हिंदुत्व के रक्षक वीरवर दुर्गादास राठौड़ को 378 वी जयंती पर शत शत नमन।
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जिसने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी.....उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर...
------वीर दुर्गादास राठौड का जन्म ------
मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर वि0 सं0 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुआ था। आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे ।अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया ।अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए। परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया।महाराजा जसवंत सिंह ने यह भविष्वाणी भी की कि यह बालक एक दिन मारवाड़ पर छाया करेगा।जो बाद में बिलकुल सच साबित हुई।
-------ओरंगजेब का षड्यंत्र-------
उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था।
ओरंगजेब पुरे भारत क इस्लामीकरण भी करना चाहता था पर अंदर ही अंदर राजपूतो की प्रतिक्रिया से डरता भी था और इसके लिए उसे सर्वाधिक प्रतिरोध की आशंका जोधपुर के राजा जसवंत सिंह से थी।
गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही जमरूद दिसम्बर 1678 ईस्वी में वीर गति को प्राप्त हो गए। उनकी मृत्यु में ओरंगजेब का शड़यंत्र था।
जब ओरंगजेब को जसवंत सिंह की मृत्यु का समाचार मिला तो उसने खुदा का शुक्रिया करते हुए अपने साथियों से कहा कि "आज इस्लाम का बहुत बड़ा दुश्मन चला गया है,अब पूरे मुल्क से काफिर हिन्दू धर्म को मिटाकर मुसलमान बनने से कोई नही रोक सकता"।।।
पर उसकी ख्वाइश को चकनाचूर करने का काम किया वीरवर दुर्गादास राठौर ने------
उस समय जसवंत सिंह का कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास खींची की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे।
------रानी बाघेली का बलिदान------
उसी समय बलुन्दा के मोहकमसिंह मेड़तिया की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थी वह एक छोटे सैनिक दल से हरिद्वार की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थी | उसने राजकुमार अजीतसिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई | यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी ,दुर्गादास,ठाकुर मोहकम सिंह,खिंची मुकंदास,कु.हरिसिघ के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी यही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी कि राजकुमारी के वेशभूषा में जोधपुर के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन हो रहा है |
छ:माह तक रानी राजकुमार को खुद ही अपना दूध पिलाती,नहलाती व कपडे पहनाती ताकि किसी को पता न चले पर एक दिन राजकुमार को कपड़े पहनाते एक दासी ने देख लिया और उसने यह बात दूसरी रानियों को बता दी,अत: अब बलुन्दा का किला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित न जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना कर खिंची मुक्न्दास व कु.हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित व निष्टावान जयदेव नामक पुष्करणा ब्रह्मण के घर ले आई व राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंपा जहाँ उसकी (जयदेव)की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उतराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया |
अब ओरंगजेब ने जोधपुर के सभी मन्दिरो को गिराने की आज्ञा दे दी और एक गूजरी के बच्चे को फर्जी अजीत सिंह बताकर उसे इस्लाम में दीक्षित कर दिया गया।और उस गूजरी के बच्चे का नाम मौहम्मदि राज रख दिया,और असली अजीतसिंह व् दुर्गादास को खत्म करने को बडी सेना फौलाद खान के नेतृत्व में मारवाड़ भेज दी।किन्तु दुर्गादास ने अपनी चतुराई और वीरता से उस्की सभी चालों को विफल कर दिया।
फौलाद खान की सेनाओ से लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर करने वाले जोधा रणछोड़दास ने दुर्गादास को मारवाड़ की भलाई के लिए रणभूमि छोड़कर जाने को कहा।मगर दुर्गादास ने जवाब दिया कि
" मैं एक क्षत्रिय हूँ,पीठ दिखाकर नही जाऊंगा।यदि ईश्वर को मेरे हाथ से हिन्दू और मारवाड़ की रक्षा करवानी है तो मैं अवश्य ही बचकर जाऊंगा और मेरी तलवार तब तक विश्राम नही लेगी जब तक मैं मुगलो से मारवाड़ और सनातन धर्म की रक्षा के लिए उनका संहार न कर दूँ"।।
अब दुर्गादास ने कूटनीति से काम लेते हुए उसने ओरंगजेब के पुत्र अकबर को अपनी और मिलाकर उसे बादशाह बनाने का लालच दिया।अकबर ने राजपूतो की मदद से अपने पिता के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दिया किन्तु अदूरदर्शी होने के कारण जल्दबाजी की वजह से वो सफल न हो सका।तब दुर्गादास ने उसके पुत्र और पुत्री को मारवाड़ में रखकर उसे सुरक्षित दक्खन में छत्रपति शिवाजी के पुत्र शम्भाजी के पास पहुंचा दिया।दुर्गादास ने मुगलो के विरुद्ध राजपूतो और मराठों का संयुक्त मौर्चा बनाकर युद्ध करने का प्रयास भी किया।किन्तु शम्भाजी उस समय निर्णय न ले सके।तब निराश होकर अकबर को एक जहाज पर बिठाकर ईरान भेज दिया गया और उसकी संतानो की पूरी परवरिश करने का उसको वचन दिया गया।
अब ओरंगजेब राजपूत मराठों के संभावित संयुक्त मौर्चे से बेहद विचलित हो गया।उसने 8 हजार सोने की मुद्राएं भेजकर और मारवाड़ का राज देने का प्रलोभन दुर्गादास को दिया।किन्तु दुर्गादास ने इस प्रलोभन को ठुकरा दिया।किन्तु ओरंगजेब यह जानकर बहुत खुश हुआ कि उसके पौत्र और पौत्री को इस्लाम धर्म के अनुसार ही पूरी शिक्षा देने का दुर्गादास ने उचित प्रबन्ध किया है।
दुर्गादास राठौर के नेतृत्व में इस प्रकार 30 साल तक स्वतंत्रता संग्राम चलता रहा और अंत में राठौड़ो ने दुर्गादास के नेतृत्व में जोधपुर के गर्वीले दुर्ग पर अपना पचरंगा चीलध्वज पुन: लहरा दिया।राठौड़ दुर्गादास की जवानी और बुढ़ापा दोनों संघर्ष में बीत गये।
-----वीरवर दुर्गादास के अंतिम दिन-----
अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा।महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे।वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा,और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुआ।जिस मारवाड़ की आजादी के लिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए उसकी दो गज भूमि भी इन्होंने अपने लिये नही रखी।
दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता, देशप्रेम, बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे।उनके संघर्ष में मुकुंददास खींची,रामा जाट,जयदेव पुष्करणा पुरोहित,गौरा टाक,आसकरण भंडारी आदि भी सहायक रहे।
उनके विषय में कई कहावते प्रचलित हैं------
१-मायाड ऐडा पुत जाण, जेड़ा दुर्गादास । भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश ।
२-घर घोड़ों, खग कामनी, हियो हाथ निज मीत सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत ।
वीर दुर्गादास का निधन 22 नवम्बर, सन् 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था ।
"उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी। वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस,मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "
जिसने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी.....उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर...
इसी वीर दुर्गादास राठौर के बारे में रामा जाट ने कहा था कि "धम्मक धम्मक ढोल बाजे दे दे ठोर नगारां की,, जो आसे के घर दुर्गा नहीं होतो,सुन्नत हो जाती सारां की.......
आज भी मारवाड़ के गाँवों में लोग वीर दुर्गादास को याद करते है कि
“माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”
हिंदुत्व की रक्षा के लिए उनका स्वयं का कथन
"रुक बल एण हिन्दू धर्म राखियों"
अर्थात हिन्दू धर्म की रक्षा मैंने भाले की नोक से की............
इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होने सारी उम्र घोड़े की पीठ पर बैठकर बिता दी।
अपनी कूटनीति से इन्होने ओरंगजेब के पुत्र अकबर को अपनी और मिलाकर,राजपूताने और महाराष्ट्र की सभी हिन्दू शक्तियों को जोडकर ओरंगजेब की रातो की नींद छीन ली थी।और हिंदुत्व की रक्षा की थी।
उनके बारे में इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था कि .....
"उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुगलों की शक्ति उनके दृढ निश्चय को पीछे हटा सकी,बल्कि वो ऐसा वीर था जिसमे राजपूती साहस और कूटनीति मिश्रित थी".
ये निर्विवाद सत्य है कि अगर उस दौर में वीर दुर्गादास राठौर,छत्रपति शिवाजी,वीर गोकुल,गुरु गोविन्द सिंह,बंदा सिंह बहादुर जैसे शूरवीर पैदा नहीं होते तो पुरे मध्य एशिया,ईरान की तरह भारत का पूर्ण इस्लामीकरण हो जाता और हिन्दू धर्म का नामोनिशान ही मिट जाता............
((वीर दुर्गादास राठौड़ के सिक्के और पोस्ट स्टाम्प भारत सरकार पहले ही जारी कर चुकी है ))
जय हिन्द,जय राजपूताना .............
संदर्भ------
1-राजेन्द्र सिंह राठौड़ कृत राजपूतो की गौरवगाथा पृष्ठ संख्या 282-289
2-दुर्गादास राठौड़ डा0 रघुवीर सिंह
3-देवी सिंह मुंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास पृष्ठ संख्या 196-198
4-ठाकुर त्रिलोक सिंह धाकरे कृत राजपूतो की वंशावली एवम् इतिहास महागाथा पृष्ठ संख्या 124-131
5-history of orangjeb by j n sarkar
6-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/08/veer-durga-das-rathore-saviour-of-hindus.html
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