Wednesday, September 2, 2015

Lt. General Nathu Singh Rathore : First Lt General of the Indian Army



ले.जनरल ठाकुर नाथू सिंह राठौड़(Lt. General Nathu Singh Rathore : First Lt General of the Indian Army)---

आजकल जब सेनाध्यक्ष के पद के लिये इतनी खींचतान होती है, हम आपको एक ऐसे जनरल के बारे में बताना चाहेंगे जिसने आदर्शों की खातिर देश के पहले सेनाध्यक्ष का पद ठुकरा दिया था,उस जनरल का नाम था ठाकुर नाथू सिंह....................................

ठाकुर नाथू सिंह का जन्म 10 मई 1902 को राजस्थान की डूँगरपुर रियासत के गुमानपुरा ठिकाने के ठाकुर हमीर सिंह जी मेडतिया के घर हुआ था। वो मेवाड़ के महान शूरवीर जयमल राठौड़ के वंशज थे। बचपन में ही उनके माता पिता का निधन हो जाने की वजह से उनकी आगे की शिक्षा आदि का पूरा भार डूँगरपुर रियासत के महारावल विजय सिंह जी ने उठाया। महारावल छोटी उम्र में उनकी बुद्धिमता से बहुत प्रभावित थे। उनकी शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज से हुई और वहॉ से शिक्षा प्राप्त कर के वो ब्रिटेन की रॉयल सैंड्हर्स्ट मिलिट्री अकादमी गए जहाँ से पास आउट होने वाले वो जनरल राजेन्द्र सिंहजी जाडेजा के बाद दुसरे भारतीय थे।
यह वीरभूमि राजस्थान के लिये बड़े गौरव की बात है कि जहाँ ठाकुर नाथू सिंह जैसे निर्भीक और राष्ट्रवादी सेनानायक का जन्म हुआ था।

उनके व्यक्तित्व और योग्यता की जानकारी निम्नलिखित तथ्यों से हो सकती है.....
1- प्रधानमंत्री नेहरु ,लार्ड माउन्टबेटन के प्रभाव में आकर आजाद भारत के पहले सेनाध्यक्ष के रूप में किसी ब्रिटिश जनरल की नियुक्ति करना चाहते थे,वे भारतीय सैन्य जनरलों को अनुभवहीन मानते थे, पर जनरल नाथू सिंह ने इसका विरोध किया और यहाँ तक कि मीटिंग में जनरल नाथू सिंह ने पं. नेहरु से पूछ लिया
"प्रधानमंत्री पद का आपको कितना अनुभव है श्रीमान्‌"?
यह सुनकर पहले तो बैठक में सन्नाटा छा गया ,किन्तु बाद में नेहरु उनकी बात से सहमत हो गये.

2-इस बैठक के बाद जनरल नाथू सिंह की योग्यता और निर्भीकता से प्रभावित होकर नेहरू जी ने भारतीय सेनाओं का प्रधान सेनापति ठाकुर नाथू सिंह को ही बनाने का निर्णय लिया गया। रक्षा-मंत्री ने उनको पत्र द्वारा प्रधान सेनापति बनाये जाने की सूचना दी।पर ठाकुर नाथू सिंह ने स्पष्ट इन्कार कर दिया, इसलिये कि सेना में जनरल करियप्पा उनसे वरिष्ठ थे और उनका मानना था कि वरिष्ठ होने के नाते करियप्पा को ही प्रधान सेनापति बनाया जाना चाहिये। आखिरकार जनरल करियप्पा ही भारत के पहले सेनाध्यक्ष बनाये गये......

3- जनरल नाथू सिंह अंग्रेज़ो के समय भी अपनी निडरता और स्पष्टवादिता के लिये जाने जाते थे। वो एक प्रखर राष्ट्रवादी थे, सेना में होने के बावजूद वो अपनी राष्टवाद की भावनाओ और अंग्रेज़ो के प्रति नापसन्दगी को खुल कर व्यक्त करते थे और स्वाधीनता आंदोलन के नेताओ का खुलकर समर्थन करते थे। उनकी स्पष्टवादिता और अख्खड़ स्वभाव की वजह से अँगरेज़ अधिकारियो से उनकी कभी नही बनती थी लेकिन उनकी जबरदस्त बुद्धिमता और प्रतिभा की वजह से वो उनके विरुद्ध कोई कदम नही उठा पाते थे।

4- उनकी बुद्धिमता और प्रतिभा का एक प्रमाण यह है की जब वो सेना में अधिकारी बने उसके बाद प्रमोशन के लिये होने वाले डिफेन्स स्टाफ कॉलेज की परीक्षा के लिये उन्हें जानबूझकर यह कहकर अनुमति नही दी जा रही थी की वो अनुभवहीन है लेकिन जब आखिर में उन्हें 1935 में अनुमति मिली तो ना केवल उन्होंने पहली बार में ही परीक्षा उत्तीर्ण करी बल्कि उस परीक्षा में उन्होंने जो अंक हासिल किये वो आज तक भी डिफेन्स स्टाफ की परीक्षा में एक रिकॉर्ड है।

5-आजादी से पूर्व ही वरिष्ठ सैन्य अधिकारी होते हुए भी उन्होंने "आजाद हिंद फौज' के सैनिकों पर मुकदमा चलाने की भर्त्सना की......एक बार मुकदमे के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान उन्हें प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया जिससे उन्होंने साफ़ मना कर दिया। उन्होंने कई बार गोली चलाने के आदेश का पालन करने से मना किया। इससे उनसे जलने वाले अँगरेज़ अधिकारी बहुत खुश हुए। उन्हें लगा की अब नाथू सिंह फसे है क्योकि अब उनका कोर्ट मार्शल होना पक्का है। लेकिन उनकी काबिलियत और रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें मुक्त कर दिया गया।

6- सन्‌ 1948 में नेहरु ने तय किया कि भारत का सैन्यबल 25 लाख से घटा कर 15 लाख कर दिया जाये। सैन्य बजट भी तीन वर्षों के लिये मात्र 45 करोड़ रु.प्रति वर्ष कर दिया गया। जनरल नाथू सिंह ने तुरंत सेना-मुख्यालय को पत्र लिखा- "" हमें अपने सैन्य-बल की संख्या बजट के हिसाब से नहीं, बल्कि जरूरत के हिसाब से तय करनी चाहिये।'' दो वर्ष बाद उन्होंने फिर गुहार लगाई कि चीन भारत के लिये बड़ा खतरा है और हमें हमारी सुरक्षा को मजबूत करना चाहिये, लेकिन सपनों के संसार में रहने वाले तत्कालीन भारतीय नेतृत्व ने कोई ध्यान नहीं दिया। परिणाम यह हुआ कि हमें 1962 में चीन के हाथों अपमानजनक पराजय झेलनी पड़ी ।

7-दक्षिण कमान का सेनापति रहते हुए हैदराबाद के निजाम पर सैनिक कार्रवाई की योजना ठाकुर साहब ने ही बनाई थी.

8-जब पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण किया, नाथू सिंह मेजर जनरल थे तथा दक्षिणी कमान के सेनापति थे।पाक का हमला होते ही उन्हें दिल्ली बुलाया गया। दिल्ली में वे प्रधानमंत्री से भी मिलने गये। वहॉं उनसे पूछा गया कि पाकिस्तान से निपटने की रणनीति कैसी होनी चाहिये। जनरल नाथू सिंह ने उत्तर दिया- "" कुछ फौजों को दर्रों की रक्षा करने के लिये छोड़ कर पूरी ताकत से लाहौर पर हमला कर वहॉं अधिकार कर लेना चाहिये। इससे पाकिस्तान कश्मीर खाली करने तथा पीछे हटने को बाध्य होगा।'' पं. नेहरु ने यह सुना तो वे आग-बबूला हो गये। जनरल को भला-बुरा सुनाते हुए उन्होंने कहा- "" तुम्हें कुछ समझ भी है, इससे तो अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएँ खड़ी हो जायेंगी।''
यह जानना रोचक होगा कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में शास्त्री जी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने उक्त रणनीति ही अपनाई और लाहौर पर हमला किया जिससे पाकिस्तान को युद्ध-विराम करना पड़ा था।

9- इस तरह वो स्वतंत्रता के बाद भी अपने सेवा काल में निरंतर नेहरू सरकार की गलत रक्षा नीतियों के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाते रहे जबकि उन्हें पता था की इसके परिणाम उनके लिए ठीक नही होंगे। इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा और 51 साल की कम उम्र में ही इस प्रतिभाशाली अधिकारी को रिटायर्ड कर दिया गया। अगर उन्हें सेवा विस्तार दिया गया होता तो वो भारत के तीसरे सेनाध्यक्ष होते और फिर चीन युद्ध में भारतीय सेना में अनुभवी नेतृत्व की कमी नही होती जिसकी वजह से ही भारत को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। लेकिन उनकी स्पष्टवादिता और निडरता नेहरू सरकार को चुभ रही थी और ऐसे व्यक्ति को वो सेना अध्यक्ष बनाने का जोखिम नही उठाना चाहते थे।

रिटायर्ड होने के बाद भी ठाकुर नाथू सिंह सक्रिय रहे और भारतीय सेना के हितों के मुद्दे जोरो से उठाते रहे। ऊनको एक बार चुनाव भी लड़वाया गया लेकिन वो राजनीती में भी इतने ईमानदार थे की अपना प्रतिद्वंदी पसन्द आने पर वो प्रतिद्वन्दी की सभा में जाकर उसका प्रचार कर दिया करते थे।
देश के इस महान सपूत का निधन 5 नवंबर 1994 को हृदयगति रुकने से हो गया। लेकिन दुःख की बात है की भारत की सेना के निर्माणकर्ता होने और अपनी पूरी जिंदगी सेना को समर्पित करने के बाद भी सरकार द्वारा उनको पूरे सैनिक सम्मान के साथ आखिरी विदाई नही दी जा सकी।
===============================================================
After getting freedom, a meeting was organized to select the first General of Indian Army. Jawahar Lal Nehru was heading that meeting. Leaders and Army officers were discussing to whom this responsibility should be given.

In between the discussion Nehru said, "I think we should appoint a British officer as a General of Indian Army as we don't have enough experience to lead the same."Everybody supported Nehru because if the PM was suggesting something, how can they not agree?

But one of the army officers abruptly said, "I have a point, sir."

Nehru said, "Yes, gentleman. You are free to speak."

He said ,"You see, sir, we don't have enough experience to lead a nation too, so shouldn't we appoint a British person as first PM of India?"

The meeting hall suddenly went quiet.

Then, Nehru said, "Are you ready to be the first General of Indian Army? He got a golden chance to accept the offer but he refused the same and said, "Sir, we have a very talented army officer, my senior, Lt Gen Cariappa, who is the most deserving among us."

The army officer who raised his voice against the PM was Lt. General Nathu Singh Rathore, the first Lt General of the Indian Army.

If only a few hundred of Selfless leaders come forward, they can change the image of Armed Forces.
उनके बारे में पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने लिखा है 
""Soon after Independence, the Prime Minister held a conference of senior Army officers, to elicit their views regarding keeping British officers for some more time, as advisors. Nehru felt that Indian officers lacked the experience to take over the responsibility for such a large Army, and wanted to retain British officers for a longer period, as Pakistan had done. Almost every one agreed with Nehru, except for Nathu Singh. He said: " Officers sitting here have more than 25 years service, and are capable of holding senior appointments in the Armed Forces. As for experience, if I may ask you Sir, what experience do you have to hold the post of Prime Minister ?" There was a stunned silence, and Nehru did not reply. Finally, it was decided to keep the British advisors for some more time, as proposed by Nehru. 

इस निर्भीक और आदर्शवादी, रणबांके राजपूत को हमारा नमन_/\_

सन्दर्भ---
1-http://india-shinning.blogspot.in/2011/12/lt-general-nathu-singh-rathore-first-lt.html
2-Leadership in the Indian Army: Biographies of Twelve Soldiers
 By V K Singh
3-http://veekay-militaryhistory.blogspot.in/2012/10/biography-lt-gen-thakur-nathu-singh.html?m=1
4-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/09/lt-general-nathu-singh-rathore-first-lt.html

No comments:

Post a Comment