Wednesday, August 5, 2015

चन्द्रवंशी पठानिया राजपूत वंश (तंवर/तोमर वंश की शाखा) का सम्पूर्ण इतिहास



चन्द्रवंशी पठानिया राजपूतों का सम्पूर्ण इतिहास 

मित्रों आज हम आपको पंजाब,जम्मू,हिमाचल प्रदेश के चंद्रवंशी पठानिया राजपूतो(Tanwar/tomar rajput Clan Pathania) के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे.यह वंश ईस्वी 1849 तक विदेशी आक्रमणकारियों के विरुध अपने संघर्षों के लिए जाना जाता है आक्रमणकारी चाहे मुसलमान हो या अंग्रेज। इस वंश के राम सिंह पठानिया अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी वीरता के लिए विख्यात हैं.यह वंश इतना बहादुर व झुझारू है के आजादी के बाद भी पठानिया राजपूतों ने सेना में 3 महावीर चक्र प्राप्त किये.....

-------------------पठानिया वंश की उत्पत्ति-------------------


इस वंश की उत्पत्ति पर कई मत हैं,
श्री ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के पृष्ठ संख्या 181-182 के अनुसार पठानिया राजपूत बनाफर वंश की शाखा है,उनके अनुसार बनाफर राजपूत पांडू पुत्र भीम की हिडिम्बा नामक नागवंशी कन्या से विवाह हुआ था हिडिम्बा से उत्पन्न पुत्र घटोत्कच के वंशज वनस्पर के वंशज बनाफर राजपूत हैं,पंजाब के पठानकोट में रहने वाले बनाफर राजपूत ही पठानिया राजपूत कहलाते है.....
किन्तु यह मत सही प्रतीत नहीं होता ,क्योंकि पठानिया राजपूतो के बनाफर राजपूत वंश से सम्बंधित होने का कोई प्रमाण नही मिलता है,

श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाडी कृत क्षत्रिय राजवंश के पृष्ठ संख्या 270-271 व 373 के अनुसार पठानिया राजपूत तंवर वंश की शाखा है,
नूरपुर के तंवर वंशी राजा बासु (1580-1613) ने अपने पुरोहित व्यास के साथ महाराणा मेवाड़ अमर सिंह से मुलाकात की थी,इसी व्यास का वंशज सुखानंद सम्वत 1941 वि० को उदयपुर आया था,बासु के समय के ताम्र पत्र के आधार पर सुखानंद के रिकॉर्ड में लिखा था कि "दिल्ली का राज छूटने के बाद राजा दिलीप के पुत्र जैतमल ने नूरपुर को अपनी राजधानी बनाया.
(वीर विनोदभाग-2 पृष्ठ संख्या 228)
निष्कर्ष---सभी वंशावलियों के रिकार्ड्स से भी यह वंश तंवर वंश की शाखा ही प्रमाणित होता है,,पंजाब में पठानकोट में रहने के कारण तंवर वंश की यह शाखा पठानिया के नाम से प्रसिद्ध हुई.वस्तुत: पठानकोट का प्राचीन नाम भी संभवत: पैटनकोट हो सकता है.

--------------पठानकोट एवं नूरपुर राज्य का इतिहास------------

Dynasty--Tanwar rajput Clan(Pathania)


Area--180 km² (1572)

राज्य का नाम--नूरपुर(पुराना नाम धमेरी)

------------इतिहास---------

पठानिया राजपूत तंवर राजा अनंगपाल तंवर के अनुज राजा जैतपाल के वंशज है जिन्होंने उत्तर भारत में धमेरी नाम के राज्य की स्थापना की और पठानकोट नामक शहर बसाया। धमेरी राज्य का नाम बाद में जा कर नूरपुर पड़ा। सं० 1849 में नूरपुर अंग्रेजो के अधीन हो गया।
इस राज्य कि स्थापना 11 वी सदी में (1095 ईस्वी)में दिल्ली के राजा अनंगपाल तंवर द्वित्य के छोटे भाई जैतपाल द्वारा की गई थी,जिन्होंने खुद को पठानकोट में स्थापित किया,उन्होंने यहाँ गजनवी काल से स्थापित मुस्लिम गवर्नर कुजबक खान को पराजित कर उसे मार भगाया और पठानकोट किला और राज्य पर अधिकार जमाया,इसके बाद जैतपाल तंवर और उनके वंशज पठानिया राजपूत कहलाने लगे,उनके बाद क्रमश: खेत्रपाल,सुखीनपाल,जगतपाल,रामपाल,गोपाल,अर्जुनपाल,वर्शपाल,जतनपाल,विदुरथपाल,किरतपाल,काखोपाल पठानकोट के राजा हुए.....
उनके बाद की वंशावली निम्नवत है------

राजा जसपाल(1313-1353)---इनके नो पुत्र हुए जिनसे अलग अलग शाखाएँ चल.
राजा कैलाश पाल(1353-1397)
राजा नागपाल(1397-1438)
राजा पृथीपाल(1438-1473)
राजा भीलपाल(1473-1513)
राजा बख्त्मल(1513-1558) ये अकबर के विरुद्ध शेरशाह सूरी के पुत्र सिकन्दर सूर के विरुद्ध लडे और 1558 ईस्वी में इनकी मृत्यु हुई.
राजा पहाड़ी मल(1558-1580)
राजा बासु देव(1580/1613)-----------
राजा बासु देव के समय उनसे पठानकोट का परगना छिन गया और राजधानी धमेरी स्थान्तरित हो गई,किन्तु बाद में राजा बासु ने अपनी स्थिति को मजबूत किया और अकबर के समय उन्हें 1500 का मंसब मिला जो जहाँगीर के समय बढ़कर 3500 हो गया.हालाँकि राजा बासु पर जहाँगीर को पूरा विश्वास नहीं था जिसका जिक्र तुजुक ए जहाँगीरी में मिलता है,राजा बासु ने नूरपुर धामेरी में बड़ा दुर्ग बनवाया जो आज भी स्थित है,शाहबाद के थाने में राजा बासु की ईस्वी 1613 में मृत्यु हो गई.
राजा सूरजमल(1613-1618)---राजा बासु ने अपने बड़े पुत्र जगत सिंह को राजा बनाया पर जहाँगीर ने उसके छोटे पुत्र सूरजमल को धमेरी का राजा बनाकर तीन हजार जात और दो हजार सवार का मनसबदार बना दिया,उनकी ईस्वी 1618 में चंबा में मृत्यु हो गई.
मियां माधो सिंह को जहागीर ने राजा का ख़िताब दिया उनकी ईस्वी 1623 में मृत्यु हो गई.
राजा जगत सिंह (1618-1646)---
शाहजहाँ के समय राजा जगत सिंह फिर से धामेरी के राजा बन गये.इन्हें पहले 300 का मनसब मिला बाद में बढ़कर 1000 आदमी और 500 घोड़े का हो गया,ईस्वी 1626 में यह बढ़कर 3000 आदमी और 2 हजार घोड़ो का हो गया,ईस्वी 1641 में यह बढ़कर 5 हजार का मनसब हो गया. ईस्वी 1622 में धमेरी का नाम मल्लिका नूरजहाँ के नाम पर बदलकर नूरपुर हो गया, नूरजहाँ यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य से बहुत प्रभावित थी.शाहजहाँ ने इन्हें बंगश का मुख्याधिकारी बना दिया,ईस्वी 1640 में जगत सिंह ने शाहजहाँ के खिलाफ विद्रोह किया,शाहजहाँ ने इनके विरुद्ध सेना भेजी,जिसके बाद कड़े संघर्ष के बाद उन्होंने ईस्वी 1642 में आत्मसमर्पण किया और जहाँगीर के दरबार में पेश हुए,उनका मनसब बहाल कर दिया गया.ईस्वी 1646 में पेशावर में उनकी मृत्यु हो गई.
राजा राजरूप सिंह(1646–1661)---
राजा जगतसिंह के पुत्र राजरूप सिंह को शाहजहाँ ने कांगड़ा घाटी की फौजदारी दी थी.वे दो हजार जात और दो हजार सवार के मनसबदार थे,बाद में इसे बढ़कर 3500 कर दिया गया,ईस्वी 1661 में इन्हें गजनी का थानेदार भी बनाया गया.ईस्वी 1661 में इनकी मृत्यु हो गई.
राजा मान्धाता सिंह(1661–1700)
राजा दयाद्त्त सिंह (1700–1735)
राजा फ़तेह सिंह (1735–1770)
राजा पृथ्वीसिंह (1770–1805)
राजा वीरसिंह (1805–1846)----नूरपुर के अंतिम शासक राजा,इनके समय में सिख महाराजा रणजीत सिंह ने इस राज्य पर हमला किया जिसका वीरसिंह ने वीरतापूर्वक प्रतिरोध किया किन्तु शत्रु की कई गुनी सेना होने के कारण सिखों ने इनका काफी क्षेत्र छीन लिया,इसके बाद इनके वंशजो पर काफी कम जागीर रह गई.ईस्वी 1846 में एक युद्ध में इनका निधन हो गया.

राजा जसवंत सिंह(1846–1898)---इनके समय में अंग्रेजो ने इस रियासत को अपने क्षेत्र में मिला लिया और विक्रम संवत 1914 में किले को तोड़ कर इसका आधा भाग जसवंत सिंह को दे दिया,अंग्रेजो ने इन्हें मुवाअजे के रूप में बड़ी सम्पत्ति दी.इन्ही के समय वीर वजीर राम सिंह पठानिया ने अंग्रेजो के विरुद्ध बगावत कर उनके दांत खट्टे कर दिए थे.

राजा गगन सिंह(1898–1952)---इनका जन्म ईस्वी 1882 में हुआ था,6th Viceregal Darbari in Kangra District, an honorary magistrate in Kangra District;
मार्च 1909 को वायसरॉय ने इन्हें राजा का खिताब दिया,सन 1952 ईस्वी में इनका निधन हो गया.
राजा देवेन्द्र सिंह(1952-1960)

इनके अतिरिक्त राजा भाऊ सिंह को सन 1650 में शाहपुर स्टेट मिली पर उन्होंने सन 1686 ईस्वी में इस्लाम धर्म गृहण कर लिया,उनके वंशज आज मुस्लिम पठानिया राजपूत हैं.
इस प्रकार हम देखते हैं कि पंजाब ,हिमाचल,जम्मू के पठानिया राजपूत चंद्रवंशी तंवर राजपूतो की ही शाखा हैं और इन्होने लम्बे समय तक पठानकोट,नूरपुर(धमेरी)आदि राज्यों पर राज किया है,यह वंश इतना बहादुर व झुझारू है के आजादी के बाद भी पठानिया राजपूतों ने 3 महावीर चक्र प्राप्त किये। आज पठानिया राजपूत उत्तर पंजाब व हिमाचल में फैले हुए है।सेना में आज भी बड़ी संख्या में पठानिया राजपूत मिलते हैं जिनमे बड़े बड़े आर्मी ऑफिसर भी शामिल हैं.
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सन्दर्भ सूची-----

1-श्री ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के पृष्ठ संख्या 181-182
2-श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाडी कृत क्षत्रिय राजवंश के पृष्ठ संख्या 270-271 व 373
3-वीर विनोदभाग-2 पृष्ठ संख्या 228
4-तजुक-ए-जहाँगीरी
5-http://en.wikipedia.org/wiki/Pathania
6-http://en.wikipedia.org/wiki/Nurpur,_India
7-http://www.indianrajputs.com/view/nurpur
8-http://kshatriyawiki.com/wiki/Tomar
9-A book Twarikh Rajgan-E-Pathania-E-Nurpur, Zila Kangra" i.e. History of Pathania Rajas of Nurpur by Mian Rughnath Singh Pathania.
10- http://gpathania.blogspot.in/2010/…/pathaniawho-are-we.html…
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नोट-वजीर रामसिंह पठानिया के अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष के बारे में अलग से विस्तृत पोस्ट की जाएगी....


















7 comments:

  1. hi, where can i find this book Twarikh Rajgan-E-Pathania-E-Nurpur, Zila Kangra, actually i wanted to know more about ourselves.

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  2. Jai Bholenath....Mere bhai aap contact kriye
    Fb.com/hukumsclothings

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  3. Pathania ki ki kuldevi ka naam kya hai

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