Sunday, July 19, 2015

Valour Jaimal Mertiya and Jauhar of Chittorgarh

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----चित्तौड़गढ़ का जौहर और जयमल-पत्ता का बलिदान----
राजपूत विरूद्ध #मुग़ल युद्ध #1568 ईस्वी
पुरखों के शौर्य,रक्त और बलिदान को भुलाये कैसे???

पुरखो के शाका और जौहर को हम इतनी आसानी से नही भूल सकते।राजपूत योद्धा अपनी प्रजा के रक्षा करना जानते थे ,जीते जी एक पर भी आंच नही आने दी,कट गए मर मिटे इज्जत की खातिर जौहर की चिता में लाखो राजपूतानिया जिन्दा जल गई,लाखो राजपूत योद्धा कट गए, सिर कट गए धड़ लड़ते रहे ।

वक़्त 15 वी शताब्दी दिल्ली के मुग़ल बादशाह ने मेवाड़ चित्तौड़ पर आक्रमण की योजना की और खुद 60000 मुगलो की सेना लेकर मेवाड़ आया।उस वक़्त महाराणा उदय सिंह भी लोहा लेने को तैयार हुए अपने पूर्वज बाप्पा रावल राणा हमीर राणा कुम्भा राणा सांगा के मेवाड़ी वंसज तैयार हुए पर मेवाड़ के तत्कालीन ठाकुरो/उमरावो ने उदय सिंह जी को मेवाड़ हित में कहा की आप न लडे क्यों की आपको उदयपुर और कुंभलगढ़ में सेना मजबूत करनी है ।अंत ना मानने पर भी उमरावो ठाकुरो ने उन्हें कुंभलगढ़ भेज दिया और फैसला किया मेड़ता के दूदा जी पोते वीरो के वीर शिरोमणि जयमल मेड़तिया को चित्तोड़ का सेनापति बना भार सोपने का और जयमल के साले जी पत्ता जी चुण्डावत को उनके साथ नियुक्त किया गया।

खबर मिलते ही जयमल जी और उनके भाई बन्धु प्रताप सिंह और दूसरे भाई भतीजे राठौड वीरो की तीर्थ स्थली चित्तोड़ की और निकल पड़े ।निकलते ही अजमेर के आगे मगरा क्षेत्र में उनका सामना हुआ वहा बसने वही रावत जाति के लूटेरो से!!!!!

भारी लाव लश्कर और जनाना के साथ जयमल जी को लूटेरो ने रोक दिया एक लूटरे ने सिटी बजायी देखते ही देखते एक पेड़ तीरो से भर गया सभी समझ चुके थे की वे लूटेरो से घिरे हुए है ।
तभी भाई प्रताप सिंह ने कहा की "अठे या वटे" जयमल जी ने कहा "वटे" तभी जनाना आदि ने सारे गहने कीमति सामान वही छोड़ दिया और आगे चल पड़े लूटेरो की समझ से ये बाहर था कि एक राजपूत सेना जो तलवारो भालो से सुसज्जित है वो बिना किसी विवाद और लडे इतनी आसानी से कैसे छोड़ जा सकते है।अभी जयमल की सेना अपने इष्ट नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के दर्शन ही कर रही थी कि तभी लूटेरे फिर आ धमके और सरदार ने जयमल जी से कहा की ये "अटे और वटे" क्या है ????

तब वीर जयमल मेड़तिया ने कहा की यहाँ तुमसे धन के लिए लडे या वहा चित्तौड़ में तुर्को से ?
तभी लूटेरे सरदार की आँखों में आंसू आ गए और उसने जयमल जी के पैेरो में गिर कर माफ़ी मांगी और अपनों टुकड़ी को शामिल करने की बात कही पर जयमल जी ने कहा की तुम लूटपाठ छोड़ यहाँ मुगलो का सामना करो।अतः लूटेरे आधे रास्ते वीरो को छोड़ने आये और फिर लोट गए।

मेड़ता के वीर अब चित्तोड़ में प्रवेश कर गए और किले की प्रजा को सुरक्षित निकालने में जुटे ही थे कि तभी खबर मिली की मुग़ल सेना ने 10 किमी दूर किले के नीचे डेरा जमा दिया है। सभी 9 दरवाजे बंद किये गए 8000 राजपूत वीर वही किले में रहे।

मुगलो ने किले पर आक्रमण किया पर हर बार वो असफल हुये आखिर में मुगलो ने किले की दीवारो के निचे सुरंगे बनाई पर रात में राजपूत फिर उसे भर देते थे ।आखिर में किले के दरवाजो के पास दीवारे तोड़ी पर योद्धा उसे रात में फिर बना देते थे।ये जद्दोजहद 5 माह तक चलती रही पर किले के निचे मुगलो की लाशे बिछती गई।उस वक़्त मजदूरी इंतनी महगी हो गयी की एक बाल्टी मिट्टी लाने पर एक मुग़ल सैनिक को एक सोने का सिक्का दिया गया।वहाँ मिटटी सोने से अधिक महंगी हो गयी थी।

अब अकबर ने जयमल जी के पास अपना दूत भेजकर प्रलोभन दिया कि अगर मेरे अधीनता स्वीकार करे तो जयमल को उसके पुरखों का राज्य मेड़ता सहित पूरे मेवाड़ का भी राजा बना देगा।तब वीरवर सूर्यवंशी राजपूत गौरव राव जयमल राठौड़ मेड़तिया का उत्तर था-------

है गढ़ म्हारो म्है धणी,असुर फ़िर किम आण |

कुंच्यां जे चित्रकोट री दिधी मोहिं दीवाण ||

जयमल लिखे जबाब यूँ सुनिए अकबर शाह |

आण फिरै गढ़ उपरा पडियो धड पातशाह ||

अर्थात अकबर ने कहा जयमल मेड़तिया तू अपने प्राण चित्तोड और महाराणा के लिए क्यों लूटा रहा है ?
तू मेरा कब्ज़ा होने दे में तुझे तेरा मूल प्रदेश मेड़ता और मेवाड़ दोनों का राजा बना दूंगा ।
पर जयमल ने इस बात को नकार कर उत्तर दिया मै अपने स्वामी के साथ विश्वासघात नही कर सकता।
मेरे जीते जी तू अकबर तुर्क यहाँ प्रवेश नही कर सकता मुझे महाराणा यहाँ का सेनापति बनाकर गए है।

एक हरियाणवी रागिनी गायक ने भी जयमल के बारे में क्या खूब लिखा है कि जब अकबर के संधि प्रस्ताव को जयमल ठुकराकर अकबर को उसी के दूत के हाथों सन्देश भिजवाता है कि---
ए अकबर
"हम क्षत्री जात के ठाकुर, समझे न इंसाण तनै"
"रे तै हिजड़ा के गीत सुणे सै,देखे न बलवान तैने"।।

एक दिन रात में जयमल जी किले की दिवार ठीक करवा रहे थे और अकबर की नजर उन पर पड़ गयी।तभी अकबर ने अपनी बन्दुक संग्राम से एक गोली चलाई जो जयमल के पैरो पर आ लगी और वो घायल हो गए।गोली का जहर शरीर में फैलने लगा।अब राजपूतो ने कोई चारा न देखकर जौहर और शाका का निर्णय लिया।

आखिर वो दिन आ ही गया 6 माह तक किले को मुग़ल भेद नही पाये और रसद सामग्री खाना आदि खतम हो चुकी था ।किले में आखिर में एक ऐसा निर्णय हुआ जिसका अंदाजा किसी को नही था और वो निर्णय था जौहर और शाका का और दिन था 22 फरवरी 1568!!!!!

चित्तौड़ किले में कुण्ड को साफ़ करवाया गया गंगाजल से पवित्र किया गया ।बाद में चन्दन की लकड़ी और नारियल से उसमे अग्नि लगायी गयी उसके बाद जो हुआ वो अपने आप में एक इतिहास था।
12000 राजपूतानिया अपने अपनी पति के पाव छूकर और अंतिम दर्शन कर एक एक कर इज्जत कि खातिर  आग में कूद पड़ी और सतीत्व को प्राप्त हो गयी ये जौहर नाम से जाना गया।

रात भर 8000 राजपूत योद्धा वहा बैठे रहे और सुबह होने का इन्तजार करने लगे ।सुबह के पहले पहर में सभी ने अग्नि की राख़ का तिलक किया और देवी पूजा के बाद सफ़ेद कुर्ते पजामे और कमर पर नारियल बांध तैयार हुए।

अब जौहर के बाद ये सभी भूखे शेर बन गए थे।
मुग़ल सेना चित्तोड किले में हलचल से पहले ही सकते में थी।उन्होंने रात में ही किले से अग्नि जलती देखकर समझ आ गया था कि जौहर चल रहा है और कल अंतिम युद्ध होगा।

सुबह होते ही एकाएक किले के दरवाजे खोले गए। जयमल जी के पाँव में चोट लगने की वजह से वो घोड़े पर बैठने में असमर्थ थे तो वो वीर कल्ला जी राठौड़ के कंधे पर बेठे।

युद्ध शुरू होते ही वीर योद्धाओ ने कत्ले आम मचा दिया अकबर दूर से ही सब देख रहा था।जयमल जी और कल्ला जी ने तलवारो का जोहर दिखाया और 2 पाव 4 हाथो से मारकाट करते गये उन्हें देख मुग़ल भागने लगी।
स्वयम अकबर भी यह दृश्य देखकर अपनी सुध बुध खो बैठा। उसने चतुर्भुज भगवांन का सुन रखा था।
"जयमल बड़ता जीवणे, पत्तो बाएं पास |
हिंदू चढिया हथियाँ चढियो जस आकास" ||

पत्ता जी प्रताप सिंह जी जयमल जी कल्ला जी आदि वीरो के हाथो भयंकर मार काट हुयी ।
सिर कटे धड़ लड़ते रहे ।
"सिर कटे धड़ लड़े रखा रजपूती शान "
दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥

जयमल जी के एक वार से 2 - 2 मुग़ल तुर्क साथ कटते गए किले के पास बहने वाली गम्भीरी नदी भी लाल हो गयी। सिमित संसाधन होने के बाद भी राजपूती सेना मुगलो पर भारी पढ़ी।
युद्ध समाप्त हुआ कुल 48000 सैनिक मारे गए जिनमे से पुरे 8000 राजपूत वीरगति को गए तो बदले में 40000 मुग़लो को भी साथ ले गए ।

बचे तो सिर्फ अकबर के साथ 20000 मुग़ल बाद में अकबर किल्ले में गया वहा कुछ न मिला। तभी अकबर ने चित्तौड़ की शक्ति कुचलने के लिये वहाँ कत्लेआम का आदेश दिया और 20 हजार आम जनता को क्रूरता से मारा गया।यह कत्लेआम अकबर पर बहुत बड़ा धब्बा है।

अकबर जयमल जी और पत्ता जी की वीरता से प्रभावित हुआ और नरसंहार का कलंक धोने के लिये उसने उनकी अश्ववारुड मुर्तिया आगरा के किले के मुख द्वार पर लगवायी।
वही कल्ला जी घर घर लोकदेवता के रूप में पूजे गए मेवाड़ महाराणा से वीरता के बदले वीर जयमल मेड़तिया के वंशजो को बदनोर का ठिकाना मिला तो पत्ता जी चुण्डावत के वंशज को आमेट ठिकाना ।
वही प्रताप सिंह मेड़तिया के वंशज को घाणेराव ठिकाना दिया गया।

ये वही जयमल मेड़तिया है जिन्हीने एक ही झटके में हाथी की सिर काट दिया था

ये वही वीर जयमल जी है वो महाराणा प्रताप के सैनिक(अस्त्र शस्त्र) गुरु भी थे।

ये वही वीर है जो स्वामिभक्ति को अपनी जान से ज्यादा चाहा अकबर द्वारा मेवाड़ के राजा बनाए जाने के लालच पर भी नही झुके।

कर्नल जेम्स टोड राजस्थान के प्रत्येक राज्य में "थर्मोपल्ली" जैसे युद्ध और "लियोनिडास" जैसे योधा होनी की बात स्वीकार करते हैं ये जयमल पत्ता जैता कुंपा गोरा बादल जैसे सैंकड़ो वीरो के कारण है।

हिंदू,मुस्लमान,अंग्रेज,फ्रांसिस,जर्मन,पुर्तगाली आदि अनेक इतिहासकारों ने जयमल के अनुपम शौर्य का वर्णन किया है |

अबुल फजल,हर्बर्ट,सर टामस रो, के पादरी तथा बर्नियर जैसे प्रसिद्ध लेखकों ने जयमल के कृतित्व की अत्यन्त ही प्रसंशा की है |
जर्मन विद्वान काउंटनोआर ने अकबर पर जो पुस्तक लिखी उसमे जयमल को "Lion of Chittor" कहा |

नमन है ऐसे वीरो को।।।
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