX2rlA4EfvljIZMaLGHLT4cpD8rY0Q8fJagCfV/s320/Chandragupt_maurya_Birla_mandir_6_dec_2009_31_cropped-e1449055891925.jpg" width="320" /></a></div>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">सूर्यवंशी मौर्य क्षत्रिय राजपूत वंश की गौरव गाथा-------</span></h2>
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मौर्य वंश से जुडी भ्रांतियों का तर्कपूर्ण खण्डन टीम rajputana soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास द्वारा,<br />
जरूर पढ़ें और अधिक से अधिक शेयर भी करें।।<br />
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<b>मौर्यो के रघुवंशी क्षत्रिय होने के प्रमाण--------</b><br />
<br />
महात्मा बुध का वंश शाक्य गौतम वंश था जो सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।कौशल नरेश प्रसेनजित के पुत्र विभग्ग ने शाक्य क्षत्रियो पर हमला किया उसके<br />
बाद इनकी एक शाखा पिप्लिवन में जाकर रहने लगी। वहां मोर पक्षी की अधिकता के कारण मोरिय कहलाने लगी।<br />
<br />
बौद्ध रचनाओं में कहा गया है कि ‘नंदिन’(नंदवंश) के कुल का कोई पता नहीं चलता (अनात कुल) और चंद्रगुप्त को असंदिग्ध रूप से अभिजात कुल का बताया गया है।<br />
<br />
चंद्रगुप्त के बारे में कहा गया है कि वह मोरिय नामक क्षत्रिय जाति की संतान था; मोरिय जाति शाक्यों की उस उच्च तथा पवित्र जाति की एक शाखा थी, जिसमें महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। कथा के अनुसार, जब अत्याचारी कोसल नरेश विडूडभ ने शाक्यों पर आक्रमण किया तब मोरिय अपनी मूल बिरादरी से अलग हो गए और उन्होंने हिमालय के एक सुरक्षित स्थान में जाकर शरण ली। यह प्रदेश मोरों के लिए प्रसिद्ध था, जिस कारण वहाँ आकर बस जाने वाले ये लोग मोरिय कहलाने लगे, जिनका अर्थ है मोरों के स्थान के निवासी। मोरिय शब्द ‘मोर’ से निकला है, जो संस्कृत के मयूर शब्द का पालि पर्याय है।<br />
<br />
एक और कहानी भी है जिसमें मोरिय नगर नामक एक स्थान का उल्लेख मिलता है। इस शहर का नाम मोरिय नगर इसलिए रखा गया था कि वहाँ की इमारतें मोर की गर्दन के रंग की ईंटों की बनी हुई थीं। जिन शाक्य गौतम क्षत्रियों ने इस नगर का निर्माण किया था, वे मोरिय कहलाए।<br />
<br />
महाबोधिवंस में कहा गया है कि ‘कुमार’ चंद्रगुप्त, जिसका जन्म राजाओं के कुल में हुआ था (नरिंद-कुलसंभव), जो मोरिय नगर का निवासी था, जिसका निर्माण साक्यपुत्तों ने किया था, चाणक्य नामक ब्राह्मण (द्विज) की सहायता से पाटलिपुत्र का राजा बना।<br />
महाबोधिवंस में यह भी कहा गया है कि ‘चंद्रगुप्त का जन्म क्षत्रियों के मोरिय नामक वंश में’ हुआ था (मोरियनं खत्तियनं वंसे जातं)। बौद्धों के दीघ निकाय नामक ग्रन्थ में पिप्पलिवन में रहने वाले मोरिय नामक एक क्षत्रिय वंश का उल्लेख मिलता है। दिव्यावदान में बिन्दुसार (चंद्रगुप्त के पुत्र) के बारे में कहा गया है कि उसका क्षत्रिय राजा के रूप में विधिवत अभिषेक हुआ था (क्षत्रिय-मूर्धाभिषिक्त) और अशोक (चंद्रगुप्त के पौत्र) को क्षत्रिय कहा गया है।<br />
<br />
मौर्यो के 1000 हजार साल बाद विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस ग्रन्थ लिखा।जिसमे चन्द्रगुप्त को वृषल लिखा।<br />
वर्षल का अर्थ आज तक कोई सही सही नही बता पाया पर हो सकता है जो अभिजात्य न हो।<br />
चन्द्रगुप्त क्षत्रिय था पर अभिजात्य नही था एक छोटे से गांव के मुखिया का पुत्र था।<br />
अब इस ग्रन्थ को लिखने के भी 700 साल बाद यानि अब से सिर्फ 300 साल पहले किसी ढुंढिराज ने इस पर एक टीका लिखी जिसमे मनगढंत कहानी लिखी।<br />
<br />
जबकि हजारो साल पुराने भविष्य पुराण में लिखा है कि मौर्यो ने विष्णुगुप्त ब्राह्मण की मदद से नन्दवंशयो का शासन समाप्त कर पुन क्षत्रियो की प्रतिष्ठा स्थापित की।<br />
<br />
दो हजार साल पुराने बौद्ध और जैन ग्रन्थ और पुराण जो पण्डो ने लिखे उन सबमे मौर्यो को क्षत्रिय लिखा है।<br />
1300 साल पुराने जैन ग्रन्थ कुमारपाल प्रबन्ध में चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी क्षत्रिय लिखा है।<br />
<br />
महापरिनिव्वानसुत में लिखा है कि महात्मा बुद्ध के देहावसान के समय सबसे बाद मे पिप्पलिवन के मौर्य आए ,उन्होंने भी खुद को शाक्य वंशी गौतम क्षत्रिय बताकर बुद्ध के शरीर के अवशेष मांगे,<br />
<br />
एक पुराण के अनुसार इच्छवाकु वंशी मान्धाता के अनुज मांधात्री से मौर्य वंश की उतपत्ति हुई है।<br />
<br />
इतने प्रमाण होने और आज भी राजपूतो में मौर्य वंश का प्रचलन होने के बावजूद सिर्फ 200-300 साल पुराने ग्रन्थ के आधार पर कुछ लोग मौर्यो को क्षत्रिय नही घोषित कर देते हैं।<br />
<br />
ये वो हैं जिन्हें सही इतिहास की जानकारी नही है<br />
<br />
हर ऑथेंटिक पुराण में मौर्य को क्षत्रिय सत्ता दोबारा स्थापित करने वाला वंश लिखा है<br />
वायु पुराण विष्णु पुराण भागवत पुराण मत्स्य पुराण सबमें मौर्य वंश को सूर्यवँशी क्षत्रिय लिखा है।।<br />
<br />
मत्स्य पुराण के अध्याय 272 में यह कहा गया है की दस मौर्य भारत पर शासन करेंगे और जिनकी जगह शुंगों द्वारा ली जाएगी और शतधन्व इन दस में से पहला मौरिया(मौर्य) होगा।<br />
विष्णु पुराण की पुस्तक चार, अध्याय 4 में यह कहा गया है की "सूर्य वंश में मरू नाम का एक राजा था जो अपनी योग साधना की शक्ति से अभी तक हिमालय में एक कलाप नाम के गाँव में रह रहा होगा" और जो "भविष्य में क्षत्रिय जाती की सूर्य वंश में पुनर्स्थापना करने वाला होगा" मतलब कई हजारो वर्ष बाद।<br />
<br />
इसी पुराण के एक दुसरे भाग पुस्तक चार, अध्याय 24 में यह कहा गया है की "नन्द वंश की समाप्ति के बाद मौर्यो का पृथ्वी पर अधिकार होगा, क्योंकि कौटिल्य राजगद्दी पर चन्द्रगुप्त को बैठाएगा।"<br />
<br />
कर्नल टॉड मोरया या मौर्या को मोरी का विकृत रूप मानते थे जो वर्तमान में एक राजपूत वंश का नाम है।<br />
<br />
महावंश पर लिखी गई एक टीका के अनुसार मोरी नगर के क्षत्रिय राजकुमारों को मौर्या कहा गया।<br />
<br />
संस्कृत के विद्वान् वाचस्पति के कलाप गाँव को हिमालय के उत्तर में होना मानते हैं-मतलब तिब्बत में। ये ही बात भागवत के अध्याय 12 में भी कही गई है. "वायु पुराण यह कहते हुए प्रतीत होता है की वो(मारू) आने वाले उन्नीसवें युग में क्षत्रियो की पुनर्स्थापना करेगा।"<br />
(खण्ड 3, पृष्ठ 325) विष्णु पुराण की पुस्तक तीन के अध्याय छः में एक कूथुमि नाम के ऋषि का वर्णन है।<br />
<br />
गुहिल वंश के बाप्पा रावल के मामा चित्तौड़ के राजा मान मौर्य थे।<br />
चित्तौड की स्थापना चित्रांगद मौर्य ने की थी।<br />
कुमारपाल प्रबन्ध में 36 क्षत्रिय वंशो की सूची में मौर्य वंश का भी नाम है<br />
गुजरात के जैन कवि ने चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी लिखा था 7 वी सदी में।।<br />
<br />
मौर्यो ने पुरे भारत और मध्य एशिया तक पर राज किया।दूसरे वंशो के राज्य उनके सामने बहुत छोटे हैं<br />
कोई 100 गांव की स्टेट कोई 500 गांव की स्टेट वो सब मशहूर हो गए।<br />
============================<br />
<h3 style="text-align: left;">
चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन-----</h3>
<br />
चन्द्रगुप्त मोरिय के पिता<br />
पिप्लिवंन के सरदार थे जो मगध के राजा नन्द के हमले में मारे गये।<br />
ब्राह्मण चाणक्य का नन्द राजा ने अपमान किया जिसके बाद चाणक्य ने देश को शूद्र राजा के चंगुल से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया। एक दिन<br />
चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को देखा तो उसके भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान<br />
गया। उसने च्न्द्र्गुप्र के वंश का पता कर उसकी माँ से शिक्षा देने के लिए<br />
चन्द्रगुप्त को अपने साथ लिया। फिर वो उसे तक्षिला ले गया जहाँ<br />
चन्द्रगुप्त को शिक्षा दी गयी।<br />
<br />
उसी समय यूनानी राजा सिकन्दर ने भारत<br />
पर हमला किया।<br />
चन्द्रगुप्त और चानक्य ने पर्वतीय राजा पर्वतक से मिलकर नन्द राजा पर<br />
हमला कर उसे मारकर देश को मुक्ति दिलाई। साथ ही साथ<br />
यूनानी सेना को भी मार भगाया। उसके बाद बिन्दुसार और अशोक राजा<br />
हुए। सम्राट अशोक बौध बन गया।<br />
<br />
अशोक के कई पुत्र हुए जिनमे महेंद्र कुनाल,जालोंक दशरथ थे<br />
जलोक को कश्मीर मिला,दशरथ को मगध की गद्दी मिली।<br />
कुणाल के पुत्र सम्प्रति को<br />
पश्चिमी और मध्य भारत यानि आज का गुजरात राजस्थान मध्य प्रदेश<br />
आदि मिला।<br />
सम्प्रति जैन बन गया उसके बनाये मन्दिर आज भी राजस्थान में मिलते हैं, सम्प्रति के के वंशज आज के मेवाड़ उज्जैन इलाके में राज करते रहे।<br />
<br />
पश्चिम भारत के मौर्य क्षत्रिय राजपूत माने गये। चित्तौड पर इनके राजाओ के नाम महेश्वर भीम<br />
भोज धवल और मान थे।<br />
<h3 style="text-align: left;">
<br />मौर्य और राजस्थान--------</h3>
राजस्थान के कुछ भाग मौर्यों के अधीन या प्रभाव<br />
क्षत्र में थे। अशोक का बैराठ का शिलालेख<br />
तथा उसके उत्तराधिकारी कुणाल के पुत्र<br />
सम्प्रति द्वारा बनवाये गये मन्दिर मौर्यां के<br />
प्रभाव की पुश्टि करते हैं। कुमारपाल प्रबन्ध<br />
तथा अन्य जैन ग्रंथां से अनुमानित है कि चित्तौड़<br />
का किला व चित्रांग तालाब मौर्य राजा चित्रांग<br />
का बनवाया हुआ है। चित्तौड़ से कुछ दूर<br />
मानसरोवर नामक तालाब पर राज मान का,<br />
जो मौर्यवशी माना जाता है, वि. सं. 770<br />
का शिलालेख कर्नल टॉड को मिला, जिसमें<br />
माहेश्वर, भीम, भोज और मान ये चार नाम<br />
क्रमशः दिये हैं। कोटा के निकट कणसवा (कसुंआ)<br />
के शिवालय से 795 वि. सं. का शिलालेख<br />
मिला है, जिसमें मौर्यवंशी राजा धवल का नाम है।<br />
इन प्रमाणां से मौर्यों का राजस्थान में अधिकार<br />
और प्रभाव स्पष्ट हाता है।<br />
चित्तौड़ के ही एक और मौर्य शासक धरणीवराह का भी नाम मिलता है<br />
<br />
शेखावत गहलौत राठौड़ से पहले शेखावाटी क्षेत्र और मेवाड़ पर मौर्यो की सत्ता थी।शेखावाटी से मौर्यो ने यौधेय जोहिया राजपूतों को हटाकर जांगल देश की ओर विस्थापित कर दिया था।<br />
पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के सामन्तों में भीम मौर्य और सारण मौर्य मालंदराय मौर्य और मुकुन्दराय मौर्य का भी नाम आता है।<br />
ये मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र सम्प्रति के वंशज थे।मौर्य वंश का ऋषि गोत्र भी गौतम है।<br />
<br />
गहलौत वंशी बाप्पा रावल के मामा चित्तौड के मान मौर्य थे, बाप्पा रावल ने मान मौर्य से चित्तौड का किला जीत<br />
लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया।<br />
<br />
इसके बाद मौर्यों की एक शाखा<br />
दक्षिण भारत चली गयी और मराठा राजपूतो में मिल गयी जिन्हें आज मोरे मराठा कहा जाता है वहां इनके कई राज्य थे। आज भी मराठो में मोरे वंश उच्च कुल माना जाता है।<br />
<br />
खानदेश में मौर्यों का एक लेख मिला है...जो ११ वी शताब्दी का है।जिसमे उल्लेख है के ये मौर्य काठियावाड से यहाँ आये....! एपिग्रफिया इंडिका,वॉल्यूम २,पृष्ठ क्रमांक २२१....सदर लेख वाघली ग्राम,चालीसगांव तहसील से मिला है....<br />
<br />
एक शाखा उड़ीसा चली गयी ।वहां के राजा धरणीवराह के वंशज रंक उदावाराह के प्राचीन लेख में उन्होंने सातवी सदी में चित्तौड या चित्रकूट से आना लिखा है।<br />
<br />
<span style="color: red;">कुछ मोरी या मौर्य वंशी</span><br />
<span style="color: red;">राजपूत आज भी आगरा मथुरा निमाड़ मालवा उज्जैन में मिलते हैं। इनका गोत्र गौतम है। बुद्ध का गौत्र भी गौतम था जो इस बात का प्रमाण है कि मौर्य</span><br />
<span style="color: red;">और गौतम वंश एक ही वंश की दो शाखाएँ हैं,</span><br />
===============================<br />
<h3 style="text-align: left;">
मौर्य और परमार वंश का सम्बन्ध-----</h3>
<br />
13 वी सदी में मेरुतुंग ने स्थिरावली की रचना की थी<br />
जिसमे उज्जैन के सम्राट गंधर्वसेन को जो विक्रमादित्य परमार के पिता थे उन्हें मौर्य सम्राट सम्प्रति का पौत्र लिखा था।<br />
जिन चित्तौड़ के मौर्यो को भाट ग्रंथो में मोरी लिखा है वहां मोरी को परमार की शाखा लिख दिया।जबकि परमार नाम बहुत बाद में आया।उन्ही को समकालीन विद्वान रघुवंशी मौर्य लिखते है।<br />
उज्जैन अवन्ति मरुभूमि तक सम्प्रति का पुरे मालवा और पश्चिम भारत पर राज था जो उसके हिस्से में आया था।इसकी राजधानी उज्जैन थी।इसी उज्जैन में स्थिरावली के अनुसार सम्प्रति मौर्य के पौत्र के पुत्र विक्रमादित्य ने राज किया जिन्हें भाट ग्रंथो में परमार लिखा गया।<br />
<br />
परमार राजपूतो की उत्पत्ति अग्नि वंश से मानी जाती है परन्तु अग्नि से किसी की उत्पत्ति नही होती है. राजस्थान के जाने माने विद्वान सुरजन सिंंह झाझड, हरनाम सिंह चौहान के अनुसार परमार राजवंश मौर्य वंश की शाखा है.इतिहासकार गौरीशंकर ओझा के अनुसार सम्राट अशोक के बाद मौर्यो की एक शाखा का मालवा पर शासन था. भविष्य पुराण मे भी इसा पुर्व मे मालवा पर परमारो के शासन का उल्लेख मिलता है.<br />
<br />
"राजपूत शाखाओ का इतिहास " पेज # २७० पर देवी सिंंह मंडावा महत्वपूर्न सूचना देते है. लिखते है कि विक्रमादित्य के समय शको ने भारत पर हमला किया तथा विक्रमादित्य न उन्हेे भारत से बाहर खदेडा. विक्रमादित्य के वंशजो ने ई ५५० तक मालवा पर शासन किया. इन्ही की एक शाखा ने ६ वी सदी मे गढवाल चला गया और वहा परमार वंश की स्थापना की.<br />
<br />
अब सवाल उठता है कि विक्रमादित्य किस वंश से थे? कर्नल जेम्स टाड के अनुसार भारत के इतिहास मे दो विक्रमादित्य आते है. पहला मौर्यवंशी विक्रमादित्य जिन्होने विक्रम संवत की सुरुआत की. दूसरा गुप्त वंश का चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जो एक उपाधि थी..<br />
<br />
मिस्टर मार्सेन ने "ग्राम आफ सर्वे "मे लिखा है कि शत्धनुष मौर्य के वंश मे महेन्द्रादित्य का जन्म हुआ और उसी का पुत्र विक्रमादित्य हुआ..<br />
<br />
कर्नल जेम्स टाड पेज # ५४ पर लिखते है कि मौर्य तक्षक वंशी थे जो बाद मे परमार राजपूत कहलाये. अत: स्पष्ट हो जाता है कि परमार वंश मौर्य वंश की ही शाखा है.<br />
<br />
कालीदास , अमरिसंह , वराहमिहिर,धनवंतरी, वररुिच , शकु आदि नवरत्न विक्रमाद्वित्य के दरबार को सुशोभित करते थे तथा इसी राजवंश मे जगत प्रिसद्ध राजा भोज का जन्म हुआ.<br />
<br />
इसी आधार पर मौर्य और परमार को एक मानने के प्रमाण हैं।<br />
अधिकतर पश्चिम भारत के मौर्य परमार कहलाने लगे और छोटी सी शाखा बाद तक मोरी मौर्य राजपूत कहलाई जाती रही और भाट इन्हें परमार की शाखा कहने लगे जबकि वास्तव में उल्टा हो सकता है।<br />
कर्नल जेम्स टॉड ने भी चन्द्रगुप्त मौर्य को<br />
परमार वंश से लिखा है।<br />
<br />
चन्द्रगुप्त के समय के सभी जैन और बौध धर्म मौर्यों को शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय प्रमाणित करते है ।चित्तौड के मौर्य राजपूतो को पांचवी सदी में<br />
सूर्यवंशी ही माना जाता था<br />
==============================<br />
<h3 style="text-align: left;">
मौर्य वंश आज राजपूतो में कहाँ गायब हो गया??????</h3>
<br />
मौर्य वंश अशोक के पोत्रो के समय दो भागो में बंट गया।<br />
पश्चिमी भाग सम्प्रति मौर्य के हिस्से में आया।वो जैन बन गया था।उसकी राजधानी उज्जैन थी।उसके वंशजो ने लम्बे समय तक मालवा और राजस्थान में राज किया।<br />
<br />
पूर्वी भाग के राजा बौद्ध बने रहे और पुष्यमित्र शुंग द्वारा मारे गए।<br />
<br />
पश्चिमी भारत के मौर्य परमार राजपूतो के नाम से प्रसिद्ध हुए।<br />
<br />
इनकी चित्तौड़ शाखा मौर्य ही कहलाती रही।<br />
चित्तौड़ शाखा के ही वंश भाई सिंध के भी राजा थे।उनका नाम साहसी राय मौर्य था जिन्हें मारकर चच ब्राह्मण ने सिंध पर राज किया तब उनके रिश्ते के भाई चित्तौड़ से वहां चच ब्राह्मण से लड़ने गए थे जिसका जिक्र 8 वी सदी में लिखी चचनामा में मिलता है।<br />
<br />
जब बापा रावल ने मान मोरी को हराकर चित्तौड़ से निकाल दिया तो यहाँ के मौर्य मोरी राजपूत इधर उधर बिखर गए----<br />
<br />
1-एक शाखा रंक उदवराह के नेतृत्व में उड़ीसा चली गयी।वहां के अधिकतर सूर्यवँशी आज उसी के वंशज होने का दावा करते हैं।<br />
<br />
2-एक शाखा हिमाचल प्रदेश गयी और चम्बा में भरमोर रियासत की स्थापना की।इनके लेख में इन्हे 5 वी सदी के पास चित्तौड़ से आना लिखा है।ये स्टेट आज भी मौजूद है और इनके राजा को सूर्यवँशी कहा जाता है।इस शाखा के राजपूत अब चाम्बियाल राजपूत कहलाते हैं<br />
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Chambial<br />
<br />
3-<span style="color: red;">एक शाखा मालवा की और पहले से थी और आज भी निमाड़ उज्जैन और कई जिलो में शुद्ध मौर्य राजपूत मिलते हैं।</span><br />
<span style="color: red;">एक शाखा आगरा के पास 24 गाँव में है और शुद्ध मोरी राजपूत कहलाती है।</span><br />
इस राठौर राजपूत ठिकाने की लड़की मौर्य राजपूत ठिकाने में ब्याही है<br />
http://www.indianrajputs.com/view/maswadia<br />
<br />
4-एक शाखा महाराष्ट्र चली गयी।उनमे खानदेश में आज भी मौर्य राजपूत हैं जबकि कुछ मराठा बन गए और मोरे मराठे कहलाये..<br />
<br />
वास्तव में मौर्य अथवा मोरी वंश एक शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय राजपूत वंश है जो आज भी राजपूत समाज का अभिन्न अंग है।<br />
"============================<br />
<b>मौर्य मोरी वंश के गोत्र प्रवर आदि---</b><br />
<b>गोत्र--गौतम और कश्यप</b><br />
<b>प्रवर तीन--गौतम वशिष्ठ ब्राह्स्पत्य</b><br />
<b>वेद--यजुर्वेद</b><br />
<b>शाखा--वाजसनेयी</b><br />
<b>कुलदेव--खांडेराव</b><br />
<b>गद्दी--कश्मीर,पाटिलिपुत्र, चित्तौड़, उज्जैनी,भरमौर, सिंध,</b><br />
<b>निवास--आगरा, मथुरा, फतेहपुर सीकरी, उज्जैन, निमाड़, हरदा,इंदौर, खानदेश महाराष्ट्र ,तेलंगाना, गुजरात(karadiya में),हिमाचल प्रदेश,मेवाड़</b><br />
<b>सांस्कृतिक रिवाज--शुभ कार्यो में मोर पंख रखते हैं।</b><br />
==============================<br />
<br />
<span style="color: red;">रेफरेंस---</span><br />
<span style="color: red;">1--http://www.theosophy.wiki/en/Morya</span><br />
<span style="color: red;">2--पुराणों में मौर्य वंश </span><br />
<span style="color: red;">http://www.katinkahesselink.net/blavatsky/articles/v6/y1883_173.htm</span><br />
<span style="color: red;">3-https://en.m.wikipedia.org/wiki/Ancestry_of_Chandragupta_Maurya</span><br />
<span style="color: red;">4--आचार्य चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र </span><br />
<span style="color: red;">5-जयशंकर प्रसाद कृत "चन्द्रगुप्त"</span><br />
<span style="color: red;">6-http://www.indianrajputs.com/view/maswadia</span><br />
<span style="color: red;">-----------------------</span><br />
<span style="color: red;">लेखक --टीम राजपुताना सोच</span><br />
<span style="color: red;"><br /></span></div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-43724731473701655102019-09-28T06:39:00.000-07:002019-10-25T23:29:03.426-07:00गौतम क्षत्रिय राजपूत वंश (The clan of Gautam Budha)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi489lrZWCZdrkMaw4YKU6Pf9udyMp2TcgKs1BcxY5PZHpa-Hm2oGBfvYaMkuPZG5GtGlcks42wjRzaK5g39SVmLsAfC7qiHR2ayxIfNVzPjD-_zgNRs61qWMvLSuakRAx00fjKiXR7YGdc/s1600/IMG-20190928-WA0013.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="623" data-original-width="720" height="276" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi489lrZWCZdrkMaw4YKU6Pf9udyMp2TcgKs1BcxY5PZHpa-Hm2oGBfvYaMkuPZG5GtGlcks42wjRzaK5g39SVmLsAfC7qiHR2ayxIfNVzPjD-_zgNRs61qWMvLSuakRAx00fjKiXR7YGdc/s320/IMG-20190928-WA0013.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: #444444;">गौतम क्षत्रिय राजपूत वंश का सम्पूर्ण विवरण--</span></h2>
<div dir="ltr">
==================================<br />
<b>
गौतम राजपूत वंश का गौत्रोच्चार--</b></div>
<div dir="ltr">
<b>वंश--सूर्यवंश,इच्छवाकु,शाक्य<br />
गोत्र- गौतम <br />
प्रचर पाँच - गौतम , आग्डिरस , अप्सार,बार्हस्पत्य, ध्रुव<br />
कुलदेवी- चामुण्ङा माता,बन्दी माता,दुर्गा माता<br />
देवता - महादेव योगेश्वर,श्रीरामचन्द्र जी<br />
वेद - यजुर्वेद<br />
शाखा- वाजसनेयी</b></div>
<blockquote class="tr_bq">
<b>
प्रसिद्ध महापुरुष--गौतम बुद्ध</b></blockquote>
<b>
सुत्र- पारस्करगृहासूत्र</b><br />
<div dir="ltr">
<b>गौतम वंश का महामंत्र--<br />
रेणुका: सूकरह काशी काल बटेश्वर:।<br />
कालिंजर महाकाय अश्वबलांगनव मुक्तद:॥</b></div>
<div dir="ltr">
<b>प्राचीन राज्य--कपिलवस्तु, अर्गल, मेहनगर, कोरांव,बारां(उन्नाव),लशकरपुर ओईया(बदायूं)<br />
निवास---अवध,रुहेलखण्ड,पूर्वांचल,बिहार,मध्य प्रदेश<br />
शाखाएं--कंडवार, गौनिहां, रावत,अंटैया,गौतमिया आदि<br />
प्राचीन शाखाएं--मोरी(मौर्य),परमार(सम्भवत,शोध जारी)</b></div>
<div dir="ltr">
<br />
अनुमानित जनसंख्या--1891 की जनगणना में यूपी में कुल 51970 गौतम राजपूत थे अब करीब दो से ढाई लाख होंगे,इसमें बिहार और मध्य प्रदेश के गौतम राजपूतो की संख्या भी जोड़ ले तो करीब 350000 गौतम राजपूतो की संख्या देश भर में होगी।।</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
गौतम सूर्यंवंशी राजपूत हैं ये अयोधया के सूर्यवंश से अलग हुई शाखा है इन्हें पहले शाक्य वंश भी कहा जाता है।</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
Note-- Alexander Cunningham (1871:349) relates the Sakya to the modern Gautam Rajputs, who were residing in the contemporary Indian districts Nagar & Amoddha of U.P.</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
गौतम ऋषि द्वारा दीक्षित होने के कारण इनका ऋषि गोत्र गौतम हुआ जिसके बाद ये गौतम क्षत्रिय कहलाए जाने लगे।</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
वंश भास्कर के अनुसार---भगवान राम के किसी वंशज ने प्राचीन काल मे अपना राज्य नेपाल मे स्थापित किया ।<br />
इसी वंश मे महाराणा शाक्य सिंह हुए जिनके नाम से यह शाक्य वंश कहा जाने लगा। इसकी राजधानी कपिलवस्तु ( गोरखपुर ) थी। इसी वंश में आगे चलकर शुध्दोधन हुये जिनकी बडी रानी से सिद्धार्थ उत्पन्न हुये जो " गौतम " नाम से सुविख्यात हुये । जो संसार से विरक्त होकर प्रभु भक्ति में लीन हो गये । संसार से विरक्त होने से पहले इनकी रानी यशोधरा को पुत्र (राहुल ) उत्पन्न हो चुका था। इन्हीं गौतम बुद्ध के वंशज " गौतम " राजपूत कहलाते हैं । इस वंश में राव, रावत, राणा, राजा आदि पदवी प्राप्त घराने हैं । </div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
अश्वघोष के अनुसार-----गौतम गोत्री कपिल नामक तपस्वी मुनि अपने माहात्म्य के कारण दीर्घतपस के समान और अपनी बुद्धि के कारण काव्य (शुक्र) तथा अंगिरस के समान था| उसका आश्रम हिमालय के पार्श्व में था| कई इक्ष्वाकु-वंशी राजपुत्र मातृद्वेष के कारण और अपने पिता के सत्य की रक्षा के निमित्त राजलक्ष्मी का परित्याग कर उस आश्रम में जा रहे| कपिल उनका उपाध्याय (गुरु) हुआ, जिससे वे राजकुमार, जो पहले कौत्स-गोत्री थे, अब अपने गुरु के गोत्र के अनुसार गौतम-गोत्री कहलाये| एक ही पिता के पुत्र भिन्न-भिन्न गुरुओं के कारण भिन्न भिन्न गोत्र के हो जाते है, जैसे कि राम (बलराम) का गोत्र "गाग्र्य" और वासुभद्र (कृष्ण) का "गौतम" हुआ। जिस आश्रम में उन राजपुत्रों ने निवास किया, वह "शाक" नामक वृक्षों से आच्छादित होने के कारण वे इक्ष्वाकुवंशी "शाक्य" नाम से प्रसिद्ध हुये। गौतम गोत्री कपिल ने अपने वंश की प्रथा के अनुसार उन राजपुत्रों के संस्कार किये और उक्त मुनि तथा उन क्षत्रिय-पुंगव राजपुत्रों के कारण उस आश्रम ने एक साथ "ब्रह्मक्षत्र" की शोभा धारण की)।</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
एक अन्य मत के अनुसार श्रृंगी ऋषि का विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री से हुआ,उसके<br />
दो पुत्र हुए,एक ने अर्गल के गौतम वंश की नीव रखी और दुसरे पदम से सेंगर वंश चला,इस मत के अविष्कारक ने लिखा कि 135 पीढ़ियों तक सेंगर वंश पहले सीलोन (लंका) फिर मालवा होते हुए ग्यारहवी सदी में जालौन में कनार में स्थापित हुए. किन्तु यह मत बिलकुल गलत है,क्योंकि पहले तो अर्गल का गौतम वंश,सूर्यवंशी क्षत्रिय गौतम बुध का वंशज है और दूसरी बात कि कन्नौज में गहरवार वंश का शासन ही दसवी सदी के बाद शुरू हुआ तो उससे 135 पीढ़ी पहले वहां के गहरवार राजा की पुत्री से श्रृंगी ऋषि का विवाह होना असम्भव है.</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
गौतम बुद्ध का जन्म भी इसी वंश में हुआ था।<br />
शाक्य राज्य पर कोशल नरेश विभग्ग द्वारा आक्रमण कर इसे नष्ट कर दिया गया था जिसके बाद बचे हुए शाक्य गौतम क्षत्रियों द्वारा अमृतोदन के पुत्र पाण्डु के नेतृत्व में अर्गल राज्य की स्थापना की गयी।अर्गल आज के पूर्वांचल के फतेहपुर जिले में स्थित है।</div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
प्रसिद्ध गौतम राजा अंगददेव ने अपने नाम का रिन्द नदी के किनारे "अर्गल" नाम की आबादी को आबाद करवाया और गौतम के खानदान की राजधानी स्थापित किया राजा अंगददेव. की लडकी अंगारमती राजा कर्णदेव को ब्याही थी राजा अंगददेव ने अर्गल से ३मील दक्षिण की तरफ एक किला बनवाया और इस किले का नाम "सीकरी कोट" यह किला गए में ध्वंसावशेष के रूप में आज भी विद्यमान है।<br />
१- राजा अंगददेव<br />
२- बलिभद्रदेव<br />
३- राजा श्रीमानदेव<br />
४- राजा ध्वजमान देव<br />
५- राजा शिवमान देव :-<br />
राजा शिवमान देव ने अर्गल से १मील दक्षिण रिन्द नदी के किनारे अर्गलेश्वर महादेव का मन्दिर बनवाया यहाँ आज भी शिवव्रत का मेला लगता है।<br />
अर्गल राजा कलिंग देव ने रिन्द नदी के किनारे कोडे (कोरा) का किला बनवाया।</div>
<div dir="ltr">
13वीं शताब्दी में भरो द्वारा अर्गल का हिस्सा दबा लिया था।उस समय अर्गल राज्य में अवध क्षेत्र के कन्नौज के रायबरेली फतेहपुर बांदा के कुछ क्षेत्र आते थे। <br />
1320 के पास अर्गल के गौतम राजा नचिकेत सिंह व बैस ठाकुर अभय सिंह व निर्भय सिंह का जिक्र आता है। उस समय बैसवारा में सम्राट हर्षवर्धन के वंशज बैस ठाकुरों का उदय हो रहा था। उनके नाम पर ही इस क्षेत्र को बैसवारा क्षेत्र कहा गया। एक युद्ध में नचिकेत सिंह और उनकी पत्नी को गंगा स्नान के समय विरोधी मुस्लिम सेना ने घेर लिया तो निर्भय व अभय सिंह ने उन्हें बचाया था। इसमें निर्भय सिंह को वीर गति प्राप्त हुई थी। राजा ने अभय सिंह की बहादुरी से खुश होकर उन्हें अपनी पुत्री ब्याह दी और दहेज में उसे डौडिया खेड़ा का क्षेत्र सहित रायबरेली के 24 परगना (उस समय यह रायबरेली में आता था) और <br />
फतेहपुर का आशा खेड़ा का राजा बनाया था। 1323 ईसवी में अभय सिंह बैस यहां के राजा हुए थे। यह पूरा क्षेत्र भरों से खाली कराने में अभय सिंह की दो पीढिया लगीं। इसके बाद आगे की पीढ़ी में मर्दन सिंह का जिक्र आता है।</div>
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अर्गल के गौतम राजा द्वारा चौसा के युद्ध में हुमायूँ को हराया गया जिससे शेरशाह सूरी को मुगलो को अपदस्थ कर भारत का सम्राट बनने में सहायता मिली।</div>
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जब मुगलों का भारत में दुबारा अधिपत्य हुआ तो उन्होंने बदले की भावना से अर्गल राज्य पर हमला किया और यह राज्य नष्ट हो गया।<br />
फिर भी बस्ती गोरखपुर क्षेत्र में गौतम राजपूतो की प्रभुसत्ता बनी रही और ब्रिटिश काल तक गौतम राजपूतो के एक जमीदार परिवार शिवराम सिंह "लाला" को अर्गल नरेश की उपाधि बनी रही।</div>
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अर्गल के गौतम राजपूतो की एक शाखा पूर्वांचल गयी वहां मेहनगर के राजा विक्रमजीत गौतम ने किसी मुस्लिम स्त्री से विवाह कर लिया जिससे उन्हें राजपूत समाज से बाहर कर दिया गया।<br />
विक्रमजीत की मुस्लिम पत्नी के पुत्र ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया जिसका नाम आजम खान रखा गया।</div>
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इसी आजम खान ने आजमगढ़ राज्य की नीव रखी।</div>
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बस्ती जिले में नगर के गौतम राजा प्रताप नारायण सिंह ने 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजो के विरुद्ध क्रांति में बढ़ चढ़कर भाग लिया तथा अंग्रेजो को कई बार मात दी।<br />
लेकिन उनके कुछ दुष्ट सहयोगियों द्वारा विश्वासघात करने के कारण वो पकड़े गए तथा उन्हें अंग्रेजो द्वारा मृत्युदण्ड की सजा दी गयी।</div>
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इस क्षेत्र के गौतम राजपूतों ने ओरंगजेब का भी मुकाबला किया था।<br />
उत्तराधिकार संघर्ष में शाह शुजा भागकर फतेहपुर आया था जिसे गौतम राजपूतो ने शरण दी थी।जिसके बाद ओरंगजेब की 90000 सेना ने हमला किया जिसका 2 हजार गौतम राजपूतो द्वारा वीरता से मुकाबला किया गया।इसमें हिन्दू राजपूतो के साथ मुस्लिम गौतम ठाकुरों ने भी कन्धे से कन्धा मिलाकर जंग लड़ी।बाद में यहाँ के गौतम राजपूतो ने अंग्रेजो का भी जमकर मुकाबला किया और बगावत के कारण एक इमली के पेड़ पर 52 गौतम राजपूतो को अंग्रेजो द्वारा फांसी की सजा दी गयी।</div>
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<br /></div>
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<span style="color: red;">आज गौतम राजपूत गाजीपुर, फतेहपुर , मुरादाबाद , बदायुं, कानपुर , बलिया , आजमगढ़ , फैजाबाद , बांदा, प्रतापगढ, फर्रूखाबाद, शाहाबाद, गोरखपुर , बनारस , बहराइच, जिले(उत्तर प्रदेश ) <br />
आरा, छपरा, दरभंगा(बिहार ) <br />
चन्द्रपुरा, नारायण गढ( मंदसौर), रायपुर (मध्यप्रदेश ) आदि जिलों में बसे हैं ।</span></div>
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<span style="color: red;"><br /></span></div>
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"कण्ङवार" - दूधेला, पहाड़ी चक जिला छपरा बिहार में बहुसंख्या में बसे हैं । </div>
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चन्द्रपुरा, नारायण गढ( मंदसौर) में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर से आकर गौतम राजपूत बसे हैं ।</div>
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कुछ गौतम राजपूत पंजाब के पटियाला और हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर हमीरपुर कांगड़ा चम्बा में भी मिलते हैं</div>
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गौतम राजपूतों की एक शाखा.. गाज़ीपुर के जमानियां. करंडा बेल्ट में भी है। विधायक राजकुमार सिंह गौतम करंडा क्षेत्र के मैनपुर गांव के ही निवासी हैं जो गौतम ठाकुरों का काफी दबंग गांव है।.. बाकि गौतमों की एक पट्टी आजमगढ़ के मेंहनगर लालगंज बेल्ट में भी है।</div>
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<br /></div>
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गौतम क्षत्रिय की खापें निम्नलिखित हैं।<br />
(१) गौतमिया गौतम :--<br />
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गोरखपुर जिलों में हैं।</div>
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(२)गोनिहा गौतम :--<br />
बलिया,शाहबाद (बिहार) आदि जिलों में हैं।</div>
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(३) कण्डवार गौतम :--<br />
कण्डावेनघाट <br />
के पास रहने वाले गौतम क्षत्रिय कण्डवार गौतम कहे जाने लगे। ये बिहार के छपरा आदि जिलों में हैं।</div>
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(४)अण्टैया गौतम :--<br />
इन्होंने अपनी जागीर अंटसंट (व्यर्थ) में खो दी।इसीलिए अण्टैया गौतम कहलाते हैं।ये सरयू नदी के किनारे चकिया, श्रीनगर,जमालपुर,नारायणगढ़ आदि गांवों में बताये गए हैं। </div>
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(५) मौर्य गौतम:--<br />
इस वंश के क्षत्रिय उत्तर प्रदेश के मथुरा,फतेहपुर सीकरी,मध्य प्रदेश के उज्जैन,इन्दौर,तथा निमाड़ बिहार के आरा जिलों में पाए जाते हैं।</div>
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(६) रावत क्षत्रिय - <br />
गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। देवी -चण्डी। गौतम वंश की उपशाखा है। इन क्षत्रियों का निवास उन्नाव तथा फ़तेहपुर जिलों में हैं।</div>
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उन्नाव जिले में बारा की स्टेट गौतम राजपूतो की है इसके महिपाल सिंह जमिदार थे।।<br />
कोरांव (कड़ा) का दुर्ग भी गौतम राजपूतो द्वारा ही बनवाया गया था।</div>
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बौद्ध ग्रंथ महायान के अनुसार मौर्य क्षत्रिय भी शाक्य गौतम क्षत्रियों की एक शाखा है.</div>
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ईस्ट यूपी, बदायूं के आसपास,बिहार व् मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में गौतम राजपूत बड़ी संख्या में मिलते हैं..<br />
अब बहुत से नीची जाति के लोग भी खुद को बौद्ध धर्मावलम्बी बताकर गौतम सरनेम लगाते हैं जिससे इन इलाको के बाहर के लोग किसी गौतम नामधारी को राजपूत नही बल्कि नीची जाति का समझने की भूल करते हैं<br />
जबकि गौतम टाइटल राजपूत भूमिहार ब्राह्मण तीनो जातियो में मिलते है <br />
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1-बदायूं के गौतम राजपूत अलवर में निकुम्भ राजपूतो के सामन्त थे जो 5 वी सदी के बाद बदायूं क्षेत्र में आए और हूणों को हराकर सत्ता स्थापित की।।।</div>
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ये हूण नामक विदेशी हमलावर आज गुज्जर जाती में मिलते हैं मेरठ जिले में 12 गांव हूँण गूजरों के आज भी आबाद हैं....</div>
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बदायूं क्षेत्र के गौतम राजपूतों पर स्थानीय पत्रकार श्री बीपी गौतम जी ने रोचक जानकारी दी है, इनके अनुसार</div>
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होली से जुड़ी है गौतम राजपूतों की शौर्य गाथा </div>
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कण-कण में इतिहास समाया है, पर बदले समय के कारण इतिहास में दर्ज सैकड़ों गौरव गाथाओं पर धूल जम चुकी है। इतिहास के पन्नों पर जमा धूल को साफ कर अतीत में झांका जाये, तो पूर्वजों की शौर्य गाथाओं को जान कर आज भी सीना चौड़ा हो जाता है। गौतम राजपूतों की ऐसी ही एक गौरव गाथा इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों की तरह चमक रही है, जो होली के अवसर पर अनायास ही याद आ जाती है।</div>
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चौथी या पांचवी ईसवी से पहले बदायूं जनपद में गौतम राजपूत नहीं थे। कहा जाता है कि उस दौरान यहां हूणों का शासन था। उस समय राजस्थान में स्थित अलवर के राजा भवानी सिंह जी अपने परिवार के साथ भारत यात्रा पर निकले हुए थे। बताया जाता है कि उस समय के न्योधना व आज के कस्बा इस्लामनगर के पास उस दौरान विशाल वन था। इस वन से राजा भवानी सिंह जी का काफिला निकल रहा था, तभी उनके रथ का पहिया मिट्टी में धंस गया। सेवकों ने रथ निकाला, तब तक शाम हो गयी। इस लिए राजा भवानी सिंह जी ने वन में ही पड़ाव डालने के साथ काफिले को आराम करने का आदेश दे दिया। रात में बीच वन में चहल-पहल और रोशनी देख कर आसपास के क्षेत्र की जनता उत्सुकता के चलते वन में देखने पहुंच गयी, तो जनता को पता चला कि यहां राजा का डेरा पड़ा है। </div>
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क्षेत्रीय जनता ने राजा भवानी सिंह जी को अवगत बताया कि इस क्षेत्र में हूणों का शासन है, जो बहुत अत्याचार करते हैं। जनता ने अत्याचार की दास्तां राजा को विस्तार पूर्वक बताई, तो जनता की परेशानी सुनकर राजा ने यात्रा पर आगे जाने का इरादा त्याग दिया और हूणों की शक्ति का आंकलन करने के लिए अपने गुप्तचर क्षेत्र में दौड़ा दिये। राजा भवानी सिंह जी ने रणनीति बना कर होली के अवसर पर रंग वाले दिन आक्रमण कर दिया। हूणों का इस्लामनगर (न्योधना) में किला था, जहां से उनका शासन संचालित होता था, उस भवन में आज पुलिस थाना चल रहा है। कहा जाता है कि कुछ सैनिकों के साथ उनकी पुत्री पड़ाव वाले स्थान पर ही रही और अलग-अलग दिशाओं में राजा ने सेना की टुकडिय़ों के साथ पांच पुत्रों को आक्रमण करने लिये भेजा, साथ ही उन्होंने स्वयं सैनिकों के साथ इस्लामनगर (न्योधना) पर आक्रमण किया। </div>
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हूणों के साथ भयंकर युद्ध हुआ और अंत में इस्लामनगर (न्योधना) क्षेत्र में गौतम राजपूतों का राज कायम हो गया, लेकिन एक दु:खद घटना भी घटी। राजा भवानी सिंह जी और उनके बेटे युद्ध कर रहे थे, तभी कुछ हूणों ने डेरे पर हमला बोल दिया, लेकिन मौके पर मौजूद सैनिकों के साथ राजकुमारी ने हूणों के साथ जमकर युद्ध किया और सभी हूणों को मार दिया। कहा जाता है युद्ध में राजकुमारी गंभीर रूप से घायल हो गयीं, जिससे उन्हें बचाया नहीं जा सका। गांव भवानी पुर में राजकुमारी की याद में मंदिर बना हुआ है, जिसे आज सती माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।</div>
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गौतम राजपूतों का शासन स्थापित हो जाने के बाद शासक परिवर्तित होते रहे और बाद में गुलामी के बाद प्रजातंत्र तक का सफर तय हुआ, लेकिन इस क्षेत्र में गौतम राजपूतों का दब-दबा आज तक कायम है। इस्लामनगर क्षेत्र में राजनीति की जमीन आज भी गौतम राजपूतों के इशारे पर ही तैयार होती है। इस ब्लाक क्षेत्र में आजादी से अब तक अधिकतम समय गौतम वंशीय ही प्रमुख रहा है, </div>
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लश्करपुर ओइया रियासत और शहीद ठाकुर मोती सिंह-----------<br />
बदायूं क्षेत्र में लश्करपुर ओइया गौतम राजपूतो की रियासत थी।<br />
म वंशीय राजपूतों के साथ पूरे क्षेत्र की जनता के बीच स्वर्गीय ठाकुर मोती सिंह का नाम आज भी वंदनीय है, क्योंकि इन्होंने अपने जीवन काल में अंग्रेजों को क्षेत्र में घुसने भी नहीं दिया, पर षड्यंत्र के तहत खत्री वंश के एक स्वयं-भू राजा ने अंग्रेजों से मिल कर फांसी लगवा दी। लश्करपुर ओईया में आज भी उनकी समाधि बनी हुई है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग पूजा-अर्चना करते हैं। मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके चन्द्रविजय सिंह की जड़ें उसी खत्री परिवार से जुड़ी हुई हैं। </div>
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कहा जाता है कि लश्करपुर ओईया के राजा के संतान नहीं थी, जिससे उन्होंने खत्री जाति के एक बच्चे को गोद ले लिया था, लेकिन उस खत्री जाति के बच्चे को किसी ने राजा वाला सम्मान नहीं दिया, जिससे वह स्वयं को अपमानित महसूस करता था, तभी ठा. मोती सिंह से ईष्या करता था। खत्री परिवार के गोद लिये हुए स्वयं-भू राजा प्रद्युम्र के भी एक मात्र इन्द्रमोहनी नाम की पुत्री ही जन्मी, जिसका विवाह मुरादाबाद जनपद के राजा का सहसपुर कस्बे में हुआ। इन्द्रमोहनी प्रदेश सरकार में विद्युत मंत्री रह चुकी हैं और चन्द्रविजय सिंह की मां हैं। स्वयं-भू राजा प्रद्युम्र के निधन के बाद लश्करपुर ओईया की संपत्ति इन्द्रामोहनी को ही मिली, लेकिन क्षेत्र में सम्मान न मिलने के कारण लश्करपुर ओईया की समस्त संपत्ति बेच दी, जिससे अब कुछ अवशेष ही बचे हैं।<br />
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लेखक--टीम राजपुताना सोच</div>
<br /></div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com69tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-50986748908548852452017-11-01T23:00:00.001-07:002017-11-01T23:23:48.791-07:00क्या बडगूजर राजपूत प्रतिहार राजपूत वंश की शाखा है??<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgb53UWNfxFqPDUx5L_D-IhOO3jUBjerZLq63ZMp7DHkAWNJVs5xBPaLOFxTdggkaE-YJjG9mpCw1TB4CKUoY64DtL3i7QtDPyDGf9GVtdOKKWX8t_cdVszEV_wWzhV3HbSd0-5eMZPlnPP/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="200" data-original-width="400" height="160" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgb53UWNfxFqPDUx5L_D-IhOO3jUBjerZLq63ZMp7DHkAWNJVs5xBPaLOFxTdggkaE-YJjG9mpCw1TB4CKUoY64DtL3i7QtDPyDGf9GVtdOKKWX8t_cdVszEV_wWzhV3HbSd0-5eMZPlnPP/s320/images.jpg" width="320" /></a></div>
क्या बडगूजर राजपूत प्रतिहार राजपूत वंश की शाखा है??-----<br />
<br />
(Badgujar rajputs and pratihar rajput dynasty)<br />
<br />
श्रीमाल जी का नाम बडगूजर राजपूतों की वंशावली में आता है<br />
<br />
पर इसका अर्थ सांकेतिक है, इसको समझिये।<br />
<br />
राजस्थान में जालौर जिले में स्थित भीनमाल प्राचीन गुर्जरदेश (गुर्जरात्रा) की राजधानी थी, जिसका वास्तविक नाम "श्रीमाल" था,जो बाद में भिल्लमाल और फिर भीनमाल हुआ।<br />
<br />
गल्लका लेख के अनुसार अवन्ति के राजा नागभट्ट प्रतिहार ने 7 वी सदी में गुर्जरो को मार भगाया और गुर्जरदेश पर कब्जा किया, गुर्जरदेश पर अधिपत्य करने के कारण ही नागभट्ट प्रतिहार गुरजेश्वर कहलाए जैसे रावण लंकेश कहलाता था।<br />
<br />
यही से इनकी एक शाखा दौसा,अलवर के पास राजौरगढ़ पहुंची, राजौरगढ़ में स्थित एक शिलालेख में वहां के शासक मथनदेव पुत्र सावट को गुर्जर प्रतिहार लिखा हुआ है जिसका अर्थ है गुर्जरदेश से आए हुए प्रतिहार शासक।।<br />
<br />
इन्ही मथंनदेव के वंशज 12 वी सदी से बडगूजर कहलाए जाने लगे क्योंकि राजौरगढ़ क्षेत्र में पशुपालक गुर्जर/गुज्जर समुदाय भी मौजूद था जिससे श्रेष्ठता दिखाने और अंतर स्पष्ट करने को ही गुर्जर प्रतिहार राजपूत बाद में बडगूजर कहलाने लगे।<br />
<br />
पशुपालक शूद्र गुर्जर/गुज्जर समुदाय का राजवंशी बडगूजर क्षत्रियो से कोई सम्बन्ध नही था।पशुपालक गुज्जर/गुर्जर दरअसल बडगूजर (गुर्जर प्रतिहार) राजपूतो के राज्य में निवास करते थे।<br />
<br />
राजा रघु के वंशज (क्योंकि श्रीराम और लक्ष्मण जी दोनों रघु के वंशज थे) होने के कारण ही इन्होंने राघव/रघुवंशी पदवी धारण की, इनकी वंशावली में एक अन्य शासक रघुदेव के होने के कारण भी इनके द्वारा राघव टाइटल लिखा जाना बताया जाता है।<br />
<br />
इस प्रकार बडगूजर राजपूत वंशावली में श्रीमाल (गुर्जरदेश की राजधानी भीनमाल का प्राचीन नाम) का होना तथा राजौरगढ़ शिलालेख में बड़गुजरो के पूर्वज मथनदेव को गुर्जर प्रतिहार सम्बोधित किया जाना आधुनिक बडगूजर राजपूत वंश को प्रतिहार राजपूत वंश की ही शाखा होना सिद्ध करता है।<br />
<br />
श्रीमाल (भीनमाल) के निवासी या वहां से अन्य स्थानों पर जाकर बसे ब्राह्मण श्रीमाली ब्राह्मण कहलाए<br />
जो गौड़ ब्राह्मण गुर्जरदेश में बसे, वो गुर्जर गौड़ ब्राह्मण कहलाए।।</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com43tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-31494968486159188132017-10-23T00:20:00.002-07:002018-03-18T11:12:04.255-07:00प्राचीन गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश) और आधुनिक गुजरात राज्य मे क्या अंतर है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVGX71qENiepFXh7kyjuk1zx0PiDK3AvU3vVLJ0i_W3qNp61Monhkz_o6Cj7xoasPXEgtqanELQYFQGJB0JprUqtScdj3N4KnH3D160qdg9mkKqwR_r4Ppbd_pMHeiFcs12-Co36El8mg9/s1600/FB_IMG_1508381923383.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="780" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVGX71qENiepFXh7kyjuk1zx0PiDK3AvU3vVLJ0i_W3qNp61Monhkz_o6Cj7xoasPXEgtqanELQYFQGJB0JprUqtScdj3N4KnH3D160qdg9mkKqwR_r4Ppbd_pMHeiFcs12-Co36El8mg9/s320/FB_IMG_1508381923383.jpg" width="295" /></a></div>
<br />
<span style="font-size: large;"><b>प्राचीन गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश) और आधुनिक गुजरात मे क्या अंतर है?---</b></span><br />
<br />
प्राचीन गुर्जरात्रा या असली गुजरात आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान में था,<br />
<br />
इसमें आज के राजस्थान के पाली,जालौर,सिरोही,<br />
भीनमाल(बाड़मेर का कुछ हिस्सा), कुछ हिस्सा जोधपुर व् कुछ हिस्सा मेवाड़ का सम्मिलित था,<br />
(इसका नामकरण 5 वी सदी के आसपास गुर्जरात्रा क्यों हुआ इसके विषय में अलग से पोस्ट करूँगा)<br />
<br />
भीनमाल प्राचीन गुर्जरात्रा की राजधानी थी, जिस पर हर्षवर्धन के समय चावड़ा राजपूत व्याघ्रमुख शासन करते थे।चावड़ा वंश को उनके लेखों में चापोतक्ट लिखा मिलता है।<br />
<br />
चावड़ा वंश परमार राजपूतो की शाखा माना जाता है तथा अभी भी राजस्थान गुजरात उत्तर प्रदेश में चावड़ा वंश की आबादी है, गुजरात मे तो चावड़ा राजपूतो की आज भी स्टेट हैं।<br />
कालांतर में चावड़ा वंश का शासन भीनमाल से समाप्त हो गया और उन्होंने प्राचीन आनर्त देश(आज के गुजरात का उत्तरी भाग) में पाटन अन्हिलवाड़ को राजधानी बनाया तथा अपने प्राचीन राज्य गुर्जरात्रा की स्मृति में नए स्थापित राज्य का नाम भी गुर्जरात्रा रख दिया।<br />
<br />
प्राचीन गुर्जरात्रा पर इसके कुछ समय बाद ही नागभट्ट प्रतिहार ने कब्जा कर लिया तथा इस गर्जरात्रा के शासक होने के कारण गुरजेश्वर कहलाए।<br />
<br />
इस प्रकार प्राचीन आनर्त देश ही गुर्जरात्रा या गुजरात राज्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ, पर प्रारम्भ में इसमें पाटन, साबरकांठा, मेहसाणा, बनासकांठा आदि ही शामिल थे।<br />
<br />
10 वी सदी में चावड़ा वंश के स्थान पर गुजरात में सोलंकी वंश की सत्ता स्थापित हुई,<br />
सोलंकी वंश ने जब लाट देश (आज के गुजरात का दक्षिणी हिस्सा) पर कब्जा किया तो लाट देश भी उसी गुजरात का हिस्सा बन गया।<br />
ये सोलंकी राजपूत राजा भी इस नए गुजरात पर शासन करने के कारण ही गुरजेश्वर कहलाए।<br />
किन्तु सौराष्ट्र कच्छ का इलाका इस गुजरात से अलग ही रहा।<br />
<br />
कालांतर में गुजराती भाषा का प्रचार प्रसार सौराष्ट्र में भी हो गया और 1947 के बाद समान भाषा के नाम पर जिस गुजरात नामक प्रदेश का निर्माण हुआ उसमे सौराष्ट्र और कच्छ का इलाका भी जोड़ दिया गया।<br />
<br />
इस प्रकार ही आधुनिक गुजरात राज्य अस्तित्वव् में आया जबकि असली या प्राचीन गुजरात राज्य आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान के हिस्से को कहा जाता था।<br />
<br />
जब आनर्त और लाट का संयुक्त हिस्सा नवीन गुजरात के रूप में प्रसिद्ध हो गया तो प्राचीन गुर्जरात्रा प्रदेश का नाम भी समय के साथ बदलकर गौड़वाड़ हो गया, जो राजस्थान के पाली जालौर सिरोही के संयुक्त क्षेत्र को कहा जाता है।<br />
<br />
एक कमाल की बात ये है कि <span style="color: red;"><b>आधुनिक पशुपालक गुज्जर जाति की जनसंख्या न तो प्राचीन गुर्जरात्रा/गुजरात में है न ही आधुनिक गुजरात राज्य में इन गुज्जरों की कोई आबादी है।</b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
<span style="color: red;"><b>न तो प्राचीन गुजरात में गुज्जर हैं</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>न आधुनिक गुजरात में गुज्जर हैं!!!</b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
<span style="color: red;"><b>न प्रतिहारों की प्राचीनतम राजधानी भीनमाल और मंडोर में गुज्जर हैं</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>न ही प्रतिहारों के सबसे विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज में गूजरों की कोई आबादी है!!</b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
<span style="color: red;"><b>न ही आज गूजरों में कोई प्रतिहार परिहार वंश मिलता है,</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>गुजरात और कन्नौज में तो कोई जानता ही नही कि गुज्जर जाति होती क्या है!!! </b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
<span style="color: red;"><b>फिर किस आधार पर ये प्रतिहार वंश और गुजरात पर दावा ठोकते हैं??</b></span><br />
<br />
नोट--इसी प्रकार 18 वी सदी में गुजरात मे बड़ौदा पर शासन स्थापित करने वाले गायकवाड़ मराठा भी गुरजेश्वर कहलाए जाते हैं।<br />
गुरजेश्वर गुर्जराधिपति आदि उपाधियों का अर्थ है गुजरात प्रदेश के शासक न कि गुज्जर जाति के शासक, ये बात आज के गुज्जर भाइयो को समझ लेनी चाहिए।<br />
<br />
अगले भाग में गर्जरात्रा नामकरण और यूपी राजस्थान मध्य प्रदेश कश्मीर व पाकिस्तानी पंजाब दिल्ली एनसीआर के गुज्जर समाज की उतपत्ति ओर वास्तविक इतिहास पर चर्चा करेंगे।<br />
<br />
<br />
जय श्रीराम, </div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-55832684047031953622017-10-07T21:16:00.000-07:002017-10-18T18:26:19.601-07:00पुण्डीर क्षत्रिय वंश की कुलदेवी दधिमती माता का मन्दिर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEix_24qUtHzYgrJZfbIyAvS3YpuqauvIoNJvO5-VZbXkP8284FjZoXeb6FjLp6tcgH0lnbCI96Y9S5bYvVoEunA8_3S7D-JvQcFQ4vGixyKXynW9uoRWA_EfqXAk0FcFAQnxSUaZ5ynu6v7/s1600/images-25.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="400" data-original-width="700" height="182" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEix_24qUtHzYgrJZfbIyAvS3YpuqauvIoNJvO5-VZbXkP8284FjZoXeb6FjLp6tcgH0lnbCI96Y9S5bYvVoEunA8_3S7D-JvQcFQ4vGixyKXynW9uoRWA_EfqXAk0FcFAQnxSUaZ5ynu6v7/s320/images-25.jpg" width="320" /></a></div>
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पुण्डीर क्षत्रियों की कुलदेवी "दधिमती माता" का मंदिर-----<br />
<br />
नागौर जिले में जायल तहसील में गोठ मॉगलोद गांव में दधिमाती माता का मंदिर स्थित है।<br />
दधिमती माता को लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है,और ये पुराणों में वर्णित 51 शक्तिपीठों में एक मानी जाती हैं।<br />
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<br />
पुरातत्व विभाग इस मंदिर को दो हजार पूर्व से निर्मित मानता है।<br />
आपने आज तक जितने भी खम्बे या पिलर देखे उनमे आपने यही देखा होगा कि खम्बे आधार हेतु बनते है लेकिन यहाँ आप अधर खम्भ को हवा में झूलते देख सकते है मान्यता है कि जिस दिन यह खम्भ पृथ्वी से छू जाएगा उस दिन प्रलय होगी और चहु ओर विनाश ही विनाश होगा।<br />
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माना जाता है की मुख्य नवरात्रि की सप्तमी को जो कोई महाआरती के बाद यहां नहाता है उसको गंगा,यमुना,नर्मदा सहित सभी पुण्यशाली नदियों में नहाने का फल मिलता है ।यह कुंड कभी सूखता नही है और ना ही कभी इसका जल ऊपर की सीढ़ी पार करता है इसकी गहराई को कोई नही नाप सकता क्योंकि इस गहराई अथाह है ।<br />
<br />
दधिमती माता मंदिर व क्षेत्र का इतिहास--------<br />
<br />
राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार ‘‘इस मंदिर के आस-पास का प्रदेश प्राचीनकाल में दधिमती (दाहिमा) क्षेत्र कहलाता था।<br />
उस क्षेत्र से निकले हुए विभिन्न जातियों के लोग, यथा ब्राह्मण, राजपूत, जाट आदि दाहिमे ब्राह्मण, दाहिमे राजपूत, दाहिमे जाट, दाहिमा गुज्जर आदि कहलाये।।<br />
<br />
रघुवंशी श्रीराम के वंशज महाराजा पुण्डरीक के नाम से क्षत्रियों में पुण्डीर शाखा चली।<br />
इसलिए अनुमान लगाया जाता है कि जो पुण्डीर क्षत्रिय प्राचीन काल मे दधिमती क्षेत्र में निवास करते थे वो कालांतर में दाहिमा क्षत्रिय कहलाए।<br />
पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज के सबसे शक्तिशाली सामन्तो कैमास दाहिमा और धीर पुण्डीर दोनो का भाई होना लिखा है, जो इस तथ्य की पुष्टि करता है।<br />
दोनो ही वँशो के कुल गोत्र प्रवर एक से हैं तथा दोनो ही कुल दधिमती माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं।<br />
<br />
पुण्डीर क्षत्रियों के अतिरिक्त दधीश ब्राह्मणों की कुलदेवी भी दधिमती माता हैं।<br />
<br />
नागौर क्षेत्र पहले अजमेर नरेश सोमेश्वर चौहान ने कैमास दाहिमा को जागीर में दिया था, बाद में अल्पसमय के लिए इसे मायापुरी (हरिद्वार) के शासक और पंजाब सीमा के सूबेदार चन्द्र पुण्डीर के भाई धनुराव पुण्डीर को दिया गया।<br />
हालांकि अब इस क्षेत्र में दाहिमा और पुण्डीर क्षत्रियों का अस्तित्व नही हैं, किन्तु पृथ्वीराज चौहान के समय तक बयाना औऱ नागौर क्षेत्र में दाहिमा और पुण्डीर राजपूत प्रभावशाली थे।<br />
<br />
हाल ही में सहारनपुर स्थित पुण्डीर राजपूतों के बड़े गांव शिमलाना और भायला में भी कुलदेवी दधिमती माता के सुंदर मंदिर स्थापित किये गये है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibC6AdJx2HhEEo2vPTcWafS9HhkSxz6jYX0XZzfOyuKx98ecHKZy1Jy1Hc5lcPt6Nyl4fYG4Cr97hlAu1RB26bl1xrlJSe1WG1XEt4iL7zjtQeHyp0rNjkPJRXMSb_y5VoZhcBmSj1GS-w/s1600/FB_IMG_1507435076895.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="405" data-original-width="720" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibC6AdJx2HhEEo2vPTcWafS9HhkSxz6jYX0XZzfOyuKx98ecHKZy1Jy1Hc5lcPt6Nyl4fYG4Cr97hlAu1RB26bl1xrlJSe1WG1XEt4iL7zjtQeHyp0rNjkPJRXMSb_y5VoZhcBmSj1GS-w/s320/FB_IMG_1507435076895.jpg" width="320" /></a></div>
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जय दधिमती माता, जय क्षात्र धर्म</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
सन्दर्भ ग्रन्थ---पृथ्वीराज रासो, पण्डित गौरीशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास , श्री ईश्वर सिंह मुंढाड़ कृत राजपूत वंशावली, कर्नल जेम्स टॉड कृत <span style="background-color: white; color: #262626; font-family: "q_serif" , "georgia" , "times" , "times new roman" , "hiragino kaku gothic pro" , "meiryo" , serif; font-size: 14px; line-height: 21px; text-align: left;">Anal and antiquities of westerns rajput states,</span></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
लेखक--श्री वाई० इस० पुण्डीर जी से साभार</div>
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Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-88531419759903568072017-08-20T08:18:00.002-07:002019-10-26T00:04:46.312-07:00राष्ट्रनिर्माता "सरदार पटेल" जाति से गुर्जर थे या कुर्मी??<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVTG_UpELP9TwPHb6EomKuqkl2rGUmDCmsAM03oPoSyeBmTe6YR0RU18TBCsub97kdox6QDCRndTJm5PI_pI9pV1CCB1Wpn3B13HUjaawOMzBIOHCfOa8d2Ne5TXqwyc-KDp8ItA-WYCj-/s1600/Screenshot_20170820_203700.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="352" data-original-width="686" height="164" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVTG_UpELP9TwPHb6EomKuqkl2rGUmDCmsAM03oPoSyeBmTe6YR0RU18TBCsub97kdox6QDCRndTJm5PI_pI9pV1CCB1Wpn3B13HUjaawOMzBIOHCfOa8d2Ne5TXqwyc-KDp8ItA-WYCj-/s320/Screenshot_20170820_203700.png" width="320" /></a></div>
Sardar patel Gurjar or Kurmi?????---<br />
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गुजरात के पटेल (पाटीदार) गुज्जर हैं या कुर्मी हैं?<br />
या दोनो हैं या<br />
इन दोनों ही जातियों से पाटीदारों का कोई सम्बन्ध है या नही?????<br />
<br />
दरअसल गुजरात के पाटीदार कनबी/कुणबी जाति से आते हैं जो पटेल टाइटल लिखते हैं इनका उत्तर भारत की गूजर जाति से दूर दूर तलक कोई सम्बन्ध ही नही है।<br />
<br />
पाटीदार असल मे कनबी/कुणबी समुदाय के हैं जो खुद को सोलंकी राजपूतो के समय गुजरात मे आना बताते हैं, ब्रिटिशकाल में ये राजपूत जमीदारों की जमीनें पट्टे पर लेकर सामूहिक रूप से जोतते थे जिसके कारण इन्हें पट्टेदार या पट्टीदार कहा जाता था और इनके गांव का मुखिया पटेल कहलाया जाने लगा।<br />
बाद में गुजरात मे पटेल या पाटीदार कनबी जाति के लिये जातिसूचक हो गया।<br />
इनके दो वर्ग हैं लेवा और कड़वा जिनमे आपस मे विवाह सम्बन्ध आमतौर पर नही होते।<br />
ये गुजरात के पाटीदार स्वयं को क्षत्रियो से निकला हुआ ही बताते हैं कुछ इन्हें क्षत्रिय पिता व ब्राह्मण माता की संतान मानते हैं।<br />
<br />
आजकल गुजरात के पाटीदार पटेल खुद का सम्बन्ध बिहार पूर्वांचल के कुर्मियों से जोड़ते हैं।<br />
<br />
आजादी के आसपास किसी केएल पंजाबी ने एक बुक लिखी जिसमें उसने सरदार पटेल को गुर्जर लिखा, पर उनका आशय जातिसूचक नही बल्कि स्थानसूचक था।<br />
उसे साक्ष्य मानकर उत्तर भारत की पशुपालक गुज्जर जाति ने सरदार पटेल को गुज्जर ही घोषित कर दिया,<br />
जबकि गुजरात का मूलनिवासी होने के कारण ही मुंबई में मौहम्मद अली जिन्ना औऱ महात्मा गांधी भी 1915 ईसवी में एक संगठन गुर्जर सभा के सदस्य बने थे ,जो उनके गुज्जर जाति के होने का परिचायक नही बल्कि गुजरात का निवासी होने को दर्शाता है,<br />
ऐसे ही गुजरात के महान साहित्यकार इतिहासकार ओर राजनेता श्री केएम मुंशी जो ब्राह्मण थे वो भी स्वयं को गुर्जर लिखते थे उनके अनुसार भी गुर्जर स्थानसूचक संज्ञा थी न कि जातिसूचक।<br />
<br />
गुजरात मे गुर्जर काड़िया मिस्त्री नामक जाति भी मिलती है वो विश्वकर्मा समुदाय है उनका भी उत्तर भारत के पशुपालक गुज्जर सुमदाय से कोई सम्बन्ध नही है।<br />
<br />
विदेशों में भी गुजराती काड़िया व अन्य गुजरातियों द्वारा गुर्जर सभा नामक संगठन बनाए हुए हैं वो भी वहां गुजरात मूल के लोगो के हैं उनका भी उत्तर भारत के पशुपालक गुज्जर समुदाय से कोई सम्बन्ध नही है!!<br />
<br />
आज गुजरात मे पशुपालक गुज्जर जाति की कोई आबादी नही है।।<br />
<br />
न जाने कैसे उत्तर भारत के पशुपालक गुज्जर समुदाय ने सरदार पटेल और पाटीदारों को गूजर मानकर इसका प्रचार शुरू कर दिया जिसपर कुछ लोग भरोसा भी करने लग गए।<br />
कुछ गूजर भाई दिल्ली से जाकर सरदार पटेल की पुत्री से मिले कि आप गूजर हो या नही, तो उन्होंने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया।<br />
<br />
राजस्थान के गुर्जर आंदोलन में पटेलों ने कोई दिलचस्पी नही ली, पर गुजरात के पटेल आंदोलन में गुज्जर समर्थन देने पहुंच गए।<br />
इनको मूर्ख बनाने हार्दिक पटेल एक बार दिल्ली भी आया था।<br />
कुल मिलाकर गुजरात के पटेल/पाटीदार समाज से उत्तर भारत के गूजरो का कोई सम्बन्ध ही नही है।<br />
अब जाकर कुछ समझदार गुज्जर बन्धु इस बात को मानने लगे हैं कि सरदार पटेल और पाटीदार का उत्तर भारत के गुज्जर समाज से कोई सम्बन्ध नही है।पर अधिकांश गुज्जर भी इसी झूठ को जी रहे हैं।<br />
वैसे शारीरिक दृष्टि कद काठी नस्ल के हिसाब से देखे तो उत्तर भारत के गुज्जर गुजरात के पटेलों से बेहतर हैं, गोत्र/खाप/भाषा रिवाज इनमे कुछ भी एक दूजे से नही मिलता।<br />
<br />
अब कुछ गूजरो ने गुजरात के पशुपालक मालधारी समुदाय रेबारी को गुज्जर घोषित कर दिया है!!!!<br />
<br />
पटेल जिस कुणबी जाति के हैं वो भी उत्तर भारत के कुर्मी समाज की तरह एक कुशल कृषक समाज है, लोकतंत्र में संख्याबल दिखाने के लिए गुजरात के कुणबी पाटीदार और उत्तर भारत के कुर्मी खुद को एक ही होना प्रचारित करते हैं पर असल मे इन दोनों के गोत्र/खाप एक दूसरे से बिल्कुल भी नही मिलते।<br />
यही नही मध्य प्रदेश में कुछ जिले तो ऐसे हैं जहां कुर्मी और (कुणबी)पाटीदार दोनो जातियां मिलती हैं और अलग अलग समाज माने जाते हैं इससे इनके एक ही जाति होने का खंडन हो जाता है,<br />
दरअसल नाम और पेशे में कुछ साम्यता होने के अतिरिक्त गुजरात के (कुणबी)पटेल और यूपी एमपी बिहार के कुर्मी में भी कोई सम्बन्ध नही है।<br />
<br />
<br />
मजे की बात है कि हरियाणा राजस्थान वेस्ट यूपी का गुज्जर सरदार पटेल को गुज्जर प्रचारित करता है और पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार के कुर्मी सरदार पटेल को कुर्मी बताकर उनकी जयंती मनाते हैं और उनकी देखा देखी पटेल टाइटल भी लिखते हैं जबकि सरदार पटेल न तो गुज्जर थे न ही कुर्मी!!<br />
वो महान नेता थे जिन्होंने भारत राष्ट्र का एकीकरण किया था।वो सर्वसमाज के लिए पूजनीय हैं।<br />
<br />
जय श्रीराम</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com101tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-89758779702579359202017-08-20T00:54:00.002-07:002017-09-03T20:39:55.221-07:00गुर्जरदेश, गुर्जरात्रा और चौकीदार गुर्जर जाति की उत्पत्ति (Gurjar desh and Chaukidar Goojar/Gujjar caste)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMJj3B5ZWtyF7NWLFygodPOwoEdp6EqqEMegkxagA9c_aIFGk-nOqezt2aaSEfMmu1a_DZqlMbnbEHN4zxT86llOoiCpLX2Rve_e01b8sJVGYqytZWvwGiLsd5GI7V4y7viH3m47aRiNHm/s1600/IMG-20170820-WA0009.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="778" data-original-width="790" height="315" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMJj3B5ZWtyF7NWLFygodPOwoEdp6EqqEMegkxagA9c_aIFGk-nOqezt2aaSEfMmu1a_DZqlMbnbEHN4zxT86llOoiCpLX2Rve_e01b8sJVGYqytZWvwGiLsd5GI7V4y7viH3m47aRiNHm/s320/IMG-20170820-WA0009.jpg" width="320" /></a></div>
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उत्तर मध्य काल में पश्चिम भारत मे एक प्रदेश होता था जिसका नाम था गुर्जरात्रा या गुर्जरदेश। इस प्रदेश की सीमा में आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान के जालोर, सिरोही, बाड़मेर जिले और आज के उत्तर गुजरात के बनासकांठा, पाटन और मेहसाणा आदि जिले आते थे। इस क्षेत्र का नाम यहां की अर्थव्यवस्था और समाज के गौपालन पर टिके होने की वजह से पड़ा। गूजर गौचर का ही अपभ्रंश है।<br />
<br />
इस क्षेत्र में आज भी भारत के सबसे सघन घास के मैदान और गौचर भूमि मिलती है। इस कारण और सूखे क्षेत्र होने की वजह से कृषि बेहद सीमित होने के कारण यहां की जनसंख्या पूरी तरह गौपालन से जुड़ी हुई थी। यहां तक कि कुछ दशक पहले तक भी देश का यह संभवतया अकेला क्षेत्र था जहाँ गौपालन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था। देश की सबसे बड़ी पथमेड़ा गौशाला इसी क्षेत्र के बीचों बीच स्थित है। देश के सबसे बड़े घास के मैदान 'बनी' ग्रासलैंड इसी क्षेत्र में मिलते हैं। आज भी रबाड़ी, मालधारी, भरवाड़ आदि अनेक पशुपालक जातियो की इस क्षेत्र में बड़ी आबादी है। इसी लिए इस प्रदेश का नाम गौचर बहुल होने से गूजर या गुर्जरदेश पड़ा और यहां के निवासियों को गूजर/गुर्जर कहा गया। कई बार जैसलमेर-जोधपुर मरुस्थल को मिलाने के बाद इस प्रदेश को गुर्जर-मारू भी कहा जाता था। आज का गुजरात राज्य 1947 के बाद बना है जब भाषा के आधार पर सौराष्ट्र, कच्छ, पंचमहाल आदि क्षेत्र इस प्रदेश में मिलाए गए।<br />
<br />
इस गुर्जरदेश पर कई राजपूत वंशो ने राज किया जिस कारण उन्हें गुर्जरपति कहा गया। इस आधार पर कई इतिहासकारों ने गलती से इन राजपूत वंशो को उत्तर पश्चिम भारत की पशुपालक/चोर/चौकीदार गूजर जाती से जोड़ दिया। जबकि अब ये सिद्ध हो चुका है कि प्रतिहारो और अन्य वंश के राजाओ को गुर्जरपति गुर्जरदेश पर शासन करने के कारण कहा गया।<br />
<br />
चौकीदार गूजर और अन्य गूजर जातियां---<br />
<br />
कालांतर में इस प्रदेश से बड़े पैमाने पर कई जातियों का दूसरे प्रदेशों में पलायन हुआ जो उन प्रदेश में गुर्जरदेश से आने के कारण गुर्जर के नाम से जानी गई। इनमे एक तरफ सौराष्ट्र और कच्छ में मिलने वाली गुर्जर ब्राह्मण, गुर्जर मिस्त्री, गुर्जर लोहार, गुर्जर बढ़ई आदि जातियां हैं जिनके इन क्षेत्रों में गुर्जरदेश से आकर बसने के कारण इनके जातिगत नाम के साथ स्थानसूचक शब्द का इस्तेमाल किया गया। इनके अलावा महाराष्ट्र के खानदेश में गूजर नाम की दो जातियां मिलती हैं- डोरे गुर्जर और रेवा गुर्जर। गुजरात से कई राजपूत वंश के लोग खानदेश में आकर बसे जो किन्ही कारणों से स्थानीय राजपूतो में नही मिल पाए। इनमे सबसे बड़ी आबादी डोर वंश के राजपूतो की थी जिनके आधार पर ये लोग डोरे गुर्जर नाम से जाने गए। इनके अलावा गुजरात के लेवा पाटीदार जाती के लोग खानदेश आकर रेवा गुर्जर के नाम से जाने गए। मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ में भी मुरलिया गूजर, हेरे गूजर और लिलोरिया गूजर नाम की गूजर जातिया मिलती हैं जिनका आपस मे कोई वैवाहिक संबंध नही और समानता सिर्फ इतनी है कि इन सभी को गुर्जरदेश से आने के कारण गूजर कहा जाता है।<br />
<br />
इन जातियो के अलावा गूजर नाम की जातियो में सबसे बड़ी जाती है चौकीदार गूजर। गुर्जरदेश के शासक प्रतिहार राजपूतो की एक शाखा का ढूंढाड़ के राजौर में शासन स्थापित होने के बाद उनके साथ गुर्जरदेश से ढूंढाड़ में बड़ी संख्या में गौचर जातियो का पलायन हुआ जहां इन्हें गुर्जर कहा गया। इन गुर्जरों पर राज करने के कारण राजौर के प्रतिहार राजपूतो को बड़गुर्जर कहा गया। ढूंढाड़ में इन गौचर जातियो का आजीविका का साधन पशुपालन के साथ चौकीदारी और चोरी चकारी था। राजपूतो द्वारा बसाए जाने के कारण ये लोग राजपूतो के करीब थे और राजपूत सेनाओं को दूध-दही की आपूर्ति किया करते थे। कालांतर में इस चौकीदार गौचर जाती का फैलाव यमुना और गंगा की घाटियों से शिवालिक होते हुए पंजाब और कश्मीर तक हो गया। कश्मीर के गूजरो द्वारा बोली जाने वाली गूजरी बोली में गुजराती और राजस्थानी भाषा का गहरा प्रभाव होना इस बात की और इंगित करता है। इसी तरह इनके राजपूतो के 'करीब' रहने के कारण कई राजपूत वंश कई कारणों😉 से गिर कर इनमे शामिल होते गए।<br />
<br />
गूजरो के हूणों का वंशज होने का दावा---<br />
<br />
गूजर बड़े गर्व से अपने को हूण से लेकर कुषाण, जॉर्जियन लगभग हर विदेशी आक्रमणकारी की औलाद बताते हैं। इनमे सबसे करीबी दावा हूणों से संबंध का है। हूण आक्रमणकारियों ने भारत मे सिर्फ कश्मीर और गांधार क्षेत्र में कुछ समय के लिये राज किया था। हूणों ने मध्य भारत पर आक्रमण जरूर किये थे लेकिन उन्हें हर बार सोमवंशी गुप्त शासकों ने खदेड़ दिया था और राजतरंगिणी जैसे कई ऐतिहासिक ग्रंथो के अनुसार कई बार यहां से खदेड़े जाने के बाद ये लोग अंत में काबुलिस्तान और जाबुलिस्तान में जाकर बस गए थे जिसे आज पख्तूनिस्तान कहा जाता है।<br />
<br />
आज कल के चौकीदार गूजरो के प्रोपगंडा पर यकीन कर के अगर इन्हें हूणों का वंशज मान भी ले तो ये सिर्फ हूण आक्रमणकारियों द्वारा स्थानीय महिलाओं के साथ सम्बन्धो से उत्पन्न जाति ही मानी जा सकती है क्योंकि ना तो हूण यहां अपनी महिलाओं के साथ आए थे और ना ही वो इस क्षेत्र में कही बसे। इन चौकीदार गूजरो में मिलने वाले हूण गोत्र के गूजर इन हूण आक्रमणकारीयो द्वारा किये गए सम्बन्धो से उतपन्न संतान हो सकती है जिन्हें अलग गोत्र मानकर चौकीदार गूजर जाती में शामिल कर लिया गया हो। हूणों का कश्मीर और उत्तर पश्चिम पंजाब पर जरूर कूछ समय के लिये शासन रहा जिससे कश्मीर के पहाड़ी गूजरो में हूणों के वंशजों के शामिल होने की संभावना है जिसकी पुष्टि डीएनए टेस्ट से भी हो चुकी है जिसमे मैदानी और पहाड़ी गूजरो में बहुत फर्क बताया गया है।</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02623436407222236397noreply@blogger.com26tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-56828336835412635552016-10-31T22:11:00.000-07:002016-10-31T22:11:45.043-07:00 कारगिल युद्ध के अमर शहीद स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर (Sqn Ldr Rajiv Pundir)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrVJbPx9FHfW49r3gSNhyzt-KsxhJyo7td-zXcWiNXJJRYU_3TtZILJwNrKrw5OekJn12dwZthpj2LcWr-yFKRYJHb8ka-C2bis2GbVO1Aeh017MPCkqAR9AI9WhYIRJVG7mocHR_NtB3s/s1600/FB_IMG_1477976732375.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrVJbPx9FHfW49r3gSNhyzt-KsxhJyo7td-zXcWiNXJJRYU_3TtZILJwNrKrw5OekJn12dwZthpj2LcWr-yFKRYJHb8ka-C2bis2GbVO1Aeh017MPCkqAR9AI9WhYIRJVG7mocHR_NtB3s/s320/FB_IMG_1477976732375.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
कारगिल युद्ध के शहीद स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर-----<br />
<span style="line-height: 23.2000007629395px;"><br /></span>
<span style="line-height: 23.2000007629395px;">Sqn Ldr Rajiv pundir, </span><span style="line-height: 23.2000007629395px;">Flying (Pilot) </span><br />
स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर का जीवन परिचय------<br />
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शहीद राजीव पुंडीर का जन्म दिनांक 28 अप्रैल 1962 में ग्राम बड़ोवाला जिला देहरादून उत्तराखण्ड में ठाकुर राजपाल सिंह व हेमवती पुंडीर के घर हुआ। उन्होंने 1979 में राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी में प्रवेश कर सैन्य जीवन की शुरुआत की। इनका विवाह सहारनपुर के नकुड क्षेत्र के गांव में शर्मिला सिंह से हुआ।<br />
शहीद पुंडीर एक बेहतरीन पायलट होने के साथ एक कुशल खिलाड़ी, गायक व संगीत प्रेमी थे।<br />
<br />
कारगिल विजय और ऑपरेशन विजय----<br />
वर्ष 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारतीय क्षेत्र में घुस कर कई महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इन स्थानों को दुश्मनों से छुड़ाने के लिए आपरेशन कारगिल विजय शुरू किया गया। सैनिको ने बहादुरी का परिचय देते हुए देश की आन बान और शान बचाने को सर्वोच्च बलिदान दिया और यहां तिरंगा फहराया।<br />
<br />
आपरेशन विजय के दौरान 28 मई 1999 को सरसावा वायुसेना स्टेशन पर तैनात स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर और उनके साथियों ने शत्रुओं की गतिविधियों की जानकारी लेने और रसद पहुंचाने के लिए MI-17 लड़ाकू हेलीकॉप्टर से उड़ान भरी। उन्होंने अपने ऑपरेशन को भली भाँति अंजाम दिया।एक के बाद एक दुश्मनो के विरुद्ध विभिन्न चोटियों पर जमकर गोलीबारी की जिसमे कई दुश्मन हताहत हुए।<br />
<br />
इसके बाद दुश्मनों के क्षेत्र में उनकी गतिविधियों का जायजा ले ही रहे थे कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने मिसाइल से उनके हेलीकाप्टर पर धावा बोल दिया।इन वीरों ने अदम्य साहस व वीरता का परिचय देते हुए अपने हेलीकाप्टर में आंतकियों द्वारा दागी गई मिसाइल लगने के बावजूद गोलीबारी जारी रखी और कई घुसपैठियों को मार गिराया।<br />
<br />
मिसाइल की चपेट में आने से वायुसेना स्टेशन सरसावा के चार जांबाजों स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर, फ्लाइट लेफ्टिनेंट एस मुहिलन, सार्जेट पीवीएन आर प्रसाद तथा सार्जेट आरके साहू 28 मई 1999 को कारगिल में शहीद हुए थे।<br />
जिस वक्त मात्र 37 वर्ष की आयु में स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर शहीद हुए उनकी बेटी भव्या सात साल और बेटा करन केवल छह महीने का था।उनकी पत्नी को सरकार द्वारा पेट्रोल पम्प भी आवंटित किया गया।<br />
<br />
इसके बाद थलसेना की विभिन्न बटालियनों ने अपनी जान पर खेलकर उच्च बलिदान देकर कारगिल की चोटियों से दुश्मन को मार भगाया।<br />
वायुसेना के चारो शहीदों के नाम पर सरसावा वायुसेना स्टेशन के चार महत्वपूर्ण पथों का नाम रखा गया है और इन शहीदों की याद में यहाँ शहीद स्मारक बना हुआ है जिस पर प्रत्येक वर्ष इन्हें मोमबत्ती जलाकर श्रद्धासुमन अर्पित कर मेले का आयोजन किया जाता है।<br />
<br />
सरकार ने आपरेशन विजय और शहीदों की याद में 26 जुलाई को विजय दिवस मनाने का निर्णय लिया। विजय दिवस के अवसर पर राष्ट्र के वीरों को शत शत नमन ।<br />
जय हिन्द जय राजपूताना।<br />
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Squadron Leader Rajiv Pundir, Flying (Pilot),<br />
No. 152 Helicopter Unit, Mi-17 ,<br />
KIA 28 May 1999<br />
<br />
Squadron Leader Rajiv Pundir of the IAF was killed in action on 28 May 99 while flying as a co-pilot of a Mi-17 helicopter being flown in the attack role during a mission against infiltrator held ground positions within the Indian side of the line of control.<br />
<br />
A graduate of the National Defence Academy and a post graduate in Military Studies from the prestigious Defence services Staff College, Sqn Ldr Pundhir was the Flight commander of a Mi-17 Helicopter Squadron. The officer displayed courage of an extremely high order and carried out successful combat missions against heavily defended ground targets. He made the supreme sacrifice during one such mission by carrying out attacks in a very hostile environment wherein the opposition on ground was known to possess a surfeit of surface to air missiles, in spite of which the officer carried out repeated attacks in the face of lethal enemy opposition.<br />
<br />
His courageous action in the face of enemy fire contributed significantly to the support being given by the IAF to the Indian Army in its efforts to dislodge the intruders from our territory.<br />
<br />
Sqn Ldr Rajiv Pundir was commissioned in the IAF on 28 Apr 83 and was an experienced Helicopter pilot experienced on, among other aircraft, the Heavy Lift Mi-26 Helicopter besides having 2500 hours on the Mi-8 and Chetak/Cheetah helicopters.<br />
<br />
An alumni of St Josephs Academy, Dehradun Rajiv Pundir was a thorough professional with a zest for doing things well. A very enthusiastic and energetic young man he remained at the centre stage of all activity. A keen sportsman, he had a passion for music and was an accomplished singer.<br />
<br />
Sqn Ldr Rajiv Pundir is survived by his wife Mrs. Sharmila Pundhir, a seven-year-old daughter Bhavya, and a four and a half-year-old son Karan.<br />
===============================<br />
Reference-------------<br />
1- http://www.bharat-rakshak.com/IAF/Personnel/Martyrs/199-9-Kargil.html<br />
2-http://m.jagran.com/uttar-pradesh/saharanpur-9309699.html<br />
3-http://m.amarujala.com/news/states/uttar-pradesh/saharanpur/Saharanpur-57649-50/</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-66630087051522731682016-10-29T22:55:00.000-07:002016-10-31T21:08:43.569-07:00लौहपुरुष ठाकुर राजनाथ सिंह ,देश के यशस्वी गृहमंत्री <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIyoQl1zA57c6t7FTYIUfNLdKeTQ2x-z4Yj6BxdcZnuQzS3dr7yNhgFVFhvk4eZ_JuKyOFPxmvkNlkrwOSQQRxhP80mJ5u17Hy40YXRXOGcRw_2ifrZN_5XhJKaZowqEizeuBraIjw7eF9/s1600/FB_IMG_1477806164184-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="301" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIyoQl1zA57c6t7FTYIUfNLdKeTQ2x-z4Yj6BxdcZnuQzS3dr7yNhgFVFhvk4eZ_JuKyOFPxmvkNlkrwOSQQRxhP80mJ5u17Hy40YXRXOGcRw_2ifrZN_5XhJKaZowqEizeuBraIjw7eF9/s320/FB_IMG_1477806164184-1.jpg" width="320" /></a></div>
ठाकुर राजनाथ सिंह, देश के यशस्वी गृहमंत्री-------<br />
<br />
समुद्र मंथन के पश्चात् अमृत के साथ साथ हलाहल विष भी निकला था। अमृत देवताओं के हिस्से आया। देवतागण अमृतपान करके अमर हो गये। किन्तु ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए विषपान भगवान शंकर ने किया था। इसी से भगवान शिवजी नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।<br />
आधुनिक काल में नीलकंठ की भूमिका जिस शख्स ने निभाई,उनका नाम है केन्द्रीय गृह मंत्री ठा० राजनाथ सिंह।<br />
नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कराने में राजनाथ सिंह की सशक्त भूमिका रही। बीजेपी के चुनाव अभियान में राजनाथ सिंह कंधे से कंधा मिलाकर मोदी जी के साथ खड़े रहे। ये मोदी लहर और राजनाथ सिंह की संगठन क्षमता का ही कमाल था कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2014 में जबर्दस्त विजय प्राप्त की।राजनाथ ने हर बुराई अपने सर ले ली और सब श्रेय मोदी जी को लेने दिया।<br />
<br />
----जीवन परिचय----<br />
जन्म-10 जुलाई 1951 (आयु 64 वर्ष) , इनका जन्म रैकवार RAIKWAR राजपूत वंश में हुआ है<br />
जन्मस्थान---भभौरा, चंदौली जिला, उत्तर प्रदेश, उनके पिता का नाम राम बदन सिंह और माता का नाम गुजराती देवी था।<br />
जीवन संगी-सावित्री सिंह<br />
संतान--2 पुत्र 1 पुत्री<br />
विद्याअर्जन-गोरखपुर विश्वविद्यालय<br />
पेशा -भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता<br />
शुरू से आरएसएस और जनसंघ से जुड़े रहे।आपातकाल का जमकर विरोध किया।इंदिरा गांधी की जनसभा में अकेले दम पर जमकर हंगामा किया और काले झंडे दिखाए।तब से संघ परिवार की नजरो में छाने लगे।<br />
<br />
----राजनितिक जीवन की शुरुआत----<br />
आपातकाल के बाद हुए चुनाव में बेहद युवावस्था 26 वर्ष की आयु में पहली बार मिर्जापुर से विधायक बने।<br />
<br />
80 के दशक में भाजयुमो के राज्य अध्यक्ष और उसके बाद राष्ट्रिय अध्यक्ष भी रहे।<br />
<br />
कल्याण सिंह सरकार में 1991 में यूपी के प्रभावी शिक्षामंत्री रहे।इनके द्वारा लागु किये नकल और ट्यूशन विरोधी कानूनों ने शिक्षा माफियाओ को ध्वस्त कर दिया था और यूपीबोर्ड में नकल बन्द हो गयी थी। उन्होंने बोर्ड परीक्षा में नकल को गैर जमानती अपराध बना दिया। आज तक उन्हें इस कार्य के लिए याद किया जाता है। इसके अलावा उन्होंने दोबारा इतिहास लिखवा कर इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलाव करवाया और वैदिक गणित को पहली बार पाठ्यक्रम में शामिल किया।<br />
<br />
उनके मंत्री के रूप में कामकाज, ईमानदारी और लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें जल्द ही भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया। प्रदेशाध्यक्ष के कार्यकाल में कार्यकर्ताओ में इतनी लोकप्रिय हुए कि उन्हें जल्द ही 1999 में वाजपेयी सरकार में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री बना दिया गया। <br />
<br />
----मुख्यमंत्रिकाल----<br />
राजनाथ सिंह जी सन् 2000–2002 के बीच यूपी के मुख्यमन्त्री रहे।<br />
प्रदेश में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें 2000 में केंद्र से वापिस बुलाकर उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस कार्यकाल में उन्होंने आरक्षण व्यवस्था को ठीक करने के लिये कड़े कदम उठाए। उन्होंने पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित वर्ग में विभाजन को लागू किया जिससे आरक्षण का लाभ वास्तविक अति पिछडो तक पहुँचे। लेकिन जातिवाद से ग्रस्त कोर्ट ने इसे भी बाद में खारिज कर दिया।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUFNLzZMr7ToaIhkui2IGBEO-0I_SYMUF7EaOTjcjPCGNifRbHRl4ZUD1ss4K1FfnstFoX-58vZu6rOoxgqcD-cf3FHMtyqQZRy3zqQcrttSNzcXVJxp_uwuf-MjTFv3RHx9tnDsISAOdb/s1600/FB_IMG_1477806184331.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUFNLzZMr7ToaIhkui2IGBEO-0I_SYMUF7EaOTjcjPCGNifRbHRl4ZUD1ss4K1FfnstFoX-58vZu6rOoxgqcD-cf3FHMtyqQZRy3zqQcrttSNzcXVJxp_uwuf-MjTFv3RHx9tnDsISAOdb/s320/FB_IMG_1477806184331.jpg" width="234" /></a></div>
<br />
उनका कार्यकाल आज भी उच्च कोटि के प्रशासन के लिए याद किया जाता है। किन्तु जातिवादी ताकतों को एक ठाकुर का मुख्यमन्त्री बनना रास नही आया और इसी कारण मुख्यमन्त्री के रूप में जबरदस्त सफलता के बावजूद बीजेपी की हार हुई।<br />
अगर राजनाथ सिंह को यूपी के मुख्यमन्त्री पद पर कार्य करने हेतु एक कार्यकाल और मिल जाता तो आज यूपी की ये दुर्दशा नही होती।<br />
<br />
2003 में राजनाथ सिंह जी को केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया गया। इस छोटे से कार्यकाल में उन्होंने अनेक योजनाए शुरू करी। किसान क्रेडिट कार्ड योजना इन्हीं की देन है। किसान कॉल सेंटर और खेती आय बीमा योजना भी इन्होंने ही शुरू करी थी। इसके अलावा किसानो को लोन देने में ब्याज दर में कमी और किसान आयोग प्रथम बार स्थापित करने का श्रेय भी राजनाथ सिंह जी को जाता है।<br />
<br />
2002 के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा जानबूझकर राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रखा गया और प्रदेश में अपने जनाधारविहीन चमचो को वरीयता दी। यहां तक की अटल आडवाणी की जोड़ी ने मायावती को भाजपा के हितो के ऊपर वरीयता दी। इन कारणों से भाजपा उत्तर प्रदेश में कमजोर होती गई। इस दौरान उन्हें विभिन्न राज्यो का प्रभारी महासचिव बनाकर भेजा गया और हर जगह उन्होंने उन विपरीत परिस्थितियों में भी कमल खिलाया। राजनाथ सिंह केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उपेक्षा के बावजूद पार्टी के अनुशासित सिपाही बनकर बिना कोई रोष जताए काम करते रहे। दुसरे चुनावो में भी उनकी सभाओ के लीये उम्मीदवारो द्वारा डिमांड और उनकी सभाओ में भीड़ ने उन बेवकूफ विश्लेषकों की बोलती बन्द कर दी जो उन्हें जनाधारविहीन नेता साबित करने की कोशिश करते थे।<br />
<br />
<span id="goog_419375097"></span>
भाजपा जब केंद्र में घोर गुटबाजी और नेतृत्व के संकट से जूझ रही थी तो उनकी ईमानदारी, पार्टी और हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता और गुटबाजी से दूर रहने के कारणों की वजह से उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे नेताओ की गुटबाजियो और अंडरखांने विरोध के बावजूद वो भाजपा में पहली बार लगातार दूसरी बार भी राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए।<br />
<br />
दूसरी बार 23 जनवरी 2013 – 09 जुलाई 2014 तक।इस बार राजनाथ सिंह ने मोदी के साथ मिलकर अपनी कुशल रणनीति से बीजेपी को प्रचण्ड बहुमत दिलाया।जीत के असली हीरो वही थे पर मोदी जी ने जीत का श्रेय अमित शाह को दे कर उन्हें राष्ट्रिय अध्यक्ष बना दिया।<br />
अरुण जेटली और बीजेपी के ठाकुर विरोधी नेताओं ने उन्हें कई बार बदनाम करने का प्रयास किया पर वो विफल रहे।क्योंकि सब जानते हैं कि राजनाथ सिंह का चरित्र शीशे की तरह साफ़ है।<br />
<br />
26 मई 2014 से देश के ग्रह मंत्री हैं।तब से पूर्वोत्तर के आतंकियों को म्यांमार में घुसकर मारने का निर्णय उन्ही का था।चीनी घुसपैठ और नक्सलवाद पर प्रभावी रोक लगाई।राजनाथ सिंह जी ने सीमा पर पाकिस्तान की ओर से होने वाली गोलीबारी का मुहतोड़ जवाब देने के लिए अर्धसैनिक बलों को खुली छूट दी है और कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को माकूल जवाब दिया है।<br />
गौहत्या विधेयक के प्रबल समर्थक,पर अभी मोदी जी ने हरी झण्डी नही दी।<br />
राजनाथ सिंह धर्मान्तरण पर पूर्ण रोक के पक्ष में हैं।<br />
<br />
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने सर्वसम्मति से कुछ अप्रिय निर्णय लिए गये,जिनका पूरा अपयश राजनाथ सिंह ने अपने सर ले लिया।<br />
वहीं हर प्रकार के अच्छे कार्य का श्रेय उन्होंने मोदी जी को दिया,जिससे जनता में मोदी जी का यशगान होता रहे।उनकी प्रतिभा और लौह पुरुश की छवि से प्रभावित मोदी जी ने स्वयम उनसे गृह मंत्री बनने का आग्रह किया,जिसे वो टाल नही पाए।<br />
<br />
कुछ राजपूत भाई भी अज्ञानतावश व कुछ निजी खुन्नस के कारण उनकी आलोचना करते हैं। जबकि कुछ अन्य समाज के लोग जो राजपूतों को उच्च पद पर देखना नही चाहते,वो भी राजनाथ सिंह की अनर्गल आलोचना करते हैं।<br />
<br />
जबकि राजनाथ सिंह बेहद ईमानदार,हिन्दुत्ववादी, जातिवाद से दूर,पक्षपात रहित लौह इरादों वाले नेता हैं।<br />
बीजेपी के इतिहास में उनसे सफल राष्ट्रिय अध्यक्ष कोई दूसरा नही हुआ है।<br />
प्रधानमन्त्री मोदी जी इन्हें यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के लिए बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना चाहते हैं जिसे अभी तक राजनाथ सिंह अस्वीकार कर रहे हैं।वैसे इस समय राजनाथ सिंह यूपी के सबसे योग्य और लोकप्रिय नेताओं में हैं।<br />
ईश्वर से प्रार्थना है कि वे सरदार पटेल की भांति सफल गृह मंत्री के रूप में इतिहास में याद किये जाए। और मोदी जी के नेत्रत्व में देश सभी संकटों से दूर रहकर उन्नति के पथ पर अग्रसर हो।<br />
<br />
जय श्री राम,जय भारत,जय राजपूताना।</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-27260921929946616682016-09-18T00:34:00.000-07:002016-09-18T10:01:00.705-07:00पृथ्वीराज रासो अथवा पृथ्वीराज विजय में कौन अधिक प्रमाणिक??<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiO2KkE6MAuvmGszPYaNeWe-qySIxdbNdFofPX6_SiQ4lK1FCpfE_uOqCnkiltdvMdCTh0hIxHECbNut-euQt01xGhy1tzrx9nAFCdPispTTrRj7mPJhaZDXesQaa_qDEB2ooln1iddMb0m/s1600/Screenshot_2016-09-18-12-59-06-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="167" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiO2KkE6MAuvmGszPYaNeWe-qySIxdbNdFofPX6_SiQ4lK1FCpfE_uOqCnkiltdvMdCTh0hIxHECbNut-euQt01xGhy1tzrx9nAFCdPispTTrRj7mPJhaZDXesQaa_qDEB2ooln1iddMb0m/s320/Screenshot_2016-09-18-12-59-06-1.png" width="320" /></a></div>
कल रात एबीपी न्यूज़ पर उनके धारावाहिक "भारतवर्ष" में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर प्रसारण हुआ,<br />
इस एपिसोड में साफ़ दिखाई दिया कि पृथ्वीराज चौहान और उनके शासन काल/उत्थान/पतन का प्रमाणिक वर्णन करने में चन्दबरदाई कृत काव्य ग्रन्थ "पृथ्वीराज रासो" पूर्ण सक्षम नही है,<br />
न तो पृथ्वीराज रासो में उल्लिखित घटनाओं के तिथि संवत का ऐतिहासिक साक्ष्यों से मिलान होता है न ही कई घटनाओं की पुष्टि होती है,हाँ पृथ्वीराज के दरबार में ही एक कश्मीरी ब्राह्मण जयानक थे जिन्होंने पृथ्वीराज के जीवनकाल में ही<br />
"पृथ्वीराज विजय" ग्रन्थ लिखा था जिसमे दर्ज घटनाओं और तिथि संवत का शत प्रतिशत प्रमाणन ऐतिहासिक साक्ष्यों से हो जाता है,यह ग्रन्थ अधिक प्रसिद्ध नही हुआ तथा चौहान साम्राज्य के ढहते ही ओझल सा हो गया,ब्रिटिशकाल में एक अधिकारी बुलर महोदय को कश्मीर यात्रा के समय यह ग्रन्थ जीर्ण शीर्ण अवस्था में मिला तो उसमे उल्लिखित घटनाएं और संवत पूर्णतया सही पाए गए,पर दुर्भाग्य से पृथ्वीराज विजय का एक भाग ही प्राप्त हो पाया है,दूसरा भाग अभी तक अप्राप्य है।<br />
<br />
तभी से समस्त इतिहासकार एकमत हैं कि पृथ्वीराज चौहान के विषय में समस्त जानकारी पाने के लिए पृथ्वीराज विजय सर्वाधिक प्रमाणिक हैं ,<br />
हालाँकि कुछ घटनाएं पृथ्वीराज रासो में भी सही हो सकती हैं,<br />
<br />
यद्यपि पृथ्वीराज रासो वीर रस का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है किन्तु इसकी ऐतिहासिकता संदेहास्पद है,<br />
कुछ असमंजस जो इस धारावाहिक में दिखाई दिए और आम तौर पर रासो को प्रमाणिक मानने में बाधक हैं ????<br />
<br />
1--रासो में तैमूर, चंगेज खान, मेवाड़ के रावल रतनसिंह-पदमावती जौहर,ख़िलजी जैसे बाद की सदियों में जन्म लेने वाले चरित्रों और घटनाओ के नाम/प्रसंग आ गए,जबकि उनका जन्म ही पृथ्वीराज चौहान के सैंकड़ो वर्ष बाद हुआ था।<br />
<br />
2--रासों में लिखी काव्य की भाषा में फ़ारसी,तुर्की के बहुत से ऐसे शब्द थे जो बहुत बाद में भारतवर्ष में मुस्लिम शासन काल में प्रचलित हुए।<br />
<br />
3--रासो के अनुसार जयचंद के द्वारा डाहल के कर्ण कलचुरी को दो बार पराजित और बंदी किए जाने का उल्लेख मिलता है, किंतु वह जयचंद से लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व हुआ था।<br />
<br />
4--पृथ्वीराज रासो ही अकेला और प्रथम ग्रन्थ था जिसमे कन्नौज के सम्राट जयचन्द्र को राठौड़ वंशी लिखा है जबकि कन्नौज के चन्द्रदेव,गोविंदचंद्र, विजयचंद्र तथा जयचन्द्र आदि सम्राटो ने अपने किसी भी ताम्रपत्र शिलालेख में खुद को राठौड़ अथवा राष्ट्रकूट नही लिखा,जबकि उनसे कुछ समय पूर्व ही राष्ट्रकूट बेहद शक्तिशाली वंश के रूप में पुरे देश में प्रसिद्ध थे,समूचे दक्षिण भारत पर राष्ट्रकूट राठौड़ वंश का शासन था और कई बार उन्होंने उत्तर भारत में कन्नौज तक हमला किया था,<br />
<br />
दरअसल जयचन्द्र और उनके पूर्वज पूर्वी भारत के काशी राज्य के शासक थे और गहरवार/गहड़वाल वंशी थे,<br />
काशी नरेश चन्द्रदेव गहरवार ने कन्नौज/बदायूं के शासक गोपाल राष्ट्रकूट (राठौड़) को हराकर उनसे कन्नौज ले लिया था और गोपाल राष्ट्रकूट को बदायूं का सामन्त बना लिया था,<br />
<br />
आज के आधुनिक राठौड़ बदायूं के राष्ट्रकूट राजवंश के ही उत्तराधिकारी हैं जिनके पूर्वज दक्षिण के इंद्र/अमोघवर्ष राष्ट्रकूट के नेतृत्व में कन्नौज पर प्रतिहार राजपूतो के शासनकाल में हमला करने आए थे और यही बस गए थे।।<br />
<br />
सम्राट जयचंचन्द्र गहरवार को जयचन्द्र राठौड़ कहकर भ्रान्ति फ़ैलाने की शुरुवात पृथ्वीराज रासो से ही प्रारम्भ हुई।<br />
जबकि जयचन्द्र के पूर्वज गोविंदचंद्र गहरवार का विवाह राष्ट्रकूट शासक की पुत्री मथनदेवी से हुआ था,जिससे स्पष्ट है कि दोनों अलग वंश थे।<br />
<br />
5--रासो के अनुसार मेवाड़ के रावल समरसिंह को पृथ्वीराज चौहान का बहनोई बताया गया है और उन्हें तराईन के युद्ध में लड़ता दिखाया गया है<br />
जबकि मेवाड़ के रावल समरसिंह का जन्म ही पृथ्वीराज की मृत्यु के 80 वर्ष बाद हुआ था!!<br />
<br />
6--रासो के अनुसार------ पृथ्वीराज चौहान की माता कमला देवी दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री थी,और अनंगपाल तोमर ने अपने दौहित्र पृथ्वीराज को दिल्ली उत्तराधिकार में दी थी,पृथ्वीराज चौहान का बाल्यकाल में राज्याभिषेक दिल्ली की गद्दी पर हुआ था,<br />
<br />
जबकि सच्चाई यह है कि पृथ्वीराज चौहान के पूर्वज अजमेर के शासक विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव ने दिल्ली के शासक मदनपाल तोमर पर हमला कर दिल्ली को जीत लिया था और मदनपाल तोमर ने अपनी पुत्री देसल देवी का विवाह बीसलदेव से किया था,जिसके बाद बीसलदेव और अजमेर के चौहानो के अधीन ही दिल्ली में पहले की भाँती तोमर वंश के शासक राज करते रहे,<br />
<br />
अनंगपाल तोमर प्रथम का शासन काल सन् 736-754 ईस्वी के बीच था जबकि अनंगपाल तोमर द्वित्य का काल सन् 1051-1081 ईस्वी था,इनके अतिरिक्त कोई अनंगपाल हुए ही नही,<br />
फिर दिल्ली नरेश अनंगपाल पृथ्वीराज चौहान के नाना कैसे हो सकते हैं क्योंकि उनके जन्म लेने के लगभग 80-85 वर्ष पूर्व ही अनंगपाल जी स्वर्गवासी हो गए थे??<br />
<br />
सच्चाई यह है कि पृथ्वीराज की माता चेदि के हैहयवंशी कलचुरी राजपूत शासक की पुत्री कर्पूरी देवी थी,<br />
पृथ्वीराज का राज्याभिषेक दिल्ली में नही अजमेर में हुआ था,दिल्ली पर पृथ्वीराज चौहान के समय पृथ्वीराज तोमर और बाद में गोविन्दराज तोमर का शासन था जो अजमेर के मित्र और सामन्त थे।।।<br />
<br />
7--रासो के अनुसार दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की एक पुत्री अजमेर के सोमेश्वर (पृथ्वीराज के पिता) से और दूसरी का विवाह कन्नौज नरेश जयचन्द्र से हुआ था,<br />
इस नाते जयचन्द्र पृथ्वीराज के मौसा थे और पृथ्वीराज ने बलपूर्वक अपने मौसा जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता से विवाह किया था!!!!<br />
<br />
क्या मौसा की पुत्री से विवाह राजपूतो में सम्भव है???<br />
कदापि नही,<br />
<br />
हम ऊपर बता चुके हैं कि पृथ्वीराज चौहान और जयचन्द्र के समय अनंगपाल तोमर थे ही नही उनसे बहुत पहले हुए थे,अत जयचन्द्र पृथ्वीराज के मौसा थे यह कथा कपोलकल्पित है,<br />
<br />
यही नही संयोगिता हरण की कथा के भी पर्याप्त साक्ष्य नही मिलते,सर्वाधिक प्रमाणिक ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय में मात्र यह लिखा है कि पृथ्वीराज किसी तिलोत्तमा नामक अप्सरा के स्वप्न देखा करते थे,उसमे कहीं कन्नौज नरेश की पुत्री संयोगिता या उसके हरण का कोई उल्लेख ही नही है।।<br />
<br />
8--कन्नौज नरेश सम्राट जयचन्द्र गहरवार पर गद्दार और देशद्रोही होने आक्षेप सबसे पहले पृथ्वीराज रासो में ही हुआ है,रासो के अनुसार जयचन्द्र ने ही गौरी को भारत पर हमला करने को आमन्त्रित किया था,<br />
जो कि पूर्णतया निराधार है,<br />
जयचन्द्र के सम्बन्ध पृथ्वीराज से अच्छे नही थे उसने पृथ्वीराज की मदद नही की यह सत्य है।<br />
लेकिन गौरी को उसने बुलाया इस सम्बन्ध में किसी तत्कालीन मुस्लिम ग्रन्थ में भी कहीं नही लिखा,<br />
न ही कोई अन्य साक्ष्य इस सम्बन्ध में मिलता है,<br />
<br />
जयचन्द्र गहरवार को देशद्रोही और गद्दार बताने का निराधार आरोप पृथ्वीराज रासो के रचियेता के दिमाग की उपज है जिसकी कल्पनाओ ने इस महान धर्मपरायण शासक को बदनाम कर दिया और जयचन्द्र नाम देशद्रोह और गद्दारी का पर्यायवाची हो गया!!!<br />
<br />
9--रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज की पुत्री बेला का विवाह महोबा के चन्देल शासक परमाल के पुत्र ब्रह्मा से होता है और ब्रह्मा की मृत्यु पृथ्वीराज के समय ही हो जाती है जबकि पृथ्वीराज चौहान अपनी मृत्यु के समय मात्र 26/27 वर्ष के थे तो उस समय उनकी पुत्री बेला का विवाह सम्भव ही नही था।<br />
<br />
10--रासो में पृथ्वीराज चौहान द्वारा दक्षिण के यादव राजा भाणराय की कन्या से होना, एक विवाह चन्द्रावती के राजा सलख की पुत्री इच्छनी से होना और उन विवाहो की वजह से उसका गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव से संघर्ष होना लिखा है जबकि देवगिरि में कोई भाणराय नामक राजा हुआ ही नही और चन्द्रावती के किसी सलख नामक राजा के होने का भी कोई उल्लेख नही मिलता,<br />
रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज ने गुजरात के शासक भीमदेव का वध किया जबकि उसकी मृत्यु पृथ्वीराज के 7 वर्ष बाद हुई।<br />
<br />
रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज ने उज्जैन नरेश भीमदेव की पुत्री इंद्रावती से विवाह किया,जबकि उज्जैन में भीमदेव नाम का कोई शासक हुआ ही नही।<br />
<br />
ऐसी ही दर्जनों कपोलकल्पित कथाए पृथ्वीराज रासो में भरी पड़ी हैं।।<br />
<br />
12--रासो में गौरी के पिता का नाम सिकन्दर लिख दिया जो उससे 1300 वर्ष पहले हुआ था,इसके अलावा मौहम्मद गौरी के सभी सेनानायकों के नाम गलत लिखे गए हैं।<br />
<br />
13--रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज के बहनोई मेवाड़ के रावल समरसिंह ने मांडू से मुस्लिम बादशाही को उखाड़ दिया जबकि मांडू(चन्देरी) में मुस्लिम सत्ता ही सन् 1403 में दिलावर गौरी द्वारा स्थापित हुई थी,जिसे राणा सांगा ने 1518 ईस्वी में उखाड फेका था ,<br />
इससे लगता है कि रासो ग्रन्थ कहीं 16 वी सदी में तो किसी ने नही लिखा???<br />
<br />
14--और अंत में,पृथ्वीराज रासो में उल्लिखित घटनाओं के तिथि संवत ऐतिहासिक साक्ष्यो से कतई मेल नही खाते,पृथ्वीराज रासो के अनुसार यह घटनाएं 11 वी सदी में हुई जबकि मौहम्मद गौरी और समकालीन मुस्लिम शासको का 12 वी सदी के अंतिम दशक में होना प्रमाणित है और पृथ्वीराज विजय में उल्लिखित घटनाओ का तिथि क्रम एकदम मेल खाता है।।<br />
रासो में पृथ्वीराज की मृत्यु 1101 ईस्वी में लिखी है जबकि उनकी मृत्यु 1192 ईस्वी में हुई,<br />
यदि चन्दबरदाई पृथ्वीराज के समकालीन होते तो इतनी बड़ी भूल कैसे करते??<br />
<br />
इस प्रकार स्पष्ट है कि जिस प्रकार महाऋषि वेदव्यास कृत जय नामक ग्रन्थ जो मूल रूप से 8800 श्लोक में लिखा गया था,वो आज कपोलकल्पित कथाए जोड़कर 1 लाख से अधिक श्लोक का हो गया है जिसमे क्या सही क्या मनगढंत पता नही लगता।<br />
<br />
इसी प्रकार या तो पृथ्वीराज रासो को किसी ने 1400 ईस्वी या उसके भी बाद लिखकर मशहूर कर दिया जिसमे बाद में होने वाली घटनाएं भी जोड़ दी या यह ग्रन्थ मूल रूप में सही हो पर बाद में इसमें नई नई फर्जी कपोलकल्पित घटनाए जोड़कर इसकी ऐतिहासिकता और प्रमाणिकता को नष्ट कर दिया।।<br />
<br />
रासो की वजह से ही राजपूत समाज में कई गलत मान्यताओ का प्रचार हो गया और यह मान्यताए समाज में भीतर तक स्थान बना चुकी हैं,जिन्हें झुठलाना लगभग असम्भव हो गया है।<br />
<br />
पृथ्वीराज चौहान गत 1000 वर्षो में हुए महानतम यौद्धाओं में एक हैं जो दुर्भाग्यपूर्वक मात्र 26 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी हो गए अन्यथा वो पुरे भारत के एकछत्र सम्राट होते,<br />
उनके विषय में सम्पूर्ण प्रमाणिक जानकारी कश्मीरी कवि जयानक कृत पृथ्वीराज विजय नामक ग्रन्थ से ली जा सकती हा,किन्तु दुर्भाग्य से उसका एक भाग अभी तक अप्राप्य है।<br />
<br />
लेखक---धीरसिंह पुण्डीर जी से साभार</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-76331683488883382402016-09-11T12:13:00.002-07:002016-09-11T12:15:38.427-07:00सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के योद्धा क्रांतिवीर बरजीरसिंह,तांत्या टोपे के दाहिने हाथ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLHofMkB30onPkl-vNJo_sZ4HhhjzF1p_O9lUv6wir0_-SC_JQhE_5TtyRV_NN4ZxPh3eOwF4cqiTJTtWIs9DZsiNeFG9-TiHcAkmllAbrmWpAXxmW7_yBLFgqYN5WC8BcOSrhgrl_sJIv/s1600/FB_IMG_1471758864437.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="233" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLHofMkB30onPkl-vNJo_sZ4HhhjzF1p_O9lUv6wir0_-SC_JQhE_5TtyRV_NN4ZxPh3eOwF4cqiTJTtWIs9DZsiNeFG9-TiHcAkmllAbrmWpAXxmW7_yBLFgqYN5WC8BcOSrhgrl_sJIv/s320/FB_IMG_1471758864437.jpg" width="320" /></a></div>
जय क्षात्र धर्म की मित्रों , आज हमने कुछ समय पहले एक पोस्ट श्रृंखला शुरू की थी जिसमे आपको पोस्ट के माध्यम 1857 की क्रांति में महान राजपूत नायकों द्वारा दिए गए योगदानो से अवगत कराना था। आज उसी श्रृंखला में आगे बढ़ते हुये बुंदेलखंड के महान नायक क्रांतिवीर योद्धा बरजीर सिंह के बारे में बताएँगे। कृपया इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा पढ़ें और शेयर करें।<br />
<br />
^^^^^प्रथम स्वातंत्र्य समर के योद्धा क्रांतिवीर बरजीरसिंह^^^^<br />
<br />
सन १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर में देश के कोने कोने में स्वतंत्रता प्रेमियों ने अंग्रेजो को कड़ी चुनौती दी थी। इस महासंग्राम में देश की जनता ने भी क्रांतिकारियों का पूरा साथ दिया। क्रांति के इस महायज्ञ में अनेक वीरो ने अपने जीवन की आहुतियाँ दी थी। उनमे से कुछ सूरमा ऐसे भी थे,जो जीवन भर अंग्रेजो से संघर्ष करते रहे लेकिन कभी अंग्रेजो की गिरफ्त में नहीं आए। ऐसे ही एक योद्धा थे बरजीर सिंह।झाँसी और कालपी के मध्य में स्थित बिलायाँ गढ़ी के बरजीर सिंह ने अंग्रेजो का सामना करने के साथ साथ क्षेत्र में जनसंपर्क द्वारा जनजागृति का महत्वपूर्ण कार्य किया। जब झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई झांसी से कालपी जा रही थी तो रास्ते में बरजीर सिंह ने उनसे भेंट की। रानी के निर्देशानुसार इस वीर ने क्षेत्र के गाँव गाँव में घूम घूमकर जनजागरण कर क्रांतिकारियों की शक्ति को कई गुना बाधा दिया। बरजीरसिंह ने कालपी की लड़ाई में प्राणप्रण से भाग लिया,लेकिन दुर्भाग्यवश २३ मई १८५८ को कालपी भी स्वातंत्र्य सैनिको के हाथ से निकल गई। बरजीरसिंह ने अब झाँसी-कालपी मार्ग के प्रमुख ठिकानो के स्वतंत्रता प्रेमियो को संगठित करके अंग्रेजो की नींद हराम कर दी। उन्होंने अपने साथियों गंभीर सिंह तथा देवीसिंह मोठ के साथ ब्रिटिशों के ठिकानो पर हमले शुरू कर दिए।<br />
<br />
उधर झाँसी की रानी ने ग्वालियर पर कब्ज़ा कर अंग्रेजो को करारा तमाचा लगाया तो इधर बरजीरसिंह ने अंग्रेजो के ठिकानो को कब्जे में लेना शुरू कर दिया। कालपी के बाद बिलायाँ गढ़ी क्रांतिकारियों का केंद्र बन गई।झाँसी के क्रन्तिकारी काले खां,बरजीरसिंह,दौलतसिंह,गंभीरसिंह तथा देवीसिंह के साथ साथ सैदनगर,कोंटरा,संवढा,भांडेर आदि अनेक स्थानों के सैंकड़ो स्वतंत्रता प्रेमी बिलायाँ में एकत्रित हो गए।३१ मई १८५८ को मेजर ओर के नेतृत्व में एक बड़ी सेना ने बिलायाँ गढ़ी पर आक्रमण कर दिया। ब्रिटिशो की तोपों ने गढ़ी पर गोलीबारी शुरू की तो बरजीरसिंह घोड़े पर सवार होकर तथा ध्वज लेकर अपने साथियों सहित मैदान में आ डटे।<br />
<br />
क्रांतिवीरो ने भीषण युद्ध किया। इस युद्ध में अंग्रेजो को बुरी तरह से रौंदते हुए बरजीर सिंह भी घायल हो गए। तब उनके कुछ साथी उन्हें अश्व से उतारकर वेतवा की ओर ले गए तथा एक साथी मोती गुर्जर ,,बरजीर सिंह के घोड़े पर ध्वज लेकर युद्ध में सन्नध हो गया। अंग्रेजो को बरजीरसिंह के निकलने का पता भी न चला। स्वातंत्र्यवीरो ने गोरो की सेना से जमकर लोहा लिया। अंत में मोती गुजर व अन्य ३४ सैनिको को बंदी बना लिया गया। इस युद्ध में लगभग १५० क्रांतिकारी शहीद हुए। मोती गुर्जर को अंग्रेजो ने फांसी पर लटका दिया। बरजीरसिंह ने कुछ ही दिनों में स्वस्थ होलर अंग्रेजो का पुनः विरोध शुरू कर दिया।<br />
<br />
बरजीरसिंह अब तात्या तोपे के दाहिने हाथ बन गए।तात्या के उस क्षेत्र से दूर जाने के बाद उस क्षेत्र में क्रांति की गतिविधियों की बाग़डोर अब बरजीरसिंह ने संभाल ली। उन्होंने अंग्रेजो के साथ छुटपुट लड़ाईयाँ लड़ते हुए संघर्ष जारी रखा। २ अगस्ट १८५८ को क्रांति सेना ने उनके नेतृत्व में जालौन ले अंग्रेज समर्थक शासक को हटाकर जालौन पर अधिकार कर लिया। बरजीरसिंह की सेना और अंग्रेजो के युद्ध में ४ सितम्बर १८५८ को महू-मिहौनी तथा ५ सितम्बर को सरावन-सहाव की लड़ाई विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन लड़ाईयो में स्वतंत्रता प्रेमियों ने अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए।अंग्रेजी शासको ने उन्हें मारने या पकड़ने के अनेक प्रयास किए लेकिन वे जीवनभर विदेशियों की पकड़ में नहीं आये। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे अपनी बहन के पास पालेरा(जिला टिकमगढ़,म.प्र.)चले गए जहाँ १८६९ में उनका निधन हो गया।बरजीरसिंह की स्मृति में बिलायाँ में १९७२ में एक स्मारक बनाया गया जो आज भी मौजूद है।<br />
<br />
सन्दर्भ-<br />
<br />
१)सदर लेख सनावद,मध्य प्रदेश से प्रकाशित मासिक पत्रिका "#प्रतापवाणी" के मई-जून २०१० के महाराणा प्रताप विशेषांक से लिया गया है।<br />
<br />
नोट:credits to anonymous writer.</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-70794025688607377182016-09-11T11:59:00.002-07:002016-09-11T11:59:12.950-07:00अशोक चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल शांति स्वरूप राणा Shanti swaroop rana,Ashok chakra winner soldier<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhen95lKTgTb38VV9b6nXrVkz6GwGFNUTqoEUQrRHu18kbv9hDgJXzNF3aHJ1dvbV_X9f0cSAeYXvy7FBNaO49jBuKJ7BjsN_AWWAxh00orbZwPp58uhMHSydqdKXfUZbyhbGu6WhvpIoiE/s1600/FB_IMG_1473620173076.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhen95lKTgTb38VV9b6nXrVkz6GwGFNUTqoEUQrRHu18kbv9hDgJXzNF3aHJ1dvbV_X9f0cSAeYXvy7FBNaO49jBuKJ7BjsN_AWWAxh00orbZwPp58uhMHSydqdKXfUZbyhbGu6WhvpIoiE/s1600/FB_IMG_1473620173076.jpg" /></a></div>
====अशोक चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल शांति स्वरूप् राणा====<br />
----------------------------------------<br />
जीवन परिचय----<br />
स्वर्गीय Col शांति स्वरुप राणा जी का जन्म 17 सितम्बर 1949 में होशियपुर पंजाब के baila नामक गाँव में हुआ था।वे चार भाइयो और तीन बहनो में सबसे छोटे थे।उनके पिता जी बड़े प्रभावशाली जमीदार थे।<br />
11 जून 1977 को उन्हें भारतीय सेना में कमीशन मिला था।<br />
<br />
वीरता और सर्वोच्च बलिदान----------<br />
<br />
शुरुआत में शांति स्वरुप राणा जी की नियुक्ति सेना में सिग्नल सैनिक के पद पर हुआ था लेकिन प्रतिभा के बल पर बाद में ये आर्मी कैडेट कॉलेज देहरादून में अधिकारी की ट्रेनिंग के लिए सेना की तरफ से चुने गए। ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद इन्हें 3 बिहार रेजिमेंट में 11 जुलाई 1977 को नियुक्त किया गया। ऑपरेशन राइनो , ऑपरेशन पवन , ऑपरेशन रक्षक जैसे बड़े सैन्य अभियानो में अपना जौहर दिखाने के कारण इन्हें 13 राष्ट्रिय राइफल में 2 IC के स्थान पर पदोन्नत किया गया। सन् 1994 को Lt COL के पद पर नियुक्त किया गया। 2 नवंबर 1996 को Lt Col राणा को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा के हफरुदा जंगलों में दो आंतकवादी ठिकानों को ध्वस्त करने की चुनोती मिली।<br />
<br />
Lt. Col राणा वहाँ आतंकवादियों की छोटी छावनियों के समान चार छुपे हुए ठिकाने देखे जिनमे भारी असला और 800 kg विस्फोटक जमा था। lt.col राणा और उनके सैनिकों ने फुर्ती दिखाते हुए सीधे दुश्मनों की तरफ धावा बोला और ग्रेनेड से हमला करते हुये आतंकवादी बंकरों को एक एक कर ध्वस्त करने लगे।<br />
<br />
तभी उनकी नजर एक और छुपे हुए आतंकवादी ठिकानों पर पड़ी , इसी समय अपने छावनी सामान बंकरों से आतंकवादियों ने दुबारा जवाबदारी देते हुए भारी गोला बारी की। Lt. Col. राणा ने अपने सैन्य दस्ते की कमान संभाली और उन बंकरों की तरफ कूच शुरू की और तीन हैण्ड ग्रेनेड उनमें फेंक दिए। तभी दो विदेशी भाड़े के आतंकी भारी गोली बारी करते हुए बंकर से बाहर निकले। Lt Col राणा ने उन्हें तुरन्त ही जवाबी हमले में मार गिराया तभी दूसरी तरफ से आतंकवादियों ने राणा को पीछे से गोली बारी कर बुरी तरह से घायल कर डाला।<br />
<br />
बुरी तरह घायल होने के बावजूद col राणा अपनी टुकड़ी की होंसला अफजाही करते रहे और दुश्मनों पर भारी पड़े। तभी एक आतंकवादी उनकी टुकड़ी की तरफ भारी गोला बारी करते हुए लपका, कर्नल राणा ने बिना अपनी जान की परवाह करते हुए अपनी टुकड़ी की रक्षा के लिए उस आतंकवादी पर आमने सामने का धावा बोल दिया और उसे मार गिराया।<br />
कर्नल राणा का शरीर गोलियों से बुरी तरह छलनी हो गया तथा वे और बुरी तरह से घायल हो गए और अंत में इस देह को त्याग कर शहीद हो गए।<br />
राणा के सफल नेतृत्व और बलिदान के कारण वह भारतीय सैन्य अभियान सफल रहा और ना जाने कितने मासूम देश वासियों तथा सैनिकों का जीवन सुरक्षित हुआ।<br />
<br />
समस्त भारतीय कर्नल शांति स्वरूप् राणा के इस योगदान को भुला नहीं सकता और समस्त राजपुत समाज उनके इस शौर्य पर गर्वान्वित महसूस करता है और अपनी श्रधांजलि अर्पित करता है। कर्नल राणा को उनके बलिदान के लिए भारत सरकार की तरफ से अशोक चक्र से नवाजा गया।<br />
कर्नल शांति स्वरूप् राणा जी को शत शत नमन।<br />
===============================<br />
Lieutenant Colonel Shanti Swarup Rana was commissioned on 11 June 1977 in the Bihar Regiment.<br />
<br />
On 02 November 1996, Lt Col Swarup Rana while serving with 13 RR was entrusted with the task of destroying two terrorist camps in the Hephrude forest of Kupwara District in Jammu & Kashmir. He spotted four well fortified hideouts stocked heavily with arms and ammunition including tonnes of explosives. In a gallant and swift strike, he destroyed these hideouts. One more well concealed hideout came to his notice. During the action that followed, the terrorists resorted to heavy firing from their well fortified bunker. Lt Col Rana organised his troops, crawled towards the bunker and threw hand grenades inside. Two foreign mercenaries came out firing heavily. He killed both of them instantaneously.<br />
<br />
Meanwhile, the terrorists seriously injured Lt Col Rana in heavy firing from another location. In spite of this, the gallant officer kept on boosting the morale of his soldiers. When one more terrorist advanced towards the soldiers, Lt Col Rana without caring for this own life, charged and killed him in a hand-to-hand encounter. In this action, this gallant officer sustained fatal bullet injuries and made the supreme sacrifice. Lt Col Rana displayed indomitable courage, patriotism and gallantry of the highest order. For this act of indomitable courage, Lt Col SS Rana was awarded the ASHOKA CHAKRA posthumously<br />
<br />
Biodata<br />
<br />
1. Rank & Name - Lt Col Shanti Swarup Rana, AC (Posthumously)<br />
<br />
2. Unit/Regt - 13 RR Bn/BIHAR REGT<br />
<br />
3. Name of Award - Ashok Chakra<br />
<br />
4. Theatre of Ops - OP RAKSHAK<br />
<br />
5. Year of Awards - 26 Jan 1997<br />
<br />
6. City/ State of which belonged - Panchkula / Haryana<br />
<br />
Reference----<br />
1- http://en.m.wikipedia.org/wiki/Rashtriya_Rifles<br />
2- http://en.m.wikipedia.org/wiki/Shanti_Swaroop_Rana<br />
3-http://indian-martyr.blogspot.in/2011/11/lt-col-shanti-swarup-rana.html?m=1<br />
4- https://books.google.co.in/books?id=MlAi5sWYOe8C&pg=PA113&lpg=PA113&dq=shanti+swarup+rana&source=bl&ots=8tuVq2ElBK&sig=0ggqq5oZvTucn9qfnAKgpAyAWSE</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-7421068949307626902016-07-20T20:31:00.003-07:002016-10-14T20:49:20.584-07:00बाबा मतीजी मिन्हास,जो सर कटने पर भी गौरक्षा/ब्राह्मण कन्या की रक्षा के लिए विधर्मियों से लड़ते हुए शहीद हो गए,Baba mati ji minhas<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjC4ecN3LFfPjA_eHMYunIuy8azkhDwVr-gBgrQC_thxfFz2Zv1B6koE8zqRfAbY6JB99VZvg9q19-vXleFleadcWpEKz_P5mjpYnUxubgN6L15YRYWaT5F4SGcg1rCT9PgMCyDNzXn5jR5/s1600/FB_IMG_1469070536610.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="319" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjC4ecN3LFfPjA_eHMYunIuy8azkhDwVr-gBgrQC_thxfFz2Zv1B6koE8zqRfAbY6JB99VZvg9q19-vXleFleadcWpEKz_P5mjpYnUxubgN6L15YRYWaT5F4SGcg1rCT9PgMCyDNzXn5jR5/s320/FB_IMG_1469070536610.jpg" width="320" /></a></div>
RAJPUT LEGEND OF PUNJAB- "BABA MATI JI MINHAS"<br />
<br />
बाबा मतीजी मिन्हास<br />
<br />
ऐसी मिसाल पुरी दुनिया में मिलनी मुश्किल है,जब असहाय की पुकार सुनकर ओर धर्म युद्ध के लिए अपनी शादी अधूरी छोड़कर अपने जीवन की आहुती भेंट कर दी हो, ऐसी मिसाल एक राजपूत ही पेश कर सकता है ! धन्य हों मतीजी मनहास जिनका सर काटने के बाद भी धड़ दुश्मनों के सर काटता रहा।<br />
<br />
There are many sagas in rajput history singing glories of the brave men who kept fighting even after they were beheaded. One of such sagas is of the Veer Baba Matiji Minhas.<br />
<br />
बाबा मतीजी मिन्हास और उनके परिवार का इतिहास ----------<br />
<br />
बीरम देव मिन्हास जी ने बाबर की इब्राहिम लोधी (जो की दिल्ली के तखत पर बैठा था ) के खिलाफ युद्ध में सहायता की थी ! इनका एक पुत्र श्री कैलाश देव पंजाब के गुरदासपुर के इलाके में बस गया ! कैलाश देव मिन्हास जी के दो पुत्र कतिजी और मतीजी जसवान ( दोआबा का इलाका जहां जस्वाल राजपूत राज करते थे) में विस्थापित हो गए ! यहाँ पर दोनों भाई जस्वाल राजा की सरकार में ऊँचे ओधे पर काम करने लगगए ! जसवां के जसवाल राजपूत राजा ने इनकी बहादुरी और कामकाज को देख कर इनाम में जागीर दी , जो की होशिारपुर का हलटा इलाका है ! कहा जाता है की , मतिजी जो शादी का दिन था , और वह अपनी शादी में फेरे ले रहे थे ,तभी एक ब्राह्मण लड़की ने शादी में ही गुहार लगाई की उसका गाव मुस्लमान लुटेरे लूट रहे है , गऊ माता को काट रहे है , लड़कीओ को बेआबरु कर रहे है , गाव को तहस नहस कर रहे है ! मतिजी ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए , और एक सच्चे राजपूत की भांती आधे फेरे बीच में ही छोड़कर उन मुस्लमान लुटेरों को मार भगाया , लेकिन इस बीच एक दुश्मन के वार से उनका सर धड़ से अलग हो गया , लेकिन वह फिर भी बिना सर के ही उनसे लड़ते रहे , यह नज़ारा देख दुश्मन भागने लगे , मतिजी ने उनका कुछ दूर तक बिना सर के पीछा किया लेकिन वह सब मैदान छोड़ कर दौड़ गए !<br />
<br />
बाबा मतीजी दरोली के स्थान पर वीर गति को प्राप्त हुए ! उनकी होने वाली पत्नी ( क्यूंकि शादी पूरी नही हुए थी ) श्रीमती सम्पूर्णि जी (जो की नारू राजपूत थी ) भी उनके साथ ही अलग चिता में सती होगई ! क्युकी उनकी शादी अधूरी थी इस लिया उन्हें अलग चीता में बिलकुल मतीजी की चीता के साथ सती होने की अनुमति दी गई थी ! आज उन दोनो के स्थान दरोली में साथ साथ है जहां उन्हें अग्नि दी गई थी !<br />
<br />
इस प्रकरण के बाद उनके भाई कतीजी ने अपनी जागीर को बदलवाकर दरोली ले ली थी , जहां उनके भाई शहीद हुए थे ! यह स्थान मन्हास राजपूतो के जठेरे/पितृ है , क्योंकी गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में इस स्थान और आस पास के राजपूत परिवार सिक्ख बन गये थे , बिलकुल बाबा मतीजी और सम्पूर्णिजी की स्थान के साथ ही एक भवय गुरुद्वारा बाबा मतिजी के नाम से बनवाया गया है !<br />
<br />
एक बात बताना चाहता हुँ खालसा साजना के 40 - 50 वर्षो तक सभी तख्तो के जनरल , शस्त्र विद्या सिखाने वाले , ज्यादातर बहादुरी और मैदान ए जंग में जौहर दिखाने वाले राजपूत योद्धा ही थे ,यह जुझारूपन उन्हें विरासत में मिला था ! गतका , शस्त्र विद्या , घुड़सवारी उनके पूर्वज हज़ारो साल से करते थे ,और यह सब उनके खून में ही था !<br />
<br />
वैसे तो जठेरे/पितृ पूजन और सती पूजन सिक्ख धर्म में पूर्ण तरह मना है , लेकिन फिर भी हमारे सिक्ख राजपूत भाई आपने रीती रिवाज , और अपने राजपूत होने पर पूरा गर्व करते है और राजपूतो में ही शादी करवाते है !<br />
<br />
जय क्षत्रिय धर्म !!<br />
<br />
जय राजपुताना !!<br />
<br />
Post credit---rajput of himalaya</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-84950698958540097842016-07-16T23:21:00.001-07:002016-07-16T23:21:58.692-07:00बिहार के शूरवीर क्षत्रिय राजपूत वंश (rajputs of bihar)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOA4ycBaTTYT07sv2Z83PAY7SlRuvjelSUbb_WW4o64217IKj8949Z2MvEVSWkk4w3E955hv11796J_oB18rLhKw6m-FfeUbDDgFLltD0vXf0FRrCoRSU0V0VMDqZEL1ZdSEE2aWYjXi2N/s1600/FB_IMG_1468733735845.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="234" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOA4ycBaTTYT07sv2Z83PAY7SlRuvjelSUbb_WW4o64217IKj8949Z2MvEVSWkk4w3E955hv11796J_oB18rLhKw6m-FfeUbDDgFLltD0vXf0FRrCoRSU0V0VMDqZEL1ZdSEE2aWYjXi2N/s320/FB_IMG_1468733735845.jpg" width="320" /></a></div>
बिहार के क्षत्रिय राजपूत वंशो का विवरण--Rajputs of Bihar<br />
<br />
बिहार -सदैव ही महानतम क्षत्रियों की भूमि रही है -जिस धरती पर त्रेतायुग ,द्वापरयग से लेकर कलयुग के 19 वी सदी तक कई महानतम क्षत्रिय वन्श व क्षत्रिय वीरों की राजधानी भी रही।<br />
ये भूमि आज देश में मौजूद कई क्षत्रियों (राजपूतों) के उत्तपति का गवाह भी रही है""।<br />
<br />
आज जानते हैं बिहार के हर कोने कोने में फैलें कुछ प्रसिद्ध राजपूत शाखाएँ }<br />
नीचे दिए सभी राजपूत वन्श बिहार के ज्यादातर जिलों में हैं यदि कोई शाखा विशेषतः यदि किसी जगह पर अधिक होगे तो उन स्थानों का नाम लिखा होगा।<br />
<br />
नोट: जहाँ "शाहबाद" लिखु वहाँ भोजपुर,बक्सर,डुमराव,रोहतास,कैमुर जिला एक साथ होगे।<br />
जहाँ "मगध" लिखु वहाँ औरन्गाबाद,गया,नवदा,अरवल,जहानाबाद जिला एक साथ होगा।<br />
<br />
1.परमार<br />
उज्जैन (परमार)<br />
गढवरिया(परमार)<br />
ये महानतम राजपूत वन्श बिहार के हर कोने मे अधिक संख्या में हैं ,इन तीन नामों से जाने जाते हैं।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1BXJvXNz-j7B2flj1qhiVcL_BmuFd5EYQWwjmaDa7vA2iDhZDPQMOq8Uv90v03PECdProjszNj9VbVI9wTdK2SJjmW-MAmJPMrvPtzIqDvhECPUwh3Rc_oN18GHSWGoVaOjvUOLl3d9-o/s1600/images-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="206" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1BXJvXNz-j7B2flj1qhiVcL_BmuFd5EYQWwjmaDa7vA2iDhZDPQMOq8Uv90v03PECdProjszNj9VbVI9wTdK2SJjmW-MAmJPMrvPtzIqDvhECPUwh3Rc_oN18GHSWGoVaOjvUOLl3d9-o/s320/images-1.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
________________________________<br />
2.सिकरवार<br />
(शाहबाद, मगध,सारण में अधिक)<br />
<br />
3.राठौर( मारवाड़ भी कहे जाते हैं)<br />
(शाहबाद व शिवहर,मुज्जफरपर में अधिक)<br />
<br />
4.बिसेन<br />
<br />
5.गाई (बिसेन की शाखा)<br />
(शाहबाद में मिलते हैं)<br />
<br />
6.रघुवंशी<br />
(सिवान, सारण में अधिक मिलते हैं)<br />
<br />
7.गहलोत<br />
<br />
8.शक्तावत/भनावत" शिशोदिया"<br />
(मगध में अधिक हैं खास करके औरन्गाबाद व गया में )<br />
<br />
9.शिशोदिया<br />
<br />
10.गहडवाल/गह्ढवाल/गहरवार<br />
<br />
11. निकुम्भ<br />
<br />
12.बुन्देला <br />
(हजारीबाग व नवादा में गढ हैं इनका) <br />
<br />
13.महरोड<br />
(ज्यादातर शाहबाद में मिलते हैं)<br />
<br />
14.चौहान<br />
<br />
15.सोलंकी<br />
<br />
16.सोनवान(सोलंकी)<br />
<br />
17.बघेल (सोलंकी)<br />
<br />
18.त्रिलोकचंदी (बैस)<br />
(शाहबाद,सितामढि में अधिक, )<br />
<br />
19.सिरमौर ( त्रिलोकचंदी बैस) अथवा प्राचीन मौर्य वंशी<br />
(मगध में मिलते हैं)।<br />
<br />
20.जादोन<br />
<br />
21.श्रीनेत(निकुम्भ की शाखा)<br />
(जमुइ ,बान्का में अधिक)<br />
<br />
22.सान्ढा(भारद्वाज गोत्र)<br />
(रोहतास व मगध)<br />
<br />
23.नरोनि (परिहार)प्रतिहार<br />
(शाहबाद )<br />
<br />
24.परिहार प्रतिहार<br />
<br />
25.तोमर<br />
<br />
26.तिलोता(तोमर)<br />
<br />
27.सोमवंशी(चन्द्रवंशी)<br />
<br />
28.कन्दवार (गौतम की शाखा)<br />
(मगध में मिलते हैं)<br />
<br />
29.सुरवार (गौड़ की शाखा)<br />
(शाहबाद व शेखपुरा,सारण में अधिक)<br />
<br />
30.काकन (सूर्यवंशी)<br />
(शाहबाद में अधिक)<br />
<br />
31.किनवार (दिखित) दीक्षित<br />
<br />
32.कछ्वाह<br />
<br />
33.कुरुवंशी (जरासन्ध का वंश,जिसने मगध पर 2800 वर्ष पूर्व तक राज किया था)<br />
(शाहबाद,छपरा,मगध)<br />
<br />
34.लोहतमिया<br />
<br />
35.बराहिया(सेंगर)<br />
(तिरहुट,मुन्गेर में अधिक मिलते हैं)<br />
<br />
36.सेंगर<br />
<br />
37.हरिवोवंशी (हैहयवंशी राजपूत)<br />
(शाहबाद में मिलते हैं)<br />
<br />
38.सूर्यवंशी (मूल सूर्यवंशी,प्राचीन पाल राजवंश इन्ही का साम्राज्य था)<br />
<br />
39.भाटी<br />
(भदावर गाँव भोजपुर)<br />
<br />
40.गौतम<br />
<br />
41.निमिवंशी (सूर्यवंशी)माता सीता का वंश<br />
<br />
42.चन्देल<br />
<br />
43.कर्मवार (गहरवार की शाखा)<br />
<br />
44.बेरुवार (तोमर)<br />
(मिथिलान्चल क्षेत्र)<br />
<br />
45.दोनवार (विशेन की शाखा)<br />
<br />
46.देकहा<br />
<br />
47.पालीवार/ल(चन्द्रवंशी)<br />
(नार्थ बिहार के गोपालगंज में इनके गाँव हैं)<br />
<br />
48.रक्सेल<br />
<br />
49.बैस<br />
<br />
50.नागवंशी (अधिकतर झारखण्ड में)<br />
<br />
बिहार से शुद्ध मौर्य कुशवाह(कछवाहा) क्षत्रिय मालवा और पश्चिमी भारत में चले गए और जो बचे वो अवनत होकर कोइरी काछी और कुर्मियो में मिल गए,..<br />
बिहार के राजपूत बाबूसाहेब/सिंह साहेब टाइटल से जाने जाते हैं और बिहार में शुद्ध राजपूतों की कुल संख्या बिहार की कुल जनसंख्या का 7% है इस प्रकार बिहार में लगभग 80 लाख शुद्ध राजपूत हैं जो यूपी के बाद सर्वाधिक हैं<br />
<br />
जय बिहार<br />
जय बाबू वीर कुवर सिंह जी"तेगवा बहादुर",जय आनन्द मोहन सिंह<br />
लेखक--ठाकुर अमित सिंह उज्जैन (परमार)</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com438tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-74218301673385806282016-07-15T06:14:00.001-07:002016-07-15T06:18:28.260-07:00शहीद उदासिंह राठौड़ जी,एक वीर सिख राजपूत यौद्धा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxhPHMjAhl69bVf60FwqbYEiV7W5x_sHCVWAzjBTJKjgFE0v3AuT32MvJvZ_acCtioHcO_obwtw6HZBOgUk9NtX_-oHJFrgYH_jLrQqBX1rEmQwoDqNNYJD4bkMpyGul84uEvzzzT6hWwH/s1600/FB_IMG_1468584293058.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="238" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxhPHMjAhl69bVf60FwqbYEiV7W5x_sHCVWAzjBTJKjgFE0v3AuT32MvJvZ_acCtioHcO_obwtw6HZBOgUk9NtX_-oHJFrgYH_jLrQqBX1rEmQwoDqNNYJD4bkMpyGul84uEvzzzT6hWwH/s320/FB_IMG_1468584293058.jpg" width="320" /></a></div>
सिक्ख धर्म की स्थापना में राजपूतों का योगदान भाग-5<br />
<br />
वीर सिक्ख राजपूत यौद्धा शहीद भाई ऊदा जी राठौड़ (रमाने राठौड़)<br />
<br />
श्री गुरु तेगबहादुर जी की दिल्ली के चांदनी चौंक में हुई शहादत के पश्चात उनके पावन धड़ का अंतिम संस्कार भाई लक्खी राय जी ने अपने घर को आग लगाकर कर दिया गया ।<br />
दूसरी तरफ भाई जैता जी गुरु साहिब के शीश को उठा के चल पड़े । रास्ते में उनके पिता भाई अाज्ञा जी,भाई नानू जी व भाई ऊदा जी उनसे आ मिले ।<br />
ये चारों सिख दिन रात सफर करके श्री आनंदपुर साहिब पहुंचे ।<br />
गुरु गोबिन्द सिंघ जी ने सभी को प्यार दिया व विशेष रूप से भाई जैता जी को रंघरेटा गुरु का बेटा कह के सम्मान दिया ।<br />
भाई अाज्ञा जी व भाई जैता जी रंघरेटा जाति से संबंध रखते थे और दिल्ली निवासी थे ।<br />
भाई नानू जी छींबा जाति से संबंध रखते थे और वो भी दिल्ली निवासी थे ।<br />
भाई ऊदा जी राठौड़ राजपूत घराने से संबंध रखते थे और उनकी शाखा "रमाने" थी ।<br />
भाई ऊदा जी का जन्म राव खेमा चंदनीया जी के घर 14 जून 1646 ईस्वी को हुआ ।<br />
आप राव धर्मा जी राठौड़ के पोते व राव भोजा जी राठौड़ के पड़पोते थे ।<br />
आप की उस्ताद भाई बज्जर सिंघ जी राठौड़ के साथ भी रिश्तेदारी थी क्योंकि "उदाने" व "रमाने" दो सगे भाईयों राव ऊदा जी राठौड़ व राव रामा जी राठौड़ के वंशज हैं ।<br />
भाई ऊदा जी, गुरु गोबिन्द सिंघ जी व सिख सेना द्वारा लड़े गये भंगाणी के युद्ध में 18 सितंबर 1688 को शहीद हुए थे । उनके साथ गुरु गोबिन्द सिंघ जी की बुआ बीबी वीरो जी के सुपुत्र भाई संगो शाह जी व भाई जीत मल जी एवं राव माई दास जी पंवार के पुत्र भाई हठी चंद भी शहीद हुए थे ।<br />
भाट बहियों/ख्यातों में उनकी शहीदी का जिक्र है-<br />
<br />
"ऊदा बेटा खेमे चंदनिया का पोता धरमे का पड़पोता भोजे का, सूरज बंसी गौतम गोत्र राठौड़ रमाना, गुरु की बुआ के बेटे संगो शाह, जीत मल बेटे साधु के पोते धरमे खोसले खत्री के गैल रणभूमि में आये । साल सत्रह सै पैंतालीस असुज प्रविष्टे अठारह, भंगाणी के मल्हान, जमना गिरि के मध्यान्ह ,राज नाहन, एक घरी दिहुं खले जूझंते सूरेयों गैल साह्मे माथे जूझ कर मरा । गैलों हठी चंद बेटा माई दास का, पोता बल्लू राय का, चन्द्र बंसी, भारद्वाज गोत्र,पंवार, बंस बींझे का बंझावत, जल्हाना, बालावत मारा गया ।"<br />
(भाट बही मुलतानी सिंधी, खाता रमानों का)<br />
<br />
भाई ऊदा जी सूर्यवंशी राठौड राजपूत वंश के शासक वर्ग से संबंध रखते थे। वो मारवाड के राठौड राजवंश के वंशंज थे --<br />
**वंशावली**<br />
राव सीहा जी<br />
राव अस्थान<br />
राव दुहड<br />
राव रायपाल<br />
राव कान्हापाल<br />
राव जलहनसी<br />
राव छाडा जी<br />
राव टीडा<br />
राव सल्खो<br />
राव वीरम देव<br />
राव चूंडा<br />
राव रिडमल<br />
राव लाखा (राव जोधा के भाई)<br />
राव जौना<br />
राव रामजी<br />
राव सल्हा जी<br />
राव नाथू जी<br />
राव रामा जी<br />
राव रणमल जी<br />
राव भोजा जी<br />
राव धर्मा जी<br />
राव प्रेमा चंदनिया जी<br />
भाई ऊदा जी<br />
<br />
लेखक---श्री सतनाम सिंह जी (ग्रेटर कैलाश)</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-84422961374763302372016-07-04T19:33:00.000-07:002016-07-04T19:33:16.037-07:00आलम सिंह चौहान नचणा जी,वीर सिक्ख राजपूत यौद्धा(Alam singh chauhan nachna, great sikh rajput warrior<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqgXn0DJscfZnXt8pGZTLvRk3FhPQjB5OpzEA8XkObfqy2Q9_Zpa29G1RacjiPWpnaO7cf6ACCP971IPZOIQ7Swm3bilVORQZafXDzIX5SU7qlUdwS1eojz7l5_XembtKnfSEcRjMROAdp/s1600/FB_IMG_1466745434330.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="319" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqgXn0DJscfZnXt8pGZTLvRk3FhPQjB5OpzEA8XkObfqy2Q9_Zpa29G1RacjiPWpnaO7cf6ACCP971IPZOIQ7Swm3bilVORQZafXDzIX5SU7qlUdwS1eojz7l5_XembtKnfSEcRjMROAdp/s320/FB_IMG_1466745434330.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
सिक्ख धर्म की स्थापना में राजपूतों का योगदान भाग--4<br />
****भाई आलम सिंह चौहान "नचणा" जी शहीद****<br />
<br />
भाई आलम सिंह जी , चौहान राजपूत घराने से संबंध रखते थे।<br />
सूरज प्रकाश ग्रंथ,भट्ट बहियों,गुरु कीआं साखीयां आदि रचनाओं में इसका स्पष्ट उल्लेख है ।<br />
"आलम सिंघ धरे सब आयुध,जात जिसी रजपूत भलेरी ।<br />
खास मुसाहिब दास गुरु को,पास रहै नित श्री मुख हेरी ।<br />
बोलन केर बिलास करैं, जिह संग सदा करुणा बहुतेरी ।<br />
आयस ले हित संघर के,मन होए आनंद चलिओ तिस बेरी ।"<br />
(सूरज प्रकाश ग्रंथ- कवि संतोख सिंघ जी..रुत 6,अंसू 39,पन्ना 2948)<br />
<br />
भाई आलम सिंह जी का जन्म दुबुर्जी उदयकरन वाली,जिला स्यालकोट (अब पाकिस्तान) में सन् 1660 हुआ,जो उनके पूर्वजों ने सन् 1590 में बसाया था ।<br />
भाई आलम सिंह जी के पिता राव (भाई)दुर्गा दास जी, दादा राव (भाई)पदम राए जी, परदादा राव (भाई)कौल दास जी ,सिख गुरु साहिबान के निकटवर्ती सिख व महान योद्धा थे ।<br />
<br />
भाई आलम सिंह जी के दादा के भ्राता राव (भाई ) किशन राए जी छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी द्वारा मुगलों के खिलाफ लड़ी करतारपुर की जंग में 27 अप्रैल 1635 को शहीद हुए थे ।<br />
भाई आलम सिंह जी सन् 1673 में 13 वर्ष की आयु में अपने पिता राव (भाई) दुर्गा दास जी के साथ गुरु गोबिन्द सिंह जी के दर्शन करने आए ।<br />
गुरु जी ने उनको अपने खास सिखों में शामिल कर लिया । वो इतने फुर्तीले थे कि गुरु जी ने उनका नाम 'नचणा' रख दिया था ।<br />
<br />
फरवरी 1696 में मुगल फौजदार हुसैन खान ने जब पहाड़ी राजपूत रियासत गुलेर पर आक्रमण किया तो वहां के राजा गज सिंह ने गुरु गोबिन्द सिंह जी से मदद मांगी । गुरु जी ने अपने चुनिंदा सेनापतियों के नेतृत्व मे सिख फौज भेजी । राजपूतों व सिखों की संयुक्त सेना ने मुगल फौज को बुरी तरह परास्त किया लेकिन इस युद्ध में भाई आलम सिंघ जी के ताऊ जी के 2 पुत्र कुंवर (भाई) संगत राए जी व कुंवर भाई हनुमंत राए जी शहीद हो गए । साथ में राव भाई मनी सिंह जी (पंवार) के भाई राव (भाई) लहणिया जी भी शहीद हुए ।<br />
गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा जुल्म के खिलाफ लड़े गए हर युद्ध में भाई आलम सिंह जी की मुख्य भूमिका रही और बड़ी बात ये भी है कि वो गुरु गोबिन्द सिंघ जी के शस्त्र विद्या के उस्ताद भाई बज्जर सिंघ जी (राठौड़) के दामाद थे ।<br />
<br />
भाई आलम सिंह जी के समस्त परिवार ने गुरु जी द्वारा मुगलों के खिलाफ युद्धों में मोर्चा संभाला व समय समय पर शहीदीयां दी ।<br />
भाई आलम सिंह जी भी अपने एक भ्राता भाई बीर सिंह जी व अपने दो पुत्रों सहित चमकौर की जंग में 7 दिसंबर 1705 को शहीद हुए ।<br />
<br />
भाई आलम सिंह जी की वंशावली 👉<br />
<br />
महाराजा सधन वां (अहिच्छेत्र के महाराजा)<br />
महाराजा चांप हरि<br />
महाराजा कोइर सिंह<br />
महाराजा चांपमान<br />
महाराजा चाहमान (चौहान)<br />
महाराजा नरसिंह<br />
महाराजा वासदेव<br />
महाराजा सामंतदेव<br />
महाराजा सहदेव<br />
महाराजा महंतदेव<br />
महाराजा असराज<br />
महाराजा अरमंतदेव<br />
महाराजा माणकराव<br />
महाराजा लछमन देव<br />
महाराजा अनलदेव<br />
महाराजा स्वच्छ देव<br />
महाराजा अजराज<br />
महाराजा जयराज<br />
महाराजा विजयराज<br />
महाराजा विग्रह राज<br />
महाराजा चन्द्र राज<br />
महाराजा दुर्लभ राज<br />
महाराजा गूणक देव<br />
महाराजा चन्द्र देव<br />
महाराजा राजवापय<br />
महाराजा शालिवाहन<br />
महाराजा अजयपाल<br />
महाराजा दूसलदेव<br />
महाराजा बीसलदेव<br />
महाराजा अनहलदेव<br />
महाराजा विग्रह राज<br />
महाराजा मांडलदेव<br />
महाराजा दांतक जी<br />
महाराजा गंगवे<br />
महाराजा राण जी<br />
महाराजा बीकम राय<br />
महाराजा हरदेवल<br />
महाराजा गोल राय<br />
महाराजा गोएल राय<br />
महाराजा गज़ल राय<br />
राव उदयकरन जी<br />
राव अंबिया राय<br />
राव कौल दास<br />
राव पदम राय<br />
राव दुर्गा दास<br />
राव आलम सिंह जी<br />
<br />
लेखक---श्री सतनाम सिंह जी ग्रेटर कैलाश नई दिल्ली</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-40751373387710558332016-06-22T07:57:00.004-07:002016-09-11T06:40:28.940-07:00छत्तीसगढ़ के राजपूत शेर (Rajputs of Chhattisgarh)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCNooC8IfcIdmk3x5aQNxz1-YqAh3BL15YGq0pBZVDuxtIqOGwjojlohc4fvLk4sNDBIC2zMgCL8C97Kian9UNlcg2QgsJHHiuBvAYX7hVq0iAcCP9X1v71Z7eIGvBodvpekC2yy6n486K/s1600/FB_IMG_1466607215121.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCNooC8IfcIdmk3x5aQNxz1-YqAh3BL15YGq0pBZVDuxtIqOGwjojlohc4fvLk4sNDBIC2zMgCL8C97Kian9UNlcg2QgsJHHiuBvAYX7hVq0iAcCP9X1v71Z7eIGvBodvpekC2yy6n486K/s320/FB_IMG_1466607215121.jpg" width="320" /></a></div>
<h3 style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">छत्तीसगढ़ का राजपूत समाज,संक्षिप्त परिचय---</span></h3>
छत्तीसगढ़ वैसे तो आदिवासी/ओबीसी/सतनामी बाहुल्य प्रदेश है,यहाँ मात्र 4% ही शुद्ध राजपूत समाज है जो समाज के अन्य वर्गों को अपने साथ विश्वास में लेकर नेतृत्व करने की क्षमता रखता है।।<br />
इसी विश्वास के कारण डॉक्टर रमन सिंह पिछले डेढ़ दशक से राज्य के मुख्यमंत्री हैं।।<br />
<br />
छत्तीसगढ़ की सीमा बिहार,उड़ीसा,मध्य प्रदेश, झारखण्ड, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश से मिलती हैं इसलिए यहाँ के राजपूतों की संस्कृति में भिन्नता है,यहाँ कुछ दशक से बघेलखण्ड आदि से बाहर के प्रदेशो से भी राजपूत आकर बस गए हैं,<br />
यहाँ राजपूतों ने अलग अलग संगठन बना रखे हैं किन्तु अब भेदभाव भूलकर सभी राजपूत एक मंच पर आ रहे हैं जो सुखद संकेत है।<br />
<br />
छत्तीसगढ़ विधानसभा में 90 में से 5 राजपूत विधायक हैं मुख्यमंत्री रमन सिंह के अलावा नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव भी राजपूत हैं,कुल 11 में से 01 सांसद अभिषेक सिंह राजपूत हैं,<br />
कुल 03 राज्यसभा सांसदों में से 01 राजपूत रणविजयप्रताप सिंह जूदेव हैं<br />
<br />
<b>कुल 05 राजपूत विधायको की सूचि----</b><br />
1.Dr.Raman Singh C.M. C.g. Govt (MLA Rajnandgao)<br />
<br />
2.Raju Singh Kshatriya Sansadiya Sachiv C.g Govt (MLA Takhatpur)<br />
<br />
3.Yudhveer Singh Judev president state beverage corporation (MLA Chandrapur)<br />
<br />
4.Awdhesh Singh Chandel (MLA Bemetara)<br />
<br />
5.T.S. Singh Dev Apposition Leader (Congress MLA ambikapur)<br />
-------------------------------------------------------------<br />
छत्तीसगढ़ प्रदेश में राजपूतों का इतिहास---<br />
<br />
10वीं सदी के अंतिम समय से लेकर 18 वीं सदी के मध्यांत तक लगभग 752 वर्षों तक छत्तीसगढ़ प्रदेश पर हैहयवंशी कलचुरी राजपूत राजवंश की सत्ता रही ।<br />
इस राजवंश का गौरवपूर्ण इतिहास रहा |सन 1752 ई. में सत्ता का अंत हुआ।<br />
<br />
कलचुरी राजवंश के विभाजन के कारण मराठाप्रभुत्व स्थापित हुआ | कलचुरी विभाजन के पश्चात एक शाखा रतनपुर में तथा दूसरी शाखा ने रायपुर में शासन किया | अतः विभाजन के कारण मराठों को आक्रमण करने का प्रोत्साहन मिला और कलचुरी राजपूत सत्ता से बाहर हो गए।<br />
<br />
<span style="color: red;"><b>स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय छत्तीसगढ़ क्षेत्र में निम्नलिखित राजपूत राजवंश थे</b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
<span style="color: red;"><b>खैरागढ़---नागवंशी राजपूत</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>सरगुजा---रक्सेल राजपूत</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>जशपुर----चौहान राजपूत</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>कांकेर-----चन्द्रवँशी राजपूत</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>कोरिया-----चौहान राजपूत</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>उदयपुर----रक्सेल राजपूत</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>चांगभाकर--चौहान राजपूत</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>बस्तर----दक्षिण भारत से आए काकतीय चन्द्रवँशी</b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
<span style="color: red;"><b>शेष गोंड राजवंश हैं छत्तीसगढ़ में।।</b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
<span style="color: red;"><b>छत्तीसगढ़ में बैस, चौहान, रक्सेल, परिहार, कलचुरी,सोलंकी, तंवर,परमार,चंदेल,नागवंशी आदि राजपूत वंश मिलते हैं ।</b></span></div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com38tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-84284480142258713762016-06-04T23:07:00.000-07:002016-06-10T22:48:57.464-07:00योगी आदित्यनाथ उर्फ़ ठाकुर अजय सिंह एक क्षत्रिय संत,जो रखते हैं एक हाथ में माला और दूसरे में भाला,yogi adityanath the rajput saint<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJ13FOUCglpCPyJcHwsg6rOAyxcti_EOI7np327HkbBdmk_zDPwyEEYIu8eN4Loy-laM5FZP7b67ewU0LsRMorQATQbzfmd_umeGU-iRVbopnYDoXS4EFJqFb9wGVg4__S6EK91EH7hTOz/s1600/Screenshot_2016-06-05-11-23-35-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="204" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJ13FOUCglpCPyJcHwsg6rOAyxcti_EOI7np327HkbBdmk_zDPwyEEYIu8eN4Loy-laM5FZP7b67ewU0LsRMorQATQbzfmd_umeGU-iRVbopnYDoXS4EFJqFb9wGVg4__S6EK91EH7hTOz/s320/Screenshot_2016-06-05-11-23-35-1.png" width="320" /></a></div>
<br />
<h3 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">योगी आदित्यनाथ उर्फ़ ठाकुर अजय सिंह जो एक हाथ में माला और दूसरे में भाला रखते हैं------</span></h3>
<br />
आदि काल से क्षत्रिय समाज में ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने शस्त्र के साथ साथ शास्त्रों में भी निपुणता हासिल कर विश्व को धर्म का ज्ञान दिया है,जिनमे महर्षि विश्वामित्र,भगवान बुध,महावीर स्वामी,ऋषभदेव,पार्श्वनाथ आदि प्रमुख हैं.भगवान श्रीकृष्ण ने भी क्षत्रिय वर्ण में जन्म लेकर ही विश्व को गीता का ज्ञान दिया है ......<br />
इसी कड़ी को आगे बढाया है पूर्वांचल के शेर कहे जाने वाले गोरखनाथ पीठ के उत्तराधिकारी औरबीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ जी ने..............<br />
(Rajputana soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास)<br />
<br />
=================================<br />
<b>-----योगी आदित्यनाथ जी का प्रारंभिक जीवन------</b><br />
<br />
इनका जन्म उतराखण्ड के गढवाल में 05 जून 1972 को एक राजपूत परिवार में हुआ था.इनका वास्तविक नाम अजय सिंह है।उन्होंने गढ़वाल विश्विद्यालय से गणित से बी.एस.सी किया है। BSC करने के पश्चात् वे गोरखपुर आकर गुरु गोरखनाथ जी पर शोध कर ही रहे थे की गोरक्षनाथ पीठ के महंथ अवैद्यनाथ की दृष्टि इनके ऊपर पड़ी.महंत जी के प्रभाव में आकर अजय सिंह का झुकाव अध्यात्म की और हो गया,जिसके बाद उन्होंने सन्यास गृहण कर लिया.महंत जी की दिव्यदृष्टि अजय सिंह के भीतर छुपी प्रतिभा को पहचान गयी. और उन्होंने अजय सिंह को नया नाम दिया योगी अदियानाथ........<br />
==================================<br />
<h3 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">----------गोरक्षपीठ का इतिहास--------</span></h3>
गोरखपुर गोरक्षनाथ की धरती कही जाती है ये भूमि नेमिनाथ, महंथ दिग्विजय नाथ जैसे तमाम तपस्वी और राष्ट्र भक्तो की तपस्थली रही है,जब देश में सूफियो द्वारा धर्मान्तरण का कुचक्र चलाया जा रहा था उस समय गुरु गोरखनाथ ने पुरे भारत में अलख जगाकर धर्मान्तरण को रोका, इतना ही नहीं महंथ दिग्विजयनाथ जी ने देश की आज़ादी के संघर्ष में केवल सेनापती के सामान काम ही नहीं किया बल्कि हिन्दू समाज को बचाने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी चुने गए, इतना ही नहीं कांग्रेसियों ने तो यहाँ तक प्रचार किया की गाधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने महंथ दिग्विज्यनाथ जी की सलाह पर ही नहीं,बल्कि उनकी रिवाल्बर से की.<br />
महंत दिग्विज्यनाथ भी सन्यासी बनने से पहले चितौडगढ़ के राजपूत परिवार में जन्मे थे.......<br />
==================================<br />
<h3 style="text-align: left;">
---योगी आदित्यनाथ की समाजसेवा और हिंदुत्व---</h3>
<br />
जब सम्पूर्ण पूर्वी उत्तर प्रदेश जेहाद, धर्मान्तरण, नक्सली व माओवादी हिंसा, भ्रष्टाचार तथा अपराध की अराजकता में जकड़ा था उसी समय नाथपंथ के विश्व प्रसिद्ध मठ श्री गोरक्षनाथ मंदिर के पावन परिसर में 15 फरवरी सन् 1994 की शुभ तिथि पर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक सम्पन्न किया।<br />
अपने पूज्य गुरुदेव के आदेश एवं गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता की मांग पर योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 1998 में लोकसभा चुनाव लड़ा और मात्र 26 वर्ष की आयु में भारतीय संसद के सबसे युवा सांसद बने।जनता के बीच दैनिक उपस्थिति, संसदीय क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले लगभग 1500 ग्रामसभाओं में प्रतिवर्ष भ्रमण तथा हिन्दुत्व और विकास के कार्यक्रमों के कारण गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता ने आपको लगातार पांच बार रिकॉर्ड मतों से लोकसभा में भेजा...........<br />
<br />
जिस प्रकार स्वामी दयानंद के अन्दर देश भक्ति की ज्वाला थी और देश बचाने, हिन्दुओ को बचाने के लिए आर्य समाज की स्थापना की उसी प्रकार योगी जी ने गोरक्ष मंदिर और अपने राजनैतिक कैरियर का उपयोग हिन्दुसमाज को बचाने,धर्मांतरण को रोकने और देश भक्ति की ज्वाला को जलाये रखने में किया.कहा जाता है कि इनके भीतर महंत दिग्विज्यनाथ जी की आत्मा का वास है.......................<br />
<br />
इन्होने पूर्वांचल में इसाई मिशनरियों को कभी भी पैर जमाने का मौका नही दिया,<br />
यही नहीं नेपाल के रास्ते देश में पनप रहे जेहादी आतंकवाद का भी डट कर मुकाबला किया,,,,,कई बार उन पर जानलेवा हमला हुआ,पर इससे हिंदुत्व और जनकल्याण की उनकी भावना पर तनिक भी फर्क नही पड़ा.* योगी जी ने 2005 में 5000 से ज्यादा हिन्दू से ईसाई बनाये गए लोगों को वापस हिन्दू बनाया |<br />
> वो हमेशा एक बात कहते हैं "जब तक<br />
भारत को हिन्दू राष्ट्र नही बना देता तब तक<br />
नही रुकुंगा" |<br />
=================================<br />
<span style="color: red;"><b>हिन्दू हितों के रक्षक हैं,पर कट्टर ठाकुरवादी भी हैं--------</b></span><br />
<br />
कई बार उन पर कुछ विरोधी ठाकुरवाद का भी आरोप लगाते हैं,क्योंकि हिंदुत्व के साथ साथ उन्होंने राजपूत समाज के साथ होने वाले अन्याय का भी पार्टी लाइन से उपर उठकर जम कर विरोध किया.<br />
योगी आदित्यनाथ अकेले ठाकुर नेता थे जो दलगत राजनीती से उपर उठकर प्रतापगढ़ में हुए जिया उल हक हत्याकांड में झूठे फ़साये गये रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के समर्थन में भी खुल कर आगे आए।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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<br />
=================================<br />
<b>लोकसभा में शेर की दहाड़-----------</b><br />
<br />
अभी कुछ माह पूर्व योगी जी ने लोकसभा सत्र के दौरान देश में समान नागरिक संहिता और सख्त गौहत्या निषेध कानून बनाए जाने की पुरजोर हिमायत की,उनकी मुहिम का ही परिणाम था कि केंद्र सरकार इस दिशा में पहल करने के लिए तैयार हो गयी है.<br />
लोकसभा मे साम्प्रदायिक हिंसा पर हो रही बहस में गोरखपुर से भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ जी ने जिस तरह से अपना पक्ष रखा है,उसने सेकुलरिज्म के नाम पर देशद्रोह की राजनीति करने वालों की धज्जियां उडा कर रख दी।<br />
वाह वाकय् शेर ईसी तरह दहाडते है।<br />
<br />
------उनके भाषण के कुछ अंश-------<br />
1-मस्जिद मंदिर पास है केवल मंदिर के<br />
लाउडस्पिकर हटाये गये मस्जिद के<br />
लाउडस्पिकर वही रह गये क्या यही सेकुलरिज्म है?<br />
<br />
2-मुसलमानों के खिलाफ जुल्म चाहे म्यांमार में हो या ईराक फिलिस्तीन में लेकिन उसके खिलाफ प्रदर्शन मुंबई और दिल्ली में क्यूँ होते है?<br />
<br />
3-मेरठ में बालिका को बंधक बनाकर रेप हुआ लेकिन ये कांग्रेस और बाकि दल चुप रहे<br />
4-ये कांग्रेस वाले आज़ाद मैदान वाले दंगो पर चुप रहते है।<br />
<br />
5-असम में अली और कुली का नारा देकर बांग्लादेशियों को किसने बसाया?<br />
<br />
6-देश में 12 लाख साधू संत हैं,लेकिन सिर्फ मौलवियो को सरकारी वेतन क्यों?<br />
<br />
7-कांग्रेस असम के दंगो पर चुप क्यों हो गयी थी?<br />
<br />
8-कब्रिस्तान की दीवार पर 300 करोड़ क्यों?श्मशान घाट की घेराबंदी क्यो नही?<br />
<br />
9-मुस्लिम बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्पेशल फंड!!क्या हिन्दू बालिकाएं स्कूल नही जाती?<br />
<br />
10-सहारनपुर में कोर्ट के आदेश के बावजूद विवादित जमीन पर गुरुद्वारा क्यों नही बनवाया?<br />
<br />
11-सहारनपुर दंगे में शामिल कांग्रेस नेताओं पर क्या कार्यवाही की गयी?<br />
<br />
12-क्या सेकुलरिज्म के नाम पर पाकिस्तान का अजेंडा लागु किया जा रहा है?<br />
<br />
बेहद सटीक सवाल जिनका कोई जवाब कांग्रेस या दुसरे दलों पर नही था।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX-5hRMn4o-8OMfLvn_lEJn1nmFhfQyriIOnSePv4u5wz1GxgFSo3UVCruCLP3aN4azZNVGI4JfNmDI947_8igpGHOx3vZLHPl-7qjd0t85DS2FwmP6-inLe6zphecS6kslwqxH1CgJDxr/s1600/images-3.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX-5hRMn4o-8OMfLvn_lEJn1nmFhfQyriIOnSePv4u5wz1GxgFSo3UVCruCLP3aN4azZNVGI4JfNmDI947_8igpGHOx3vZLHPl-7qjd0t85DS2FwmP6-inLe6zphecS6kslwqxH1CgJDxr/s1600/images-3.jpg" /></a></div>
<br />
=================================<br />
इंडिया टीवी पर आपकी अदालत में पूर्वांचल के शेर योगी आदित्यनाथ--------<br />
<br />
आप सब ने इंडिया टीवी पर आपकी अदालत में पूर्वांचल के शेर योगी आदित्यनाथ का इंटरव्यू जरुर देखा होगा।<br />
क्या क्या कहा योगी जी ने देखिये----------<br />
<br />
* जो जिस भाषा से समझेगा उसको उस भाषा में समझाएगे।<br />
* जिसका मन पाकिस्तान में है.तन भारत में है उसके लिए भारत में कोई जगह नहीं है।<br />
* मुस्लिम की आबादी 10% से ज्यादा है वहीं होते क्यों होते हैं दंगे?<br />
* मुहर्रम के समय एक हिन्दू लड़की को पुलिस के जीप से खीचकर दुर्व्यहार किया था तब हम प्रशासन के भरोसे नहीं बैठेगे।<br />
* इस देश का कांग्रेसी प्रधानमंत्री कहता है कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुस्लिमो का है.तो हिन्दू क्या झक मारे।<br />
* पाकिस्तान में सुन्नी मुस्लमान शियाओ का कत्लेआम और उनकी महिलाओ के साथ रैप,अपहरण कर रहे है...इस पर देवबंद ने क्यों फ़तवा नहीं जारी किया?<br />
* देवबंद के मौलवी इस बात पर क्यों फ़तवा जारी नहीं करते कि हिन्दू लड़के के साथ मुस्लिम लड़की की शादी जायज है।<br />
* जबरदस्ती धर्मान्तरण के लिए उन मौलवियों ,काजी को भी दण्डित करना चाहिए' जो मुस्लिम लडको को फर्जी हिन्दू बनाकर हिन्दू लडकियों के साथ शादी कराके उसका उत्पीडन करते है, उनके साथ भी वैसा व्यवहार करना चाहिए...<br />
* आतंकियों का जब कोई मजहब नहीं है तो उसको ''मिट्टी का तेल ''छिड़कर जला दीजिये।<br />
* ईसाई और मुस्लिम यदि ''हिन्दू''बनता है तो यह ''घर वापसी'''है यह धर्मान्तरण नहीं है।<br />
* UP में 500 दंगे हुए लेकिन मेरे गोरखपुर में एक भी दंगा नहीं हुवा है ,,यही हिंदुत्व है !!"" वन्देमातरम।<br />
* अगर बहुसंख्यक समाज सुरक्षित है तो अल्पसंख्यक समाज अपने आप सुरक्षित हो जाएगा।<br />
* गांधी जी का तरीका की कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो,,ये सिधांत मानवो पर चल सकता है दानवो पर नहीं।<br />
* संतों के एक हाथ में अगर माला हैं तो दुसरे हाथ में भाला है जो दानवी शक्तियों को सबक सिखाने और आत्म रक्षा के लिए है।<br />
=================================<br />
माना जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ को बीजेपी यूपी में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी। इससे सत्ताधारी दल समेत सभी दलों की नींद उड़ गयी है।<br />
<br />
लेकिन बीजेपी में उनके विरोधी इनपर जातिवाद और कट्टरता का आरोप लगाकर उनके रास्ते में अवरोध कर रहे हैं खुद मोदी और अमित शाह भी उनके झांसे में आ गए तो यूपी में बीजेपी की करारी हार होनी निश्चित है।<br />
<br />
उनके विकास कार्यों से प्रभावित होकर गोरखपुर और आसपास के मुस्लिम लोग भी योगी जी का सम्मान करते हैं.<br />
तभी तो वहां एक कहावत मशहूर है कि<br />
<br />
"गोरखपुर में रहना है तो योगी योगी कहना है".<br />
<br />
योगी आदित्यनाथ जी के इन्ही राष्ट्रवादी कार्यों को कुछ लोग सांप्रदायिक कहते है लेकिन यदि देश भक्ति और धर्म रक्षा सांप्रदायिक है तो सांप्रदायिक होना कोई गलत बात नहीं है.<br />
<br />
आज ऐसे योगियों की देश को आवश्यकता है और भारत माता रत्नगर्भा है उसे पूरा ही करेगी.<br />
(Rajputana soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास)।<br />
जय हिन्द,जय राजपूताना -------------<br />
<br />
जय भारत ,जय गुरु गोरखनाथ,जय राजपूताना.....</div>
Dabang rajputhttp://www.blogger.com/profile/18409744063766564343noreply@blogger.com33tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-82880806096064232482016-06-01T05:52:00.000-07:002016-06-10T22:53:40.830-07:00हिमाचल प्रदेश का निर्माण करने वाले डॉ यशवंत सिंह परमार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><b>हिमाचल प्रदेश के संस्थापक और प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार जी की संघर्ष गाथा-------</b></span><br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi04cM0dOB6sB3t3ZTkz3CMSbdxSEAQN6MDIDXlq5nZ46YbSh9f93AglZaFjPIK3hX6VuUfVao2_4KxjYLMZcsU8N7SX-co0E0CfdbMfgLHfqOj3dPcNnjxLP8nizMsZH2MK4VxVwKQjcy0/s1600/FB_IMG_1464784901379.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi04cM0dOB6sB3t3ZTkz3CMSbdxSEAQN6MDIDXlq5nZ46YbSh9f93AglZaFjPIK3hX6VuUfVao2_4KxjYLMZcsU8N7SX-co0E0CfdbMfgLHfqOj3dPcNnjxLP8nizMsZH2MK4VxVwKQjcy0/s1600/FB_IMG_1464784901379.jpg" /></a></div>
<br />
आज हम आपको जानकारी देंगे उस महान नेता की जिसने हिमाचल प्रदेश की स्थापना और उन्नति में अपना सारा जीवन अर्पित कर दिया।वो थे हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉक्टर यशवन्त सिंह परमार जी।।।।<br />
<br />
<h3 style="text-align: left;">
प्रारम्भिक जीवन----</h3>
<br />
4 अगस्त, 1906 के दिन सिरमौर रियासत के पच्छाद क्षेत्र में ग्राम चन्हालग निवासी शिवानन्दसिंह परमार के घर जन्मे बालक यशवंत ने आगे चलकर अपने सुकृतों के बूते अपने नाम को सार्थक किया। स्नातक (आनर्स), फिर स्नातकोत्तर तथा विधि स्नातक जैसी उच्च शिक्षा उत्तीर्ण करने के अलावा लखनऊ विवि. से समाज शास्त्र में 1944 ई. में पी.एचडी. की प्रतिष्ठित उपाधि ग्रहण की। इसी बीच इन्हें सिरमौर रियासत के सब-जज और बाद में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति मिल गई; लेकिन रियासत के विरुद्ध ही एक क्रांतिकारी एवं निर्भीक निर्णय पारित करने के कारण 1941 में सात वर्ष के लिए निष्कासित कर दिये गये।<br />
<br />
<b>राजनितिक जीवन और संघर्ष गाथा----</b><br />
<br />
निष्कासन की समाप्ति के बाद शिमला में वकालत करते हुए रियासती शासन के विरुद्ध प्रजामंडल आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी करने लगे। इन्हें अपनी राजनैतिक सूझबूझ, वाक्पटुता, कर्मठता और दूरदृष्टि के कारण मार्च 1947 में ‘हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउन्सिल’ का प्रधान चुना गया। डाॅ. परमार जब हिमाचल के राजनैतिक क्षितिज पर उभरे, तब यहाँ के लोग 31 छोटी-छोटी रियासतों में बँटे हुए थे। तब इन सभी रियासतों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा भौतिक विकास अत्यंत दयनीय दशा में था।<br />
<br />
<br />
15 अगस्त, 1947 को देश तो आजाद हुआ परन्तु पंजाब हिल स्टेट के तहत पड़ने वाली पाँच बड़ी रियासतों-चंम्बा, मंडी, बिलासपुर, सिरमौर और सुकेत के अलावा शिमला हिल स्टेट के नाम से जानी जाने वाली 27 छोटी रियासतों में गुलामी का अंधकार छाया रहा। डाॅ. यशवंतसिंह परमार तथा उनके सहयोगियों के लगातार अथक प्रयास से 15 अप्रैल, 1948 को 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल राज्य का गठन हुआ। तब इसे मंडी, महासू, चंबा और सिरमौर चार जिलों में बांट कर प्रशासनिक कार्यभार एक मुख्य आयुक्त को सौंपा गया। बाद में इसे ‘ग’ वर्ग का राज्य बनाया गया।<br />
<br />
वर्ष 1952 के आम चुनाव में 36 सदस्यीय विधानसभा में 28 कांग्रेस के और 8 निर्दलीय विधायकों के निर्वाचित होने के बाद 24 मार्च को मुख्यमंत्री डाॅ. यशवन्त सिंह परमार को बनाया गया। राजा आनन्द चंद के अधीन बिलासपुर अभी भी एक स्वतंत्र रियासत थी। जबकि प्रजा इसे हिमाचल में शामिल करने को आंदोलित थी। अंततः 1 जुलाइ, 1954 के दिन इसका विलय हिमाचल में कर दिया गया।<br />
<br />
1956 में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा हिमाचल को पंजाब राज्य में मिलाने की सिफारिश करने के उपरांत इसका दर्जा ‘ग’ से घटाकर इसे केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया और यहाँ 1 नवंबर, 1956 को उप-राज्यपाल की नियुक्ति के साथ ही ‘हिमाचल टैरिटोरियल काउन्सिल’ गठित कर दी गई। इसके विरोध में प्रदेश के मंत्रिमंडल सहित मुख्यमंत्री डॉ. परमार ने त्यागपत्र दे दिया और यहाँ लोकतंत्र की बहाली का अभियान जनसभाओं, प्रदशनों, ज्ञापनों आदि के माध्यम से जारी रखा। लंबे संघर्ष के बाद 1963 में तत्कालीन गृहमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने लोकसभा में एक वक्तव्य में कहा-‘‘निरुत्साहित मन से कोई कार्यवाही करने से बेहतर है कि जनप्रतिनिधियों को अपनी सरकार चलाने के लिए जो भी शक्तियां हम प्रदान करना चाहते हैं, वे दे दें।’’ फलस्वरूप हिमाचल टैरिटोरियल काउन्सिल को विधानसभा में परिवर्तित कर दिया गया और 1 जुलाइ, 1963 को डाॅ. यशवंतसिंह परमार के मुख्यमंत्रित्व में हिमाचल सरकार का गठन हुआ।<br />
<br />
मुख्यमंत्री बनने के बाद डाॅ. परमार ने हिमाचल के चहुँमुखी विकास के लिए रात-दिन एक कर दिया। उठते-बैठते, सोते-जागते उन्हें इस पर्वतीय क्षेत्र को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करने के साथ ही इसे एक सुदृढ़ रूप-आकार देने की धुन सवार रहती थी।<br />
<br />
<span style="color: red;"><b>पंजाब के मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों को अपना उपनिवेश बनाकर रखने की साजिश के विरुद्ध संघर्ष-----</b></span><br />
<br />
हिमाचल के निवासियो और डॉक्टर परमार को अपने ही प्रदेश के चम्बा जिला और महासू जिले के सोलन क्षेत्र में जाने के लिए दूसरे प्रदेश से होकर जाने की मजबूरी बहुत पीड़ा देती थी। इसके अतिरिक्त वे पंजाब के कांगड़ा, कुल्लू, लाहौल, स्पीति, शिमला तथा हिन्दीभाषी पर्वतीय क्षेत्रों के अपूर्ण विकास के प्रति भी अत्यधिक चिन्तित रहते थे। जहाँ चाह हो वहाँ राह न निकले, यह नहीं हो सकता।<br />
फलस्वरूप 1965 में हिमाचल तथा पंजाब के पर्वतीय क्षेत्रों का एकीकरण करते हुए पंजाब राज्य पुनर्गठन का प्रस्ताव लाया गया, लेकिन पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरों किसी भी दशा में पंजाब के पर्वतीय क्षेत्र को हिमाचल में शामिल किये जाने के विरुद्ध थे। वे हिमाचल का विलीनीकरण कर महापंजाब या विशाल पंजाब बनाना चाहते थे।<br />
<br />
उनकी इस अव्यावहारिक सोच तथा घोर विरोध के कारण डाॅ. परमार और कैरों के बीच काफी कड़वाहट तक की नौबत भी आई। अंततः पंजाब राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1 नवंबर, 1966 को पंजाब राज्य का पुनर्गठन हुआ। जिसके अनुसार पंजाब के कांगड़ा, कुल्लू, शिमला और लाहौल-स्पीति जिलों के साथ ही अंबाला जिले का नालागढ़ उप-मंडल, जिला होशियारपुर की ऊना तहसील का कुछ भाग और जिला गुरुदासपुर के डलहौजी व बकलोह क्षेत्र को हिमाचल में शामिल कर दिया गया।<br />
<br />
शिमला हिल स्टेट्स की स्थापना-----<br />
वर्ष 1945 तक प्रदेश भर में प्रजा-मंडलों का गठन हो चुका था और 1946 में सभी प्रजा-मंडलों को एचएचएसआरसी. में शामिल करके मुख्यालय मंडी में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिवानंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया। एचएचएसआरसी. के नाहन में 1946 ई. में चुनाव हुए, जिसमें यशवंतसिंह परमार को अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 1947 ई. में राजा दुर्गाचंद (बघाट) की अध्यक्षता में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन की स्थापना की गई। इसका सम्मेलन जनवरी, 1948 में सोलन में हुआ। इसी सम्मेलन में हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा की गई। दूसरी तरफ प्रजा-मंडल के नेताओं का शिमला में सम्मेलन हुआ, जिसमें डाॅ. यशवंतसिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि हिमाचल प्रदेश का निर्माण तभी संभव है, जब प्रदेश की जनता तथा राज्य के हाथों में शक्ति सौंप दी जाए। शिवानंद रमौल की अध्यक्षता में हिमालयन प्लांट गर्वनमेंट की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय शिमला में था। दो मार्च, 1948 ई. को शिमला हिल स्टेट के राजाओं का सम्मेलन दिल्ली में हुआ। राजाओं की अगुवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन कर रहे थे। इन राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए 8 मार्च 1948 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश राज्य का निर्माण किया गया। उस समय प्रदेश को चार जिलों में बांटा गया। इसमें 1948 ई. में सोलन की नालागढ़ रियासत को भी शामिल कर दिया गया। अप्रैल 1948 में इस क्षेत्र की 27,018 वर्ग कि॰मी॰ में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।<br />
<br />
1950 में प्रदेश का पुनर्गठन----<br />
1950 ई. में हिमाचल प्रदेश को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के अलावा इसकी सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उप-तहसील का दर्जा देकर इसमें खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उप-तहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र शामिल किए गए। जबकि कोटगढ़ को कुमारसैन उप-तहसील में मिलाया गया। उत्तर प्रदेश के दो गाँव संगोस और भांदर जुब्बल तहसील में शामिल कर दिए गये।<br />
<br />
भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चलने के कारण बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में इस प्रदेश से अलग रखा गया था। एक जुलाई, 1954 ई. को कहलूर रियासत को हिमाचल प्रदेश में शामिल करके प्रदेश का पाँचवाँ जिला बिलासपुर नाम से बनाया गया। तब बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गईं। रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाने पर इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग किमी. हो गया।<br />
<br />
एक मई, 1960 को छठे जिले के रूप में किन्नौर का निर्माण किया गया। इसमें महासू जिले की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील के 14 गाँव शामिल किये गये। इसकी तीन तहसीलें कल्पा, निचार और पूह बनाई गईं। उधर, ‘पंजाब हिल स्टेट्स’ कहलाने वाली पूर्वी पंजाब की आठ रियासतों को मिलाकर नया राज्य बनाया गया जिसे पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (PEPSU) नाम देते हुए इसकी राजधानी पटियाला बनाई गई। और फिर सन 1956 में इस पेप्सू को पंजाब में मिला दिया गया।<br />
<br />
पंजाबी सूबा आंदोलन के कारण 1966 में पंजाब का पुनर्गठन करके पंजाब व हरियाणा दो राज्य बनाने के साथ ही हिन्दीभाषी पहाड़ी क्षेत्र पंजाब से लेकर हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिए गये। इसके अलावा पेप्सू का छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में मिला दिया गया। शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर तथा पंजाब के नालागढ़ के सात गाँव जो पहले पंजाब में थे, पुनः हिमाचल प्रदेश की सोलन तहसील में शामिल किये गये। पंजाब के इन पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि॰मी॰ हो गया।<br />
<br />
<b>पूर्ण राज्य के दर्जे हेतु संघर्ष-----</b><br />
<br />
इसके बाद शुरू हुआ भिन्न-भिन्न राजनैतिक दलों से बनी ‘पहाड़ी एकीकरण समिति के ध्वज तले हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का अभियान, जिसका नेतृत्व डाॅ. परमार ने किया। फिर जुलाइ, 1970 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की और तदनंतर दिसंबर, 1970 को संसद ने इस आशय का बिल पारित कर दिया। फलतः हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी 1971 को मिला। इसे हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम-1971 के अन्तर्गत 25 जून 1971 को भारत का अठारहवाँ राज्य घोषित किया गया।<br />
<br />
अभी हिमाचल को उन्नति के कई सोपान चढ़ने शेष थे और डाॅ. परमार अहर्निश इस लक्ष्य की प्राप्ति में एक कर्मयोगी की भांति पहले से भी अधिक सक्रियतापूर्वक निरंतर जुटे हुए थे। उन्होंने शीघ्र ही प्रदेशवासियों को अपनी प्रशासनिक दक्षता, क्षमता, दृढ़ इच्छाशक्ति और दूरदृष्टि का परिचय देना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने 1 नवम्बर 1972 को कांगड़ा जिले को विभाजित कर तीन नये जिले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बना दिये और महासू जिले को विभाजित कर सोलन जिला बनाया।<br />
<br />
किसी विचारक का यह कथन कि असाधारण एवं विलक्षण व्यक्तित्व के धनी भूतकाल की सच्ची धरोहर, वर्तमान के लाड़ले और भविष्य के स्रष्टा हुआ करते हैं, डाॅ. यशवंतसिंह परमार पर सटीक बैठता है। उन्होंने मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करते ही अपनी सर्वोच्च वरीयता में सड़क, बागवानी, वन संपदा और पनबिजली को रखा।<br />
<br />
पर्वतीय क्षेत्रों के सीधे, सच्चे, सरलमना तथा प्रकृति की गोद में पले आमजन के प्रति डाॅ. परमार की निष्ठा, लगन, समर्पण और सेवाभाव इतना उच्चस्तरीय था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी अभिभूत होकर कह उठी थीं--‘‘डाॅ. परमार की हिमाचल और पहाड़ी लोगों के लिए चिंतित एक समर्पण की कहानी भी है और यह दूसरों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण भी है।’’<br />
<br />
डाॅ. यशवंतसिंह परमार आयुपर्यंत सदैव निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर दूसरों के लिए संघर्ष करते रहे, उन्होंने ‘अपने तथा अपनों’ की स्वार्थपूर्ति के लिए कभी नहीं सोचा। इसका प्रमाण रहा, उनके अपने घर-गाँव जाने का ऊबड़ खाबड़ रास्ता और खंडहर में तब्दील होता उनका अपना घर। जिसे देखकर एक बार विधायक जालिमसिंह ने उसे ठीक करवाने की बात कही तो डाॅ. परमार ने उत्तर दिया--‘‘जितना वेतन मिलता है, उतने में गुजारा करता हूँ, मकान की मरम्मत कहाँ से करवाऊँ।’’<br />
<br />
वर्ष 1976 के अंतिम दो-तीन महीने देश में भारी राजनैतिक उथल-पुथल के थे और इसी से प्रभावित होकर डाॅ. परमार ने अकस्मात 24 जनवरी, 1977 को मुखमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। तब इसका रहस्य कोई नहीं समझ पाया।<br />
<br />
अप्रैल 1948 में केवल 27,018 वर्ग कि॰मी॰ वाले हिमाचल को दूने से भी अधिक 55,673 वर्ग कि॰मी॰ वाले शुद्ध तथा एकीकृत पर्वतीय राज्य के रूप में सुदृढ़ बनाकर अपने सक्रिय राजनैतिक जीवन का पटाक्षेप करने वाले डाॅ. यशवंतसिंह परमार को समस्त हिमाचलवासी आज भी बड़ी श्रद्धा तथा आदरपूर्वक ‘हिमाचल का निर्माता’ मानते हैं। यदि हिमाचल के गठन से लेकर इसकी उन्नति की कहीं चर्चा हो तो डाॅ. परमार की सूझबूझ तथा कुशल नेतृत्व का उल्लेख सहज आ जाता है।<br />
<br />
डाॅ. यशवंतसिंह परमार का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा का प्रत्यक्ष प्रमाण था। यद्यपि उन्होंने हिमाचल को केन्द्र में रखते हुए अनेक पुस्तकें लिखीं लेकिन 1944 में उनके लखनऊ विवि. से पी.एचडी. के शोध प्रबंध ‘हिमालय में बहुपति प्रथा की सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि’ के वृहत्तर स्वरूप-‘पोलिएण्ड्री इन हिमालयाज’ को अत्यधिक सराहना मिली। इसके अतिरिक्त उनकी ‘स्ट्रेटेजी फाॅर डेवलेपमेंट आॅफ हिल एरियाज’ को हिमालयी विकास की दृष्टि से मील का पत्थर माना जाता है।<br />
<br />
हिमाचल विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति रहे डाॅ. आरके. सिंह 45 वर्षों तक डाॅ. परमार के घनिष्ठ मित्र रहे, उनका कहना था-‘‘डाॅ. परमार कभी समृद्ध नहीं रहे। वे 18 वर्ष तक मुख्यमंत्री तथा 8 साल तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष रहे, परंतु उन्होंने कभी अपने पद का दुरुपयोग नहीं किया। उन्होंने अपने किसी पुत्र, पुत्री या बहुओं तथा सम्बंधियों को तनिक भी लाभ उठाने की परंपरा नहीं डाली। वे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसे दुर्लभ राजनेता थे जिन्होंने निर्धनता को चुना।’’ वर्तमान समय में देश-दुनिया में ऐसा एक भी राजनैतिक नेता आपको ढूंढे नहीं मिलेगा जिसने राजनीति को अपनी स्वार्थपूर्ति का साधन न बना लिया हो, परन्तु 2 मई 1981 के दिन हिमाचलवासियों के लिए अपनी ईमानदारी, लगन, निष्ठा, अथक परिश्रम और पवित्र सेवाभाव से एकत्र की हुई अकूत सार्वजनिक विरासत छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कहने वाले डाॅ. परमार के बैंक खाते में मात्र 563 रु 30 पैसे थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने हिमाचल को एकीकृत करने, सजाने-सँवारने और उन्नत करने की दिशा में जो भी प्रयत्न किये, उनकी प्रशंसा न केवल हिमाचल में बल्कि सारे भारत में हुई। यह उनके सेवाभाव, कर्मनिष्ठा, लगन, तप-त्याग तथा ईमानदारी की मिशाल है।<br />
<br />
राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के कार्य में पर्वतीय क्षेत्रों के योगदान पर जब भी कहीं विचार होता है तो हिमाचल की भूमिका रेखांकित होती है जिसका सारा श्रेय डाॅ. परमार को जाता है क्योंकि यह कैसे हो सकता है कि केवल शरीर की बात हो और प्राण की ओर ध्यान न जाये। यह सत्य है कि डाॅ. परमार के प्राण हिमाचल के आमजन में बसते थे और हिमाचल की जनता के मन-प्राणों में आज भी बसते हैं--अपना यशवर्द्धन करने वाले डाॅ. यशवंतसिंह परमार। देवभूमि के इस अनन्य एवं सरलहृदय भक्त को प्रणाम।<br />
<br />
मशहूर और अजीम शायर जिगर मुरादाबादी की ये पंक्तियां डाॅ. परमार पर इतनी सटीक बैठती हैं कि लगता है इन्हें उनको ही ध्यान में रख कर लिखा गया था--<br />
हाँ किसको है मयस्सर यह काम कर गुजरना।<br />
इक बाँकपन से जीना इक बाँकपन से मरना।<br />
<br />
Family-----<br />
Dr. Yashwant Singh Parmar had three sons and 2 daughters. Luv Parmar, Kush Parmar, Jitendra Singh Parmar, Urmil Parmar and Promila Parmar.<br />
<br />
Honours---<br />
Dr. Yashwant Singh Parmar University of Horticulture and Forestry, established in 1985 in Solan is named after him.<br />
<br />
संदर्भ------http://news.bhadas4media.com/yeduniya/3242-story-of-dr-yashwant-parmar</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02623436407222236397noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-91730581509640052482016-05-29T03:49:00.001-07:002016-05-29T03:52:29.693-07:00मुरैना जिला की तंवरघार का एक ऐतिहासिक कुआँ जिसका पानी पीने से ही इन ग्रामीणों के अंदर आत्मसम्मान स्वाभिमान का भाव पैदा हो जाता है।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="y">
<br />
<h2 style="text-align: left;">
<b><span style="font-size: small;">मुरैना जिला की तंवरघार का एक ऐतिहासिक कुआँ जिसका पानी
पीने से ही इन ग्रामीणों के अंदर आत्मसम्मान स्वाभिमान का भाव पैदा हो
जाता है।</span></b></h2>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">**साधारण नहीं था 100 साल पुराने इस कुएं का पानी, 2 महीने अंग्रेज थे परेशान**</span></div>
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a class="bc bd be" href="https://m.facebook.com/rajputanasoch/photos/a.706315796129071.1073741828.705840829509901/775617265865590/?type=3&refid=52&_ft_=top_level_post_id.775617285865588%3Atl_objid.775617265865590&__tn__=E" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img class="l" height="200" src="https://scontent.fdel1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-0/cp0/e15/q65/p200x200/10941309_775617265865590_8709152206828432132_n.jpg?oh=648b5b88c4f054efd7aeded606ad31a9&oe=57CB283C" width="231" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<b><span style="color: lime;">
मुरैना जिले की पोरसा के तहसील के ग्राम कौंथर का नाम आते ही उस प्राचीन
कुएं की यादें दिमाग में उभर आती हैं, जिसके बारे में अभी तक यह कहा जाता
था कि जो भी इस कुएं का पानी पीता है, उसके अंदर आक्रोश उत्तेजना पैदा हो
जाती है और लोग एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। मगर हकीकत
इसके विपरीत है। कौंथर के प्राचीन कुएं का पानी उत्तेजित करने वाला नहीं
बल्कि स्वाभिमान आत्मसम्मान का भाव पैदा करने वाला था।</span></b><br />
<b><span style="color: lime;"> कौंथर गांव
में स्थित माता मंदिर के पुजारी आशाराम (70) बताते हैं कि तकरीबन 100 वर्ष
पूर्व कौंथर गांव के तीन बागी भाइयों भूपसिंह तोमर, जिमीपाल तोमर और मोहन
सिंह तोमर ने नागाजी धाम के महाराज कंधरदास के प्रयासों से बीहड़ों का
रास्ता छोड़कर गौ हत्या रोकने का संकल्प लिया। <br /> इसी संकल्प के साथ
तीनों भाइयों ने ग्वालियर मुरार के कसाईखाने पर हमला बोल दिया, जहां गौवंश
को काटकर मांस का निर्यात किया जाता था।</span></b><br />
<b><span style="color: lime;"> कसाईखाने को तहस-नहस करने
के बाद तीनों भाइयों ने कौंथर गांव में शरण ले ली। इससे नाराज होकर यंग
साहब नामक अंग्रेजी अफसर ने इलिंग बर्थ नाम की पूरी रेजिमेंट ही कौंथर गांव
को तहस-नहस करने के लिए भेज दी। लेकिन कौंथर के मुठ्ठीभर ग्रामीणों ने
पूरे दो महीने तक अंग्रेजी सेना को गांव के अंदर नहीं घुसने दिया। इससे
घबराए अंग्रेज अफसरों ने गांव के ही भेदियों को यह पता लगाने भेजा था कि
आखिर ऐसा क्या है, जिससे गांव के लोग अंग्रेजी सेना को टक्कर दे रहे हैं।
भेदियों ने अंग्रेजी अफसरों को बताया कि गांव में एक प्राचीन कुआं है,
जिसका पानी पीने से ही इन ग्रामीणों के अंदर आत्मसम्मान स्वाभिमान का भाव
पैदा हो जाता है। बाद में अंग्रेजी अफसरों ने भेदियों की मदद से गांव के
प्राचीन कुएं अन्य कुओं को पटवा दिया। इसके बाद ही सेना गांव में घुस सकी
थी। </span></b><br />
<b><span style="color: lime;"> यह सत्य है कि अंग्रेज अफसर यंग साहब के नेतृत्व में ब्रिटिश
फौज की पूरी एक रेजिमेंट ने कौंथर गांव पर हमला किया था। कई पुरानी
लोकगाथाएं भी इस क्षेत्र के बारे में प्रचलित है। लेकिन यहां की गौभक्त
भाइयों की घटना सत्य है। प्रो. डाॅ. शंकर सिंह तोमर, इतिहासकार -
साहित्यकार</span></b><br />
<b><span style="color: lime;"> कौंथर गांव के प्राचीन कुए का पानी पीकर लोग स्वाभिमानी
हो जाते थे, इसका उल्लेख ब्रिटिश गजेटियर में भी है। इसमें उल्लेख है कि
सन् 1914 में गर्मियों के दिनों में मुरार के कसाईखाने पर हमला किया गया
था। तब ई. इलिंग बर्थ रेजिमेंट ने बागियों की घेराबंदी की, लेकिन उन्होंने
सरेंडर करते हुए अंग्रेजी सेना को दो माह तक टक्कर दी, इसलिए रेजीडेंट ने
गांव के तीनों कुएं ही पाट दिए। कुछ समय पूर्व सबसे पुराने कुएं को खोला भी
गया लेकिन अब उसका जलस्तर काफी </span><span style="color: lime;">नीचे चला गया है।</span></b><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span><span style="color: blue; font-size: x-small;"> सन्दर्भ और साभार---<a href="http://lm.facebook.com/l.php?u=http%3A%2F%2Fm.bhaskar.com%2Fnews%2Freferer%2F521%2FMP-OTH-ancient-well-water-which-had-given-self-respect-to-freedom-fighters-4891365-PHO.html%3Fpg%3D1&h=3AQHqf72m&enc=AZNrW_G-5Atdil-YgcO4gfk7Bq5kHUQMvODw3kpUUR8m-fEyscr8JwEFsw04dI3VE4xsWBSr0MnKcF5e7ecZUrBRK68veKfSEKfLceOuRzfAXiaCglIFnGqDnNsxND0stax7A1pR_o2v2g1CJ4y3EDYGrwM577ct7GLowZQHWY2kHQ&s=1" target="_blank">http://<wbr></wbr><span class="word_break"></span>m.bhaskar.com/<wbr></wbr><span class="word_break"></span>news/referer/<wbr></wbr><span class="word_break"></span>521/<wbr></wbr><span class="word_break"></span>MP-OTH-ancient-w<wbr></wbr><span class="word_break"></span>ell-water-which<wbr></wbr><span class="word_break"></span>-had-given-self<wbr></wbr><span class="word_break"></span>-respect-to-fre<wbr></wbr><span class="word_break"></span>edom-fighters-4<wbr></wbr><span class="word_break"></span>891365-PHO.html<wbr></wbr><span class="word_break"></span>?pg=1</a></span></div>
<div class="z">
<div class="ba bb">
</div>
</div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-57661981621765007752016-05-29T03:41:00.002-07:002016-05-29T03:53:25.879-07:00NAYAK NEERAJ KUMAR SINGH RAGHAV नायक नीरज कुमार सिंह राघव <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="y">
<br />
<h2 style="text-align: center;">
<b>NAYAK NEERAJ KUMAR SINGH RAGHAV नायक नीरज कुमार सिंह राघव</b></h2>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6e0bnwZQOVgNpMEG-XaVxgLtdAGVJODdXbNZButlMQRAGkvQdsbWzK6QtqKldAnRUJAo7De_VkojAfpIKI4EnVGstb_uBNZREyXkAK4OcqOIGnEjVPeWpPNLT81S77ammBnlD4S5bdAE/s1600/11.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6e0bnwZQOVgNpMEG-XaVxgLtdAGVJODdXbNZButlMQRAGkvQdsbWzK6QtqKldAnRUJAo7De_VkojAfpIKI4EnVGstb_uBNZREyXkAK4OcqOIGnEjVPeWpPNLT81S77ammBnlD4S5bdAE/s400/11.jpg" width="400" /></a></div>
<h2 style="text-align: center;">
<b> </b></h2>
<b><span style="color: orange;"> मित्रों बहुत हर्ष के साथ
जानकारी देना चाहेंगे कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय राइफल के नायक
नीरज कुमार सिंह राघव को मरणोपरांत शांतिकाल में दिए जाने वाले देश के
सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया जाएगा। आइए देश के इस
वीर बेटे से जुड़ी पांच बातें जानें-:</span></b><br />
<b><span style="color: orange;"> 1: देश के वीर सपूत नीरज कुमार सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के देवराला गांव में हुआ था।</span></b><br />
<b><span style="color: orange;"> 2: नीरज 57 राष्ट्रीय रायफल में तैनात थे।</span></b><br />
<b><span style="color: orange;">
3: शहीद नीरज सामान्य परिवार से थे, वो राघव (बडगूजर राजपूत) वंश से
थे।उनकी स्कूली पढ़ाई गांव के स्कूल से ही हुई थी। उनके भाई का नाम सतीश
राघव है।</span></b><br />
<b><span style="color: orange;"> 4: 2014 के 24 अगस्त को कुपवाड़ा के गुरदाजी सेक्टर में
नायक नीरज सिंह के गश्ती दल पर आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया, जिसमें एक
जवान बुरी तरह घायल हो गया।</span></b><br />
<b><span style="color: orange;"><br /> नीरज ने अपनी जान की परवाह न करते हुए
ग्रेनेड हमला कर रहे उस आतंकी को मार गिराया, जबकि दूसरे दहशतगर्द ने इस
बहादुर जवान के सीने में गोली मार दी। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद
नीरज सिंह उस आतंकवादी से दौड़ कर भिड़ गए, उसे निहत्था कर दिया और दो-दो
हाथ की जंग में उसे मार गिराया।<br /> शहीद नीरज सिंह राघव ने अपनी वीरता से
अपनी रेजिमेंट का,अपने कुल का और समूचे क्षत्रिय राजपूत समाज का सर गर्व से
ऊँचा कर दिया और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।<br /> अमर शहीद नीरज कुमार सिंह राघव को शत शत नमन और समस्त बन्धुओं को गणतंत्र दिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाऐं।</span></b></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-16869237784982148242016-05-29T03:14:00.001-07:002016-05-29T07:25:54.144-07:00 वीर कान्हड़देव सोनगरा,जिन्होंने अलाउद्दीन ख़िलजी से छीनी सोमनाथ मन्दिर की लूटी हुई मूर्तियां और बनवाया भव्य मन्दिर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<blockquote class="tr_bq">
<span style="color: blue;"><b>=== वीर कान्हड़देव सोनगरा,जिन्होंने अलाउद्दीन ख़िलजी से छीनी सोमनाथ मन्दिर की लूटी हुई मूर्तियां और बनवाया भव्य मन्दिर ===</b></span></blockquote>
<div style="text-align: center;">
<img alt="" class="irc_mi iktnAr_gVFUk-pQOPx8XEepE" src="http://www.luederhniemeyer.com/miscell/images/6381.jpg" height="393" style="margin-top: 0px;" width="225" /></div>
<div>
<h3 style="text-align: left;">
<u>VEER KANHARDEV SONIGARA</u></h3>
</div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>जालौर के वीर कान्हड़देव सोनीगरा जिन्होंने अल्लाउद्दीन ख़िलजी से छीनी सोमनाथ मंदिर से लूटी हुयी मुर्तिया और बनवाया भव्य मंदिर</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>राजपुताना हमेशा धर्म की रक्षा में आगे रहा है कण कण में वीरो का बलिदान है ऐसा कोई गाव नही जहा राजपूत झुंझार की देवालय छतरिया न हो</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>वक़्त 12वीं शताब्दी जब भारत तुर्को के जिहादी हमले झेल रहा था उसी समय जालौर में चौहानो </b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>की शाखा सोनीगरा में महाराजा सामंत सिंह के यहाँ जन्म हुआ वीर कान्हड़देव का जो आगे चल कर जालौर के राजा बने</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>उनके कुशल नेतृत्व में जालौर की सीमाये सुदृढ़ हुयी और कान्हड़देव जी स्वर्णगिरी दुर्ग से राज्य चलने लगे</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>राज्य में एक से बढ़ कर एक योद्धा थे</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>उसी समय अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने गुजरात में आक्रमण किया और बहुत मार काट मचाई उसने हिन्दुओ के 12 ज्योतीर्लिंग में से एक सोमनाथ महादेव के मंदिर को 1298 ईस्वी में पुनः लूटा और हजारो लोगो को गुलाम बना कर अल्लाउद्दीन ख़िलजी की सेना ने सेनापति उलुग खा के साथ उत्तर की तरफ रुख किया </b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b> गुजरात के शहरो को तबाह करते हुए अल्लाउद्दीन की सेना 1299 ईस्वी में राजपूताने में प्रविष्ट हुयी और जालोर राज्य में साकरना गाव के पास डेरा लगाया</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>जब ये बात कान्हड़देव जी पता चली तो उनकी भुजाये फड़कने लगी और अपने 4 राजपूत वीर योद्धा जिनमे कांधल जी और जैता देवड़ा जैसे बाहुबली थे उन्हें दूत बनाकर सकराणे भेजा</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b> अल्लुद्द्दीन ख़िलजी ने चारो के सामने आते ही ख़िलजी ने कहा जो भी आता है वो हमारे दरबार में शिश झुकाकर आता तब योद्धा राजपूतो ने जवाब दिया और कहा की हमारा सिर सिर्फ मौत के वक़्त ही झुक सकता है इतना सुनते ही ख़िलजी आग बाबुला हुआ</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>और ऊपर की और एक तीर छोड़ा जो सीधा जा रही चील लो लगा और सैनिको को आदेश दिया की ये नीचे नही आना चाईए फिर क्या था सैनिको ने एक के बाद एक इतने तीर छोड़े की वो चील नीचे ही नही गिरी</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>कांधल समझ चुके थे की ख़िलजी शक्ति प्रदर्शन करवा रहा है तब वहा डेरे में पास ही खड़े एक भैंसे को कांधल ने एक ही वार में दो टुकड़े कर डाले तभी वजीर ने बीच बचाव करते हुए कहा की ये राजपूत है अखड़ स्वाभाव के होते है चारो वीर वहा अल्लाउद्दीन को चेतवानी देकर आ गए</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>किल्ले में पहुचते ही सार बात कान्हड़ देव सोनीगरा को बताई उन्हें पता चला की सोमनाथ शिवलिंग के साथ उन्होंने महिलाओं बच्चों को भी कैद कर रखा है</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b> इतना सुनते ही कान्हड़ देव ने प्रतिज्ञा की </b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>'वह जब तक सोमनाथ महादेव शिवलिंग को एवं बंदियों को मुक्त नहीं करवा देगा, तब तक वह अन्न ग्रहण नहीं करेगा' </b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>किल्ले में विश्वनीय योद्धाओ और तैयार किया गया पूरी सेना को दो भागो में बाटा एक टुकड़ी का नेतृत्व </b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>जैता/जैत्र देवड़ा कर रहे थे</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>आधी रात को किले से सेना निकली और 9 कोस दूर सकरने के पास रुकी सुबह के पहर में अपने से 10 गुणी बडी सेना पर अचानक हमला किया गया अचानक हुए इस हमले से तुर्क हक्के बक्के रह गए एक टुड़की ने औरतो बच्चों को छुड़ाया और लूटी मूर्तियो को अपने कब्जे में लिया वहा दूसरी टुकड़ी ने तब तक तुर्को को उलजाये रखा इसी बीच अल्लाद्दीन भाग निकला वही अल्लाउद्दीन का भतीजा हाथ लग गया जैत्र देवड़ा ने एक वार से उसके दो टुकड़े कर दिए तुर्को की लाशें बीच गयी</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>कांधल ने आईजुद्दीन व नाहर नाम के दो तुर्क अधिकारीयो को मार गिराया</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>राजपूतो के अद्वितिय पराक्रम दिखाया</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>सुबह होने सब वीर किल्ले में लौट आये कान्हड़देव ने अपना वचंन पूरा किया वही कुछ मूर्तिया वीर राजपूत योद्धा और विश्वनीय चारणो और राजपुतोहितो से सोमनाथ भिजवाई वही दूसरी मूर्तियो को जालोर के मकराणे गाव में हवन द्वारा वाला स्थापित कर मंदिर बनवाया</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>पर कुछ ही वक़्त बाद अल्लाउदीन एक विशाल फ़ौज लेकर जालोर आया किल्ले को कई माह तक संघर्ष चला अल्लाउद्दीन ने किल्ले घेरे रखा पर अंत में एक राशन खत्म होने की वजह हजारो राजपुतानियो ने महारानी केवल दे, जैतल दे,भवल दे जौहर की रस्म पूरी की और अपने सतीत्व की रक्षा के लिए आगे में कूद पड़ी </b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: red;"><b>"गढरी परधी घेर, बैरी रा घेरा पड़या।</b></span></div>
<div>
<span style="color: red;"><b>सत्यां काली रात ने, जौहर सूं चनण करी।।"</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b>वही हजारो राजपूत अन्तिम सांस तक लड़े इस बारे में कहा गया</b></span></div>
<div>
<span style="color: magenta;"><b></b></span><br />
<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
</div>
<br />
<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<div style="margin: 0px;">
<span style="color: red;"><b>द छूटे जालोर !!"</b></span></div>
</div>
</div>
<div>
<span style="color: red;"><b>"आभा फटे धर ऊलटे,कटे बखतरा कोर, फूटे सिर धड फड़फडे, ज</b></span></div>
<div>
<span style="font-family: Georgia, Times New Roman, serif;">सन्दर्भ : -</span></div>
<div>
<span style="font-family: Georgia, Times New Roman, serif;">कान्हड़ देव् प्रबन्ध</span></div>
<div>
<span style="font-family: Georgia, Times New Roman, serif;">मुहणोत नैणसी भाग 1</span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2638609079267706727.post-52784592364164834482016-05-22T04:37:00.000-07:002016-05-22T04:37:48.149-07:00===महान राजपूत व्यक्तित्व स्व. ठाकुर मेघनाथ सिंह शिसौदिया===<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1IOakw6Y-tKRAq1Js2_3xku2NZLjucwce_zjRUlJMkIL3kANolQxXnu99nDLxVx_5hVQCn2UmrdeZAWAJXhTzZbgbac7h0At_W95o1eT0h4-hIxO8O6_-AGE1-TEvgZktsoEI2y7Hdb37/s1600/11026019_804273163000000_3638402501662136802_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1IOakw6Y-tKRAq1Js2_3xku2NZLjucwce_zjRUlJMkIL3kANolQxXnu99nDLxVx_5hVQCn2UmrdeZAWAJXhTzZbgbac7h0At_W95o1eT0h4-hIxO8O6_-AGE1-TEvgZktsoEI2y7Hdb37/s1600/11026019_804273163000000_3638402501662136802_n.jpg" /></a></div>
<br />
<br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 18px;">मित्रों आज राजपूताने की एक महान हस्ती से आपका परिचय कराएंगे जो आधुनिक युग में राजपूतो के लिये प्रेरणास्त्रोत हैँ। इन हस्ती का नाम है ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशोदिया जिन्हें साठा शिरोमणी भी कहा जाता है। साठा पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गहलोत/शिशोदिया राजपूत बाहु</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 18px;">ल्य इलाका है जहाँ इनके 60 गाँव हैँ। ठाकुर मेघनाथ सिंह जी को मशहूर शिक्षाविद् ,समाज सुधारक और अपने समय के बहुत ईमानदार एवं जबरदस्त विकास कराने वाले नेता के रूप में याद किया जाता है। ग्रामीण और सामाजिक विकास में रूचि रखने के कारण उन्होंने साठा क्षेत्र के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजपूत बाहुल्य क्षेत्र में अनेक शिक्षण संस्थाओ की स्थापना करी जिसमे स्कूल, कॉलेज, आई टी आई, डिप्लोमा, वोकेशनल कोर्सेज के संस्थान शामिल हैँ। इनके द्वारा उन्होंने हजारो युवाओ को रोजगार दिया। विधायक रहते हुए साठा क्षेत्र का अद्वितीय विकास कराया जिसके लिये इस क्षेत्र के सबसे बड़े व्यक्तित्व के रूप में आज भी वो याद किये जाते हैँ और उन्हें साठा शिरोमणी कहा जाता है।<br /><br />ठाकुर साब का जन्म 1 अप्रैल 1913 को जिला गाज़ियाबाद में साठा क्षेत्र के रसूलपुर डासना गाँव में ठाकुर नारायण सिंह के यहाँ हुआ। उन्होंने अपनी शिक्षा काफी संघर्ष करते हुए NREC कॉलेज खुर्जा और सेंट जॉन कॉलेज आगरा से करी। छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने दृढ़ संकल्प ले लिया था की ना तो वो अंग्रेज़ो की कोई नौकरी करेंगे और ना ही अंग्रेज़ियत को अपनाएंगे। उन्होंने संकल्प लिया की वकील या डॉक्टर बनने की जगह इंजीनियर या शिक्षक बनूँगा और साथ ही राजपूत गौरव की हर कीमत पर रक्षा करूँगा। उनमें भारत की स्वतंत्रता, गौरव और प्रतिष्ठा के पोषण करने की भावना भी कूट कूट कर भरी हुई थी।<br /><br />उन्होंने बीएससी करने के बाद इतिहास और हिंदी से परास्नातक किया और इंजीनियर बनने की जगह शिक्षक बनने में सफल हुए। सर्वप्रथम वो 1938 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर के एक स्कूल में शिक्षक तैनात हुए जो उनके लिये हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहा। 1940 में वो प्रिंसिपल बने और 1975 तक अपने ही डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल रहे। इस दौरान उन्होंने साठा क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओ की बाढ़ ला दी। उन्होंने अपने पूरे जीवन में 75 शिक्षण संस्थाए स्थापित की जिसमे डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, हाई स्कूल आदि के अलावा आईटीआई, पेशेवर/डिप्लोमा आदि कोर्स के लिये संस्थान शामिल हैँ। यह संस्थाए आज भी शिक्षा के प्रति स्टाफ के समर्पण और छात्रो के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देने के लिये जानी जाती हैँ।<br /><br />इन संस्थाओ ने 3 हजार से ऊपर कृषि इंस्पेक्टर पैदा किये, 3 हजार बीटीसी अध्यापक बनाए जिनकी सबकी सरकारी नौकरी लग गई और करीब 4 हजार अध्यापक, कर्मचारी और चपरासी इनके संस्थानों में काम करते हैँ जिनको सरकारी वेतन मिलता है।<br /><br />ठाकुर साब ने अपने प्रत्येक संस्थान में प्रवेश के लिये जौहर, हल्दीघाटी, महाराणा प्रताप और चित्तोड़ की पढ़ाई अनिवार्य करी हुई थी क्योंकि उनका मानना था की कोई सच्चे मन से तब तक राजपूत नही हो सकता जब तक उसे इनका ज्ञान ना हो।<br /><br />उनके द्वारा स्थापित किये गए कुछ संस्थान इस प्रकार है--<br /><br />---डिग्री कॉलेज---<br />राजपूत शिक्षा शिविर pg कॉलेज(आरएसएस),पिलखुआ, गाज़ियाबाद जिसमे आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स तीनो विभाग हैँ।<br /><br />----इंटर कॉलेज----<br />1. राणा शिक्षा शिविर इंटर कॉलेज, धौलाना (गाज़ियाबाद)<br />2. उदय प्रताप इंटर कॉलेज, सपनावत (गाज़ियाबाद)<br />3. वत्सराज स्वतंत्र भारत इंटर कॉलेज, कलौंदा(गाज़ियाबाद)<br />4. राणा संग्राम सिंह इंटर कॉलेज, बिसाहदा<br />5. रघुनाथ सिंह स्मारक इंटर कॉलेज, आँचरु कला(बुलंदशहर)<br />6. कल्याणकारी इंटर कॉलेज, चाँडोक(बुलंदशहर)<br />7. विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, मऊ, चिरायल(हाथरस)<br />8. गाँधी स्मारक इंटर कॉलेज, बझेड़ा, भरतपुर(अलीगढ़)<br />9. राष्ट्र सेवा सदन इंटर कॉलेज, भकरौली(बदायूं)<br />10. चंपा बालिका इंटर कॉलेज, धौलाना(गाज़ियाबाद)<br />11. महाराणा कुंभा इंटर कॉलेज, खटाना(गाज़ियाबाद)<br /><br />----हायर सेकेंडरी स्कूल----<br />1. बप्पा रावल हायर सेकेंडरी स्कूल, शाहपुर फगोता<br />2. महाराणा कुंभा सर्वहितकारी हायर सेकेंडरी स्कूल, खटाना दादुपुर<br />3. हायर सेकेंडरी स्कूल, तलवार(बुलंदशहर)<br />4. सेवा सदन हायर सेकेंडरी स्कूल, सेहंदा फरीदपुर(बुलंदशहर)<br />5. गंगा खादर हायर सेकेंडरी स्कूल, चाउपुर, दुपटा कलां(बदायूं)<br />6. गंगा बांगर स्कूल, इंचोरा, खुशहालगढ़(बुलंदशहर)<br />7. लीलावती बाबू सिंह हायर सेकेंडरी स्कूल, राणा गढ़, पिलखुआ<br />8. एन आर के हायर सेकेंडरी स्कूल, रसूलपुर डासना<br />9. मुकंदी देवी हायर सेकेंडरी स्कूल, पवनावली, मुजफ्फरनगर<br /><br />---स्थापना के बाद दूसरो के प्रबंध में दे दिए---<br />1. जूनियर हाई स्कूल, खेड़ा, सरधना<br />2. राजपूत नेशनल स्कूल, पिलखुवा(अब राजपूताना रेजीमेंट कॉलेज)<br />3. बी आर हाई स्कूल, समाना<br />4. कंचन सिंह जूनियर हाई स्कूल, सराय नीम, एटा<br /><br />इनके अलावा अनेको जूनियर हाई स्कूल, प्राइमरी स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थाए उन्होंने स्थापित की जिनका उल्लेख करने की यहाँ जरूरत नही। ना केवल साठा क्षेत्र में बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के और भी राजपूत बाहुल्य क्षेत्रों में उन्होंने संस्थाओ की स्थापना करी।<br /><br />---राजनैतिक और सामजिक जीवन---<br />ठाकुर मेघनाथ सिंह जी राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। वो दो बार विधायक रहे जिस दौरान उन्होंने साठा क्षेत्र में विकास की गंगा बहा दी। 1948 से लेकर 1958 तक वो जिला परिषद के सदस्य रहे और शिक्षा, चिकित्सा आदि समिती के अध्यक्ष रहे जिस दौरान उन्होंने क्षेत्र में अनेको प्राइमरी स्कूल, भवन तथा पुल बनवाए। साथ ही जूनियर हाई स्कूल स्तर तक संस्कृत की शिक्षा सर्वप्रथम अनिवार्य करवाई जिसके बाद उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद ने भी उनका अनुसरण किया।<br /><br />पहली बार 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधायकी का चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी को 71 हजार के भारी अंतर से हराकर जीते जो की आज के समय भी बहुत बड़ा अंतर होता है। इस काल में उन्होंने अनेक स्थानों पर पहली बार बिजली पहुचाई। चौधरी चरण सिंह से कहकर कृषि डिप्लोमा प्राप्त छात्रो को ग्रुप 3 की नौकरी मिलना अनिवार्य करवा दिया जिससे उनके ही संस्थानों के उस वक्त के हजारो डिप्लोमाधारी युवक आज भी ऐश्वर्य की जिंदगी बिता रहे हैँ। इसके अलावा अपने संस्थानों के 2 हजार जे टी सी पास छात्रो की भी नौकरी लगवाई। इसके अलावा मसूरी-धौलाना-सपनावत मार्ग का निर्माण और रसूलपुर में नहर के पुल का निर्माण करवाया।<br /><br />दूसरी बार 1974 में विधायक बने जो 77 तक रहे। इस काल में उन्होंने क्षेत्र का अद्वितीय विकास करवाया। अनेको प्रमुख सड़को का निर्माण उन्होंने करवाया जिसमे धौलाना-पिलखुवा, धौलाना- बसितपुर, शिकारपुर-खुर्जा, छजारसी-मोदीनगर आदि शामिल है। धौलाना, सपनावत, बिसाहदा और जारचा में सिंडिकैट बैंक की ब्रांच खुलवाई और धौलाना में बड़ा डाकघर और टेलीफोन लाइन बिछवाइ।<br /><br />इस काल में सबसे अहम काम था क्षेत्र में एन टी पी सी की स्थापना कराना जिसने क्षेत्र की कायापलट कर दी और साठे के 10 गाँवों की आर्थिक स्थिति ऊँची कर दी। इससे क्षेत्र के हजारो युवको को रोजगार मिला। इसके लिये बनी रेल और सड़क के लिये ली गई भूमी का मुआवजा उस जमाने में 1 लाख 20 हजार रुपए दिलवाया।<br /><br />---सामजिक कार्य---<br />राणा जी ने सामजिक क्षेत्र में भी पहल की और राजपूत समाज में कई समाज सुधारो की शुरुआत करवाई, जिनमे प्रमुख हैँ--<br />1. 1962 में यह प्रथा चलवाई की बारात वढाकर से ही विदा होगी, इससे पहले बारात 3 दिन तक रूकती थी।<br />2. सगाई के समय भेंट लेना बन्द करवाया।<br />3. दहेज का दिखावा बन्द करने का प्रयास किया।<br />4. यह भी प्रस्तावित किया की लड़की की शादी में घराती खाना ना खाएं।<br />5. रसूलपुर गांव की चकबंदी के समय कृषि के अयोग्य बेकार पड़ी बंजर भूमी की भी चकबन्दी करा दी जिससे कृषको को एन टी पी सी का मुआवजा मिल सका।<br />6. विभिन्न जातियों के सैकड़ो युवको को अपने खर्चे पर शिक्षा दिलवाई और उनकी अच्छी नौकरी लगवाई।<br />7. अपने संस्थानों के द्वारा क्षेत्र के हजारो लोगो को सरकारी रोजगार दिया और दिलवाया।<br />8. 1857 में शहीद हुए साठा चौरासी क्षेत्र के क्रान्तिकारियो के इतिहास का संकलन और प्रचार किया और उनकी याद में शहीद स्मारक का निर्माण करवाया।<br /><br />---व्यक्तित्व---<br />निजी जीवन में भी राणा जी बहुत अनुशाषित और संयमित जिंदगी जीने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने जीवन में कभी मांस, मदिरा, पान, तंबाकू, गुटखा आदी किसी तरह का सेवन नही किया। देशी वेश भूषा और खान पान के प्रबल समर्थक थे। खान पान में दही और मठ्ठे का प्रयोग ही करते थे। वो आयुर्वेद प्रेमी और एलोपैथी से घृणा करने वाले थे। पैदल ही चलने के अभ्यासी थे, साइकिल तक पर कभी चलकर नही देखा।<br /><br />निर्भीक वक्ता, अनुशाशनप्रिय, अध्यात्मवादी और चापलूसी से हमेशा घृणा करते थे। छात्रावास में गरीबी का जीवन बिताया था इसलिये गरीबी की इज्जत करते थे।<br /><br />उर्दू, हिंदी और संस्कृत तीनो के ज्ञाता होने के साथ ही गीता, रामायण, महाभारत, भागवत, कुरान, सत्यार्थ प्रकाश, बाइबिल जैसे ग्रंथो के ज्ञाता या अध्ययनशील थे। गीता के अंतिम श्लोक को मनुष्य, समाज तथा देश के उत्थान के लिये मूलमंत्र मानते थे।<br /><br />राणा जी राजपूत साहित्य के बहुत अच्छे जानकार थे और कट्टर देश प्रेमी थे। उनकी मान्यता थी कि देशभक्त, बलिदानी और स्वाभिमानी बनने के लिये जीवन में कम से कम एक बार चित्तोड़ और हल्दीघाटी के दर्शन जरूर करने चाहिये। इसके बिना देश धर्म से प्रेम नही हो सकता।<br /><br />सुबह 4 बजे से शाम 6 बजे तक दफ्तर का काम करते थे। दफ्तर और शिक्षा के सभी कामो में पारंगत थे। अपने अंतिम समय तक भी अपने हर एक संस्थान की जानकारी उन्हें रहती थी।<br /><br />अंकगणित के एक नवीन नियम की खोज भी उन्होंने की थी।<br /><br />किसी लड़की की शादी में भोजन नही करते थे, लेकिन आशीर्वाद देने के लिये प्रत्येक शादी में जाते थे।<br /><br />इनके इकलौते पुत्र श्री वत्सराज सिंह शिशोदिया की 1992 में मृत्यु हो गई, तभी से ये चिंतित और दुःखी रहने लगे। अंत में 6 अक्टूबर 2006 को राणा जी का स्वर्गवास हो गया।<br /><br />राणा जी के अनुसार दृढ़ निश्चय, अडिग विश्वास, सतत प्रयास और मृदु व्यव्हार ही जीवन संघर्ष के अचूक हथियार हैँ और ये ही उनकी सफलता की कुंजी है।<br /><br />ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशोदिया जी ने जीवन भर प्रयत्नशील रहते हुए साठा क्षेत्र का सर्वांगीण विकास करवाया। ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैँ जब एक व्यक्ति ने अपने दम पर किसी क्षेत्र का कायापलट कर दिया हो। साठा क्षेत्र जो की एक पिछड़ा क्षेत्र माना जाता था, उसे उन्होंने अपने सतत प्रयासो से विकास की मुख्यधारा में ला खड़ा किया। शिक्षा को उन्होंने विकास का साधन बनाया और अकेले ही साठे में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाकर विकास का पहिया घुमा दिया, ऐसा शायद ही कहीँ और हुआ हो। इसी वजह से उन्हें महामना भी कहा जाता है। क्षेत्र और समाज के विकास के लिये उनका प्रेम और उनकी प्रतिबद्धता हम सबके लिये प्रेरणास्त्रोत हैँ। खासकर आजकल के समाज के नेता उनके जीवन और कार्यो से यह सीख ले सकते हैँ कि समाज और क्षेत्र का नेतृत्व और विकास कैसे किया जाता है।<br /><br />एक बार फिर से महान देशप्रेमी और समाज प्रेमी, लघु मेवाड़ के पथ प्रदर्शक , महाराणा प्रताप के परम अनुयायी, साठा शिरोमणि, स्वाभिमानी, महान शिक्षाविद् , पूर्व विधायक स्व. ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशौदिया जी को शत शत नमन_/\_<br /><br />जय राजपूताना<br />जय क्षात्र धर्म</span></div>
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