Wednesday, September 2, 2015

महावीर चक्र विजेता वीर लेफ़्टिनेंट जनरल वीर हणूत सिंह राठौड जसाेल जी( Lt Gen Hanut Singh Rathore)



हणूत सिंह राठौड़ जसोल (Lt Gen Hanut Singh Rathore)----------


सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में महावीर चक्र विजेता जिन्हाेने अद्वितीय रणनीती से पाकिस्तान के 48 से अधिक टेंकाे काे नेस्तानाबूद कर दिया था।इस युद्ध के कारण ही भारतीय सेना लाहौर को घेरने में सफल हुई थी जिससे 1971 की लड़ाई में भारत पाकिस्तान के शकरगढ़ क्षेत्र में विजयी हुआ था।
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जीवन परिचय-----हणूत सिंह राठौड़ जसोल रावल मल्लिनाथ के वंशज थे,उनका वंश राठौड़ो के वरिष्ठ शाखा महेचा राठौड़ है,उनके पिता lt .col अर्जुन सिंह जी थे,इनका जन्म 6 जुलाई 1933 को राजस्थान के बाड़मेर की जसोल रियासत में हुआ था। स्कूली शिक्षा दून के कर्नल ब्राउन स्कूल से हुई थी। 

इन्हे 28 दिसंबर 1952 को भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त हुआ। आज़ाद भारत के 12 महानतम जनरलाें में शामिल थे। और भारतीय फाैज में जनरल हनुत के नाम से famous जनरल साब अभी देहरादून में रह रहे थे।वे पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंतसिंहजी के सगे चचेरे भाई थे।
सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में इन्हे असाधारण वीरता के लिए महावीर चक्र प्रदान किया गया था,वे FLAG HISTORY OF ARMOURED CORP के अधिकृत लेखक थे.
इन्हे परम विशिस्ट सेवा मेडल PVSM भी दिया गया था,
31 जुलाई 1991 में वे रिटायर हो गए।
1991 में सेना से रिटायर होने के बाद जनरल हणुत सिंह दून में रह रहे थे। पिछले कई साल से वह मौन साधना में थे। वह आजीवन ब्रह्मचारी थे।
ये जीवन भर अविवाहित रहे और सती माता रूपकंवर बाला गांव के परम भक्तों में थे, इन्हें सेना और सामाजिक जीवन में ‘संत जनरल’ के नाम से जाना जाता था। इनके देश और विदेश में हजारों अनुयायी हैं।जनरल हनुतसिंह आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे।
स्व. हणुतसिंह जी (लेफ्टि. जनरल) का तेजस्वता से युक्त व्यक्तित्व हमारे लिए प्रेरणादायक है। इन्होने क्षत्रिय समाज को पुरुषार्थी जीवन जीकर दिखलाया है। इनके कर्तव्य कर्मों के चर्चे सेना में चर्चित है।
प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को इनके घर जाकर इनसे मिलने की प्रतीक्षा करनी पड़ी थी------
जब इंदिरा जी उनके निवास पर बिना पूर्व कार्यकृम के मिलने आई तो हनूतसिंह जी ईश्वर की साधना में लीन थे।
जिस पर इंदिरा गांधी खिन्न हो गई। तब उन्होंने उस समय के तत्कालीन आर्मी चीफ को शिकायत की, जिस पर आर्मी चीफ ने इंदिरा गांधी की उपस्थिति में स्व. हणुतसिंह जी (लेफ्टि. जनरल) जी को बुलाया और प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को कहा कि मैं इनसे कुछ कह नहीं सकता हूँ,अब आप अपनी नाराजगी की जानकारी स्वयं ही इनसे कर लें।
जवाब में स्व. हणुतसिंह जी (लेफ्टि. जनरल) जी ने इंदिरा गांधी से कहा कि"आप मेरे घर मिलने आई। तब आपने मुझसे पहले कोई अनुमति नहीं ली और फिर आप कुछ देर प्रतीक्षा भी नहीं कर सकी। यहां आपका कार्यालय है, वहां मेरा घर है और मेरे घर में मेरा अनुशासन चलता है।
अब आप पूछ सकते है कि आपको क्या जानकारी चाहिए""
स्व. हणुतसिंह (लेफ्टि. जनरल) जी का व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि इस पर इंदिरा गांधी शांत हो गई।

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1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध-------
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह राठौड़ ने इस युद्ध में 47 इन्फेंट्री ब्रिगेड/17 पूना होर्स रेजिमेंट को कमांड किया था,इस युद्ध में जिन क्षेत्रों में सबसे घमासान युद्ध हुआ था उनमे शकरगढ़ भी एक था.
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह की 47 इन्फेंट्री ब्रिगेड/17 पूना होर्स रेजिमेंट को शकरगढ़ सेक्टर में बसन्तरा नदी के पास तैनात किया गया था, उन्होंने भारतीय सेना की 17 पूना हार्स रेजिमेंट को कमांड किया, जो एकमात्र ऐसी रेजीमेंट है जिसे दो परमवीर चक्र मिले। इस युद्ध में भारतीय सेना ने जनरल हणुत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तान के 8 आर्म्ड ब्रिगेड को पूरी तरह से तबाह किया था।पाकिस्तान ने इस नदी में बहुत सी लैंड माइंस लगा रखी थी,
16 दिसंबर 1971 के दिन हणूत सिंह की कमांड में सेना ने नदी को सफलता पूर्वक पार किया,पाकिस्तान ने दो दिन लगातार टैंको से हमले किये,
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह ने अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना एक खतरनाक सेक्टर से दूसरे खतरनाक सेक्टर में जाकर सेना का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया।
इस युद्ध में इनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 48 टैंक ध्वस्त कर दिए,और पाकिस्तान का आक्रमण विफल कर दिया।
उनके नेतृत्व में ही इसी युद्ध में उनकी यूनिट के असीम खेत्रपाल को सबसे कम आयु में परमवीर चक्र मिला था.

पाकिस्तान ने भी माना लोहा-------------------
बसंतारा युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने भी उनका लोहा माना। इस बहादुरी के लिए दुश्मन सेना पाकिस्तान ने भी 17 पूना हार्स रेजीमेंट को ‘फक्र ए हिंद’ की उपाधि से नवाजा था। 
जनरल हणुत सिंह असाधारण प्रतिभा के धनी थे।
ईश्वर भक्ति इतनी थी कि कहते हैँ हनुतसिंह जी युद्ध क्षेत्र में भी कई घण्टो तक साधना में बैठे रहते थे।
बसन्तरा नदी के चारो और पाकिस्तान ने लैंड माइंस बिछा रखे थे,जिनकी चपेट में आकर सैंकड़ो भारतीय सैनिको की जान जा सकती थी और इस नदी पर पुल बनाया जाना असम्भव लग रहा था।पर लाहौर पर घेरा डालने को इस नदी को पार करना बेहद जरूरी था।
कमांडर हणुतसिंह ने जान की परवाह न करते हुए आगे आगे चलकर भारतीय सैनिक टुकड़ी को अपने पीछे रखते हुए भूमिगत लैंडमाइंस बचाते हुए आगे ले गए थे। 

युद्ध के बाद पाकिस्तान ने अपने लिखित कागजातों के माध्यम से यह जानना चाहा कि "वह कमाण्डर कौन था और इतनी बिछाई हुई लैंड माइंस के बीच से बिना विस्फोट हुए उस मार्ग से आगे कैसे बढ़ गया!!!!!!!!~????
भारत-पाकिस्तान की सेनाओं के कागजातों में यह सभी संवाद उल्लेख है।
उन्होंने आश्चर्यजनक वीरता, नेतृत्व और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया और इस विजय के फलस्वरूप हणूत सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.……
प्रोन्नति में सरकार द्वारा भेदभाव-----
बेदाग सर्विस रिकॉर्ड और हर प्रकार से योग्य,सर्वाधिक वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी इन्हें थलसेनाध्यक्ष पद पर प्रोन्नति नही दी गई।
"After General Sundharji, when General V.N. Sharma, who was also from the Armoured Corps, was appointed as COAS, Hanut was in all likelihood of being appointed as Army Commander but was sidelined. Having a faultless service record, there was no reason for Hanut not being considered suitable for command of a field army, though was not appointed. When Hanut was informed of his having been passed over by a junior, who conveyed his sorrow, his reply was "Why should you be sorry. It is the Army which should be sorry. If they don't want me, the loss is theirs".
हनूतसिंह को जानबूझकर आर्मी चीफ नही बनाया गया था।

इसी तरह सगत सिंह राठौड़ और ठाकुर नाथू सिंह के साथ अन्याय किया गया था।
वही सब बाद में जनरल वी के सिंह के साथ दोहराने का प्रयास किया गया।
(इतने वीरतापूर्ण कार्यो और वरिष्ठ होने के बावजूद अज्ञात कारणों से सेना में कई बार राजपूत आर्मी ऑफिसर को थल सेनाध्यक्ष नही बनाया गया)
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने अपनी पुस्तक LEADERSHIP IN THE INDIAN ARMY
में हणूत सिंह जी के बारे में लिखा है कि.……
"Hanut will be remembered as one of the finest armour commanders of the indian army.His simplicity,courage,boldness,high sense of moral values and professionalism will always be a source of inspiration for generations of officers to come"

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दिनांक 11 अप्रैल 2015 को वीर सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल हणूत सिंह राठौड़(जसोल) जी का देहरादून के एक आश्रम में निधन हो गया,
कुर्सी पर ली समाधि-------
आश्रम में मौजूद अनुयायी बताते हैं कि "शुक्रवार सुबह वह ध्यान में बैठे और इसके बाद वह आंखें खोलकर उसी कुर्सी पर बैठे हैं। पिछले 24 घंटे में सिर्फ उनकी गर्दन झुकी है। जबकि सांस और नब्ज शनिवार सुबह से नहीं चल रही है"।
हणुतसिंह जी वैभवशाली राजसी खानदान से थे,आजीवन अविवाहित रहे,सेवानिवृति के बाद पूरी तरह ईश्वर साधना में लीन हो गए।
इस युग में ऐसे चरित्र!!!!!!!!!
विश्वास नही होता।
उन्हें सच्चे अर्थों को आधुनिक विश्वामित्र कहा जा सकता है।
स्वरगीय हणुतसिंह राठौड़ जी को कोटि कोटि नमन।
जय हिन्द,जय राजपूताना,जय क्षात्र धर्म 
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सोर्स-----
1 -श्री राजेन्द्र सिंह जी राठौड़ बीदासर कृत राजपूतो की गौरव गाथा पृष्ठ संख्या 313 -316 
2-जनरल वी के सिंह कृत "LEADERSHIP IN THE INDIAN ARMY"-sage publications new delhi.
3-ऐरावत सिंह जी http://veekay-militaryhistory.blogspot.in/…/biography-lieut…
4- http://bmrnewstrack.blogspot.in/2015/04/blog-post_239.html…
5- Maj Gen Raj Mehta. "A VISIONARY CAVALIER : Lt Gen Hanut Singh, PVSM, MVC". South Asia Defence & Strategic Review. Aakash Media. Retrieved 31 March 2014.
6- Singh, Lt. Gen. H. (1993). Fakhr-E-Hind: The Story of the Poona Horse. Agrim Publishers.
7- http://en.m.wikipedia.org/wiki/Hanut_Singh_Rathore

8-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/09/lt-gen-hanut-singh-rathore.html

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