Wednesday, August 5, 2015

BAINS KSHATRIYA (RAJPUT) VANSH


BAIS KSHATRIYA DYNASTY(बैस राजपूत वंश)

Rajputana Soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास




मित्रों आज हम आपको मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहुत सशक्त राजपूत वंश बैस क्षत्रियों के बारे में जानकारी देंगे:

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बैस राजपूतो के गोत्र,प्रवर,आदि


वंश-बैंस सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल है।हालाँकि कुछ विद्वान इन्हें नागवंशी भी बताते हैं.
गोत्र-भारद्वाज है
प्रवर-तीन है : भारद्वाज ; बार्हस्पत्य और अंगिरस
वेद-यजुर्वेद 
कुलदेवी-कालिका माता
इष्ट देव-शिव जी 
ध्वज-आसमानी और नाग चिन्ह 
वंश नाम उचारण---
BAIS RAJPUT
Bhais Rajput
Bhains Rajput
Bhainse Rajput
Bains Rajput
Bens Rajput
Bhens Rajput
Bhense Rajput
Baise Rajput
Bes Rajput
Bayas Rajput
Vais Rajput

प्रसिद्ध बैस व्यक्तित्व

शालिवाहन,हर्षवर्धन,त्रिलोकचंद,सुहेलदेव,अभयचंद,
राणा बेनीमाधवबख्श सिंह,मेजर ध्यानचंद आदि 

शाखाएँ

कोट बहार बैस,कठ बैस,डोडिया बैस,त्रिलोकचंदी(राव,राजा,नैथम,सैनवासी) बैस,प्रतिष्ठानपुरी बैस,रावत,कुम्भी,नरवरिया,भाले सुल्तान,चंदोसिया,आदि

प्राचीन एवं वर्तमान राज्य और ठिकाने

प्रतिष्ठानपुरी,स्यालकोट,स्थानेश्वर, मुंगीपट्टम्म,कन्नौज,बैसवाडा, कस्मांदा, बसन्तपुर, खजूरगाँव थालराई ,कुर्रिसुदौली, देवगांव,मुरारमउ, गौंडा, थानगाँव,कटधर आदि 

परम्पराएँ

बैस राजपूत नागो को नहीं मारते हैं,नागपूजा का इनके लिए विशेष महत्व है,इनमे ज्येष्ठ भ्राता को टिकायत कहा जाता था,और सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा आजादी से पहले तक उसे ही मिलता था.मुख्य गढ़ी में टिकायत परिवार ही रहता था और शेष भाई अलग किला/मकान बनाकर रहते थे,बैस राजपूतो में आपसी भाईचारा बहुत ज्यादा होता है.बिहार के सोनपुर का पशु मेला बैस राजपूतों ने ही प्रारम्भ किया था.

वर्तमान निवास

यूपी के अवध में स्थित बैसवाडा, मैनपुरी, एटा, बदायूं, कानपूर, इलाहबाद,बनारस,आजमगढ़,बलिया,बाँदा,हमीरपुर,प्रतापगढ़,सीतापुर,रायबरेली,उन्नाव,लखनऊ,हरदोई,फतेहपुर,गोरखपुर,बस्ती,मिर्जापुर,गाजीपुर,गोंडा,बहराइच,बाराबंकी,
बिहार,पंजाब,पाक अधिकृत कश्मीर,पाकिस्तान में बड़ी आबादी है और मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी थोड़ी आबादी है.

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बैस क्षत्रियों कि उत्पत्ति

बैस राजपूतों कि उतपत्ति के बारे में कई मत प्रचलित हैं 
1-ठाकुर ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 112-114 के अनुसार सूर्यवंशी राजा वासु जो बसाति जनपद के राजा थे,उनके वंशज बैस राजपूत कहलाते हैं ,बसाति जनपद महाभारत काल तक बना रहा है.

2-देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ संख्या 67-74 के अनुसार वैशाली से निकास के कारण ही यह वंश वैस या बैस या वैश कहलाया,इनके अनुसार बैस सूर्यवंशी हैं,इनके किसी पूर्वज ने किसी नागवंशी राजा कि सहायता से उन्नति कि,इसीलिए बैस राजपूत नाग पूजा करते हैं और इनका चिन्ह भी नाग है,

3-महाकवि बाणभट ने सम्राट हर्षवर्धन जो कि बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी(मखवान,झाला) वंशी महाराजा गृहवर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है,मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैं.

4-महान इतिहासकार गौरिशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास के पृष्ठ संख्या 154-162 में भी बैस राजपूतों को सूर्यवंशी सिद्ध किया गया है,

5-श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश के प्रष्ठ संख्या 78,79 एवं 368,369 के अनुसार भी बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं 

6-डा देवीलाल पालीवाल कि कर्नल जेम्स तोड़ कृत राजपूत जातियों का इतिहास के प्रष्ठ संख्या 182 के अनुसार बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं.

7-ठाकुर बहादुर सिंह बीदासर कृत क्षत्रिय वंशावली एवं जाति भास्कर में बैस वंश को स्पष्ट सूर्यवंशी बताया गया है.

8-इनके झंडे में नाग का चिन्ह होने के कारण कई विद्वान इन्हें नागवंशी मानते हैं,लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है.अत: कुछ विद्वान बैस राजपूतो को लक्ष्मण का वंशज और नागवंशी मानते हैं,कुछ विद्वानों के अनुसार भरत के पुत्र तक्ष से तक्षक नागवंश चला जिसने तक्षिला कि स्थापना की,बाद में तक्षक नाग के वंशज वैशाली आये और उन्ही से बैस राजपूत शाखा प्रारम्भ हुई.

9-कुछ विद्वानों के अनुसार बैस राजपूतों के आदि पुरुष शालिवाहन के पुत्र का नाम सुन्दरभान या वयस कुमार था जिससे यह वंश वैस या बैस कहलाया,जिन्होंने सहारनपुर कि स्थापना की.

10-कुछ विद्वानों के अनुसार गौतम राजा धीरपुंडीर ने 12 वी सदी के अंत में राजा अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में दिए इन बाईस परगनों के कारण यह वंश बाईसा या बैस कहलाने लगा.

11-कुछ विद्वान इन्हें गौतमी पुत्र शातकर्णी जिन्हें शालिवाहन भी कहा जाता है उनका वंशज मानते हैं,वहीं कुछ के अनुसार बैस शब्द का अर्थ है वो क्षत्रिय जिन्होंने बहुत सारी भूमि अपने अधिकार में ले ली हो.

बैस वंश कि उत्पत्ति के सभी मतों का विश्लेष्ण एवं निष्कर्ष


बैस राजपूत नाग कि पूजा करते हैं और इनके झंडे में नाग चिन्ह होने का यह अर्थ नहीं है कि बैस नागवंशी हैं,महाकवि बाणभट ने सम्राट हर्षवर्धन जो कि बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी(मखवान,झाला) वंशी महाराजा गृहवर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है,मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैं.

लक्ष्मण जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है किन्तु लक्ष्मन जी नागवंशी नहीं रघुवंशी ही थे और उनकी संतान आज के प्रतिहार(परिहार) और मल्ल राजपूत है,

जिन विद्वानों ने 12 वी सदी में धीरपुंडीर को अर्गल का गौतमवंशी राजा लिख दिया और उनके द्वारा दहेज में अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में देने से बैस नामकरण होने का अनुमान किया है वो बिलकुल गलत है,क्योंकि धीरपुंडीर गौतम वंशी नहीं पुंडीर क्षत्रिय थे जो उस समय हरिद्वार के राजा थे,बाणभट और चीनी यात्री ह्वेंस्वांग ने सातवी सदी में सम्राट हर्ष को स्पष्ट रूप से बैस या वैश वंशी कहा है तो 12 वी सदी में बैस वंशनाम कि उतपत्ति का सवाल ही नहीं है,किन्तु यहाँ एक प्रश्न उठता है कि अगर बैस वंश कि मान्यताओं के अनुसार शालिवाहन के वंशज वयस कुमार या सुंदरभान सहारनपुर आये थे तो उनके वंशज कहाँ गए?

बैस वंश कि एक शाखा त्रिलोकचंदी है और सहारनपुर के वैश्य जैन समुदाय कि भी एक शाखा त्रिलोकचंदी है इन्ही जैनियो के एक व्यक्ति राजा साहरनवीर सिंह ने अकबर के समय सहारनपुर नगर बसाया था,आज के सहारनपुर,हरिद्वार का क्षेत्र उस समय हरिद्वार के पुंडीर शासको के नियन्त्रण में था तो हो सकता है शालिवाहन के जो वंशज इस क्षेत्र में आये होंगे उन्हें राजा धीर पुंडीर ने दहेज़ में सहारनपुर के कुछ परगने दिए हों और बाद में ये त्रिलोकचंदी बैस राजपूत ही जैन धर्म ग्रहण करके व्यापारी हो जाने के कारण वैश्य बन गए हों और इन्ही त्रिलोकचंदी जैनियों के वंशज राजा साहरनवीर ने अकबर के समय सहारनपुर नगर कि स्थापना कि हो, और बाद में इन सभी मान्यताओं में घालमेल हो गया हो.अर्गल के गौतम राजा अलग थे उन्होंने वर्तमान बैसवारे का इलाका बैस वंशी राजा अभयचन्द्र को दहेज़ में दिया था।

गौतमी पुत्र शातकर्णी को कुछ विद्वान बैस वंशावली के शालिवाहन से जोड़ते हैं किन्तु नासिक शिलालेख में गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी को एक ब्राह्मण (अद्वितिय ब्राह्मण) तथा खतिय-दप-मान-मदन अर्थात क्षत्रियों का मान मर्दन करने वाला आदि उपाधियों से सुशेभित किया है। इसी शिलालेख के लेखक ने गौतमीपुत्र की तुलना परशुराम से की है। साथ ही दात्रीशतपुतलिका में भी शालीवाहनों को मिश्रित ब्राह्मण जाति तथा नागजाति से उत्पन्न माना गया है।अत:गौतमीपुत्र शातकर्णी अथवा शालिवाहन को बैस वंशी शालिवाहन से जोड़ना उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि बैसवंशी सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं.

उपरोक्त सभी मतो का अधयन्न करने पर हमारा निष्कर्ष है कि बैस राजपूत सूर्यवंशी हैं,प्राचीन काल में सूर्यवंशी इछ्वाकू वंशी राजा विशाल ने वैशाली राज्य कि स्थापना कि थी,विशाल का एक पुत्र लिच्छवी था यहीं से सुर्यवंश कि लिच्छवी, शाक्य(गौतम), मोरिय(मौर्य), कुशवाहा(कछवाहा) ,बैस शाखाएँ अलग हुई,

जब मगध के राजा ने वैशाली पर अधिकार कर लिया और मगध में शूद्र नन्दवंश का शासन स्थापित हो गया और उसने क्षत्रियों पर जुल्म करने शुरू कर दिए तो वैशाली से सूर्यवंशी क्षत्रिय पंजाब,तक्षिला,महाराष्ट्र,स्थानेश्वर,दिल्ली,आदि में आ बसे,दिल्ली क्षेत्र पर भी कुछ समय बैस वंशियों ने शासन किया,बैंसों की एक शाखा पंजाब में आ बसी। इन्होंने पंजाब में एक नगर श्री कंठ पर अधिकार किया , जिसका नाम आगे चलकर थानेश्वर हुआ।

दिल्ली क्षेत्र थानेश्वर के नजदीक है अत:दिल्ली शाखा,थानेश्वर शाखा,सहारनपुर शाखा का आपस में जरुर सम्बन्ध होगा ,
बैसवंशी सम्राट हर्षवर्धन अपनी राजधानी थानेश्वर से हटाकर कन्नौज ले गए,हर्षवर्धन ने अपने राज्य का विस्तार बंगाल,असम,पंजाब,राजपूताने,मालवा,नेपाल तक किया और स्वयं राजपुत्र शिलादित्य कि उपाधि धारण की.

हर्षवर्द्धन के पश्चात् इस वंश का शासन समाप्त हो गया और इनके वंशज कन्नौज से आगे बढकर अवध क्षेत्र में फ़ैल गए,इन्ही में आगे चलकर त्रिलोकचंद नाम के प्रसिद्ध व्यक्ति हुए इनसे बैस वंश कि कई शाखाएँ चली, इनके बड़े पुत्र बिडारदेव के वंशज भालेसुल्तान वंश के बैस हुए जिन्होंने सुल्तानपुर कि स्थापना की.इन्ही बिडारदेव के वंशज राजा सुहेलदेव हुए जिन्होंने महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को बहराइच के युद्ध में उसकी सेना सहित मौत के घाट उतार दिया था और खुद भी शहीद हो गए थे.

चंदावर के युद्ध में हर्षवर्धन के वंशज केशवदेव भी जयचंद के साथ युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए बाद में उनके वंशज अभयचंद ने अर्गल के गौतम राजा कि पत्नी को तुर्कों से बचाया जिसके कारण गौतम राजा ने अभयचंद से अपनी पुत्री का विवाह कर उसे 1440 गाँव दहेज़ में दे दिए जिसमें विद्रोही भर जाति का दमन कर अभयचंद ने बैस राज्य कि नीव रखी जिसे आज बैसवाडा या बैसवारा कहा जाता है,इस प्रकार सूर्यवंशी बैस राजपूत आर्याव्रत के एक बड़े भू भाग में फ़ैल गए.


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बैसवंशी राजपूतों का सम्राट हर्षवर्धन से पूर्व का इतिहास


बैस राजपूत मानते हैं कि उनका राज्य पहले मुर्गीपाटन पर था और जब इस पर शत्रु ने अधिकार कर लिया तो ये प्रतिष्ठानपुर आ गए,वहां इस वंश में राजा शालिवाहन हुए,जिन्होंने विक्रमादित्य को हराया और शक सम्वत इन्होने ही चलाया,कुछ ने गौतमी पुत्र शातकर्णी को शालिवाहन मानकर उन्हें बैस वंशावली का शालिवाहन बताया है,और पैठण को प्रतिष्ठानपुर बताया और कुछ ने स्यालकोट को प्रतिष्ठानपुर बताया है,

किन्तु यह मत सही प्रतीत नहीं होते ,कई वंशो बाद के इतिहास में यह गलतियाँ कि गई कि उसी नाम के किसी प्रसिद्ध व्यक्ति को यह सम्मान देने लग गए,शालिवाहन नाम के इतिहास में कई अलग अलग वंशो में प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं.भाटी वंश में भी शालिवाहन हुए हैं और सातवाहन वंशी गौतमीपुत्र शातकर्णी को भी शालिवाहन कहा जाता था,


विक्रमादित्य के विक्रम सम्वत और शालिवाहन के शक सम्वत में पूरे 135 वर्ष का फासला है अत:ये दोनों समकालीन नहीं हो सकते.दक्षिण के गौतमीपुत्र शातकर्णी को नासिक शिलालेख में स्पष्ट:ब्राह्मण लिखा है अत:इसका सूर्यवंशी बैस वंश से सम्बन्ध होना संभव नहीं है.

वस्तुत: बैस इतिहास का प्रतिष्ठानपुर न तो दक्षिण का पैठण है और न ही पंजाब का स्यालकोट है यह प्रतिष्ठानपुर इलाहबाद(प्रयाग) के निकट और झूंसी के पास था.


किन्तु इतना अवश्य है कि बैस वंश में शालिवाहन नाम के एक प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए जिन्होंने प्रतिष्ठानपूरी में एक बड़ा बैस राज्य स्थापित किया,शालिवाहन कई राज्यों को जीतकर उनकी कन्याओं को अपने महल में ले आये,जिससे उनकी पहली तीन क्षत्राणी रानियाँ खिन्न होकर अपने पिता के घर चली गयी,इन तीन रानियों के वंशज बाद में भी बैस कहलाते रहे और बाद कि रानियों के वंशज कठबैस कहलाये,

ये प्रतिष्ठानपुर(प्रयाग)के शासक थे,


इन्ही शालिवाहन के वंशज त्रिलोकचंद बैस ने दिल्ली(उस समय कुछ और नाम होगा) पर अधिकार कर लिय.स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार दिल्ली पर सन 404 ईस्वी में राजा मुलखचंद उर्फ़ त्रिलोकचंद प्रथम ने विक्रमपाल को हराकर शासन स्थापित किया इसके बाद विक्र्मचन्द, कर्तिकचंद, रामचंद्र, अधरचन्द्र, कल्याणचन्द्र, भीमचंद्र, बोधचन्द्र, गोविन्दचन्द्र और प्रेमो देवी ने दो सो से अधिक वर्ष तक शासन किया,वस्तुत ये दिल्ली के बैस शासक स्वतंत्र न होकर गुप्त वंश और बाद में हर्षवर्धन बैस के सामंत के रूप में यहाँ पर होंगे,इसके बाद यह वंश दिल्ली से समाप्त हो गया,और सातवी सदी के बाद में पांडववंशी अर्जुनायन तंवर क्षत्रियों(अनंगपाल प्रथम) ने प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के स्थान पर दिल्ली कि स्थापना की.



वस्तुत:बैसवारा ही बैस राज्य था.(देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास पृष्ठ संख्या 70,एवं ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली पृष्ठ संख्या 113,114)


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बैस वंश कि शाखाएँ

कोट बाहर बैस---शालिवाहन कि जो रानियाँ अपने पीहर चली गयी उनकी संतान कोट बाहर बैस कहलाती है.
कठ बैस---शालिवाहन कि जो जीती हुई रानियाँ बाद में महल में आई उनकी संतान कोट बैस या कठ बैस कहलाती हैं।
डोडिया बैस---डोडिया खेडा में रहने के कारण राज्य हल्दौर जिला बिजनौर 
त्रिलोकचंदी बैस---त्रिलोकचंद के वंशज इनकी चार उपशाखाएँ हैं राव,राजा,नैथम,सैनवासी
प्रतिष्ठानपूरी बैस---प्रतिष्ठानपुर में रहने के कारण 
चंदोसिया---ठाकुर उदय बुधसिंह बैस्वाड़े से सुल्तानपुर के चंदोर में बसे थे उनकी संतान चंदोसिया बैस कहलाती है.
रावत--फतेहपुर,उन्नाव में 
भाले सुल्तान--ये भाले से लड़ने में माहिर थे मसूद गाजी को मारने वाले सुहेलदेव बैस संभवत:इसी वंश के थे,रायबरेली,लखनऊ,उन्नाव में मिलते हैं.
कुम्भी एवं नरवरिया--बैसवारा में मिलते हैं

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बैसवंशी राजपूतो कि वर्तमान स्थिति


बैस राजपूत वंश वर्तमान में भी बहुत ससक्त वंश मन जाता है,ब्रिटिश गजेटियर में भी इस वंश कि सम्पन्नता और कुलीनता के बारे में विस्तार से लिखा गया है,अवध,पूर्वी उत्तरप्रदेश के बैसवारा में बहुत से बड़े जमीदार बैस वंश से थे,बैस वंशी राणा बेनीमाधवबख्श सिंह और दुसरे बैस जमीदारों ने सन 1857 इसवी में अवध क्षेत्र में अंग्रेजो से जमकर लोहा लिया था,बैस राजपूतों द्वारा अंग्रेजो का जोरदार विरोध करने के बावजूद अंग्रेजो कि हिम्मत इनकी जमिदारियां खत्म करने कि नहीं हुई,बैस राजपूत अपने इलाको के सरताज माने जाते हैं और सबसे साफ़ सुथरे सलीकेदार वस्त्र धारण करने से इनकी अलग ही पहचान हो जाती है,अंग्रेजी ज़माने से ही इनके पक्के ऊँचे आवास इनकी अलग पहचान कराते थे,इनके बारे में लिखा है कि- 



"The Bais Rajput became so rich at a time it is recorded that each Bais Rajput held Lakhs (Hundreds of thousands) of rupees a piece which could buy them nearly anything. To hold this amount of money you would have to have been extremely rich.
This wealth caused the Bais Rajput to become the "best dressed and housed people"[22] in the areas they resided. This had an influence on the areas of Baiswara and beyond as recorded the whole area between Baiswara and Fyzabad was:

जमीदारी के अतिरिक्त बैस राजपूत राजनीती और व्यापार के क्षेत्र में भी कीर्तिमान बना रहे हैं,कई बड़े व्यापारी और राजनेता भारत और पाकिस्तान में बैस बंश से हैं जो विदेशो में भी व्यापार कर रहे हैं,राजनीती और व्यापार के अतिरिक्त खेलो कि दुनियां में मेजर ध्यानचंद जैसे महान हॉकी खिलाडी,उनके भाई कैप्टन रूप सिंह आदि बड़े खिलाडी बैस वंश में पैदा हुए हैं.कई प्रशासनिक अधिकारी,सैन्य अधिकारी बैस वंश का नाम रोशन कर रहे हैं.

वस्तुत: जिस सूर्यवंशी बैस वंश में शालिवाहन,हर्षवर्धन,त्रिलोकचंद,सुहेलदेव,अभयचंद, राणा बेनीमाधवबख्श सिंह,मेजर ध्यानचंद आदि महान व्यक्तित्व हुए हैं उन्ही के वंशज  भारत,पाकिस्तान,पाक अधिकृत कश्मीर,कनाडा,यूरोप में बसा हुआ बैस राजपूत वंश आज भी पूरे परिश्रम,योग्यता से अपनी सम्पन्नता और प्रभुत्व समाज में कायम किये हुए है और अपने पूर्वजो कि गौरवशाली परम्परा का पालन कर रहा है.

सन्दर्भ

1-हर्षचरित्र बाणभट्ट 
2-ठाकुर ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 112-114
3-देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ संख्या 67-74
4-महान इतिहासकार गौरिशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास के पृष्ठ संख्या154-162 
5-श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश के प्रष्ठ संख्या 78,79 एवं 368,369
6-डा देवीलाल पालीवाल कि कर्नल जेम्स तोड़ कृत राजपूत जातियों का इतिहास प्रष्ठ संख्या 182
7-ठाकुर बहादुर सिंह बीदासर कृत क्षत्रिय वंशावली एवं जाति भास्कर 
8-http://kshatriyawiki.com/wiki/Bais
9-https://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q&esrc=s&source=web&cd=1&cad=rja&uact=8&ved=0CBwQFjAA&url=http%3A%2F%2Fhi.wikipedia.org%2Fwiki%2F%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25A8&ei=GTGyVOW9IJG3uQSV9IGwBQ&usg=AFQjCNGPsESz0CXT6F0Fc7bjZS2UbIjXdQ
10-http://www.indianrajputs.com/dynasty/Bais
11-http://wakeuprajput.com/orgion_bais.php

12-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/08/bains-kshatriya-rajput-vansh.html

नोट-इस पोस्ट के बाद बैस वंश से सम्बंधित चार पोस्ट अलग से की जाएंगी 
1-सम्राट हर्षवर्धन बैस और राजा अभयचंद बैस 
2-राजा सुहेलदेव बैस 
3-राणा बेनीमाधव सिंह 
4-मेजर ध्यानचन्द्र सिंह बैस 
यह आर्टिकल Rajputana Soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास पेज कि बौद्धिक संपत्ति है,इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें और कॉपी भी करें तो हमारे पेज का नाम/लिंक सन्दर्भ में जरुर दें

29 comments:

  1. शानदार आर्टिकल होकम

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  2. जाट था हर्षवर्धन असली बैंस जाट होते है

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  3. हर्षवर्धन बैंस हरियाणा के थानेश्वर के श्री माहल पुर का था जिन्हें आज थानेसर कहते है और जहाँ हर गाँव बैंस जाटो का है,जैज़ी बी सिंगर इसी गोत्र का जाट है,जिसने अपने गाने में हर्षवर्धन बैंस का जिक्र किया है,पुरे पंजाब में बैंस जाटो का गोत्र है--झूट बोल रहे है आप उन्हें राजपूत बताकर

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  4. हाहाहाहा भाई जब हर्षवर्धन बैस का सम्राज्य था तब तक जाट सिंध तक सिमित थे और वहाँ उनकी गिनती महाशूद्रों में होती थी।उस समय जाट न हरियाणा में थे न पश्चिम उत्तर प्रदेश में थे।

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  5. ब्रिटिश काल में लिखे गजेटियर के अनुसार बैंस जाट खुद को जंजुआ राजपूतो की संतान मानते थे जो चन्द्रवँशी तोमर वंश की शाखा है।अधिकतर जाटों ने खुद के वंशो को राजपूत पिता और जाट माता की संतान से चला हुआ बताया था।जो ब्रिटिश गजेटियर में मिल जाएगा आप खुद पढ़ सकते हो नेट पर सर्च करके।

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    1. Mai Bains Jatt hu originally from Mahilpur hamare waha ek mashoor jagirdar Bains family thi , Jallianwala bagh Bhi Himmat Singh Bains ne banwaya tha

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  6. अधिकतर बैंस क्षत्रिय हर्षवर्धन के साथ कन्नौज चले गए थे उनके वंशज आज कन्नौज मैनपुरी एटा फीरोजाबाद में 84 गांव,बुलन्दशहर में 04 गांव,सहारनपुर में 1 गांव में हैं।
    इसके अलावा कन्नौज से आगे बढ़कर अवध का इलाका बैसवारा कहलाता है जिसमें 360 गांव बैस राजपूतो के हैं जो सब हर्षवर्धन के वंशज हैं।
    इसके अतिरिक्त आजमगढ़ पूर्वांचल में 172 गांव,बिहार के सारण छपरा ओरंगाबाद में 184 गांव,राजस्थान में 03 गांव,मध्य प्रदेश के रीवा बघेलखण्ड मालवा में 120 गांव,छत्तीसगढ़ के जसपुर रायपुर में 84 गांव बैस राजपूतो के हैं।

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    1. बिहार के पटना जिला में कुम्भी बैसों के छह गाँव और पटना व आरा जिला में तिलकचन्दी और नरवरिया बैसों के बीस गाँव स्थित हैं। बिहार के पटना जिला में स्थित सभी छह गाँव आमेर (जयपुर) के राजा मिर्जा राजा जय सिंह बाबा के पुत्र मिर्जा राजा राम सिंह बाबा के ज्येष्ठ पुत्र और धोला रियासत के जागिरदार सरदार किशन सिंह जी महाराज के वंशज हैं। विदित हो कि दारा शिकोह से मित्रता के कारण औरंगजेब का साथ नहीं देने के कारण बौखलाये औरंगजेब ने युवराज किशन सिंह जी की सारी सम्पत्ति को अपने कब्जे में लेकर सरदार किशन सिंह जी का कटा हुआ सिर पेश करने वाले को मुँहमाँगा इनाम देने की घोषणा कर रखा था। दारा शिकोह की गिरफ्तारी के बाद झल्लाये औरंगजेब की पाशविक अत्याचारों से अपने वंश की रक्षा करने के लिए मिर्जा राजा जय सिंह बाबा ने ही सरदार किशन सिंह जी महाराज को अपने बीबी-बच्चों, राजमाता, और विश्वसनीय मित्रों सहित जिसमें ब्रह्म भट्ट, दीवान और खास रिश्तेदारों सहित ठाकुर (हजाम) और कहार भी सम्मिलित थे;उदासी साधू के वेश में पटना के पुनपुन नदी के किनारे जयवर नामक गाँव बसाकर शरण लिए थे। आज इस गाँव में बसी कुम्भी बैसों की आबादी बढ़ते हुए आसपास में छह गाँव जयवर, दौलतपुर, फत्तेपुर, सैदनपुर, मसाढ़ी और एकउना बसा लिया है।

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  7. हर्ष ने नेपाल में भी अपने परिवार के सदस्य को राजा नियुक्त किया था जिसके वंश को बैसठाकुरी वंश कहा जाता है और यह वंश आज भी नेपाल के राजपूतो में पाया जाता है।

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  8. जो बैस क्षत्रिय राजपूत हर्ष के साथ नही गए और थानेश्वर अम्बाला करनाल सफीदों सालवन रह गए उन्हें बाद में 8 वी सदी में मेवाड़ से आए रघुवंशी मुंढाड राजपूतो ने वहाँ से निकाल दिया तो ये आगे बढ़कर पंजाब कश्मीर चले गए।
    पटियाला के जसु माजरा समेत 06 गांव बैस हिन्दू राजपूतो के हैं कुछ ने सिक्ख धर्म अपना लिया और बैंस सिक्ख राजपूत कहलाते हैं।

    पर अधिकतर ने कश्मीर मुल्तान रावलपिंडि में इस्लाम ग्रहण कर लिया।आज भी पाक अधिकृत कश्मीर में बैस मुसलीम राजपूतो की बड़ी आबादी है जो थानेश्वर इलाके से ही जाकर बसे हैं।

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  9. ============================
    बैसवाडा (BAISWARA)
    बैसवाडा की स्थापना महाराजा अभयचंद बैस द्वारा सन 1230 ईस्वी में की गई थी,बैसवाडा भौगोलिक क्षेत्र में आज प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली,उन्नाव जिले आते हैं,समीपवर्ती जिलो सुल्तानपुर, बाराबंकी,लखनऊ,प्रतापगढ़,फतेहपुर आदि का कुछ हिस्सा भी बैसवाडा का हिस्सा माना जाता है.
    बैसवाडा में आज भी बैस राजपूतो का प्रभुत्व है.इसकी अपनी विशिष्ट संस्कृति है जो इसे विशेस स्थान प्रदान करती है.

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    महाराजा अभयचंद बैस द्वारा बैसवाडा राज्य की स्थापना

    कन्नौज के बैसवंशी सम्राट हर्षवर्धन के बाद उनके वंशज कन्नौज के आस पास ही कई शक्तियों के अधीन सामन्तों के रूप में शाशन करते रहे।शम्भुनाथ मिश्र (बैस वंशावली 1752)के पृष्ठ संख्या 2 पर सम्राट हर्षवर्धन से लेकर 25 वी पीढ़ी में राव अभयचंद तक के वर्णन के अनुसार हर्षवर्धन से 24 वीं पीढ़ी में बैस सामंत केशव राय उर्फ़ गणेश राय ने मुहम्मद गोरी के विरुद्ध राजा जयचन्द की तरफ से चंदावर के युद्ध में भाग लिया। उनके पुत्र राव अभयचन्द ने उन्नाव,राय बरेली स्थित बैसवारा की स्थापना की। आज भी सबसे ज्यादा बैस राजपूत इसी बैसवारा क्षेत्र में निवास करते है। हर्षवर्धन से लेकर राव अभयचन्द तक 25 शासक/सामन्त हुए, जिनकी वंशावली इस प्रकार है-

    1.हर्षवर्धन

    2.यशकर्ण
    3.रणशक्ति
    4.धीरचंद
    5.ब्रजकुमार
    6.घोषचन्द
    7.पूरनमल
    8.जगनपति
    9.परिमलदेव
    10.मनिकचंद
    11.कमलदेव
    12.यशधरदेव
    13.डोरिलदेव
    14.कृपालशाह
    15.रतनशाह
    16.हिंदुपति
    17.राजशाह
    18.परतापशाह
    19.रुद्रशाह
    20.विक्रमादित्य
    21-ताम्बेराय
    22.क्षत्रपतिराव
    23.जगतपति
    24.गणेश राय उर्फ़ केशवराव
    25.अभयचंद

    इन्ही हर्षवर्धन के वंशज राव अभयचंद बैस ने सन 1230 के लगभग बैसवारा राज्य कि नीव रखी. इस वंश को शालिवाहन के वंशज त्रिलोकचंद प्रथम का वंशज भी माना जाता है,जिन्होंने चौथी सदी के आसपास दिल्ली में भी राज्य स्थापित किया था,यह राज्य सन 640 के आसपास समाप्त हो गया था,हो सकता है थानेश्वरी बैस वंश का सम्बन्ध भी त्रिलोकचंद प्रथम से हो,क्योंकि दिल्ली और थानेश्वर में अधिक दूरी नही है.



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  10. हर्षवर्धन से 24 वीं पीढ़ी में लोहागंज के शासक केशव राय उर्फ़ गणेश राय ने मुहम्मद गोरी के विरुद्ध राजा जयचन्द की तरफ से चंदावर के युद्ध में भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुए, इसके बाद उनके पुत्र निर्भयचंद और अभयचंद अपनी माता के साथ स्यालकोट पंजाब में गुप्त रूप से रहने लगे,बड़े होने पर दोनों राजकुमार अपने प्राचीन प्रदेश में वापस आए, सन 1230 के आसपास अर्गल के गौतमवंशी राजा पर कड़ा के मुसलमान सूबेदार ने हमला कर दिया,किन्तु गौतम राजा ने उसे परास्त कर दिया,कुछ समय बाद गौतम राजा की पत्नी गंगास्नान को गयी,वहां मुसलमान सूबेदार ने अपने सैनिको को रानी को पकड़ने भेजा, यह देखकर रानी ने आवाज लगाई कि कोई क्षत्रिय है तो मेरी रक्षा करे,संयोग से दोनों बैस राजकुमार उस समय वहां उपस्थित थे,उन्होंने तुरंत वहां जाकर मुस्लिम सैनिको को मार भगाया.रानी को बचाने के बाद निर्भयचंद तो अधिक घावो के कारण शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हुए,किन्तु अभयचंद बच गया,

    गौतम राजा ने अपनी पुत्री का विवाह अभयचन्द्र से कर दहेज़ में उसे गंगा से उत्तर दिशा में 1440 गाँव दिए,जहाँ अभयचंद ने बैस राज्य की नीव रखी,यही बैस राज्य आज बैसवाडा कहलाता है. उस समय पूरा पूर्वी मध्य उत्तर प्रदेश कन्नौज नरेश जयचंद की प्रभुता को मानता था मगर उनकी हार के बाद इस क्षेत्र में अराजकता हो गई जिसका लाभ उठाकर भर जाति के सामंत स्वतंत्र हो गए,इन 1440 गाँव पर वास्तविक रूप से भर जाति का ही प्रभुत्व था जो गौतम राजा को कर नहीं देते थे,

    अभयचंद और उनके वंशज कर्णराव,सिधराव(सेढूराव),पूर्णराव ने वीरता और चतुराई से भरो की शक्ति का दमन करके इस क्षेत्र में बड़ा राज्य कायम किया.और डोडियाखेडा को राजधानी बनाया. पूर्णराव के बाद घाटमराव राजा बने जिन्होंने फिरोजशाह तुगलक के समय उसकी धर्मान्धता की नीति से ब्राह्मणों कि रक्षा की,
    घाटमराव के बाद क्रमश: जाजनदेव,रणवीरदेव ,रोहिताश्व राजा हुए.

    रोहिताश्व का शासनकाल 1404 से 1422 तक रहा,इनका शासन काल बैसवाडा में शौर्य युग के नाम से विख्यात है.इनके काल में खूब युद्ध हुए और शासन विस्तार हुआ,इन्होने मैनपुरी के चौहान राजा के निमन्त्रण पर वहां जाकर अहीर विद्रोहियों का दमन किया और मैनपुरी के आसपास भी गाँवो पर अधिकार कर लिया,उनका जौनपुर के शर्की सुल्तानों से भी संघर्ष हुआ,
    रोहिताश्व पंजाब में एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए.

    रोहिताश्व के बाद राव सातनदेव गद्दी पर बैठे,सन 1440 में जौनपुर के शर्की सुल्तान के हमले में ये काकोरी में वीरगति को प्राप्त हुए,उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी,डोडियाखेडा के रास्ते में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जो आगे चलकर महाराजा त्रिलोकचंद द्वित्य के नाम से प्रसिद्ध हुए.

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  11. ===================================
    महाराजा त्रिलोकचंद द्वित्य

    महाराजा त्रिलोकचंद की माता मैनपुरी के चौहान राजा की पुत्री थी,डोडियाखेडा पर शर्की सुल्तान के हमले के बाद उसने अपने पुत्र को गुमनाम अवस्था में मैनपुरी में पाला,बडे होकर त्रिलोकचंद ने अपने पिता की मौत का बदला लेने का प्रण लिया,
    उसमे अदबुध संगठन क्षमता थी,कुछ सैन्य मदद उनके नाना मैनपुरी के चौहान राजा ने की और त्रिलोकचंद ने सेना तैयार कर बैसवाडा क्षेत्र पर धावा बोल दिया और रायबरेली,हैदरगढ़, बाराबंकी,डोडियाखेडा,डलमऊ आदि पर अधिकार कर लिया,दिल्ली सल्तनत ने भी उसे शर्की सुल्तानों के विरुद्ध मदद दी जिससे त्रिलोकचंद ने शर्की सुल्तान को हराकर भगा दिया और बिहार जाकर उसकी मृत्यु हो गयी.


    दिल्ली के लोदी सुल्तानों ने त्रिलोकचंद की इस बड़े बैसवाडा भूभाग पर अधिपत्य को मान लिया,महाराजा त्रिलोकचंद को उनकी उपलब्धियों के कारण अवध केसरी भी कहा जाता है,उन्ही के वंशज त्रिलोकचंदी बैस कहलाते हैं,

    आगे चलकर मुगल सम्राट अकबर ने भी इस इलाके में बैस राजपूतों की शक्ति को देखते हुए उन्हें स्वायत्तता दे दी और बाद के मुगल सम्राटो ने भी यही निति जारी रखी.


    लम्बे समय तक इस वंश ने डोडियाखेडा को राजधानी बनाकर बैसवाडा पर राज्य किया,किन्तु सन 1857 के गदर में भाग लेने के कारण अंग्रेजो ने अंतिम शासक बाबू रामबख्श सिंह को फांसी दे दी और इनका राज्य जब्त कर लिया,अभी गत वर्ष डोडियाखेडा के किले में जो खजाने की खोज में खुदाई चल रही थी वो इन्ही बाबू राव रामबख्श सिंह और बैस वंश के प्राचीन खजाने की खोज थी जो अभी तक पूरी नहीं हो पाई है.


    इतिहासकार कनिंघम के अनुसार बैसवाडा के बैस राजपूत अवध क्षेत्र के सबसे समृद्ध और सम्पन्न परिवार ,सर्वोत्तम आवासों के स्वामी,सर्वोत्तम वेशभूषा के और सर्वाधिक साहसी समुदाय से हैं. बैसवाडा के ही ताल्लुकदार राणा बेनीमाधव सिंह से मालगुजारी लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी,आगे चलकर इन्ही राणा बेनीमाधव सिंह ने सन 1857 ईस्वी में ग़दर के दौरान जिस वीरता का प्रदर्शन किया उसका विवरण हम अलग से करेंगे.इसके बाद भी बैस राजपूतो ने स्वतंरता आन्दोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया,जमीदारी उन्मूलन के समय रायबरेली जिले में 18 बैस ताल्लुकादार थे,जिनका वहां के बड़े भूभाग पर अधिकार था.


    बैसवाडा का नामकरण बैस राजपूत वंश के प्रभुत्व के कारण हुआ है.दिल्ली दरबार यहाँ से काफी दूर था,इस कारण उनका यहाँ नाम मात्र का शासन था,जौनपुर का शर्की राजवंश सिर्फ 80 साल चला,अवध का नवाबी राज्य भी सिर्फ 125 साल तक चला जिसके कारण ये शासक बैसवाडा के बैस राजपूतो के प्रभुत्व पर कोई प्रभाव डालने में असफल रहे. वस्तुत:बैसवाडा के बैस राजपूतो ने अपनी वीरता और योग्यता से इस क्षेत्र को समस्त भारतवर्ष में विशिस्ट स्थान प्रदान किया है.
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  12. जाटलैंड का फर्जी इतिहास पढ़ना बन्द करो भाइयो और सच्चाई का सामना करो।उल जुलूल कुछ भी लिखने या हिटलर मुसोलिनी हनुमान जी शिवजी ओबामा चन्द्रगुप्त सबको जाट बनाकर खुश होते रहो दुनिया तुम पर हँसेगी।

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  13. Sir
    Bhalesultan kshtriyon ke baare mein bhi artcle likhne ka kasth karein

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    1. जी जरुर राय साहब

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    2. भरों-राजपूतों(राजभरों) ने बैसों की ४-५ पीढ़ियों का सफाया कर दिया था...वो तो बैसों ने मुल्लों के तलवे चाट के उनकी मदद से भरों/राजभरों का सर्वनाश कर दिया.....अन्यथा बैस तो क्या ...इस बाहुबली जाती के आगे किसी भी अकेले राजपूत की हैसियत नहीं हुई हुआ करती थी इनसे आँख मिलाने की.

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  14. भर एक नागवंशीय भारशिव क्षत्रिय को वंश है एक समय था कि एक शासन पूरे पूरी भारत पर था

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  15. भर/राजभर या भारशिव राजपूत छत्रिय मुसलमानों के अतांक से सर्व समाज और भारत देश को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे। और बैंस लोग मुसलमानों से संधि करके अपने पेट के लिए लड़ाई लड़ रहे थे

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  16. यदि आपके पास कुम्भी बैस के बारे में भी कुछ विश्वसनीय जानकारी है तो शेयर करें।

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  17. Kuldevi ke sthan ki jankari de, Delhi-Faridabad ke pass, ya kolkata me h ya sahapura- chomu k pass h?

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  18. Rajputoo ka safaya isliye ho rha hai

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  19. Government bhi adhikaar cheen rhi hai

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  20. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले की लालगंज तहसील में स्थित कूबा क्षेत्र (बैस क्षत्रियों)के इतिहास पर प्रकाश डालने का कष्ट करें


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    1. हैलो

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    2. मुझे अपनी कुलदेवी के स्थान की भी जानकारी चाहिए

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  21. मैं भी वैश राजपूत हु , में पंजाब से हु पर मेरे पिताजी जिला गोंडा मनकापुर उत्तरप्रदेश में पैदा हुए, हमारी कुलदेवी मां काली और गोत्र भारद्वाज है, क्या ये बिलकुल ठीक है, , कृपया इसपर और जानकारी दे सके तो आपका अति धन्यवाद होगा , वो इसलिए क्योंकि मेरे पिताजी और दादा दादी की मृत्यु हो चुकी हैं, मैं अपने बच्चो को विस्तार से जानकारी दे सकूंगा

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  22. बहुत सुन्दर लेख, बधाई

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