====हुतात्मा ठाकुर मोहन सिंह मडाड====
(यादगार अहमद की तवारीखें-सलतीने-अफगाना; इलियट एंड डौसन भाग 5; बाबरनामा, सर एडीलवर्ट टेबोलेट का अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित)यह घटना है हिजरी 936 की है| उस समय बाबर लाहौर में था और आगरा जाने की तैयारी में था। बाबर ने लाहौर से आगरा जोन के लिए प्रस्थान किया।
सरहिंद पहुँचने पर उसे समाना के काजी ने उससे मुलाकात कर बताया की कैथल के मोहन सिंह मडाड (मंडहिर) नामक राजपूत ने उसकी इमलाक (जागीर) पर हमला करके उसे लूटा पाटा और जलाया और उसके बेटे को मार डाला। काजी की बात सुन के आग बबूला हुए बाबर ने फ़ौरन ही तीन हजार घुड़सवारों के साथ अली कुली हमदानी को कैथल परगना में ठाकुर मोहन सिंह मडाड के गाँव भेजा।
यादगार अहमद बताता है की अलसुबह मुग़लों की सेना ठाकुर मोहन सिंह मडाड के गाँव पहुँचीं उस समय गाँव में बारात आई हुयी थी। जोड़े का दिन था और उस दिन ठण्ड भी कुछ ज्यादा ही था। जब मुघल सेना की गाँव की तरफ कूच की खबर सुनी तब वह भी अपने नौजवानों के साथ बाहर निकला और सामने आते ही मडाडों ने तेजी से वाणों की वर्षा करते हुए शाही सेना के पाँव उखाड़ दिए। इस भयंकर युद्ध में 1 हजार तुर्क मारे गए शेष भाग कर पास के ही एक जंगल में छिप गए।
यादगार अहमद को शर्मिंदगी उठाते हुए भी इस घटना का जिक्र करना पड़ा और उसने हार का बहाना बनाते हुए लिखा के जाड़े की दिनों में तुर्की धनुष की तांत अकड़ जाती है इस वजह से तुर्क कायदे से धनुष पर बाण चढ़ा ही नहीं सके।
जंगल में पहुचने के बाद तुर्कों ने लकड़ियाँ इकट्ठी कर के उसमे आग जलाकर पूरी तरह तापा और आग से धनुष की तांत को ढीला कर फर से योजना बनाकर एक बार फिर मोहन के गाँव की और बढ़ने लगे। तुर्कों की इस धृष्टता को देखकर राजपूतों की आँखों में खून उतर आया और उन्होंने दुगने उत्साह से तुर्कों से मुकाबला किया। इस बार भी बहुत सारे शाही सैनिक मारे गए। बाकि सैनिको को लेकर अली खान हमदानी भाग चला और सरहिंद पहुँच कर ही साँस ली।
शाही सेना की हार सुनकर बाबर शर्मसार होते हुए ठाकुर मोहन सिंह मडाड के नाश का संकल्प लेते हुए तुरन्त 6000 घुड़सवार सैनिकों के साथ अपने सिपहसालार तरसम बहादुर और नौरंगवेग को भेजा जो पानीपत दोनों युद्धों में अपनी तलवार और तीर का जौहर दिखा चुके थे। इन्होंने छोटे मोटे युद्ध तो देखे ही नहीं थे बड़ी बड़ी लड़ाइयों में अपनी योग्यता दिखाने का आनंद आता था। ठाकुर मोहन सिंह मडाड के पराकम की कहानी अली कुली हमदानी के मुँह से तरसेम बेग ने सुनी थी। हमदानी संकोच करते हुए बेग को बताता है की अब तक लड़ीं हुईं लड़ाइयों में सिर्फ ठाकुर मोहन सिंह मडाड ने ही उसकी पीठ देखी है।
सरहिंद से चलते चलते तरसेम बेग ने सोचा की मोहन सिंह जरूर विशेष किस्म का बहादुर व्यक्ति होगा नहीं तो सब ओअर गालियाँ न्योछावर करने वाला अली कुली मोहन सिंह के तारीफों के पुल नहीं बाँधता। रास्ता तय करते हुए उसने सोच लिया के दुश्मन को सिर्फ बल से नहीं छल से मारना और हराना होगा।
ठाकुर मोहन सिंह मडाड के गांव के नजदीक आने पर तरसेम बेग ने अपने सैनिकों को तीन भागों में बाँट दिया। हरावल दस्ते को यह हिदायत दी की वे गाँव के पास जाकर मडाडों को ललकारें। जब ललकार सुनकर राजपूत गाँव से बाहर युध्द के लिए आग बाबुल होकर निकलें तो हरावल दस्ता भाग चले और भागते जाए इसी बीच उसकी राइट विंग गाँव को घेर ले और उसमें आग लगा दे इस विंग की कमांड उसने खुद अपने हाथों में ली और नौरंग बेग के हाथों में 2 हजार घुड़सवारों की सेना रिजर्व रखी। जब मडाड बीच में घिर जाएँ तब उन पर जोरदार करना इस दस्ते का काम था।
यादगार अहमद बताता है के जिस दिन जब शाही सेना ठाकुर मोहन सिंह मडाड के गाँव पहुची संयोग वष उस दिन भी गांव में बारात आई हुई थी।
जब शाही सेना का हरावल दस्ता गाँव के नजदीक पहुँचा तो योजना अनुसार उन्होंने मडाडों को ललकारा तब मडाडों की नस नस में चिंगारी दौड़ पङी और वह तुरन्त तैयार होकर बहार निकले और शाही सेना पर तीरों की बौछार करने लगे।राजपूतों के आम के साथ ही पूर्व योजनानुसार शाही सेना पश्चिम की ओर भागने लगी और क्षत्रियों ने उनका तेजी से पीछा किया। शाही सेना भागती रही और राजपूत सेना उसका पीछा करती रही इसी बीच तरसेम बेग की टुकड़ी ने राजपूत विहीन गाँव में आग लगा दी। जब राजपूतों ने गाँव से उमड़ता हुआ धुँआ देखा तो वग वापिस लौटे। उनके पीछे मुड़ते ही भागती हुई सेना लौटने लगी। इस प्रकार राजपूतों की सेना शाही सेना के बीच फंस गयी। इसी समय नौरंगबेग अपनी सेना के साथ राजपूतों पर टूट पड़ा। चारों और से घिरने के बाद भी राजपूत वीरता और शौर्य से लड़े उधर गाँव धु धु करता जलता रहा। राजपूत शाही सेना के इस छल को नहीं समझ पाए और पूरा साहस और पराक्रम होते हुए भी इन्हें पराजित होना पड़ा।
इस युद्ध में एक हजार वीर राजपूत शहीद हुए । ठाकुर मोहन सिंह अंत तक लड़ते रहे परन्तु कब तक ? आखिर उन्हें भी पृथ्वीराज चौहान की तरह कैदी बनना पड़ा। उस दिन हजारों नर नारियों और बच्चों को शाही सेना ने कैद कर लिया और मोहन सिंह के साथ उन कैदियों को दिल्ली ले जाया गया क्योकि तब तक बाबर सरहिंद से रवाना होकर दिल्ली पहुँच गया था।
दिल्ली दरबार में ठाकुर मोहन सिंह मडाड की पेशी हुई और बाबर ने इन्हें सजा ए मौत का फरमान सुनाया पर साथ साथ यह भी कहा यदि ठाकुर मोहन सिंह मडाड इस्लाम कबूल लेतें है तो उनकी सजा माफ़ कर दी जायेगी। ठाकुर साहब चाहते तो मुस्लिम बनकर अपने प्राण बचा सकते थे परन्तु उस योद्धा को जीवन से प्यारा वह मूल्य था जो क्षत्रियों के लिए अभिप्रीत था उनका धर्म। मोहन सिंह मडाड ने यह साबित कर दिया के वह एक सच्चे प्रतिहार और रघुवंशी थे जिनकी रीत में ही प्राणों से पहले वचन और धर्म की रक्षा करना है।
सिजदा से गर वहिश्त मिले दूर कीजिये,
दोजख ही सही सर को झुकाना नहीं अच्छा।
बेटा तूं राजपूत, याद सदा ही राखिजे,
माथा झुके न सूत, चाहे शीश ही कटिजे।।
==== मृत्युंजय मोहन ====
स्वाभिमानी ठाकुर मोहन अपना सर नहीं झुका सका और ख़ुशी ख़ुशी मृत्यु को आलिंगन करते हुए आगे बढे।क्षत्रियों के इस वारिस को बाबर ने एक विषेश प्रकार की विधि से मौत देने का फैसला किया।
ठाकुर मोहन सिंह को कमर तक मिटटी में दफना दिया गया और शाही सेना ने उनपर तीरों की बौछारें शुरू कर दी। सैकड़ों तीर देखते ही देखते ठाकुर मोहन सिंह का शरीर भेदने लगे। उनके शरीर से खून की फुहारें छूटने लगीं परन्तु गर्दन और शीश बाबर के सामने तना खड़ा रहा। वह अभी भी नहीं झुका जिससे बाबर झल्ला उठा। जब तक रक्त की अंतिम बूँद ठाकुर मोहन सिंह के शरीर से नहीं छुटी वह तन के खड़े रहे और देखने वाले भी हैरानी से देखते रहे की इतनी आघातों के बाद भी उनके चेहरे पर दर्द और पीड़ा नहीं छलक रही थी जैसे वह संवेदनहीन ही हो गए हो। अंत में ठाकुर मोहन सिंह जी का शीश धरती माँ को वंदन करते हुए छु पड़ा और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
ठाकुर मोहन सिंह मर कर भी अमर हो गए। उन्होंने दो बार शाही सेना को अपने शौर्य से पराजित किया जिससे बाबर लज्जित हुआ उसने अपनी आत्म कथा तजुके बाबरी में जहाँ छोटी छोटी बातें भी दर्ज कर लीं थी वहीं शर्मिन्दिगी के कारण इस प्रसंग को छोड़ दिया। इस महत्वपूर्ण घटना का पूर्ण विवरण हुमायूँ कालीन यादगार अहमद ने अपनी तवारीख ए सलातीने अफगाना में दिया।
इस युद्ध में मुआँना गाँव के परम् योद्धा ठाकुर मामचन्द मडाड भी शाही सेना के साथ युद्ध करते हुए शहीद हुए वे ठाकुर मोहन सिंह के रिसालदार थे, जिनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कपूर कँवर सतीं हूईं। जिनकी देवली मुआँना गाँव तहसील सफीदों जिला जींद हरयाणा में आज तक बनीं हुई है जहाँ शादी के बाद हर नव विवाहिता राजपूत क्षत्राणी आशीर्वाद और सौभाग्य लेने जाती है।
=== संदर्भ ===
1. डॉक्टर विंद्यराज चौहान कृत भारत के प्रहरी प्रतिहार वंश।
2. ब्रिटिश कालीन करनाल गजट
3. ठाकुर ईश्वर सिंह मडाड कृत राजपूत वंशवाली
jai ho
ReplyDeleteinke baare mai hamare bujurg hammer btate ku nhi h
ReplyDeleteहम करेंगे इसका प्रचार
ReplyDeleteजय राजपूताना जय ठाकुर मोहन सिंह मडाड
ReplyDeleteJa ye gatna 936 ki hai to 4 March 1530 ka jikar kese
ReplyDelete1536 ki hai. 936 galti se likh diya. Baad mai Aurangjeb k time yr madhad rajput aur karnal k jyadatr rajput musalman ban gyr the Aur 1947 m Pakistan chle gye
DeleteKisne kaha pakistan gaey,mai to yahi hu bihar mein..hum 1542 ke dauran bihar aa gaey they.
DeleteBhai vo musalmano ka calender hai jise hijri kehte hai ooske anusar 936 likha ha or english calender ke anusar 1536 ki baat hai JAI RAJPUTANA 🙏🙏🙏
DeleteI am also madhad
ReplyDeleteOr mujhe apne dharm or sanskriti se bohat pyaar hai
Pata nhi rajputon ka itehaas schools me kyu nhi pdhaya jataa
Kya yhi vjhaa h ki rajputon ka khoon naa khol jaaye
Kartik ji aap kaha se ho
DeleteBataye Jara
I am thakur kartik mudad👿⚡♠🚩😍
Deleteयार चोरी की भी हद होती है एक और ऐतिहासिक चोरी राजा मोहन सिंह मंढार को भी राजपूत बना दिया अरे इतिहास चोरों कुछ तो शर्म करो अगर राजपूतों में मंढार गोत्र नहीं मिला तो राजा मोहन सिंह मंढार को मडाड बना बेशर्मों एतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ बन्द करो दुसरे के बाप को अपना बाप कहना बंद करो बेशर्मों
ReplyDeleteजय हो🙏🙏
ReplyDeleteJay Maharana Pratap
ReplyDeleteइनका शासन काल कब से कब तक का है
ReplyDeleteऔर इनका जन्म के बारे में नहीं लिखा
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