Sunday, August 23, 2015

पुरु वंश और महान राजपूत यौद्धा पोरस की विश्वविजयी सिकन्दर पर विजय( PURU-PORAS, THE GREAT RAJPUT WARRIOR WHO DEFEATED ALEXANDER THE GREAT)



मित्रों आज हम आपको प्राचीन चंद्रवंशी क्षत्रिय "पुरु वंश,इसकी शाखा हरिद्वार क्षत्रिय" के बारे में जानकारी देंगे और पुरुवंशी राजपूत राजा पोरस द्वारा विश्वविजेता सिकंदर को दी गई करारी पराजय के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे..........
===========================

पुरु वंश का परिचय और गोत्र प्रवर----
चंद्रवंशी महाराजा ययाति के पुत्र पुरु के वंशज पुरु,पौर,पौरववंशी वंशी क्षत्रिय कहलाते हैं,इस वंश के महाराजा मतिनार सूर्यवंशी सम्राट मान्धाता के नाना थे,महाराजा पुरु से एक शाखा कुरु वंश की चली,इनसे चन्द्रवंश की अन्य शाखाएँ भी चली,एक शाखा बाद तक पुरु या पौरव वंशी कहलाती रही...
गोत्र--भारद्वाज
प्रवर तीन--भारद्वाज,ब्रह्स्पतय,अंगिरस
वेद--यजुर्वेद
शाखा--वाजसनेयी
नदी--महेंद्र तनया(सतलुज)
वृक्ष--वट
छत्र--मणिक मुक्त स्वर्ण छत्र
ध्वजा--लाल झंडे पर चंद्रमा का चिन्ह
शस्त्र--खडग
परम्परा--विजयादशमी को खडग पूजन होता है
शाखाएँ--हरिद्वार क्षत्रिय राजपूत,कटोच राजपूत,पुरी(खत्री)
गद्दी एवं राज्य--प्रतिष्ठानपुर,पंजाब आदि 

वर्तमान निवास--पाकिस्तान,पंजाब,आजमगढ़ एवं बहुत कम संख्या में बुलंदशहर,मेरठ में भी मिलते हैं,पंजाब और यूपी में कहीं कहीं मिलने वाले भारद्वाज राजपूत भी संभवत: पुरु अथवा पौरववंशी राजपूत ही हैं.

प्रसिद्ध पुरु अथवा पौरवंशी--विश्वविजेता यवन सिकन्दर को हराने वाले वीर पुरुवंशी राजा परमानन्द अथवा पुरुषोत्तम
पुरुवंश की शाखा हरिद्वार क्षत्रिय---------
गोत्र--भार्गव,प्रवर तीन--भार्गव,निलोहित,रोहित
यह पुरु वंश की उपशाखा है,पृथ्वीराज चौहान के समय इस वंश के आदि पुरुष राव हंसराम पंजाब से अपने परिवार के साथ हरिद्वार आकर बसे थे,उस समय यहाँ राजा चन्द्रपुंडीर पृथ्वीराज चौहान के सामंत के रूप में शासन कर रहे थे,इन्होने राव हंसराम को जागीर प्रदान की और हरिद्वार में पुरु वंश की शाखा का विस्तार होने लगा,बाद में इस इलाके में तुर्कों का दबाव होने के कारण पुरुवंशी क्षत्रिय यहाँ से पलायन कर पूर्वी क्षेत्र में चले गए और आजकल यूपी के आजमगढ़ के आसपास मिलते हैं,हरिद्वार से आने के कारण इन्हें हरिद्वार क्षत्रिय राजपूत वंश कहा जाने लगा.....
पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में कई मुस्लिम राजपूत वंश जो खुद को चन्द्रवंशी बताते हैं उन वंशो का अस्तित्व भारत के हिन्दू चंद्रवंशी राजपूतो में नहीं मिलता है,न ही अलग से 36 वंशो की किसी भी सूची में इनका नाम मिलता है.चूंकि सिकन्दर के हमले के समय पुरुवंश का शासन पंजाब और भारत के सीमावर्ती क्षेत्र में था इसलिए हो सकता है ये पुरुवंशी क्षत्रियों के ही वंशज हों.....
====================================
यूनानी विश्वविजेता सिकन्दर(Alexander) का भारत पर आक्रमण(327 ईसा पूर्व) एवं पुरुवंशी राजा पोरस द्वारा उसकी पराजय----------
सिकन्दर(Alexander) का परिचय--------
प्राचीन काल में भारतीय आर्यों की एक शाखा एशिया पार कर आज के यूरोप,यूनान,रोम में बस गई थी,पुराणों और अन्य भारतीय ग्रंथो में यवनों का परिचय व्रात्य क्षत्रियों के रूप में होता है जिससे यवन प्राचीन आर्यों की शाखा सिद्ध होती है.
सिकन्दर(Alexander) यूनान के उत्तर में स्थित मकदूनिया(mecedoniya) के बादशाह फिलिप के पुत्र थे.मात्र बीस वर्ष की आयु में सिकन्दर बादशाह बन गए,प्राचीन काल से ईरान और यूनान के बीच शत्रुता चली आ रही थी,सिकन्दर(Alexander) ने विश्वविजेता बनने का प्रण लिया,और बड़ी सेना के साथ अपनी विजय यात्रा प्रारम्भ कर दी,
उस समय यूरोप में यूनान,रोम को छोडकर शेष जगह सभ्यता न के बराबर थी,और ज्ञात प्राचीन सभ्यताएँ एशिया महाद्वीप,मिस्र, में ही स्थित थी,इसलिए सिकन्दर(Alexander) ने सेना लेकर पूर्व का रूख किया,थीव्स,मिस्र इराक,मध्य एशिया को जीतता हुआ ईरान पहुंचा जहाँ क्षर्याश का उतराधिकारी दारा शासन कर रहा था,उसने दारा को हराकर उसके महल को आग लगा दी,और इस प्रकार क्षर्याश द्वारा एथेंस को जलाए जाने का बदला लिया.
इसके बाद वो आगे बढकर हिरात,काबुल,समरकंद,को जीतता हुआ सिंध नदी की उत्तरी घाटी तक पहुँच गया.
जब सिकन्दर ने सिन्धु नदी पार किया तो भारत में उत्तरी क्षेत्र में तीन राज्य थे-झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी..पौरस का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था.तीसरा राज्य अभिसार था जो कश्मीरी क्षेत्र में था.

पुरु अथवा पौरस का परिचय-----
यूनान के इतिहास लेखक सिकन्दर से युद्ध करने वाले भारतीय राजा का नाम अपनी भाषा पोरस अथवा पुरु बताते हैं,वस्तुत: यह उसका नाम नहीं बल्कि पुरुवंश का परिचायक है,कटोच इतिहास में इस वीर राजा का नाम परमानन्द कटोच बताया जाता है,तथा खत्री जाति के जानकार इसका नाम पुरुषोत्तम खुखेरीयान बताते हैं,तथा इनके वंशज खत्रियो में पुरी कहलाते बताए जाते हैं,

हम बता ही चुके हैं कि कटोच राजपूत भी अत्यंत प्राचीन चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं,संभवत कटोच भी चंद्रवंशी पुरु के वंशज हो सकते हैं,उस समय सम्भवत: खत्री जाति क्षत्रियों से प्रथक नहीं हुई थी,तो संभव है कि पुरु वंशी राजा परमानन्द अथवा पुरुषोत्तम आज के पुरुवंशी (पौरववंशी) राजपूतो,कटोच राजपूत और पुरी खत्रीयों के साझे पूर्वज हों......
पुरु वंशी राजा पोरस(यूनानी इतिहास लेखको द्वारा दिया गया नाम) का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था.....

पोरस और सिकन्दर का युद्ध--------

जब सिकन्दर ने सिन्धु नदी पार किया तो भारत में उत्तरी क्षेत्र में तीन राज्य थे-झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी..पौरस का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था.तीसरा राज्य अभिसार था जो कश्मीरी क्षेत्र में था.

अम्भि(यह भी संभवत राजा का नाम न होकर उसके वंश का नाम था जिसको आज के आभीर या अहीर जाति माना जा सकता है) का पौरस से पुराना बैर था इसलिए सिकन्दर के आगमण से अम्भि खुश हो गया और अपनी शत्रुता निकालने का उपयुक्त अवसर समझा..अभिसार के लोग तटस्थ रह गए..इस तरह पौरस ने अकेले ही सिकन्दर तथा अम्भि की मिली-जुली सेना का सामना किया..

"प्लूटार्च" के अनुसार सिकन्दर की बीस हजार पैदल सैनिक तथा पन्द्रह हजार अश्व सैनिक पौरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से बहुत ही अधिक थी..सिकन्दर की सहायता फारसी सैनिकों ने भी की थी..कहा जाता है कि इस युद्ध के शुरु होते ही पौरस ने महाविनाश का आदेश दे दिया उसके बाद पौरस के सैनिकों ने तथा हाथियों ने जो विनाश मचाना शुरु किया कि सिकन्दर तथा उसके सैनिकों के सर पर चढ़े विश्वविजेता के भूत को उतार कर रख दिया..

-पोरस के हाथियों द्वारा यूनानी सैनिकों में उत्पन्न आतंक का वर्णन कर्टियस ने इस तरह से किया है-"इनकी तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल घोड़ों को भयातुर कर देती थी जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे अपितु घुड़सवारों के हृदय भी दहला देती थी..इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके.उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से यूनानी सैनिक को पकड़ लेता था,उसको अपने उपर वायु-मण्डल में हिलाता था और उस सैनिक को अपने आरोही के हाथों सौंप देता था जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था.इन पशुओं ने घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था".....
इसी तरह का वर्णन "डियोडरस" ने भी किया है --विशाल हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए..उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे सैनिकों की हड्डियाँ-पसलियाँ चूर-चूर कर दी.हाथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे..अपने विकराल गज-दन्तों से सैनिकों को गोद-गोद कर मार डालते थे...
अब विचार करिए कि डियोडरस का ये कहना कि उन हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ये क्या सिद्ध करता है..फिर "कर्टियस" का ये कहना कि इन पशुओं ने आतंक मचा दिया था ये क्या सिद्ध करता है...?

एक और विद्वान ई.ए. डब्ल्यू. बैज का वर्णन देखिए----उनके अनुसार "झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था.सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा.अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की -"श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है..मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय.मैं इनका अपराधी हूँ,....और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया"".----
ये बातें किसी भारतीय द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है..

इसके बाद सिकन्दर को पोरस ने उत्तर मार्ग से जाने की अनुमति नहीं दी.विवश होकर सिकन्दर को उस खूँखार जन-जाति के कबीले वाले रास्ते से जाना पड़ा,इस क्षेत्र में कठ क्षत्रिय जनजाति(संभवत आज के काठी क्षत्रिय),मालव,राष्ट्रिक(राठौड़),कम्बोज,दहियक(दहिया क्षत्रिय राजपूत),आदि ने भी सिकन्दर का डटकर सामना किया.
कठ क्षत्रियों का प्राचीन नगर संगल नष्ट हो गया लेकिन उन्होंने विश्वविजयी सिकन्दर को जमकर मार लगाईं,जिससे लड़ते लड़ते सिकन्दर इतना घायल हो गया कि अंत में उसे प्राण ही त्यागने पड़े.

इस विषय पर "प्लूटार्च" ने लिखा है कि मलावी और कठ नामक भारतीय जनजाति बहुत खूँखार थी..कठ यौद्धा लूनवीर बसिया के हाथों सिकन्दर के टुकड़े-टुकड़े होने वाले थे लेकिन तब तक प्यूसेस्तस और लिम्नेयस आगे आ गए.इसमें से एक तो मार ही डाला गया और दूसरा गम्भीर रुप से घायल हो गया...तब तक सिकन्दर के अंगरक्षक उसे सुरक्षित स्थान पर लेते गए..

स्पष्ट है कि पोरस के साथ युद्ध में तो इनलोगों का मनोबल टूट ही चुका था रहा सहा कसर इन कठ,मालव जैसी क्षत्रिय जातियों ने पूरी कर दी थी..अब इनलोगों के अंदर ये तो मनोबल नहीं ही बचा था कि किसी से युद्ध करे पर इतना भी मनोबल शेष ना रह गया था कि ये समुद्र मार्ग से लौटें...क्योंकि स्थल मार्ग के खतरे को देखते हुए सिकन्दर ने समुद्र मार्ग से जाने का सोचा और उसके अनुसंधान कार्य के लिए एक सैनिक टुकड़ी भेज भी दी पर उन लोगों में इतना भी उत्साह शेष ना रह गया था फलतः वे बलुचिस्तान के रास्ते ही वापस लौटे....
सिकन्दर जाते हुए सिल्युक्स सहित कुछ यूनानी गवर्नर यहाँ नियुक्त कर गया,किन्तु जल्दी ही एक ब्राह्मण चाणक्य के मार्गदर्शन में भारतवर्ष में एक महान क्षत्रिय राजपूत सम्राट का उदय हुआ वो थे 
"चन्द्रगुप्त मौर्य",जिन्होंने इन यूनानियों को जल्द ही परास्त कर भगा दिया....

इतिहासकारों द्वारा वीर पोरस और काठी क्षत्रियों के साथ किया गया अन्याय-------
अफसोस की ही बात है कि इस तरह के वर्णन होते हुए भी लोग यह दावा करते हैं कि सिकन्दर ने पौरस को पकड़ लिया गया और उसके सेना को शस्त्र त्याग करने पड़े...
जितना बड़ा अन्याय और धोखा इतिहासकारों ने महान पौरस के साथ किया है उतना बड़ा अन्याय इतिहास में शायद ही किसी के साथ हुआ होगा।एक महान नीतिज्ञ,दूरदर्शी,शक्तिशाली वीर विजयी राजा को निर्बल और पराजित राजा बना दिया गया....
यही नहीं सिकन्दर को धुल चटाने वाले महान क्षत्रिय यौद्धा काठी जाति का नाम इतिहास से मिटा ही दिया गया,और आज यह काठी क्षत्रिय सौराष्ट्र में निवास करते हैं क्योंकि सिकन्दर से युद्ध करते हुए इन्हें भी बहुत नुक्सान हुआ था और इन्हें अपना मूल स्थान छोडकर सौराष्ट्र कच्छ की और आना पड़ा,

चूँकि सिकन्दर पूरे यूनान,मिस्र,ईरान,ईराक,बैक्ट्रिया आदि को जीतते हुए आ रहा था इसलिए भारत में उसके पराजय और अपमान को यूनानी इतिहासकार सह नहीं सके और अपने आपको दिलासा देने के लिए अपनी एक मन-गढंत कहानी बनाकर उस इतिहास को लिख दिए जो वो लिखना चाह रहे थे.... भारतीय इतिहासकारों का दुर्भाग्य देखिये कि उन्होंने भी बिना सोचे-समझे उसी मनगडंथ यूनानी इतिहास को नकल कर लिख दिया...

कुछ हिम्मत ग्रीक के फिल्म-निर्माता ओलिवर स्टोन ने दिखाई है जो उन्होंने कुछ हद तक सिकन्दर की हार को स्वीकार किया है..फिल्म में दिखाया गया है कि एक तीर सिकन्दर का सीना भेद देती है और इससे पहले कि वो शत्रु के हत्थे चढ़ता उससे पहले उसके सहयोगी उसे ले भागते हैं.इस फिल्म में ये भी कहा गया है कि ये उसके जीवन की सबसे भयानक त्रासदी थी और भारतीयों ने उसे तथा उसकी सेना को पीछे लौटने के लिए विवश कर दिया..चूँकि उस फिल्म का नायक सिकन्दर है इसलिए उसकी इतनी सी भी हार दिखाई गई है तो ये बहुत है,नहीं तो इससे ज्यादा सच दिखाने पर लोग उस फिल्म को ही पसन्द नहीं करते..वैसे कोई भी फिल्मकार अपने नायक की हार को नहीं दिखाता है.......

पोरस की महानता का एक और उदाहरण देखिए--जब सिकन्दर ने पोरस के राज्य पर आक्रमण किया तो पोरस ने सिकन्दर को अकेले-अकेले यानि द्वन्द युद्ध का निमंत्रण भेजा ताकि अनावश्यक नरसंहार ना हो और द्वन्द युद्ध के जरिए ही निर्णय हो जाय पर इस वीरतापूर्ण निमंत्रण को सिकन्दर ने स्वीकार नहीं किया... 

अब देखिए कि भारतीय बच्चे क्या पढ़ते हैं इतिहास में-------
"सिकन्दर ने पौरस को बंदी बना लिया था..उसके बाद जब सिकन्दर ने उससे पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाय तो पौरस ने कहा कि उसके साथ वही किया जाय जो एक राजा के साथ किया जाता है अर्थात मृत्यु-दण्ड..सिकन्दर इस बात से इतना अधिक प्रभावित हो गया कि उसने वो कार्य कर दिया जो अपने जीवन भर में उसने कभी नहीं किए थे..उसने अपने जीवन के एक मात्र ध्येय,अपना सबसे बड़ा सपना विश्व-विजेता बनने का सपना तोड़ दिया और पौरस को पुरस्कार-स्वरुप अपने जीते हुए कुछ राज्य तथा धन-सम्पत्ति प्रदान किए..तथा वापस लौटने का निश्चय किया और लौटने के क्रम में ही उसकी मृत्यु हो गई..!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ये कितना बड़ा तमाचा है उन भारतीय इतिहासकारों के मुँह पर कि खुद विदेशी ही ऐसी फिल्म बनाकर सिकंदर की हार को स्वीकार कर रहे रहे हैं और हम अपने ही वीरों का इसतरह अपमान कर रहे हैं.!!
अब निर्णय करिए कि पोरस तथा सिकन्दर में विश्व-विजेता कौन था..? दोनों में वीर कौन था..?दोनों में महान कौन था..?
भारतीय इतिहासकारों ने तो पोरस को इतिहास में स्थान देने योग्य समझा ही नहीं है.इतिहास में एक-दो जगह इनका नाम आ भी गया तो बस सिकन्दर के सामने बंदी बनाए गए एक निर्बल निरीह राजा के रुप में.....
जो राष्ट्र वीरों का इस तरह अपमान करेगा क्या वो राष्ट्र ज्यादा दिन तक टिक पाएगा????????
आप सबसे जवाब की अपेक्षा है.....
====================================
सन्दर्भ सूची-----
1-ईश्वर सिंह मुंढाड कृत राजपूत वंशावली पृष्ठ संख्या 132
2-पंडित जवाहर लाल नेहरु कृत विश्व इतिहास की झलक पृष्ठ संख्या 37-40
3-श्री सुरेन्द्र भाटी जी
4-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/08/puru-poras-great-rajput-warrior-who.html

87 comments:

  1. राजा पोरस जाट थे पोरू पौरव जाट गौत्र के।और आज भी सिंध पंजाब हरियाणा में जाट है। उनके नीचे 600 छोटे छोटे राज्य थे जिनके राजा जाट ही थे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. raja porus chandrvanshi raja the vo rajput the

      Delete
    2. भाई भारत के जितने भी लोग है वे तीनों वंस चंद्रवंस,सूर्य वंस ओर ऋषि वंस के ही संताने है

      Delete
    3. चौथी शताब्दी ई० पु० सिकंदर और चंद्रवंशी पुरु के बीच हुआ है, ईस समय जाट जाति पैदा ही नहीं रही .

      Delete
    4. जाट नहीं थे पोरस महान

      Delete
    5. पौरुष की जाति के बारे में कोई भी निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। परंतु वे निश्चित रूप से हमारी तरह वीर, स्वाभिमानी हिन्दू थे। उन पर हम सभी को गर्व है।
      हम सब हिन्दू हैं।

      Delete
    6. 4 Satabdi me Jaat kaha se aye
      Ithihas vanshawali se pada jata h na ki social media wali University se

      Delete
    7. Kuch logon ne ye dhanda bana liya hai ki nahi jitne bhi shatriya raja the wo hamari hi jaati ke the🤔🤔
      Pehle har gyani brahman.
      Hathiyar uthane wala shatriya.
      Seva karne wala shudra.
      Or vyapaar karne bala vaisha.
      Hota tha simple.
      Jo vyakti jo karya karta use usi varg se jod dete the.

      Delete
  2. राजा पोरस शुद्धरूप से एक जाट राजा थे ।।
    इतिहास पढ़ो भाई जी रिक्वेस्ट हैं आप से

    ReplyDelete
    Replies
    1. तुम मूर्ख हो जाट जाट करने लग जाते हो इतिहास को अनदेखा करते हो।

      Delete
    2. Bhai wo thakur the me bhi thakur hu

      Delete
    3. Bhai jaat kab paida hue the zara ye batana

      Delete
    4. राजा पोरस जाट थे पुरु वंशीय जिनके पुरु वंश के गिल रंधावा कई गोत्र जाट ही है और पोरस के अधीन 600 जाट गणराज्यों का ऊलेख मिलता है और पोरस जिस क्षेत्र का शासक था वह हमेशा से ही जाट बाहुल्य क्षेत्र था और है।

      Delete
    5. आजादी से पहले जाट जाति का विस्तार कैसे हुआ, जिनको जात निकाला दिया जाता था उनकी संख्या बढ़ती चली गयी तो उनको आजादी के बाद जाट जाति मे शामिल किया गया

      Delete
    6. बेटा जात शक हुडो का मिक्स ब्रीड है सिकंदर की तरह जाटों को राजपूत राजाओं ने गाजर मूली की तरह काटा था समझें

      Delete
    7. 340ई.पू. में जाट नामक कोई प्रजाति पैदा नहीं हुई थी । जाट राजपूत जाती से निकले हुए जमींदार थे जिनका 700ई.के आसपास से इतिहास शुरू हुआ है भारत के उतरी-पूर्वी इलाकों में इस किसान प्रजाति की बाहुल्यता है

      Delete
    8. Bhai Jaat history mein kisan ko kaha jata ye koi jaati nahi hai,

      Delete
    9. Hahaha jat word kaha tha history mey kuch pado yeh to bahut bad mey aya yeh to angrejo ke utpati hey jant sey bana hey kam budhi

      Delete
  3. Bhai jaat nai the vo puru vansh ke the jaat ek sangathan he jo baad me bna he usme kuch yadav bhi he aur bhut sari chandravanshi cast he jo un logo ne milke ek sanghatan banaya

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bilkul sahi kaha bhai Jaat Ahir or Rajput or bhi logo se Bana hai Jaat shudra hai ye har itihas Ko apna banate hai

      Delete
    2. Inhe samjhhao ki bhai jaat koi caste hi nhi hai wo ek group hai samjhe padh lo babbua

      Delete
    3. Bhai sab log mahan ho koi bta raha ki jaat rajput se nikle h
      Koi bta raha 1500 mai jaat aaye
      Toh ab kuch fact batata hu.
      Mera gotra sindhu h yeh gotra jaydrath ka tha kisi rajpoot se nhi nikla.
      Gandhar gotra jato ka h kisi rajput se nhi
      Sakunia gotra from sakuni sirf jaato ka h kisi rajput ka nhi
      Dusala

      Delete
  4. वो एक हिन्दुस्तानी था

    ReplyDelete
  5. Bhai jato ka itihas padhoge to pta chalega ki haryana(panjab)ki jageer prithviraj chouhan dvara jaato ko khane kamane k liye daan di gai ti us samay jaat khetibari krte the. Us samay haryana ki jameen ka upyog yuddh bhumi ke roop me kiya jata tha in jagaho PR jungle bhot hote the jinhe kaat kr jaat yha krisi krte the baad m yha tanwaro ne apna adhikar kiya or kyonki yha jaat samuday ki adhikta thi to jaato ko sardar bnaya or inhe apne apne karya sonp diye ki yhase kr vasula tumhara kaam h or ilaka tumhare adhikar m h lekin in PR raj rajput he krte the ye kewal apna karya krte the Jo inhe sonpa gaya tha .us samay tk bhi jaato ko astra sastra chalane nhi ate the ye yuddh m nipun nhi the iske baad rajput raja bandabahadur sikkh(sardar)ko muslmano k dvara aapas m photo dalwadi gai this jiske karan bandabahadur ko saniko ki awasyakta padi is samay tk sikkho(sardaro) me kewal Rajput hi the baad m jab sardaro m apas m photo hui tb bandabahadur air anya rajputo ne jaato(kyonki ye log kadkathi m achhe the air haryana Punjab m inki adhikta thi) brahmno tatha anya jatiyo ko astra sastra cjalana tatha yuddh krna sikhaya tbhi se sardaro m sabhi jatiyo ka veleyan hua tha atah spast h ki prithviraj se bhi sekdo saal pehle ya Chandragupta se pehle jaato ka koi rajvansh nhi tha jisne raj kiya ho

    ReplyDelete
    Replies
    1. Sun tu bolra h ye bhi pta h anang pal ist kon tha uske baad aya tha prathviraj ka nana nana jisne uske goad lea anang pal tomar duitya or tumne di khane kmane ko tumne apni beti bhi di thi muglo ko vo na btara

      Delete
    2. Aur Jaat Aaj Ke Nahin Hai Bhagwan Mahadev ke Samay Ke Hain

      Delete
  6. Bhai jato ka itihas padhoge to pta chalega ki haryana(panjab)ki jageer prithviraj chouhan dvara jaato ko khane kamane k liye daan di gai ti us samay jaat khetibari krte the. Us samay haryana ki jameen ka upyog yuddh bhumi ke roop me kiya jata tha in jagaho PR jungle bhot hote the jinhe kaat kr jaat yha krisi krte the baad m yha tanwaro ne apna adhikar kiya or kyonki yha jaat samuday ki adhikta thi to jaato ko sardar bnaya or inhe apne apne karya sonp diye ki yhase kr vasula tumhara kaam h or ilaka tumhare adhikar m h lekin in PR raj rajput he krte the ye kewal apna karya krte the Jo inhe sonpa gaya tha .us samay tk bhi jaato ko astra sastra chalane nhi ate the ye yuddh m nipun nhi the iske baad rajput raja bandabahadur sikkh(sardar)ko muslmano k dvara aapas m photo dalwadi gai this jiske karan bandabahadur ko saniko ki awasyakta padi is samay tk sikkho(sardaro) me kewal Rajput hi the baad m jab sardaro m apas m photo hui tb bandabahadur air anya rajputo ne jaato(kyonki ye log kadkathi m achhe the air haryana Punjab m inki adhikta thi) brahmno tatha anya jatiyo ko astra sastra cjalana tatha yuddh krna sikhaya tbhi se sardaro m sabhi jatiyo ka veleyan hua tha atah spast h ki prithviraj se bhi sekdo saal pehle ya Chandragupta se pehle jaato ka koi rajvansh nhi tha jisne raj kiya ho

    ReplyDelete
  7. Kya yaar acche se itihas padho kabhi bhi punjab par rajputo ne sasan nahi kiya kiya bhi to bhout kam samay ke liye jaydatar sasan brahmano aur sikkhon ka raha he puru mohalaye rajvansh ke brahman the...

    ReplyDelete
  8. पोरू न तो राजपूत थे न जाट। आजकल जिस तरह इतिहास को जातियों में बांटा जा रहा है वो बड़े खेद का विषय है। एक भाई तो न जाने कहाँ से ढूंढकर मराठों तक को राजपूत साबित करने पर तुला है जबकि सच ये है कि राजपूत और मराठे अलग अलग हैं और उनमें कभी मेल भी नही रहा। ऐसा ही हाल जाटों और राजपूतों का है। पर सबसे हास्यास्पद बात तो मैंने आज पढ़ी की पोरू जाट था। जिन जाटों का इतिहास मुग़ल काल मे राजा राम और चूड़ामन से शुरु होता है वो अब नया इतिहास लिख रहे हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. भाई शिवाजी मराठा दे और वो एक राजपूत थे सूर्यवंशी महाराज लक्ष्मण सिंह की दो संतान हुई जिनमें से एक महाराष्ट्र चली गई और एक में बाढ़ रुक गई महाराष्ट्र वाले ही मराठा है चाहे इतिहास खोल कर देख लो

      Delete
    2. Hahaha abey chutiya ho kya sale jat ke bare mai bahoot pata hai tujhe.jab tere baap Dada itne bhadoor thai toh Angrez or mugal tum per Raaj kaise kar gaye hahaha bada aya sale kisi ki cast per ungli utthane se pehle khood ko dekhlo

      Delete
    3. शिवाजी महाराज की जाति क्षत्रीय ही है क्योंकि उनका घराना राजा का घराना था और उनकी पीढ़ियां लड़ाई के कौशल में माहिर थीं.

      वो राजस्थान के राजपूत घराने से महाराष्ट्र आए थे और क्षत्रिय और शूद्र की ये बहस बिल्कुल बेमानी है.

      Delete
  9. बिना प्रमाणों के hypothetical होना एक सीमा तक तो ठीक है लेकिन पूरा इतिहास ही लिख देना किस कदर बचकाना पन है। आज कल अति राष्ट्रवादियों की एक बचकानी फौज इसी तरह बेसिरपैर की बातें लिख कर सोशल मीडिया में इतिहासकार बने फिर रहे है। इनके प्रयास उतने ही बचकाने हैं जितने की Colonialist इतिहासकारों के थे। फर्क ये है कि उनकी चल गई ये चला नही पा रहे। मैं यूँ तो ऐसे प्रसंगों पर कभी कूदता नही लेकिन क्योंकि ये मेरा शोध विषय था तो खुद पड़ा। लेकिन सयानो ने कहा है कि मूर्खों से बहस नही करनी चाहिए क्योंकि थोड़ी देर बाद ये बताना मुश्किल हो जाएगा कि कौन ज़्यादा मूर्ख था।
    रही बात मेरी तो मैंने पुरु की हार वाली थ्योरी को माना ही कहाँ है? मैं केवल तथ्यात्मक रहने का प्रयास कर रहा हूँ। लेकिन जो वास्तविक विसंगति है और जो मेरा विषय है उसपर किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता ? तुम एक काल्पनिक शख्श (जिसका नाम तक यूनानियों ने दिया, जिसके होने का तुम्हारे शब्दों में कोई प्रमाण ही नही) के हार जीत को स्वाभिमान का प्रश्न क्यों बना रहे हो।? क्या इतिहास सिर्फ चुनिंदा राजाओं की कहानी है ? जनता का कोई रोल नही? उन असंख्य गणराज्यों का कोई योगदान ही नही जिन्होंने अपना अस्तित्व तक दांव पर लगा कर हर विदेशी शक्ति से हर बार लोहा लिया।? कुषाणों के विरुद्ध यौधेय, अर्जुनायन गणों का संघर्ष पढा कहीं किसी किताब में ?(अगर कभी कोई किताब पढ़ी होतो) सिकन्दर के विरुद्ध कठ, मालवों, और अम्बष्ठ, शूद्रकों, शिबियों का महान त्याग तुम्हें मालूम है ?
    इन गणराज्यों के अप्रतिम शौर्य, समर्पण, और वीरता ही मेरा विषय है। तुम निर्भर हो चुनिंदा नामों पर में ढूंढ रहा हूँ भारतीय जनमानस की कथा को। इन गणराज्यों का बच्चा बच्चा सैनिक था। इनके कठोरतम जीवन और अद्भुद जीवन दर्शन की तो यूनानियों ने भी भूरी भूरी प्रशंसा की है। पर इनका नाम इतिहास के पन्नो में उतने सम्मान से नही लिया जाता क्योंकि ये लोग मोटी मोटी रकम खर्च कर अपनी प्रशस्तियाँ नही खुदवाते थे। इनके शासक भी विक्रमादित्य जैसे विरुद धारण नही करते थे (जबकि पहला और असली विक्रमादित्य एक गणप्रमुख ही था , न कि कोई राजा )
    हिन्दू धर्मग्रन्थों ने इन गणों के प्रति श्रद्धा रखते हुए भी इनकी वंशावलियाँ नही दी है क्योंकि वंशावलियाँ हो तो लिखें। यहां तो लोकतांत्रिक पद्धति थी। किसी वंश की पूजा नही होती थी बल्कि योग्यतम व्यक्ति शासक होता था। ऐसे में किसे पड़ी वंशावली लिखने की? बड़े बड़े विरुद धारण कर सिक्के निकलवाने की बजाय इनके सिक्कों पर बस गण की विजय या उसका गनचिन्ह होता था। ऐसे ही एक प्रमुख गणराज्य मालव को मैंने अपना विषय बनाया है जिसने सिकन्दर को हराया। जिनके सिक्कों पर "मलवगणस्य जयः" और "जयास्तु मलव्या:" लिखा होता था अर्थात पूरे मालव गण की जय समस्त गण वासियों की जय। न कि किसी महाराजाधिराज, त्रयम्बकेश्वर, त्रिपुराधिपति,सर्वक्षत्रान्तक, आदि का नाम। इन्हीं के प्रताप के चलते गुप्त राजाओं ने भी अपने विरुद छोटे किये और शकारि, देवगुप्त जैसे अपेक्षाकृत छोटे विरुद धारण किये। यहां तक कि गुप्तों ने तो अपना गरुड़ ध्वज चिन्ह भी मालवों से ही लिया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अपना नंबर दीजिए , जानकारी लेनी है आपसे

      Delete
    2. Sun bhai Maratha koi cast nhi hai vo bhi sab cast milakar Bana hai me Maharashtra se hu or sun jo 96 kuli Maratha hai sirf vhi Rajput hai achhese padh itihas nhi aata to Maharashtra me jo bhosle raja ke vansh hai unko jakar puch ek bhosle vansh Nagpur me hai me bhi Nagpur ka hi hu bhosle sisodiya Vansh ke Rajput hai padho pahle Rajput means Kshtriya hota h achhese itihas or movin dekh lo badme batana itihas

      Delete
    3. Bhai tu to chutiya h mahar jati se ho to chid rhe ho rajput agar up me hua to bo up ho gya agar bihar ka hua to bihari ho gya udisa ka hua to udiya ho gya


      Delete
  10. कोई बताऐगा की आजकल सोनी टि व्हि पर जो पोरस सिरिअल चल रही है, उसके टायटल साँग मे आर्य वंश का पोरस बताया जा रहा है क्या यह सही है? या पोरस किसी और वंश का है?

    ReplyDelete
    Replies
    1. Nahi porus kisi vansa ke nahi the wo Bhartiy the

      Delete
    2. Bhai sahi question hai ab batao koi kya chal raha hai

      Delete
    3. Sarswat brahmin h porush raja

      Delete
    4. भाई सीरियल पूरा दिखा हु हे राजा पौरस पुरुवंश के हे

      Delete
  11. पुरु चन्द्र वंशीय क्षत्रिय था, जाट तो अब अपना नया ही इतिहास लिख रहे हैं, जो की झूठ का पुलिंदा था, अबसे ५०० साल पहले जाट जाती का कही वर्णन भी नहीं आता हैं इतिहास में, यह बाहर से आयी हुई जाति हैं, जो की शक और हुन की वंशज हैं.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Tu 400 saal ki baat karta hai 550 saal pehle bhagt dhanna jatt huye hai aur

      Delete
    2. 1100 साल पहले वीर तेजाजी भी हुए थे वह भी जाट समुदाय से ही थे

      Delete
    3. पुरु पोरस पोरवा पुरुवास एल बहुत से नाम उपाधियां हैं। यह पोरवा वंश के थे । उस समय तक आजकल की बहुत सी जातियां नहीं थी। वंश परम्परा थी जो सम्राट अपनी उम्र के साठ वर्ष तक राज्य करते हुए अपने पुत्र का राजतिलक कर देता था उस बुड्ढे राजा को ऋर्षि पद्मश्री मिलती थी , फिर यदि उसका पुत्र भी अपनी उम्र के साठ वर्ष तक राज्य करते हुए अपने पुत्र का राजतिलक कर देता था तो वह ऋर्षि और उसका पिता यदि जीवित है तो वह महाऋर्षि की पदवी धारण करता था अब मौजूदा सम्राट अपने बाबा के नाम पर अपने नये वंश को चला सकता था। ऋर्षि और महाऋर्षि की पदवी बहुत कम लोगों को नसीब होती थी क्योंकि युद्ध बहुत होते थे।

      Delete
    4. Bhai jatt Or jaat alag alag h vo jatt pagdi pehente h vo sikh hote h

      Delete
  12. Replies
    1. Porash bhensh nhi chrata tha

      Delete
    2. Too batt ek baar ithash dhng mai padh
      Vashe bhi tum ithassh chore to phale se hoo

      Delete
  13. शर्म करो क्यो अपने हिन्दू ओर भारतीय इतिहास को जाति में बात रहे हो जय हिन्द jai हिन्दुस्तान

    ReplyDelete
  14. Porash ek chandravanshi rajput kshatriya tha...ithiash me likha hua h..the book name is rajput...padho...pata chal jayega. ..rajput ki chaar sakhye he....sooryawanshi chandravanshi agniwanshi rishiwanshi he....aaj kal her log chandravanshi ban jate he....or jat toh baad me paida hua h

    ReplyDelete
    Replies
    1. Chandervanshi hum bhi hai or hum brahmin hai Lomas rishi k vansaj

      Raja porush sarswat brahmin raja the gd bakshi ka youtube dekho

      Delete
  15. Kshatriya Rajput porash chandravanshi h

    ReplyDelete
  16. Poras ke samay rajput sabd tha hi nahi 🤨🤨🤨

    ReplyDelete
    Replies
    1. Rajputra hi rajput shabd hai aman Maurya ji . Jo ki satyug se prachalan me hai toh aap itne toh samajhdar avashya honge ki satyug pehle tha ya puruvanshi Samrat poras ji ka time ..
      Bhai yudh aur buddh dono hi rajputon me hi huye hain bhai mere

      Delete
  17. पौरवो का उद्गम महाभारत काल का माना जाता है | जो राजा चन्द्र वंश निकले वो चन्द्रवंशी कहलाये थे | ययाति नामक एक राजा इसी प्रकार का एक चन्द्रवंशी राजा था जिसके दो पुत्र थे पुरु और यदु | पुरु के वंशज पौरव कहलाये और यदु के वंशज यादव कहलाये | इसलिए राजा पोरस एक चन्द्रवंशी राजा था जो ययाति का वंशज था | चन्द्रवंशी होने के कारण उसका पराक्रम और बल अकल्पनीय था | पौरव ही वो शासक थे जिन्होंने फारसी राजाओ डेरियस और जर्कसीज को युद्ध में पराजित किया था

    ReplyDelete
  18. राजा पोरस के नाम के साथ पौरव उपाधि लगाने से यह तो स्पष्ट ही है कि वह पुरू वंश थे ।इतिहास में पाई जाने वाली जातियों में उसके वंशजों का अन्वेषण किए जाने से जाट क्षत्रियों में आज भी पोरसवाल विद्यमान हैं, जिनको पोरस के नाम पर अपना पूर्वज होने के लिए आज भी अभिमान है। रोहतक में स्थित भादानी गांव आधा पोरसवाल जाटों का है।
    पोरस के भतीजे को भी ग्रीक लेखकों ने पोरोस/पोरस ही लिखा है. स्ट्रेबो लिखता है कि इंडिया के पोरोस/ पोरस नाम के दूसरे राजा ने रोमन सम्राट अगस्टस सीजर की कोर्ट में अपना राजदूत भेजा. अतएव ग्रीक लेखकों के अनुसार पोरोस न तो किसी व्यक्ति का नाम, न ही किसी राजवंश का नाम है. यह जाति/वंश का नाम है जो इंडिया के जाटों में पाया जाता है।
    पारसियों के धर्मग्रन्थ अवेस्ता में इस जातिवंश को पोरू लिखा है. पोर, पौर तथा पुरु सभी शब्द एक ही हैं, अंतर स्थान तथा भाषा भेद के कारण है।
    भारतवर्ष में किसी भी जाति में जाटों को छोड़कर परसवाल नहीं पाए जाते, केवल जाट ही परसवाल है. इस वंश के बहुत सारे काम हैं जैसे कि बुलंदशहर उत्तर प्रदेश में लोहरका,  जालंधर में  शंकरगवा ,  गाज़ियाबाद में सुल्तानपुर, बिजनौर में कादीपुर आदि।

    ReplyDelete
  19. ज्यादा ज्ञान मत बांटो पोरस राजपूत है समझे

    ReplyDelete
  20. जात न पूछिये वीर की जो मातृभूमि पर मर मिट जाये,मित्रों बहुत बांट लिया है मुगलों ने और अंग्रेजों ने अब तो सम्भल जाओ, अभी हाल ही में एक मजहब के तबके ने देश मे कोने कोने में कोरोना वायरस को फैलाने मे अपना प्रसार किया है क्या वो ये देखकर प्रसार कर रहे हैं कि कौन क्षत्रिय है, ब्राह्मण है,वैश्य है या शूद्र उसके लिए सभी सनातनी काफिर हैं इसलिए सम्भल जाओ और शत्रु को और मजबूत न करे-जय हिंद जय अखंड भारत 🇮🇳🇮🇳💪👍👌✌🚩🚩

    ReplyDelete
  21. Poras काठी राजपूत राजा थे उनके राज्य में उस समय जाट , सैनी , कांबोज की भी पोरस राजपूत राजा की सेना में थे।
    सिकंदर से युद्ध के बाद काठी राज पुतों ने गुजरात के सौराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के रोहिल्लखंड में राज करा।

    ReplyDelete
  22. Raja puru ki jaati ke log aaj bhi up mp or Rajasthan mi hi lekin unhe sarkar ne thakur vast mi nhi liya he raja puru chandravanshi rajput thakur family se te phir aaj bhi or thakur smaaj unhe thakur nhi maanta hi

    ReplyDelete
  23. राजा पोरस वह क्षत्रिय थे जिनके आगे किसी की भी तुलना करना मूर्खता कह लाएगी porous purv bahut Bade Raja the

    ReplyDelete
  24. Bhai raja porus Maharaja shoorsain k vansaj jinke vang m aaage puru or yadu hue the yadav, to ho skta h ye yaduvanshi h anaytha, m saini ho or saini dava krte h h ki raja porus saini h qki saini smaj k purvaj khud maharaja shoorsaini the or unke vansaj saini , kehna ka matlab prachin kaal m 2 shoorsain the ,jinme ek yaduvanshi or ik saini , to raja porus Ahir(yadav) m aaynga nhi to saini ,inse alaava or koi caste m nhi

    ReplyDelete
    Replies
    1. Lhi tak apki histroy shi h yadu Or puru huy the na to jo yadu k vansh th yadav Or puru k vajah jaat the bhai y puru jaat tha yaadav jaat bhai bhai th suru s

      Delete
  25. जय सैनी मोर्य शाक्य कूशवाह कम्बोज महासंघ
    जय क्षत्रिय सूर्यवंशी जय महाराजाशूरसैनी जय महाराजाभगीरथ सैनी जय मोर्य सम्राठ महात्मा फूले

    ReplyDelete
  26. इतिहासकार ईश्वरीप्रसाद ने पोरस को शूरसेनी यदुवंशी बताया है...

    ReplyDelete
  27. पुरु वंशी क्षत्रिय ठाकुर हम राजपूत नहीं है हम राजा पुरुष के वंशज हैं

    ReplyDelete
  28. चंद्रवंशी राजा ययाति के 5 पुत्र थे जो अलग-अलग 2 रानियों से पैदा हुए एक रानी के 2 पुत्र थे जिनमें राजा यदु भी शामिल थे राजा ययाति की रानी देवयानी से 2 पुत्र पैदा हुए थे जिनमें बड़े पुत्र का नाम यदु था इसी से आगे जाकर यादव वंश चलता है और जो दूसरी रानी थी उससे 3 पुत्र पैदा हुए थे और इन 5 को ही पुराणों में और महाभारत में पंच जन कहा गया है इन तीन पुत्रों में पुरु भी शामिल था जिनमें आगे जाकर राजा पोरस का जन्म हुआ न तो राजा पोरस जाट थे और ना ही राजा पोरस राजपूत हैं

    ReplyDelete
  29. Me पुरुवंशी hu आगरा

    ReplyDelete
  30. Yadu hue yadav or puru hue saini kya logic lga rhe ho bhai �� puruvansi kon hue fir

    ReplyDelete
  31. भाई राजा पोरस पुरुवंशी क्षत्रिय थे

    ReplyDelete
  32. Me puravanshi hu banti singh

    ReplyDelete