Sunday, September 13, 2015

पंचायत चुनाव में आरक्षण संवैधानिक अधिकारो का उल्लंघन


===पंचायत चुनाव में आरक्षण के विरुद्ध आंदोलन===

शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण खत्म करने की बात करने वाले पहले चुनावो में आरक्षण और उससे भी पहले पंचायत चुनावो में आरक्षण खत्म करवा ले जो कहीँ ज्यादा अन्यायपूर्ण है।

एक लोकतंत्र में चुनावो में जातिगत आधार पर चुनाव लड़ने से वंचित करना लोकतान्त्रिक अधिकारो का हनन हैं। लेकिन संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई और इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था का किसीने विरोध भी नही किया।  सरकारो ने एक कदम आगे बढ़ते हुए पंचायत चुनावो में अनुसूचित जाती के साथ तथाकथित पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण का प्रावधान कर दिया। चुनावो में संख्या का महत्व होता है। अगर चुनावो में आरक्षण देना ही है तो उनको देना चाहिये जिन जातियो की संख्या कम है, जिनमे से किसी ग्राम प्रधान का चुना जाना भी बहुत बड़ी बात होती है। लेकिन संख्या बल में सबसे बड़ी जातियो को भी आरक्षण का लाभ देना अन्याय और बेशर्मी की पराकाष्ठा है। लेकिन हद तो ये है की चिरनिंद्रा में लीन स्वर्ण समाज ने अपने लोकतान्त्रिक अधिकारो के इस खुले दमन का कभी कोई प्रतिकार नही किया। जबकि इस व्यवस्था ने स्वर्णो को पंचायत की राजनीति से गायब कर दिया है। स्वर्ण विधायक या सांसद तो बन सकता है लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष या ब्लॉक प्रमुख बनना उसके लिये दूर की कौड़ी हो गई है।

उत्तर पदेश में तो सरकारो ने स्वर्णो की राजनितिक हत्या करने की सुपारी ली हुई है। उत्तर प्रदेश में इस बार के पंचायत चुनावो में सरकार ने स्वर्णो के प्रति भेदभाव करने में पिछले सभी चुनावो को पीछे छोड़ दिया गया है। प्रदेश सरकार की यह नीति रही है कि पंचायत चुनावो में जानबूझकर स्वर्ण बहुल क्षेत्रो को आरक्षित कर दिया जाता है और स्वर्णो की अल्प संख्या वाले क्षेत्रो को सामान्य कर दिया जाता है। इससे दोनों ही जगह आरक्षित जातियो विशेषकर संख्या बल में ताकतवर कुछ विशेष तथाकथित पिछड़ी जातियो की जीत पक्की हो जाती है जिस कारण अध्यक्ष और प्रमुखी के चुनाव में इन्ही जातियो का दबदबा होता है।

 इस बार जिला और ब्लॉक पंचायत की आरक्षण व्यवस्था जो घोषित हुई है उसमे भी कोई कसर नही छोड़ी गई। स्वर्ण जाती बहुल क्षेत्रो को एकतरफा आरक्षित करके काफी समय से तैयारी करने वाले अनेक युवा स्वर्ण नेताओ  के अरमानो पर पानी फेर दिया गया है। उदाहरण के लिये राजपूत बहुल साठा चौरासी क्षेत्र की सभी सीटे आरक्षित कर दी गईं हैँ, जिसका मतलब उस क्षेत्र से कोई भी स्वर्ण समाज का व्यक्ति वोट तो दे सकता है लेकिन चुनाव नही लड़ सकता।

ऐसी स्थिति कमोबेश पूरे प्रदेश की है, लेकिन अगर अब भी इस खुले आम अन्याय का तीव्र विरोध नही किया गया तो बहुत शर्मनाक होगा। इसलिये उत्तर प्रदेश के स्वर्ण समाज से और विशेषकर राजनैतिक लोगो से ये अपील करते है कि इस अन्याय के विरुद्ध जोरदार आंदोलन चलाया जाए। इस अन्याय से स्वर्णो का राजनैतिक वर्ग सीधे प्रभावित होता है। यह सरकारो की साजिश है कि स्वर्ण समाज में नए युवा राजनैतिक नेतृत्व की पैदा होने से पहले ही हत्या कर दी जाए। इसलिये स्वर्णो का राजनैतिक नेतृत्व खुद आगे बढ़ कर राज्य व्यापी आंदोलन की शुरुआत करे और यह अन्यायपूर्ण आरक्षण व्यवस्था खत्म ना होने तक पंचायत चुनाव बहिष्कार का एलान करें।

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