Friday, October 2, 2015

इतिहास का महत्व और क्षत्रियों के गौरवशाली इतिहास को विकृतीकरण से रोकना(IMPORTANCE OF HISTORY)


======मोदी सरकार से क्षत्रियों की माँग भाग संख्या--3=====
किसी भी समाज के लिए इतिहास का महत्व अमूल्य है। इतिहास के बगैर वह राष्ट्र और कौम उन्नति नहीं कर सकती।भारत में इतिहास का विकृतीकरण किया जाता रहा है और इसके दुष्परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं.......
इतिहास का क्या महत्व मानव सभ्यता में होता है इस पर कुछ विद्वानों के विचार जानिए-----

1--यदि किसी राष्ट्र को सदैव अधःपतित एवं पराधीन बनाये रखना हो ,तो सबसे अच्छा उपाय यह है कि उसका इतिहास नष्ट कर दिया जाय "।कोई अवनत राष्ट्र अपनी उन्नति करना चाहे ,तो उसे सबसे पहले अपने इतिहास का निर्माण करने की आवश्यकता है।
2-- History is the first thing that should be given to children in order to form their hearts and.understandings .---Rolis
3--इतिहास वह वस्तु है जो बच्चे के हाथ में सबसे पहले ही जानी चाहिए ,क्यों कि उनके कोमल ह्रदयों पर ही देश -प्रेम और वास्तविक बुद्धि की मुहर लग जाती है ।--रोलिस
4--जो जाति अपने पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का अभिमान नहीं करती वह कोई ऐसी बात ग्रहण न करेगी जो कि बहुत पीढ़ी पीछे उनकी संतान से सगर्व स्मरण करने योग्य हो।--लार्ड मैकाले
5--कोई जाति मर नहीं सकती जव तक कि उसका इतिहास निर्माण होता रहता है।
6--History is the light of truth and the teacher of life --Cicero
इतिहास सत्य का प्रकाश और जीवन का शिक्षक है ।---सिसरो।
7--One of the greatest benefits of studying history is that it allows us a chance to learn about who we came from.  The people of the past are those who came before us, and it is interesting to see how some of the thoughts, attitudes, and practices of today can differ so drastically from those throughout history.
अब आप खुद समझिये कि इतिहास का क्या महत्व मानव सभ्यता में है और इसे विकृत किये जाने के समाज और राष्ट्र पर कितने विपरीत परिणाम हो सकते हैं और आत्मग्लानी,हीनभावना से ग्रसित कोई समाज क्या आत्मसम्मान से जीवन यापन कर राष्ट्र निर्माण में योगदान दे पाएगा??????
वामपंथी इतिहासकारो द्वारा विकृत किये गए भारतीय इतिहास का
सत्यता के साथ पुनर्लेखन------
इस सरकार से हमारी एक छोटी सी मांग है। हमारी मांग है की इतिहास की स्कूली पाठ्य पुस्तकों और विश्वविद्यालयों के इतिहास के पाठ्यक्रमो में पिछले 150 सालों से जो उपनेविशिक ताकतों और वामपंथियो द्वारा लिखा जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है उसमे बदलाव किया जाए।
अंग्रेज़ो ने हिंदुओं को नीचा दिखाने के मकसद से इतिहास लिखा। उनकी मंशा थी हिंदुओं को ये जताने की कि अंग्रेज़ो के आने से पहले हिन्दू 1100 साल तक मुसलमानों के ग़ुलाम थे और अंग्रेज़ो ने ही उन्हें इस ग़ुलामी से मुक्त किया, इसलिए हिंदुओं को अंगेज़ों का शुक्रगुजार होना चाहिये और उनकी ग़ुलामी को स्वीकार करना चाहिये। इस को जताने के लिये उन्होंने जो इतिहास लिखा उसमेँ हिंदुओं की इस्लाम से सिर्फ हार दिखाई गई। अपनी बार बार की हार के बारे में पढ़कर हिन्दू समाज मध्यकाल में भले ही ग़ुलाम ना रहा हो लेकिन पिछले 150 सालों में जरूर मानसिक ग़ुलाम बन चुका है। बाकी का काम पिछले 60 साल में कांग्रेस सरकारोँ द्वारा वामपंथी इतिहास को बढ़ावा देने ने कर दिया जिस में बताया जाता है की भारत में जितनी भी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक प्रगति हुई है वो सिर्फ इस्लाम के आने के बाद हुई उससे पहले राजपूत काल में भारत में घनघोर अन्धकार था।

इसका दुष्परिणाम ये है की आज जिसे देखों वो 800 साल की ग़ुलामी या 1300 साल की ग़ुलामी की बात करता है। लेकिन क्या वाकई में हम इतने साल ग़ुलाम रहे? भारत अगर 800 या 1300 साल ग़ुलाम रहता तो आज देश में हिन्दुओ का नामो निशान ना होता। लेकिन दुर्भाग्य है की colonial और वामपंथी इतिहास पढ़ पढ़ के हमारी मानसिकता इतनी नकारात्मक हो गई है की हम अपने ही पूर्वजो के गौरवशाली संघर्ष को अपमानित कर रहे है।
दुनिया की किसी और सभ्यता ने इस्लाम का इतनी सफलतापूर्वक सामना नही किया जैसा हमने किया है। भारत में इस्लाम के आगमन के 1100 वर्ष के बाद भी 1800ई में भारतीय उपमहाद्विप में मुसलमानों की संख्या 15% से भी कम थी, बटवारे के समय यह 25% तक पहुँच गई थी जो आज 40% से ऊपर है। साफ़ है भारत में मुस्लिम जनसँख्या के बढ़ने का कारण धर्म परिवर्तन से ज्यादा उनकी जन्म दर है। बाकी जितने देशो में इस्लाम पहुँचा वो कुछ दशको में ही पूर्णतया इस्लामिक बन गये। बहरहाल, हमें हमेशा 800 साल या 1300 की ग़ुलामी का पाठ जो अँगरेज़ हमे पढ़ा गये, हम उसे ही पढ़े जा रहे है और इसमें वामपंथियो और AMU वालोँ ने ये और जोड़ दिया की भारत में इस्लाम के आगमन से ही आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक क्रांति हुई, उससे पहले भारत में घोर अंधकार युग था।

हमारी पाठ्य पुस्तकों में 7वीं शताब्दी में सिंध पर अरबो का आक्रमण और हिंदुओं की हार पढ़ाया जाता है,फिर सीधे 12वीं शताब्दी में तुर्को की जीत और राजपूतों की हार पढाई जाती है। बीच में ये जरूर बता दिया जाता है की इस काल में बहुत सारे राजपूत राज्य थे जो आपस में लड़ते रहते थे। लेकिन ये नहीँ बताया जाता की स्पेन तक विजय करने वाले अरब 7वीं शताब्दी में सिंध में आकर आगे क्यों नही बढ़ पाए? सिंध में पहली बार मुसलमानों के आक्रमण के बाद उन्हें 500 साल क्यों लग गए दिल्ली तक पहुँचने में? अनगिनत बार राजपूतों द्वारा अरबो और तुर्को की पराजय के बारे में नही बताया जाता। हां महमूद ग़जनी के आक्रमणों की चर्चा जरूर होती है लेकिन उनकी नही जिसमे उसकी हार हो।

फिर 1204 से 1526 के युग को भारत में सल्तनत युग बता कर पढ़ाया जाता है जबकि इस काल में इस सल्तनत का वास्तविक शाशन दिल्ली से 100 कोस तक ही था और इस 100 कोस की सल्तनत का इतिहास ही भारत का इतिहास बन जाता है। इस दौरान अनेक छोटे छोटे राज्य स्थापित हुए। लेकिन उनके बारे में बहुत कम बताया जाता है। उस काल में उत्तर भारत में हिंदुओं का सबसे बड़ा राज्य मेवाड़ था। उसके बारे में पहला उल्लेख मिलता है जब ख़िलजी के हाथो मेवाड़ का विध्वंस होता है, उसके बाद सीधे 1526 में अचानक से राणा सांगा कहीँ से आ जाते हैँ, जो दिल्ली की मुस्लिम सत्ता को चुनौती दे रहे होते हैं।

ये मेवाड़ जिसका विध्वंस हो गया था ये इतना ताकतवर कब हो गया की पुरे मध्य और पश्चिम भारत पर इनका राज हो गया और 1526 में ये दिल्ली की सल्तनत के अस्तित्व को चुनौती देने लगा? मुस्लिम सल्तनत के होते हुए मालवा और ग्वालियर में इतने ताकतवर हिन्दू राजपूत राज्य कब और कैसे बन गए? मारवाड़ और आमेर ताकतवर राज्य कब और कैसे बने? मुस्लिम शाशनकाल में इनका विस्तार कैसे हुआ? कितने अनगिनत युद्धों में राजपूतो ने मुस्लिम शाशकों को हराया? उत्तर भारत के मैदानों में किस तरह राजपूत कई गुणा ताकतवर सल्तनत के सामने सफल बगावत करते रहे और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी? इनमें से किसी के भी बारे में आपको इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में पढ़ने को नही मिलेगा।

13वीं सदी की पराजयों के बाद भी किस तरह राजपूतों और दक्षिण भारत के क्षत्रियोँ ने अपने धर्म को बचाए रखा और 14वीं-15वीं सदी में कितने संघर्षो के बाद वापसी कर मुस्लिम सल्तनत को उखाड़ कर उत्तर और दक्षिण भारत में सफलतापूर्वक हिन्दू राज्य बनाए गए, इनके बारे में कहीँ नही बताया जाता। इन किताबो में सिर्फ हमारी हार पढाई जाती है। हमारी अनगिनत जीतों के बारे में नहीँ पढ़ाया जाता। मुस्लिम शाशनकाल में भी मेवाड़ द्वारा प्रयाग और गया जैसे हिन्दू तीर्थस्थानों को मुक्त कराने के लिये किये गये सफल अभियानों के बारे में नहीँ बताया जाता। एक छोटे से राज्य के राजा मालदेव के बारे में कितने लोग जानते हैँ जिनकी सेना के हाथो शेर शाह सूरी जैसे ताकतवर सुल्तान की सेना हारते हारते बची थी?

राव चन्द्रसेन के बारे में कितने लोग जानते हैँ? महाराणा प्रताप को भी इतिहास के एक पन्ने में निपटा दिया जाता है। उस महाराणा को जो अपना सारा राज हारने के बाद भी अपने ही जीवनकाल में बिना किसी propaganda के इतने प्रसिद्ध हो गए थे की उन्हें भारत की हिन्दू जनता ने स्वयं ही हिंदुआ सूर्य की उपाधी दी थी। महाराजा मान सिंह और महाराजा जय सिंह के हिंदुत्व के लिये किये गए योगदानो को कहीँ नहीँ पढ़ाया जाता। औरंगजेब की आँखों का सबसे बड़ा काँटा महाराजा जसवंत सिंह के बारे में कितनो को पता है?

इन सब के बारे में लोगो को नही पता क्योंकि लोगों को कभी इनके बारे में बताया नहीँ गया। मध्यकाल को मुस्लिम काल घोषित कर दिया और सिर्फ सल्तनत और मुग़लो के इतिहास को ही पूरे मध्यकाल का इतिहास बता कर पढ़ाया जाता हैँ। इसलिये आश्चर्य नहीँ होना चाहिये की आज हिन्दू समाज अपने पूर्वजो को ग़ुलाम मानता आया है और आज खुद भी उसी ग़ुलाम मानसिकता में जी रहे हैँ। सबसे बड़ा दुष्परिणाम ये रहा हैँ की भारतीय समाज हिंदुत्व के लिये दिये गए राजपूतों के बलिदानों से अपरिचित है और इस विषय में राजपूत विरोधी बाते हमेशा से सुनने को मिलती रहती है। इन्ही कारणों से राजपूत विरोधियो को इतिहास को तोड़ने मरोड़ने और राजपूतों के खिलाफ दुष्प्रचार का मौका मिल जाता है।

इसलिये हमारी मांग मोदी सरकार से सिर्फ ये ही हैँ की अब आपकी सरकार है तो जल्द से जल्द इतिहास के पाठ्यक्रम को अंग्रेजी और वामपंथी propaganda से मुक्त कराकर क्षत्रियोँ के गौरवशाली संघर्षो को उचित स्थान दे जिससे हिन्दू समाज में फैली नकारात्मकता दूर हो। अगर राजपूत क्षत्रियों ने संघर्ष ना किया होता तो आज हिंदुत्व ना होता और ना ही आज आपकी सरकार होती, इसीलिये आपका कर्तव्य बनता हैँ की पाठ्यक्रमो से इस नकारात्मकता को दूर करे। और यकीन मानिये, इस छोटे से काम के लिये ना तो राज्य सभा में बहुमत की जरूरत है और ना ही इससे आपके सेक्युलरवाद के कुर्ते पर दाग लगेगा और ना ही आपका कोई भी नया बना वोट बैंक नाराज होगा।
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इंटरनेट/विकिपीडिया पर राजपूतों के इतिहास के साथ हो रही अपराधिक छेड़छाड़ पर रोक लगाने हेतु-------
ये मुद्दा सबसे संवेदनशील है,अगर इस पर रोक नही लगाई गई तो हिंसक संघर्ष भी हो सकता है,राजपूत समाज अपने पुरखों के बलिदान पर ऊँगली उठाने वालों और उनका इतिहास विकृत करने वालों का हाथ जड़ से काट देगा।।।।।
वामपंथी इतिहासकारों ने आर्यों और राजपूतों को भी अपने कुतर्कों से विदेशी सिद्ध करने का प्रयास किया गया,जिन शक,हूणो से संघर्ष में राजपूतो ने अपना सर्वस्व बलिदान दे दिया इन फर्जी इतिहासकारों ने राजपूतों को उल्टा उन्ही का वंशज ठहरा दिया,इन्ही फर्जी इतिहासकारों के कुतर्कों का लाभ उठाकर कई वर्णसंकर जातियां जिनका कोई इतिहास नही है वो राजपूतों के इतिहास को चोरी कर अपना बताने का षड्यंत्र कर रहे हैं,इस काम में विकिपीडिया एडिट कर प्रोफेशनल एडिटर की पैसे के दम पर मदद ली जा रही है,,
मिहिरभोज प्रतिहार,नागभट प्रतिहार,हर्षवर्धन बैस,पृथ्वीराज चौहान,महाराणा प्रताप,शिवाजी,राजा भोज परमार को बड़ी बेशर्मी से जाट गुज्जर लिखा जा रहा है.
अगर इंटरनेट पर राजपूतों के इतिहास से छेड़छाड़ नही रुकी तो राजपूत समाज इसका ऐसा प्रतिउत्तर देगा कि समाज में खून खराबा भी हो सकता है,इसलिए केंद्र सरकार इसके लिए विकिपीडिया पर इतिहास विकृत करने के खिलाफ कानून बनाए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दे.

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