Sunday, August 23, 2015

यदुवंशी जाडेजा राजपूतों का इतिहास (HISTORY OF JADEJA RAJPUTS)

यदुवंशी जाडेजा राजपूतों का इतिहास (HISTORY OF JADEJA RAJPUTS)
                       Rajputana Soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास

चंद्रवंशी(यदुवंशी) जाडेजा राजवंश का इतिहास==========


===========जाडेजा दरबार (राजपूतों) क्षत्रियों का इतिहास==================
जाडेजा राजवंश गुजरात के कच्छ व सौराष्ट्र के इलाके में राज करने वाला एक झुझारू राजवंश है।जाडेजा राजवंश की उत्पत्ति चंद्रवंशी क्षत्रिय वंश से हैं व इनकी उत्पत्ति यदुकुल से मानी जाती है। जाडेजा चुडासमा भाटी जादौन चारो कुल यदुवंश की अलग अलग शाखाये है जो भिन्न भिन्न समय पर यदुवंश से निकली है। जाडेजा वंश गुजरात का सबसे बड़ा राजपूत वंश माना जाता है। जाडेजा राजपूतों के सौराष्ट्र में लगभग 700 गाँव बेस हुए है और लगभग २३०० गाँवो पर आजादी के समय इनका शासन रहा है।गुजरात में ऐसी मान्यता है के जिन गांवों में ठाकुर जी श्री कृष्ण का मंदिर नहीं है वहां लोग सुबह उठकर किसी जाडेजा के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है।गुजरात हाई कोर्ट भी जाडेजाओ की कृष्णा जी के वंशज होने की बात प्रमाणित करता है कुछ समय पहले हुए एक केस में कोर्ट ने जाम नरेश को प्रद्युम्न जी का वारिस मानते हुए संपत्ति पर हक़ का अधिकार दिया।
========कुल गोत्र इत्यादि========
1-गोत्र---अत्री
2-वंश---चन्द्रवंश(यदुवंश)
3-वेद---सामवेद
4-मूल पुरुष--आदिनारायण,
5--कुलदेवता---श्रीकृष्ण जी,सोमनाथ जी
6-कुलदेवी---अम्बाजी,महामाया(momai),आशापुरा
7-झंडा--केसरी
8-नदी--कालिन्दी
9-घोडा---श्यामकर्ण
10--गुरु--दुर्वासा
11-नगाड़ा--अजीत
12--शंख--अजय
13--तलवार:- ताती( अंबिका शक्ति, जिसका माप ५० उंगलि)
14--ढाल:- माहेश्वरी
15--शस्त्र:-शांग(भाला) ओर् तलवार जिसका माप ५२ उनगलि
16--प्रथम जाम--जाम श्री उन्नडजी
प्रथम जाडेजा---लाखाजी जाडेजा 
17--आधुनिक विभूतियाँ--जनरल राजेन्द्र सिंह(पूर्व थल सेनाध्यक्ष),महान क्रिकेटर रणजीत सिंह उर्फ़ रणजी,रविन्द्र जाडेजा,दिलीप सिंह,अजय जाडेजा आदि
==============================================

जाडेजा राजपूतों की वंशावली व संछिप्त इतिहास================

१.राजा चंद्र (त्रेता युग के तीसरे चरण मे प्रथ्वी पर कोई अच्छे राजा ना होने से इन्द्र की सूचना से चन्द्र ने अवतार लिया जिससे चन्द्रवंश चला|

२.बुद्ध ( चन्द्र के ब्रहस्पति कन्या तारा की कोख से जन्म लिया , बुद्ध ने श्राद्धदेव मुनि की बेटी इला से विवाह कर पुरूरवा नामक पराक्रमी पुत्र हुआ) 

३.पुरूरवा(इनकी राजधानी प्रयाग थी इनके गुणगान एक बार नारद ने इन्द्र सभा मे कहे जिसको सुनकर उर्वशी ने प्रथ्वी पर आकर पुरूरवा से शादी की ,जिसके आयु ,सत्यायु ,ऱाय, विजय वगैरा ७ पुत्र हुए) 

४.आयु(नहुस ,क्षत्रावुध ,राजी राम्भ,अनीना नाम के पुत्र हुए )
५.नुहुस(जिसने १०० बार अश्वमेघ यज्ञ किया था)
६. ययाति(६ भाईयो मे सबसे बडे जिसने शुक्राचार्य की बेटी देवयानी जो कि ब्राहम्ण कन्या थी उससे हुई ,देवयानी को श्राप था के वो ब्रहामण नही रहेगी जिसके दो पुत्र हुए यदु और तुरवुश और दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा से ३ पुत्र हुए जिसमे एक पुरूरव जिसकी ४१ वी पीढी पर राजा युधिष्टर हुए) 

७. यदु (इन राजा के कुल मे जो राजा हुए वो यदुवंशी कहलाए)
८.क्रोष्ठा
९.वराजीनवन
१०.स्वाही
११.रूसीकू
१२.चित्रार्थ
१३.शशबिन्धू
१४. प्रथूुसवा
१५.धर्म
१६.उशना
१७.रूचक
१८.जयामेघ
१९.विरालभ
२०.कराथ
२१.करून्ती
२२.धरूस्टी
२३.निवरित
२४.दरसाहा
२५.व्योम
२६.जीतूमाक
२७.विरकुट
२८.भीमराथ
२९.नावरथ
३०.दसूरथ
३१.साकून
३२.कुरांभी
३३.देवराता
३४.देवक्षत्रा
३५.मोधू
३६.कुरू
३७.अनु
३८.पुरहोत्रा
३९.अयु
४०.सातवन(इनके ७ पुत्र थे जिसमे वृष्णि गद्दी पर बैठे)
४१.वृष्णि(४ बार प्रथ्वी के सभी राजाओ को हराया, जिन्होने वेद धर्म फैलाया, उनके नाम से कुछ यादव वृश्निक गौत्र के कहलाए)
४२. सुमित्र
४३.शईनी
४४.अनामित्र
४५.वरूशनीक
४६.चित्राराथ
४७.विदूरथ
४८.सुर
४९.भजनाम
५०.शईनी
५१.स्वायंभोज
५२.हरिदिक
५३.देवमिथ

५४.शूरसेन(जिनकी एक बेटी को राजा कुंतीभोज ने पाला जिसका नाम कुंती था .
५५.वसुदेव(१४ रानी जिसमे ७ मथुरा के कंस की बहन )
५६.श्री क्रष्ण
५६.श्री क्रष्ण (भगवान विष्णु के अवतार ,पटरानी मे से सबसे बडे रूकमणी जी उसके पाटवी कवंर प्रद्युमना.
५७.प्रद्युम्न 

५८.अनिरूध(मिश्र के सोनितपुर के राजा बाणासुर की बेटी ओखा का हरण कर शादी की थी उस बाणासुर के श्रीक्रष्ण जी ने दोनो हाथ काट डाले थे )
यादवंशथली मे जम्बुवती के पुत्र साम्ब जो खूबसूरत होने से स्त्री के परिधान पहनकर यादवकुमारो ने दुर्वासा ऋषि के पास ले जाकर प्रश्न किया की' इसको पुत्र होगा क्या?',तप भंग होने से ऋषि ने श्राप दिया के इसके जिसका जन्म होगा वो यादवकुल का नाश करेगा फिर कुछ समय बाद यादव अंदर ही अंदर लडकर मर गए श्रीक्रष्ण ने भी भौतिक शरीर त्यागा , उससे पहले श्रीक्रष्ण ने अपने सारथी दारूक और शखा उद्धवजी को बुलाकर कहा था कि उसके स्वधाम जाने के बाद द्वारिका ७दिन मे डूब जाएगी उनके महल के अलावा ,इसलिए सभी अर्जुन के साथ मेरे परिवार को लेकर इन्द्रप्रस्थ जाए और व्रजनाभ का राज्यभिषेक करे जब अर्जुन के साथ बचे यादवो और क्षत्राणियों को अहीरो ने लूटा.
अनिरूध के पाटवी कवंर व्रजनाभ को इन्द्रप्रस्थ लाकर राज्यभिषेक किया , बाणासुर के अवसान के बाद उसका पुत्र सागीर उम्र मे म्रत्यु होने से सोनितपुर की गद्दी व्रजनाभ को मिली वो सपरिवार वहां जाकर राज्य किया विक्रम संवत पूर्व २२७२ को मिश्र मे राजधानी हुई.



                              मिस्र में यदुवंशी शासन के प्रमाण इन प्राचीन पेंटिंग से मिल जाते हैं 

५९. वज्रनाभ
६०.प्रतिबाहू
६१. शुभ से ११३
११३. लक्ष्यराज (इस राजा से विक्रम संवत शुरू हुआ )
११४.प्रताप जी
११५.गर्वगोड (इजिप्त के शोणितपुर और आसपास के देशो मे राज ३२०० सालो तक राज टिका रहा और रोमन ने जीत लिया, इन्होने गद्दी काबुल मे बनाई इजिप्त छोडा)
११६.भानजी
१३४.देवीसिंह
१३५.सुरसेन जी (यवनो ने काबुल जीत लियाइन्होने वापस यवनो से काबुल जीता और सता सिंध मे लाहौरी तक बढाई
१३६.विक्रमसेन (वापस मिश्र जीत गद्दी वहां लगाई)
१३७.राजा देवेन्द्र (मिश्र मे गद्दी , नबी मुहम्मद ने दुनिया मे इस्लाम फैलाया हमले किये इनकी म्रत्यु के बाद सोनितपुर भी जीत लिया...
=======राजा देवेन्द्र के बाद युवराज=========
* अ्सपत-
(मिश्र की गद्दी पर बैठे उनको जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया गया,जिसका कुल वाकर के अनुसार उनके वंशज चागडा चगता कहलाए जिसके वंश मे अकबर हुआ --कुछ इतिहासकार दंतकथा कहते है कि माता हिंगलाज ने ४ को छुपा दिया और एक अस्पत को सौंपा , जिसको मुह(जड) मे छुपाया वो जाजडेजा कहलाए ,चुड मे छुपाया वो चुडासमा कहलाए ,भाथी मे छुपाया वो भाटी कहलाए .)
*गजपत.
(विक्रम संवत ७०८ के वैशाख शुद्ध तेज को शनिवार रोहिणी नक्षत्र मे गजनी शहर बसाया और किला बनवाया और अपने बडे भाई नरपत जी को गद्दी पर बैठाया और खुद हिन्द सौराष्ट्र की तरफ मैत्रा मां के भक्त थे इसलिए यहां आ बसे जिनके वंशज रा कहलाए बाद मे चुडासमा सरवैया और रायजादा कहलाए जूनागढ मे इन्होने ७०० साल राज किया)
*भूपत
(गजनी और खुरासन के प्रदेश के बीच भूपत ने राज्य चलाया,बाद मे पंजाब और सिंध मे राज्य किया ,केहूद रावल ने देवराजगढ बंधवाया, देवराज रावल के बाद मे ६ थी पीढी पर जैसल जी हुए उन्होने जैसलमेर मे राजधानी बनवाई )
१३८.जाम नरपत संवत ६८३ से ७०१ (बादशाह फिरोजखान को हराकर अपने पुरखो की गद्दी जीत अफगान मे खुदकी सत्ता जमाई)
१३९.जाम सामत(समा) संवत(७०१-५८)फिरोज खान के शहजादे ने तुर्किस्तान से मुस्लिम राजाओ का सहारा लेकर गजनी पर जीत ली सामत अय्याश थे तो युद्ध की तैयारी ना पाए और थोडे लास्कर लश्कर के साथ लाहौरी मे गद्दी डाली और सिंध मे राज बढाया जिनके वंशज सिंध मे सामा कहलाए)
१४०.जाम जेहो संवत ७५७ से ८३१ (खलीफा उमर से लडाई हुई और जीते )
१४१. जाम नेतो संवत(८३१ से ८५५) खलीफा वालिफ ने सिंध पर हमला कर अपनी सत्ता जमाई , सब राजाओ ने लगान दी ,जाम नेता ने नही दी.
१४२. जाम नोतीयार संवत(८६६-८७०) इरानी बादशाह ममुरासिद चित्तौड से हारकर वापस आ रहा था उनको लूटा और बंदी बनाया)
१४३. जाम गहगिर (ओधर)संवत ८७०-८८१ (रोमन के साथ व्यापार संबंध बढाये )
१४४. जाम ओथो संवत(८८१-८९८ ( कश्मीर के राजा जयपीड की बेटी की शादी अपने बेटे के साथ हुई थी)
१४५. जाम राहु संवत(८९८-९१८) कन्नौज के राजा माहिरभोज और अनंग पिड कश्मीर के साथ रिश्ते बढाए)
१४६. जाम ओढार संवत(९३१-४२) (काबुल,कंधार, पेशावार मे फैले हिन्दू राजाओ को संघठित कर मुस्लिम को रोका था)
१४८. जाम लखियार भड संवत(९४२-९५६) (नगर सैमे बसाया और वहां राजगद्दी बनायी जो हाल नगर ठठा के नाम से पहचाना जाता है
१४९. जाम लाखो धूरारो संवत(९५७-९८६) अपने दोनो पैर से घोडे को झूलाते थे काफी बलवान राजा थे , पतगढ के राजा वीरम चावडा की बेटी से ४ पुत्र हुए मोड वैराया, संध और ओथो और खैरागढ के राजा सूर्य सिंह उफर श्रवण की बेटी चन्द्रकुवंर से उन्नड , जीहो , फुल और मानाई )
जाम उन्नड सिंध की गदी पर आये और मोड़ अपने मामा की गदी पटगढ़ छीन ली और उनके वंश कच्छ में (जिन्होने केराकोट का अजोड़ किल्ला बन्धवाया)चला जिसके वंश में जाम लाखो फुलाणी हुवे जो आज भी पुरे गुजरात में सुप्रशिद्ध हे जो अटकोट में भीमदेव सोलंकी के सामने युद्ध में काम आये इनको पुत्र न होने से उनका भतीजा जाम पुनवरो गद्दी पर आया जिसने पदरगढ़ का कच्छ कला का विशाल किला बनवाया )
१५०• जाम उन्नड सवंत (९८५ -९९१)

(महान दानेस्वरि ,अभी भी किसी राजा को कवी उपमा देते हे तो 'उन्नड के अवतार' के नाम से देते हे)
१५१.जाम समेत उर्फ़ समो सवंत (९९१-१०४१)
(जाम उन्नड के बाद नगर सैम पर जाम समो ने राज किया बादसाह नसरुदीन को हराया और पंजाब की तरफ खदेड़ा)
१५२.जाम काकू सवंत(१०४१-१०६२)
(धर्म परायण राजा थे रामेश्वर की यात्रा ५ बार की और राज्य को मजबूत किया)
१५३ जाम रायघन सवंत(१०६२-१०९२)
(तुर्की वंस में महमद गिजनी हुवा जिसने हिन्द पर १७ बार हमला किया जिसने सोमनाथ मंदिर तोडा और मंदिर का कुछ हिसा मकामदीना में और कुछ अपनी कचहरी में लगवाया मंदिर तोड़ कर लौटते वख्त
रायघन जी ने जलाशयो में जहर डलवाया जिससे उसका काफी सैन्य मरा)
१५४.जाम प्रताप उर्फ पली सवंत(१०९२-१११२)
(पंजाव के राजा अनंगपल को मदद की थी १०६४ में उनके साथ उज्जैन ग्वालियर कनोज अजमेर के राजा भी मदद् को आये थे)
१५५.जाम संधभड़ सवंत(११२-११८२)
(दो पुत्र हुवे जाम जाड़ो और वेरजि)
१५६ जाम जाड़ो जी सवंत(११८२-१२०३)
(इनके वंसज जाडेजा कहलाये इनको पुत्र न होंने से अपने भतीजे को गदी पर बिठाया बादमे उनको पुत्र हुवा जिसका नाम धयोजि था)
जाम लाखो जाडेजा सवंत (१२०३-१२३१)
(धायोजी का पक्ष ज्यादा मजबूत होने से और झगडा होने से जाम लाखों अपने भाई के साथ कच्छ की और आ बसे और अलग अलग राजाओ को हराकर कचछ में सत्ता जमायी उधर सिंध में धयोजी निर्वंश गुजर गए)
१५८•जाम रायघनजी सावंत(१२३१-१२७१)
(इनके समय में जाडेजा काफी बलवान थे कन्नौज के राजा जयचंद ने संयोगिता का स्वमवर रखा था जिसमे जाम रायघन भी गये थे ये हिंदुस्तान का आखरी राजसूय यज्ञ था इन्होंने पृथ्वीराज को ५ हजार का सैन्य मदद को भेजा था और अपने एक पुत्र होथीजी को भी.इनके ४ पुत्र हुवे जाम गजनजी(बारा की जागीर दी),देदोजी( कंथकोट अंजार वागड़ वगेरा दिया)होथीजी(गजोड़ की जागीर दी)और आठो जी(जिनसे कछ भुज की साख चली और राज इनको दिया)..बड़े को गदी न देने से ये झगडा १२ पीढ़ी तक चला...
१५९ जाम गजनजी सवंत( १२७१-१३०१)
बारा की गद्दी पर राज किया और उनके चाचा के अंदर)
१६०जाम हालोजी सवंत (१३०१-१३३१)
(इनके नाम से कुछ का कुछ प्रदेश हलार जाना जाता ह उनके वंसज जाम रावल ने भी हलार बसाया काठियावाड़ में)
१६१ जाम रायघन-२ से 
१७०.जाम श्री रावल जाम सवंत(१५६१-१६१८)
(यादवकुल नरेश अजेय राजा ने नवानगर(जाम नगर)बसाया और काफी युद्ध लड़े और काठियावाड़ में अपनी सत्ता जमायी मिठोई का महान युद्ध जीत कर काठियावाड़ के सभी राजाओ को हराया,
अश्व के दातार छोटे भाई हरध्रोल जी से ध्रोल राज्य की साखा चली )
१७१.जाम श्री विभाजी सवंत (१६१८-१६२५)
इन्होने महान राजवी जाम सत्रसल उर्फ़ सता जी को गद्दी और दूसरे बेटे भानजी को कलावड दिया और उनसे खरेडी और वीरपुर का राजवंश चला
)
१७२--जाम श्री सत्रासाल उर्फ सत्ता जी सवंत (१६२५-१६६४)
इनके नेत्रत्व में जाडेजा राजपूतों ने सबसे महान युद्ध लड़ें.मजेवाडी,तमाचन,और भूचर मोरी के युधों में जाडेजा राजपूतों ने अपने से कहीं बड़ी मुगल सेनाओं को जमकर टक्कर दी और उन्हें भाग जाने को मजबूर कर दिया...
(भूचर मोरी का युद्ध सौराष्ट्र के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध शरनागत रक्षा के लिए राजपूत धर्म का उदाहरन जामनगर में १४०००मंदिर निर्माण छोटी काशी बनाया.
जाम जैसाजी को गद्दी बाकि से राजकोट गोंदल का का राजवंश चला)


जाडेजा शाषित पूर्व राज्य व ठिकाने=================


1.कच्छ(९२३ गांव) १७ बंदूको की सलामी 
२.मोरवी(१४१ गांव) ११ बंदूको की सलामी तालूका-१
मालिया(२४ गांव ) (मोरवी के द्वारा) सज्जनपुर (७गांव ) मोरवी द्वारा 
जागीर - रोहा ,कोठारिया, लाकडीया, विजांन,,मानजल,तेरा आदि मिलाकर १९ जागीर....
नावानगर (हालार) शासित राज्य
१. नवानगर (७४१ गांव) १५ बंदूको की सलामी 
२. ध्रोल(७१ गांव) ११ बंदूको की सलामी
३. राजकोट ( ६४ गांव) ९ बंदूको की सलामी 
४. गोंदल (१२७ गांव ) ११ बंदूको की सलामी राजकोट द्वारा
५. खरेडी वीरपुर(१३ गांव) नावानगर के द्वारा
६. कोटडा सांगानी(२० गांव) गोंडला के द्वारा 
७. खिरासारा(१२ गांव ) ध्रोल द्वारा
८. जालीया देवानी(१०. गांव ) ध्रोल द्वारा
__________________तालूका_____________________________
१. गढका (७ गांव ) राजकोट द्वारा
२.गवरीदड(५ गांव) राजकोट द्वारा
३.पाल (५गांव ) राजकोट द्वारा
४.शापर(४गांव) राजकोट द्वारा
५.लोधिका सीनियर(५गांव) राजकोट द्वारा
६.लोधिका जूनियर (५गांव) राजकोट द्वारा
७.कोठारिया(१०गांव ) राजकोट द्वारा
८.मेंगनी(८गांव) गोंडला द्वारा
९.भाडवा(४गांव) गोंडला द्वारा
१०.राजपरा(९गाँव)गोंडल द्वारा
तालूकदारी(शेयरहोल्डर)
१. ध्र्रफा(२५गांव) ९ तालूकदार से ज्यादा
२.सतोदड वावडी(६गांव)
३.देरी मूलैला(५गांव)
४.शीशाग चाँदली (४ गांव) आदी
कूछ ३३ गाँव पालनपुर के अन्दर
=========मिठोई,मजे वाड़ी, तमाचन व भूचर मोरी के प्रसिद्द युद्ध=========
सौराष्ट्र के इतिहास के कई सबसे बड़े युद्ध भी जाडेजा वंश के नेतृत्व में लड़े गए।मिठोई.मजेवाड़ी,तमाचन, भूचर मोरी के युद्ध में जाडेजा वीरों ने डट कर विदेशियों,अन्य शक्तिओं का मुकाबला किया। ये युद्ध क्षत्रियो की वीरता व रण कौशल का उत्तम उद्धारण है जो कभी भुलाये नहीं जाने चाहिए। इन दोनों युद्धों के बारे में अलग से विवरण दिया जाएगा....


सन्दर्भ---
1-यदुवंश प्रकाश और सौराष्ट्र का इतिहास
2-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/08/history-of-jadeja-rajputs.html

68 comments:

  1. VRISHNIN AUR KRISHNAUT VANSH AHIRO ME PAYE JATE HAI.JHARKHAND AUR BIHAR KE SARAN JILE ME APKO MILENGE.

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    1. वृष्णि वंश अहीरों मे कई जगह पाया जाता है ओर अत्री गौत्र भी ।

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    2. THE KING OF JADEJA

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  2. Kya ahir jinki vansavli yadukil hai Bharat ke kone kone me virata ke praman milte h apne hi kul ki besahra aurto ka apmaan karege ESA nich kaam karke itihaas me apna muh kaha dikhayege arjun ke saath ja rahi aurto ko kol-bheelo NE luta .agar vaha ahir yoddha hote to yadukul ki aurto ki baat to kya kisi kul ki hoti ahir ye anarth nahi hone dete.udaharan bataye 1962 India China war 120ahir jawan 2000 China soldier.ahir major ko piche hatne ko kaha indian army chief NE unhone apne soldiers SE pucha sabne matrabhumi ke samman bachane ko marna thik samjha.major saitan Singh ka interview Paro.post likhne wale Brahman ho Brahman ahiro ko nicha dikhane par tule h

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    1. 1962 ka yudh unesko ki book me kahdo bhai dekh le sala unesko ki book me visv ki sabse mhantam yudh ke bare me likha h jisme se ek India China ka rezangla yudh h yadvo ka

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    2. Abe bhakolwa 1962 me yaduvanshi real yadav pura nam major saitan singh bhati jo yaduvanshi rajput he...veer ahir sirf yaduvanshi rajputo ko kaha jata he..
      Gwal or nand vanshi charwaho ko nahi..saitan singh bhati major tha or nidar tha asali krohsn vansaj aur us jung me ladne wale sbi yaduvanshi yadav rajput kehlate he kyiki wo rajao ke niji gharane ke vansaj he...
      Tum charwahe vansh ka unse koi rista nahi he...thik he beta to veer ahir yadav hote he asali
      Gawal or nandvansh ke charwahe ahir ko na verr me gina jata he na kshyriya me ...jankari le abi adura gyan he tera..

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    3. बेटा रेजांगला के युद्ध में राजपूत ने कहर ढाया था मेजर शैतान सिंह भाटी

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    4. राईट जनरल मैजर शैतानसिंह भाटी यदुवंशी क्षत्रिय राजपुत

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  3. Kya ahir jinki vansavli yadukil hai Bharat ke kone kone me virata ke praman milte h apne hi kul ki besahra aurto ka apmaan karege ESA nich kaam karke itihaas me apna muh kaha dikhayege arjun ke saath ja rahi aurto ko kol-bheelo NE luta .agar vaha ahir yoddha hote to yadukul ki aurto ki baat to kya kisi kul ki hoti ahir ye anarth nahi hone dete.udaharan bataye 1962 India China war 120ahir jawan 2000 China soldier.ahir major ko piche hatne ko kaha indian army chief NE unhone apne soldiers SE pucha sabne matrabhumi ke samman bachane ko marna thik samjha.major saitan Singh ka interview Paro.post likhne wale Brahman ho Brahman ahiro ko nicha dikhane par tule h

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    1. पुराणों में अहीर यदुवंशी नहीं हैं बल्कि यदुवंश के शत्रु के रूप में वर्णित हैं ।महाभारत मौसल पर्व 7वें औऱ8वें अध्याय के अनुसार अहीरों ने ,श्रीकृष्ण की आज्ञा अनुसार अर्जुन के साथ हस्तिनापुर जा रही यदुवंश की स्त्रियों को मारपीट कर लूट लिया था।

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  4. अहीरों ने यादव स्त्रियों को लूटा लेकिन ये नहीं बताया कि क्यों लूटा ।

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  5. समय होत बलवान भीलन लूटी गोपिका वही अर्जुन वही बाण भील जनजाति ने गोपिकाओं को लूटा था आप के झूठ लिखने से उस से इतिहास नहीं बदल जाएगा और ऐसा झूठा इतिहास लोगों को बता कर आप साबित क्या करना चाहते हैं गोपी का का मतलब ग्वालिन अर्थात यदुवंशीऔरतें व बच्चे जिनको भीलों ने लूटा था जडेजा यदुवंशियों में से निकला मात्र एक वंश है ना कि पूरा यदु के वंशज जाट व गुर्जरों में भी कुछ गोत्र हैं जो खुद को यदु के वंशज बताते हैं लेकिन बिरादरी उनकी जाट या गुर्जर ही है यदुवंश बहुत बड़ा है इसको मात्र एक राजपूत ही गोत्र में समेट कर ना रखें यदु के वंशज आधुनिक यादवके साथ गुर्जर वा जाटों के कुछ गोत्र वा राजपूतों के जडेजा भाटी आदि भी हैं

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    1. कृष्ण जी क्षत्रिय थे तो उनके वंशज भी क्षत्रिय ही होंगे

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    2. महाभारत पढ़ो तब लिखो

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  6. Sach padne.ki himmat nahi tujhme akbar ke virat.

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  7. Gitapress ki milavati mahabharat k musal parv ko padhkar ye sab likha jaa raha hain , usee musal parve ke slok number 46 me daaku ko dsyu kaha jaata hain ,aur slok number 47 me aabhir kaha diya jaata hain, ye to history k saath chedchaad hain, jaha dsyu hona chahiye waha aabhir likhana matlab ek particular caste ka history ko kharab krne jaisa ho gaya, milavat krne waale ne, public sanskrit nahi jaante tha , uska poora fayada uthaya...
    Koi baat nahi aub sab samaj jaayenge.. is fact ko...


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  8. जय यदुवंश अहीर जडेजा भाटी सब चन्द्र वंशी है

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    1. अहीर यदुवंशी नही है, वो सिफॅ लुटेरे है।

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  9. जय यादव जय माधव जडेजा
    जय चन्द्र वंशी समाज

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  10. मेरा गोत्र कृष्णउत है।और मेरी जाति यादव है। मै बिहार से हूँ। यहाँ हम अहीर के नाम से भी जाने जाते है। हमारा गोत्र से साफ जाहिर है कि हम श्री कृष्ण के वंशज है अर्थात् हम यादव(अहीर) ही कृष्ण के असली वंशज है।
    इस तरह के फालतू पोस्ट मत करो कि यादवों को अहीर ने लूटा। क्यूँकि यादव ही अहीर है और अहीर ही यादव है। भला कोई अपने को ही कैसे लूट सकता है।
    "जय हिंद, जय यदुवंश"

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    1. इतिहास सिफॅ सच बोलता है, अहीर सिफॅ लुटेरे है।

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    2. જાડેજા હું યદુવંશી હે ઓર હેગા

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  11. Jay yadva jay madhav gujrat bharvad chandrvanshi yadav

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  12. जडेजा यदुवंशी क्षत्रिय होते हैं न कि राजपूत।
    जय यदुवंश ।।

    मुगल काल में कुछ क्षत्रिय समूह ब्राह्मणों के कारण मुस्लिमो से वैविहिक सम्बन्ध जोड़ कर *"राजपूत" बन गए थें
    * *राजपूत शब्द मुस्लिमो द्वारा क्षत्रियों को दी गयी "गाली" थी न कि सम्मानसूचक शब्द। यह शब्द उनके लिए प्रयोग किया जाता था। जिन क्षत्रियों के वहां से मुस्लिम शासको का वैविहिक सम्बन्ध बनता था। ज्यादा वैवाहिक सम्बन्ध ज्यादातर राजस्थान में बने इसलिए मुगलकाल में उसका नामकरण "राजपुताना" हुआ। उसी समय से शादियों में गाली गाने का प्रचलन शुरू हुआ था जो धीरे धीरे विवाह में गाली गाने का एक प्रचलन बन गया।*
    यद्यपि महान राणा प्रताप के परिवार ने सर्वदा इसका विरोध किया । और जीवन भर अपने को क्षत्रिय बोलते रहें व कभी राजपूत शब्द के पक्षधर नही बने । पर उनकी मुगलों से हार हुई और राजपूतों की जीत हुई। जिसके कारण उनकी एक न चली। तथा ब्राह्मणों ने कुशलता से इस "राजपूत" शब्द का अर्थ शास्त्रों में बहुत सम्मान जनक बनाने का पुरजोर कोशिश किया। क्योकि ये लोग अकबर को महान बनानां चाहते थें। पर इतिहास कहाँ छुप पाता है।

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    1. Q jhuth Bolte ho bhai tum
      Rajput ka MATLAB hota h Raja ka Putra jisko Sanskrit me Rajputra bola jata h
      Or ye word Raja Harsh Vardhan k time ka word h phir mugulo ne kese dediya
      Apna Gyan Apne pass rakho

      Jay Yaduvansh
      Jay Rajputana

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    2. भाई शिव ये क्या है और आपको अपने यादवो के इतिहास जो कि इस साइड पर है में कोई गलत बात लगी तो आप जो ठीक है वो लिखो आप ने क्षत्रियों (राजपूत) का अपना गलत ज्ञान लिखकर पेल दिया आप अपने यादवो के इतिहास को ठीक कराओ पर किसी और के इतिहास को गलत मत लिखो 🙏राधे राधे

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    3. BHai God Krishna yaduvansi Kshatriya tha aur yaduvansi Kshatriya thakur [rajput] hote hai n Ki ahir

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  13. Ahir ka door door tak koi lena dena nahi yaduvansh se mat raho aise brahm me

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  14. Muje to yai samaj nahi aaraha ki sala Rajputo ki history k sath 6ed6ad huva hai or yai ahir apni history ka batate hai are bhai ahir ak gadariya yani gwala hai or Tum kahase aaye ho Nandbaba ko koi santan nahi thi fir kaha se ho tum gokul me rahene wale gwala ho tum or jo Nandbaba the woh kabhi gaiya charane nahi gaye woh sirf ahir yani ki gwala ko bhejte the kyuki Nandbaba khud kshatriya the gwala nahi or unka koi vansh nahi sirf ladki huvi thi woh bhi yogmaya or jo ladka tha woh to Krishna devki Putra tha tum waha kahi nahi aate

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    1. Bagwan shri krishan bhi gaye charne jate the ,aur bagwan shri krishan ne kitni baar apne apko gwala bola hai

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  15. Jadeja..ki..kuldevi ashapuri..aur.chouhano no kuldevi ashapuri ek hi h..ya nam same h..jadeja ashapuri mata..ka koi itihas ho to share kare..

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    1. jadeja aur chauhan rajputs ki kuldevi svaymbhu deshdevi shri ashapura mataji hi hai jo kachchh me mata ka madh suprasidh hai jaha wo birajman hai sath hi sath kachchhme kuchh bhamushali bhi inme bahot shradhdha rakhte hai

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    2. Jadeja ki kuldevi momai matataji he ashapura ma istdevi he

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    3. भाई जाडेजा ओ के ईस्ट देवी आशापुरा मां हे और कुलदेवी मोमाई मां हे 🙏

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    4. जाडेजा की कुलदेवी मोमाई मां हे
      जाडेजा की इष्टदेवी आशापुरा मां हे

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  16. Jadon hi asli Yaduvanshi h Banki sab bane hue h

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  17. Esme bahut Sara jut likha hua he

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  18. Jutha itihas he ye Ahir kabhi kisiko bhi lut nahi sakte

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  19. Ye ahir kyu bolte h hum krishan g ke vanshaj h ...

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  20. पुरुवंशी रवानी राजपूतो का इतिहास (HISTORY OF RAWANI RAJPUT)
    Rajput ithas क्षत्रिय रवानी राजपूत इतिहास

    *चंद्रवंशी (पुरुवंशी) रवानी राजवंश का इतिहास ======*

    *======रवानी बाबूआन (राजपूत) क्षत्रियों का इतिहास========*

    रवानी राजवंश मगध (बिहार) पर शासन करने वाला प्रथम एवं प्राचीनतम राजवंश है। रवानी राजवंश की उत्पत्ति चंद्रवंशी क्षत्रिय वंश से है, व इनकी वंश श्रंखला पुरुकुल की है। रवानी राजपूतो का एक आदर्श वाक्य है *"रमण खानी खंडार"* जिसका अर्थ होता है *" मूल स्थान छोड़ कर रवाना हुए अलग - अलग स्थानों पर खंडित हुए और जहाँ - जहाँ खंडित हुए खड़क (तलवार) के दम पर वहीं राज किया।"* सबसे पहले यह कुल पुरुवंश कहलाया, फिर भरतवंश, फिर कुरुवंश, फिर बृहद्रथवंश कालांतर में इसी वंश को रवानी क्षत्रिय बोला जाता है। परंतु यह वही प्राचीन कुल पुरुकुल है, जो चंद्रवंशी राजा पूरू से चला एवं प्रथम कुल कहलाया। राजा पुरू के भाई यदु से यदुकुल चाला, जिसमें श्रीकृष्ण एवं उनके वंशज जडेजा, जादौन, भाटी, चुंडासमा राजपूत हुए। *रवानी* शब्द के बारे मे कहा जाता है कि जब शूद्र शासक धनानंद मगध के समस्त क्षत्रियों का नाश करने लगा, उसी के अत्याचारों से अलग - अलग जगहों पर चले जाने के कारण इन्होंने अपनी पहचान *"रवानी"* बताई चुकी *"रवानी कभी रुकते नहीं"* इसीलिए इन्होंने ये शब्द अपने लिए उपयुक्त समझा एवं रवानी राजपूत कहलाए।

    *===चंदेल (रवानी) की उत्पत्ति===*

    नंद के अत्याचार से रवाना हुए, कुछ रवानी राजपूत बुंदेलखंड आकर बसे उनमे एक रवानी राजपूत राजा नन्नुक (चंद्रवर्मन) प्रतिहार राजाओं के शासन में सामंत थे। समय बीतने के साथ प्रतिहारो का शासन कमजोर पड़ा और नन्नुक ने अपना स्वतंत्र शासन घोषित किया। एवं 8वीं से 12वी सदी तक एक प्रबल राजवंश कहलाया। आज भी चम्बल घाटी एवं बुंदेलखंड में यह साक्ष्य मौजूद है, कि किस प्रकार रवानी राजपूत राजा नन्नुक मगध से बुंदेलखंड आए और चंदेल रवानी राजपूत नाम से शासन किया जो कालांतर में आते- आते चंदेल राजपूत ही रहा गया।

    कुछ रवानी राजपूत उत्तर प्रदेश में शासन कर के कलहंस राजपूत नाम से प्रसिद्ध हुए।

    यहा क्षत्रिय राजपूत विभिन्न जगहों पर अलग-अलग नामो से जाने जाते हैं। :-
    *बिहार में कुरुवंशी राजपूत /रवानी या रमानी राजपूत, उप्र में ठाकुर राजपूत/कलहंस राजपूत, मप्र में चंदेल राजपूत /पुरुवंशी राजपूत, राजस्थान में रमानी राजपूत /रावत राजपूत, बंगाल में चंद्रवंशी राजपूत कहलाते हैं।*
    कुछ रवानी राजपूत राजस्थान के रवणा राजपूत मे भी मिल गएे।

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  21. *=====कुल गोत्र इत्यादि=====*

    *1. गोत्र - भारद्वाज, चन्द्रायण*
    *2. वंश - चंद्रवंश*
    *3. कुल - रवानी (पुरुवंशी, कुरुवंशी, वृहद्रथवंशी)*
    *4. कुलदेवी - जरा माता (माँ पार्वती)*
    *5. कुलदेवता- महादेव*
    *6. प्रवर - अंगीरस, वशिष्ठ, बृहस्पति*
    *7. शाखा - माध्यान्दनीय*
    *8. सूत्र - कात्यायन (गृह)*
    *9. शिखा - वास*
    *10. पाद- वाम*
    *11. गुरु - बृहस्पति*
    *12. शस्त्र - गदा, तलवार, धनुष*
    *13. वेद - यजुर्वेद*
    *14. उपवेद - धनुर्वेद*
    *15. धर्म - सनातन (हिंदू)*
    *16. वर्ण - क्षत्रिय*
    *17. जाती - क्षत्रिय राजपूत*

    *=====रवानी राजपूतों की वंशावली व संछिप्त इतिहास=====*

    1. राजा चंद्र (त्रेता युग के तीसरे चरण में पृथ्वी पर कोई अच्छे राजा न होने से *इंद्र की सूचना से चंद्र ने अवतार लिया जिससे चंद्रवंश चला।* )

    2. बुद्ध (चंद्र के बृहस्पति कन्या तारा की कोख से जन्म लिया, *बुद्ध ने श्राध्ददेव मुनि की बेटी इला विवाह कर पुरुरवा नामक पराक्रमी पुत्र को जन्म दिया* )

    3. पुरुरवा (इनकी राजधानी प्रयाग थी इनके गुणगान एक बार नारद जी ने इन्द्र सभा में कहे जिसको सुनकर *उर्वशी ने पृथ्वी पर आकर इनसे शादी की,* जिससे आयु, सत्यायु, राय, विजय, वगैरह 7 पुत्र हुए।)

    4. आयु ( *वीर प्रतापी राजा*)

    5. नहुष (इन्होने 100 बार अश्वमेघ यज्ञ किया था। इन्होने स्वर्ग पर विजय पाई। *इनके बारे में कहा जाता है कि इन्ही की डोली उठाने वाले सप्त ऋषियों के वंशज आज कहार कहलाते हैं।* )

    6. ययाति ( *इनकी पत्नी शर्मिष्ठा से 3 पुत्र उत्पन हुए जिसमे से पुरू से आगे वंश चला* । ययाति की दूसरी पत्नी देवयानी के पुत्र यदु से वंश चला जिसमे श्रीकृष्ण हुए।)

    7. पुरु (इन राजा के कुल में *जो राजा हुए वो पुरुवंशी कहलाए* ।)

    8. जनमेजय
    9. प्राचीन्वान
    10. प्रवीर
    11. मन्यु
    12. अरुपद
    13. सुदवत
    14. बहुचाव
    15. संपत्ति
    16. अहोगयाति
    17. रोद्रख
    18. ऋतेयु
    19. हन्तिनार
    20. तंसु
    21. भृत्य
    22. सुरोध
    23. दुष्यंत
    24. भरत ( *इन्ही से इस देश का नाम भारत पड़ा* ।)
    25. वितत
    26. अभिमन्यु
    27. वृहतक्षेत्र
    28. सुहोत्र
    29. हस्ती( *इन्होंने हस्तिनापुर की स्थापना की* )
    30. अजमीढ
    31. ऋक्ष
    32. संवरण
    33. कुरु ( *इन्होने कुरुक्षेत्र की स्थापना की* )
    34. सुधनु
    35. सुहोत्र
    36. च्यवन
    37. कृतक
    38. उपरीचर वसु
    39. बृहद्रथ

    40. जरासंध (पुरुवंश के सबसे शक्तिशाली चक्रवर्ती क्षत्रिय राजपूत सम्राट जिन्होंने पातालपुरी (अमेरिका) के राजा उपाच्य को हरा कर वहाँ तक राज स्थापित किया। एवं क्षत्रिय समाज का लोहा पूरे विश्व में मनवाया। *जरासंध को वायु पुराण, हरिवंश पुराण एवं अन्य कई पुराणों में जरासंधेश्वर महाराज, आदि नमो से देवता एवं अवतारी पुरुष बताया गया है।* परंतु क्षत्रियों के इतिहास को मिटने वाले तत्वों ने इन्हें बदनाम किया। परंतु 18 पुराणों में, महाभारत, भागवत, गीता एवं किसी भी ग्रंथ में इनके बारे मे बुरा नहीं लिखा हुआ है।

    41. सहदेव
    42. सोमापी
    43. श्रुतश्रवा
    44. आयुतायु
    45. निरामित्र
    46. सुनेत्र
    47. वृहत्कर्मा
    48. सेनजीत
    49. ऋतुंजय
    50. विपत्र
    51. मुचि सुचि
    52. क्षमय
    53. सुवत
    54. धर्म
    53. सुश्रवा
    54. दृढ़सेन
    55. सुमित
    56. सुबल
    57. सुनीत
    58. सत्यजीत
    60. विश्वजीत
    61. रिपुंजय
    62. समरंजय

    इनके बाद मगध पर शासन समाप्त होता है। परंतु यह क्षत्रिय राजपूत चंदेल राजपूत के रूप में, तथा कुछ रवानी राजपूत के ही रूप में पुन: वापस आकर मगध के विभिन्न क्षेत्रों में शासन स्थापित किया। आज भी इस वंश के राजा नेपाल, बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश, बुंदेलखंड आदि क्षेत्रों में निवास करते है।

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  22. *===नेपाल में रवानी राजपूत राजा का शासन काल===*

    *काठमांडू के रवानी शासक*
    1. अरी देव सिंह सन् 1201 से 1216 तक
    2. अभय सिंह सन् 1216 से 1235 तक
    3. राणासूर सिंह सन् 1216 मे
    4. जयदेव सिंह सन् 1235 से 1235 तक
    5. जयभीम सिंह सन् 1258 से 1271 तक
    6. जयसिम्हा सिंह सन् 1271 से 1274 तक
    7. अनंत सिंह सन् 1274 से 1310 तक
    8. जयानंद देव सिंह सन् 1310 से 1320 तक
    9. जयरी सिंह सन् 1320 से 1344 तक
    10. जयरुद्र सिंह सन् 1320 से 1326 तक
    11. जयराजा देव सिंह सन् 1347 से 1361 तक
    12. जयअर्जुन सिंह सन् 1361 से 1382 तक
    13. जयस्ठी सिंह सन् 1382 से 1395 तक
    14. जयज्योर्ति सिंह सन् 1395 से 1428 तक
    15. जयकिर्ति सिंह सन् 1395 से 1403 तक
    16. जयधर्म सिंह सन् 1395 से 1408 तक
    17. जययक्ष्या सिंह सन् 1428 से 1482 तक

    *कांतिपुर के रवानी शासक*
    1.रत्न सिंह सन् 1482 से 1520 तक
    2. सुर्य सिंह सन् 1520 से 1530 तक
    3. अभारा सिंह सन् 1530 से 1538 तक
    4. नरेन्द्र सिंह सन् 1538 से 1560 तक
    5. महेंद्र सिंह सन् 1560 से 1574 तक
    6. सदाशिव सिंह सन् 1574 से 1583
    7. शिवा सिम्हा सन् 1583 से 1620
    8. लक्ष्मी नर सिंह सन् 1620 से 1641
    9. प्रताप सिंह सन् 1641 से 1674
    10. चक्रवरतेन्र्द सिंह सन् 1669 में
    11. महीपतेन्र्द सिंह सन् 1670 में
    12. जयनृपेन्र्द सिंह सन् 1674 से 1680 तक
    13. पथीवेन्र्द सिंह सन् 1680 से 1687 तक
    14. भूपलेन्र्द सिंह सन् 1687 से 1700 तक
    15. भास्कर सिंह सन् 1700 से 1714 तक
    16. महेंद्र सिम्हा सन् 1714 से 1722
    17. जगज्जाय सिंह सन् 1722 से 1736 तक
    18. जयप्रकाश सिंह सन् 1736 से 1746 एवं 1750 से 1768
    19. ज्योतिप्रकाश सिंह सन् 1746 से 1750

    *ललितपुर के रवानी शासक*
    1. पुरंदर नरसिंह सन् 1580 से 1600 तक
    2. हरिहर सिम्हा सन् 1600 से 1609
    3. सिद्ध नरसिम्हा सन् 1620 से 1661
    4. श्रीनिवास सिंह सन् 1661 से 1685
    5. योग नरेंद्र सिंह सन् 1685 से 1705
    6. लोकप्रकाश सिंह सन् 1705 से 1706 तक
    7. इंद्र जाल पुरंदर सिंह सन् 1706 से 1709 तक
    8. वीरा नरसिम्हा सिंह सन् 1709 में
    9. वीरा महेंद्र सिंह सन् 1709 से 1715 तक
    10. रिद्धि नरसिम्हा सिंह सन् 1715 से 1717
    11. महेंद्र नरसिहं सन् 1717 से 1722 तक
    12. योग प्रकाश सिंह सन् 1722 से 1729 तक
    13. विष्णु सिंह सन् 1729 से 1745 तक
    14. राज्य प्रकाश सिंह सन् 1745 से 1758 तक
    15. विश्वजीत सिंह सन् 1758 से 1760 तक
    16. जय प्रकाश सिंह सन् 1760 से 1761 एवं 1763 से 1764 तक
    17. मर्दनशाह सिंह सन् 1764 से 1765 तक

    *भक्तापुर के रवानी शासक*

    1. राया सिंह सन् 1482 से 1519 तक
    2. प्राण सिंह सन् 1519 से 1547 तक
    3. विशवा सिंह सन् 1547 से 1560 तक
    4. त्रिलोक सिंह सन् 1560 से 1613 तक
    5. जगज्योति सिंह सन् 1613 से 1637 तक
    6. नरेशा सिंह सन् 1637 से 1644 तक
    7. जगत प्रकाश सिंह सन् 1644 से 1673 तक
    8. जीतमित्रा सिंह सन् 1673 से 1696
    9. भूपतिन्र्द सिंह सन् 1696 से 1722 तक
    10. रणजीत सिंह सन् 1722 से 1769 तक

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  23. *===बंगाल में रवानी राजपूत राजाओं का शासन काल===*

    1. रघुनाथ सिंह सन् 694, 16 वर्ष
    2. जय सिंह सन् 710, 10 वर्ष
    3. बेनू सिंह सन् 720, 13 वर्ष
    4. कीनू सिंह सन् 733, 9 वर्ष
    5. इंद्र सिंह सन् 742 तक 15 वर्ष
    6. कानू सिंह सन् 757, 07 वर्ष
    7. झाऊ सिंह सन् 764, 11 वर्ष
    8. शूर सिंह सन् 775, 20 वर्ष
    9. कनक सिंह सन् 795, 12 वर्ष
    10. कंदरपा सिंह सन् 807, 21 वर्ष
    11. सनातन सिंह सन् 828, 13 वर्ष
    12. खरगा सिंह सन् 841, 21 वर्ष
    13. दुर्जन सिंह सन् 862, 44 वर्ष
    14. यादव सिंह सन् 906, 13 वर्ष
    15. जगन्नाथ सिंह सन् 919, 12 वर्ष
    16. बिरात सिंह सन् 931, 15 वर्ष
    17. महादेव सिंह सन् 946, 31 वर्ष
    18. दुर्गा दास सिंह सन् 977, 17 वर्ष
    19. जगत सिंह सन् 994, 13 वर्ष
    20. अनंत सिंह सन् 1007, 08 वर्ष
    21. रूप सिंह सन् 1015, 14 वर्ष
    22. सुन्दर सिंह सन् 1029, 24 वर्ष
    23. कुमुद सिंह सन् 1053, 21 वर्ष
    24. कृष्णा सिंह सन् 1074, 10 वर्ष
    25. रूप द्वितीय (झाप) सन् 1084, 13 वर्ष
    26. प्रकाश सिंह सन् 1097, 5 वर्ष
    27. प्रताप सिंह सन् 1102, 11 वर्ष
    28. सिंदूर सिंह सन् 1113, 16 वर्ष
    29. सूखोमोय सिंह सन् 1129, 13 वर्ष
    30. बनामाली सिंह सन् 1142, 14 वर्ष
    31. यदु सिंह सन् 1156, 11 वर्ष
    32. जीवन सिंह सन् 1167, 13 वर्ष
    33. बराम क्षेत्र सिंह सन् 1185, 24 वर्ष
    34. गोविंद सिंह सन् 1209, 31 वर्ष
    35. भीम सिंह सन् 1240, 23 वर्ष
    36. कतर (खट्टर) सिंह सन् 1263, 32 वर्ष
    37. पृथ्वी सिंह सन् 1295, 24 वर्ष
    38. तप सिंह सन् 1319, 15 वर्ष
    39. दीनबंधु सिंह सन् 1334, 11 वर्ष
    40. किनू (द्वितीय) सन् 1345, 13 वर्ष
    41. शूर सिंह सन् 1358, 12 वर्ष
    42. शिव सिंह सन् 1370, 37 वर्ष
    43. मदन सिंह सन् 1407, 13 वर्ष
    44. दुर्जन सिंह (द्वितीय) सन् 1420, 17 वर्ष
    45. उदय सिंह सन् 1437, 23 वर्ष
    46. चंद्र सिंह सन् 1460, 41 वर्ष
    47. वीर सिंह सन् 1501, 33 वर्ष
    48. धारी सिंह सन् 1554, 11 वर्ष
    49. हमबिर सिंह देव सिंह सन् 1565, 55 वर्ष
    50. धारी हमबीर सिंह देव सन् 1620, 06 वर्ष
    51. रघुनाथ सिंह देव सन् 1626, 30 वर्ष
    52. बीर सिंह देव सन् 1656, 26 वर्ष
    53. दुर्जन सिंह देव सन् 1682, 20 वर्ष
    54. रघुनाथ सिंह देव (द्वितीय) सन् 1702, 10 वर्ष
    55. गोपाल सिंह देव सन् 1712, 36 वर्ष
    56. चेतन्य सिंह देव (द्वितीय) सन् 1748, 53 वर्ष
    57. माधव सिंह देव सन् 1801, 08 वर्ष
    58. गोपाल सिंह देव (द्वितीय) सन् 1809, 67 वर्ष
    59. रामकृष्ण सिंह देव सन् 1876, 09 वर्ष
    ध्वहजा मोनी देवी सन् 1885, 04 वर्ष
    60. नीलमणि सिंह देव सन् 1889, 14 वर्ष
    कोई राजा नहीं सन् 1903, 14 वर्ष
    61. कलिपाड़़ा सिंह ठाकुर सन् 1930 - 83, 53 वर्ष

    रवानीयों ने चंदेल राजपूत के रूप में एक प्रबल राज स्थापित किया। एवं अन्य कई राजाओ ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि क्षेत्रों पर शासन किया।

    *गढ़वाल के शक्तिशाली 52 गढ़ो में एक रवानी राजपूतो का गढ़ रवाण गढ़ भी है।*

    Rawani (puruvanshi, kuruvanshi, Bridhratvanshi) rajput ke bare me bhi likhiye please

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  24. Ahiro ko yadav vansh me gusna he inko yaduvanshi jabardasti banna he salo ko gita or anu pustko me inka koyi ullekh nahi he salo ka

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    1. Tujhko yaduvanshi yadav kis book me bola gya sale bta

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  25. Vah hukam bahot hi shandar itihas prastut kiya hai. Abhi gujrat me ahir aur jadeja ke bich me shree Krishna ke vanshaj ko lekar vivad chal raha hai. Ahiro ke pas koi vanshavali nahi hai. Jadeja rajputo ke pas raja chandra se lekar vartman pidhi tak ki vanshavali hai barot-bhat dwara likhi gayi. Phirbhi ye log man ne ko taiyar nahi ke jadeja-bhati-chudasama-jadoun-sarvaiya hi krishna ke vanshaj hai. Ahiro ke pas pauranik ya etihasik tathya ya sabut nahi hai. Bas ek hi tark dete hai ki log unhe barso se yadav hi mante hai jab ki unhone yadav lagana 1910 ke baad suru kiya.

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  26. My friend, this page needs a lot of corrections especially the history after Rata Raidhanji

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  27. Jam odhaji jinhone maa hothal padmini se vivah kiya tha aur unke yahan do putra hue jinme se ek ka naam jesalji aur dusre ka naam jakhraji tha done ne sirf 8 saal ki umar me ser ko mar dala tha.

    Jam darbaro (kshatriyo) ki yeh rajdhani us waqt kera kot ya kiyor kakdana k roop me prasiddh thi jiski sthapna jam lakha Fulani k dwara ki gayi thi.

    Jam darbaro ki yeh rajdhani k naam per se hi baad mein (KER / KIYOR / JADEJA ) Surname ubhar k aayi jo aaj bhi saurastra k Jamanagar district me dekhne ko milti hai we sabhi (KER / KIYOR / JADEJA) jam odhaji k vanshaj hai.

    Ye sabhi (KER / KIYOR / JADEJA) darbar jam saheb jadeja k sath Jamanagar me aaye the or baad mein inhone eitihasik bhuchar mori k yuddh me bhi bhag lia tha aur inki prakrm aur soorveerta se khus ho k maharaj jam saheb jadeja ne inko garas me jamnagar k paas kuch gaav diye the jahan jo aaj bhi mojjud hai.




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  28. Jai yadav jai madhav 7vi Satabdi se pahle rajput the hi nahi 36 jati jod kr ye banaye gaye hai

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  29. Muje hala jadeja meramanji ka itihas chaiye jo bhdreswar kutch ke the

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  30. Mahabharat me spasht Likha hay, vasuew as well as junto Yadav the.yadaw aur ahir me anter Nahi hay.

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  31. Bhai court me Jamin ka mamla tha naki jati ka. Usme kahi nahi likha hai jadeja Krishna ke asali vanshaj hai likha hai khud pahale dekho . Kuchh bhi galat jankari mat failao.

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  32. Are bhaee ?jadeja 'bhati' koyi Raja itna prAtapi Raja nahin hua Jo bhagvan krisan ke prtap ko dhumilkartheya yadu jee kee khyati se aage nikal gya ho arthat- gujrat; ke jadeja. Rajsthan- ke bhatee dakchhin ke hoysal; v gwaly hariyana ke Rav;v uu p ke yadav( aheer) vihar ke jadav Bangal ke ghosh goee kuchha likhe kya farkh padta hai Yah sabhi yaduvansh kee hi sakha hai-? Aap apneko sresth manker dusaron ka apman na karo kya? Aap jo jante hain vahi pooran Gyan hai. Aap snehi--R V Singh

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