=== माऊंडा मंडोली का इतिहासिक युद्ध ===
भारत वर्ष की भूमि वीरों की भूमि है यहाँ का कण कण क्षत्रियों के रक्त से सींचा हुआ है। यह भूमि गवाह है ऐसे सैकड़ो हजारों युद्धों की जिनमें हिन्दू क्षत्रियों ने अपने मान सम्मान और प्रजा के हितों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुतियाँ दी।आज हम इतिहास के पन्नों से ऐसे ही युद्ध की एक गाथा को दोहरा रहें है जो राजस्थान में सीकर जिले के नीम का थाना शहर के पास स्थित माऊंडा और मंडौली गाँवों में सन् 1767 में लड़ा गया था।
माऊंडा मंडोली का युद्ध भरतपुर के राजा जवाहर सिंह और जयपुर के सूयवंशी क्षत्रिय कछवाहा राजा सवाई माधो सिंह प्रथम के बीच सन 1767 में लड़ा गया जिसमे भरतपुर की फ़ौज और जवाहर सिंह को मूहँ की खानी पड़ी और रण छोड़ कर भागना पड़ा।
इसके बाद कुशवाहों द्वारा भरतपुर को रोंदने का सिलसिला सिर्फ माऊंडा मंडोली तक ही सीमित नहीं रहा। राजा सवाई माधो सिंह के नेतृत्व में जयपुर ने 29 फरवरी 1768 सिर्फ 15000 राजपूतों की फ़ौज के साथ भरतपुर शहर पर कब्ज़ा कर जाट राज जवाहर सिंह को दुबारा हराया। भरतपुर की सेंध के दौरान जयपुर ने जाट राज जवाहर सिंह के सेना पति दान शाह को भी मार गिराया जिसके पश्चात जवाहर सिंह को भाग कर सिखों के यहाँ शरण लेनी पड़ी और सात लाख रुपये चूका कर 20000 सिखों की सेना की मदद से भरतपुर पर दुबारा कब्जे के लिए जयपुर से लड़ना पड़ा।
=== माऊंडा मंडोली युद्ध: पृष्टभूमि ===
तिथि : 6 नवंबर 1767
स्थान : पुष्कर
उत्तर भारत में मराठों की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए जोधपुर के राठौड़ वंश और भरतपुर के जाट ( जादौन वंश) वंश ने पुष्कर में एकजुट होकर लड़ने की रणनीति बनाई।
इस मुलाकात में जोधपुर और भरतपुर राज घराने के सदस्य एक ही कालीन पर समान ऊंचाई पर बैठे और आपसी भाईचारा बढ़ाने की शुरुआत की। इसी बीच पुष्कर की सभा में शामिल होने का न्योता जयपुर के कछवाहा वंश के राजा महाराज सवाई माधो सिंह जी प्रथम को भी भेजा गया। भरतपुर के साथ एक ही कालीन पर बैठ भाईचारा बढ़ाने की बात जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह को अपनी शान के खिलाफ तथा नागवांरा लगी। सवाई माधो सिंह इस वाक्य से इतने भड़क गए के उन्होंने तुरन्त बिजय सिंह राठौड़ को पुष्कर अपना सन्देश भिजवाते हुए लिखा कि " बिजय सिंह जी आपने जयपुर राज घराने के नौकरों को अपने साथ बिठा कर उनसे भाईचारे की बातें कर के समग्र राठौड़ वंश और अपने पूर्वजों का मान गिरा दिया।"
यह सुनकर जाट राज जवाहर सिंह आग बबूला हो उठा और उसने भरतपुर लौटते समय जयपुर राज्य के गाँवों में लूट पात और जयपुर की प्रजा से बदसलुखी करनी शुरू कर दी।
=== जाट रानी किशोरी की धूर्तता ===
जाट रानी किशोरी भरतपुर के राजा सूरजमल की दूसरी पत्नी तथा जवाहर सिंह की सौतेली माँ थी। रानी किशोरी जानती थी के अगर जवाहर सिंह को उकसाया जाए और जयपुर के साथ भीड़वा दिया जाए तो भरतपुर की गद्दी उसके मन चाहे पुत्र को मिल सकती थी। रानी किशोरी ने इस कुकर्म को करने के लिए एक युक्ति निकालते हुए जवाहर सिंह के आगे पुष्कर में राजपूत महिलाओं के साथ सरोवर में स्नान की ख्वाइश रखी वह जानती थी इससे जयपुर राजघराने के राजपूत जरूर भड़केंगे जो भरतपुर राज परिवार को अपना खादिम मानते थे और जिनकी शान में भरतपुर राजपरिवार सदा सर झुका कर खड़ा रहा है। और हुआ भी ऐसा ही राठौड़ो के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा कर जैसे तैसे रानी किशोरी ने स्नान तो कर लिया परंतु यह करतूत आने वाले समय में भरतपुर और जवाहर सिंह को बहोत भारी पड़ी।
=== राजपूतों पर रॉब जमाने के लिए पुष्कर यात्रा ===
18 वीं शताब्दी आते आते आपसी युद्ध , मराठा सेना के उत्तर में छापामार युद्धों और बाहरी ताकतों के लगातार हमलों से झुझने के कारण राजस्थान और उत्तर भारत के राजपूत कमजोर होते जा रहे थे। उधर दिल्ली में बहादुर शाह जफर के नेतृत्व के बाद मुग़ल सत्ता बहोत कमजोर हो चली थी। धीरे धीरे उत्तर में मराठा शक्ति भी शीन होने लगी इसी चीज का फायदा उठा कर सूरजमल और उसका बेटा जवाहर सिंह ने ब्रज चम्बल और दक्षिण हरयाणा के एक बड़े इलाके पर कब्ज़ा कर लिया। इस सफलता से मिले जोश और होंसले से उत्तेजित हो कर भरतपुर के जाट जो कभी मुग़लों और जयपुर राजघराने के चाटुकार भर थे अपना दम ख़म दिखाने के लिए करीब 50 हजार सैनिकों की फ़ौज लेकर जिसमेंउ सके साथ समरु के नेतृत्व में फ्रेंच टुकड़ी,भाड़े पर सिक्ख टुकड़ी, गुज्जर डकैत,और भारी तोपखाना बन्दुके थी लेकर पुष्कर की और बढ़ा।
इस यात्रा का मकसद पुष्कर यात्रा के नाम पर जयपुर राज्य और राजपूतो को नीचा दिखाना था|
=== माउंडा के निर्णायक युद्ध का वर्णन ===
अपने अपार बल, तोपखाने और आधुनिक शस्त्रों से लैस सेना के साथ जाट राजा जवाहर सिंह लगभग अपने ही राज्य की सीमा में पहुंच गया था, जब वो नारनौल से केवल 23 मील दक्षिण-पश्चिम में माउंडा मंडोली से गुजर रहा था। तभी तेजी से पीछा कर रही कछवाह सेना के घुड़ स्वरों ने जाटों की सेना को धर दबोचा।
कछवाहों ने 14 नवम्बर 1967 को जाटों पर पहला हमला बोला। कछवाह घुड़सवारों का पहले हमला जाटों द्वारा नकाम कर दिया क्योकि इस समय तक पूरी कछवाह सेना और तोप एवं बंदूक माउंडा पहुँच नहीं पाई थी। इस कामयाबी का फायदा उठाते हुए जाट सेना ने युद्ध के मैदान से आगे भागने की सोची परंतु जयपुर के घुड़सवारों ने उन्हें फिर से धर दबोचा और जाटों को दुबारा मुड़ कर मजबूरन युद्ध करना पड़ा।
जाट सेना के तोप के गोलों और बन्दूको की गोलियों का मजबूती से सामना करने के बाद जयपुर के घुड़सवारों ने अपनी तलवारों के साथ जाटों पर दुबारा हमला बोला। दुश्मन जो अपनी हार का आंकलन कर के मात्र चन्द सैकड़ो की तादाद वाली सेना से पहले ही आक्रमण के बाद भाग रहा था वह कछवाहों की तलवारों के आगे दुबारा टिक नहीं पाया।
चारो तरफ जाट सेना में हाहाकार मच गया उधर चन्द कछवाहा घुड़सवार दुश्मन के सैकड़ों सर धड़ से अलग कर अपने राज्य की पावन मिट्टी पर झुकाते रहे। इसी बीच जाट सेना दुबारा भागना शुरू किया और ऐसे भागे के पीछे अपने तोप बन्दुक और स्वयं महाराजा जवाहर सिंह को दुश्मन की दया के मोहताजगी छोड़ आये। राजा जवाहर सिंह की इज्जत इसी जाट सेना में मजूद फ़्रांसिसी सेना द्वारा प्रशिक्षित दो वीरों समरू और मेढक ने बचाई और किसी तरह रात में अँधेरे तक लड़ते हुए जाट राजा जवाहर सिंह को युद्ध के मैदान से भगा कर सुरक्षित भरतपुर ले गए। राजा जवाहर सिंह डर के मारे भाग गया था परन्तु अपने पीछे अपनी ७० तरह की बंदूकें , तम्बू एवं सामान जिसमे की उनका शाही छाता भी था छोड़ गया। कुल मिला के दोनों तरफ का नुक्सान करीब ५००० आदमी थे। इस युद्ध में करीब २००० राजपूत योद्धा वीर गति को प्राप्त हुए, क्षत्रिय सेना को यह नुकसान केवल उस शुरुआती गोलाबारी के कारन हुआ जिसके विरुद्ध वो निहत्ते दृढ़ता से लड़ते रहे और अपने अहम योद्धा गवां दिए। उस दिन जयपुर में ऐसा कोई क्षत्रिय परिवार न रहा होगा जिनका बीटा वीर गति को प्राप्त न हुआ हो। दिलीप सिंह जो की जयपुर के सेनापति थे अपनी तीन पीढ़ियों के साथ युद्ध में उतरे थे तथा इनके परिवार ने तीनों पीढ़ियां युद्ध में अपने राज्य शौर्य मान और रजपूती शान के लिए न्योछावर कर दी। यह युद्ध इतना भयावह साबित हुआ के जयपुर में केवल १० साल के बालक ही क्षत्रिय वीर बच गए थे।
=== प्रताप सिंह कछवाहा का योगदान ===
प्रताप सिंह कछवाहा जयपुर राजघराने का एक सामंत था। युद्ध से जयपुर के कछवाहा शाशकों से किसी बात पर उसका विवाद हो गया था जिस कारण वह बाग़ी होकर भरतपुर के साथ जा मिला। कुछ समय पश्चात प्रताप सिंह कछवाहा को यह ज्ञात हुआ के भरतपुर और जयपुर के बीच में युद्ध छिड़ गया है तो उसका क्षत्रिय रक्त खोल उठा और अपने वंश का मान बचाने के लिए भरतपुर से बाग़ी हो कर इन्हीं के खिलाफ युद्ध में जयपुर का साथ देने के लिए निकल पड़ा।
==== युद्ध में लड़े कुछ जांबाजों के नाम ====
जयपुर की तरफ लगभग सभी कच्छावा और शेखावत ठिकाना प्रतिनिधित्व किया था।
मंढोली और मओंडा के ठाकुर - तंवर राजपूत
पाटन के राव - तंवर राजपूत
डुण्डलोद के हनुमंत सिंह - कच्छावा
नवलगढ़ के नवल सिंह - कच्छावा
डुला के अमर सिंह जी राजावत
लसाड्या के नवल सिंह राजावत
चवल्डीङा के डुला सिंह कच्छावा - रायपुर
रसूलपुरा के शंभू सिंह कच्छावा
मंगलवाडा के सांवल सिंह कच्छावा
तेहतरा के आवाज सिंह कच्छावा
=====References====
1 ^ Tanwar Rajvansh Ka Itihas By Dr. Mahendra Singh Tanwar khetasa 2^ Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. James Todd 332713
3^ The Rajputana gazetteers - 1880
4^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 256
5^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 255
6^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 255
7^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 256
8^ Sir William Wilson Hunter,Imperial gazetteer of India - Vol V 1908, page 257
9^ R.K. Gupta, S.R. Bakshi, Studies In Indian History: Rajasthan Through The Ages The Heritage Of ..., Page 19
10^ R.K. Gupta, S.R. Bakshi, Studies In Indian History: Rajasthan Through The Ages The Heritage Of ..., Page 19
Jump up ^ Dr RK Gupta & Dr SR Bakshi:Rajasthan Through the Ages Vol 4 Page 207
jay bhawani
ReplyDeleteSame on this. Jhuthi baat mt kiya kro agar history ka gyan na hoto.
Deleteमांवडा-मंढोली युद्ध:ठाकुर देशराज के इतिहास में
ReplyDeleteठाकुर देशराज[6] लिखते हैं कि भारतेन्दु जवाहरसिंह ने पुष्कर स्नान के उद्देश्य से सेनासहित यात्रा शुरू की। प्रतापसिंह भी महाराज के साथ था। जाट-सैनिकों के हाथ में बसन्ती झण्डे फहरा रहे थे। जयपुर नरेश के इन जाटवीरों की यात्रा का समाचार सुन कान खड़े हो गए। वह घबड़ा-सा गया। हालांकि जवाहरसिंह इस समय किसी ऐसे इरादे में नहीं गए थे, पर यात्रा की शाही ढंग से। जयपुर नरेश या किसी अन्य ने उनके साथ कोई छेड़-छाड़ नही की और वह गाजे-बाजे के साथ निश्चित स्थान पर पहुंच गए।
स्नान-ध्यान करने के पश्चात् भी महाराज कुछ दिन वहां रहे। राजा विजयसिंह से उनकी मित्रता हुई। इधर महाराज के जाते ही राजपूत सामंतो में तूफान-सा मच गया। उधर के शासित जाट और इस शासक जाट राजा को वे एक दृष्टि से देखने
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-656
लगे। इस क्षुद्र विचार के उत्पन्न होते ही सामंतों का संतुलन बिगड़ गया और वे झुण्ड जयपुर नरेश के पास पहुंचकर उन्हें उकसाने लगे। परन्तु जाट सैनिकों से जिन्हें कि उन्होंने जाते देख लिया था, उनकी वीरता और अधिक तादात को देखकर, आमने-सामने का युद्ध करने की इनकी हिम्मत न पड़ती थी।
जवाहरसिंह को अपनी बहादुर कौम के साथ लगाव था, उसकी यात्रा का एकमात्र उद्देश्य पुष्कर-स्नान ही नहीं था, वरन् वहां की जाट-जनता की हालत को देखना भी था। उनको मालूम हुआ कि तौरावाटी (जयपुर का एक प्रान्त) में अधिक संख्या जाट निवास करते हैं तो उधर वापस लौटने का निश्चय किया। राजपूतों ने लौटते समय उन पर आक्रमण करने की पूरी तैयारी कर ली थी। यहां तक कि जो निराश्रित प्रतापसिंह भागकर भरतपुर राज की शरण में गया था और उन्होंने आश्रय ही नहीं, कई वर्ष तक अपने यहां सकुशल और सुरक्षित रखा था, षड्यन्त्र में शामिल हो गया। उसने महाराज की ताकत का सारा भेद दे दिया। राजपूत तंग रास्ते, नाले वगैरह में महाराज जवाहरसिंह के पहुंचने की प्रतीक्षा करते रहे। वे ऐसा अवसर देख रहे थे कि जाट वीर एक-दूसरे से अलग होकर दो-तीन भागों में दिखलाई पड़ें तभी उन पर आक्रमण कर दिया जाए।
तारीख 14 दिसम्बर 1767 को महाराज जवाहरसिंह एक तंग रास्ते और नाले में से निकले। स्वभावतः ही ऐसे स्थान पर एक साथ बहुत कम सैनिक चल सकते हैं। ऐसी हालत में वैसे ही जाट एक लम्बी कतार में जा रहे थे। सामान वगैरह दो-तीन मील आगे निकल चुका था। आमने-सामने के डर से युद्ध न करने वाले राजपूतों ने इसी समय धावा बोल दिया। विश्वास-घातक प्रतापसिंह पहले ही महाराज जवाहरसिंह का साथ छोड़कर चल दिया था। घमासान युद्ध हुआ। जाट वीरों ने प्राणों का मोह छोड़ दिया और युद्ध-भूमि में शत्रुओं पर टूट पड़े। जयपुर नरेश ने भी अपमान से क्रोध में भरकर राजपूत सरदारों को एकत्रित किया। जयपुर के जागीरदार राजपूतों के 10 वर्ष के बालक को छोड़कर सभी इस युद्ध में शामिल हुए थे। सब सरदार छिन्न-भिन्न रास्ते जाते हुए जाट-सैनिकों पर पिल पड़े। जाट सैनिकों ने भी घिर कर युद्ध के इस आह्नान को स्वीकार किया और घमासान युद्ध छेड़ दिया। आक्रमणकारियों की पैदल सेना और तोपखाना बहुत कम रफ्तार से चलते थे। जाट-सैनिकों ने इसका फायदा उठाया और घाटी में घुसे। करीब मध्यान्ह के दोनों सेनाएं अच्छी तरह भिड़ीं। इस समय महाराज जवाहरसिंह जी की ओर से मैडिक और समरू की सेनाओं ने बड़ी वीरता और चतुराई से युद्ध किया। जाट-सैनिकों ने जयपुर के राजा को परास्त किया। परन्तु जाटों की ओर से सेना संगठित और संचालित होकर युद्ध-क्षेत्र में उपस्थित न होने के कारण इस लड़ाई मे महाराज जवाहरसिंह को सफलता नहीं मिली। लेकिन वह स्वयं सदा की भांति असाधारण वीरता और जोश के साथ अंधेरा होने तक युद्ध करते रहे।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-657
जयपुर सेना का प्रधान सेनापति दलेलसिंह, अपनी तीन पीढ़ियों के साथ मारा गया। यद्यपि इस युद्ध में महाराज को विजय न मिली और हानि भी बहुत उठानी पड़ी, परन्तु साथ ही शत्रु का भी कम नुकसान नहीं हुआ। कहते हैं युद्ध में आए हुए करीब करीब समस्त जागीरदार काम आये और उनके पीछे जो 8-10 साल के बालक बच रहे थे, वे वंश चलाने के लिए शेष रहे थे।
Bilkul sahi
DeleteIs yuddh me yo hamne jato ko bht boori tarike se naar bhagwaya tha
DeleteBhai bharatpur do baar Hara....jawahar Singh sena ko chhod Kar bhag Gaye...fir dubara Kama ka yudh hua.. Wikipedia pe dekh le
Deleteabey jhaant tum sikho ke sath aaye tab v haare aur angrezo saath laaye tab v haare anginat sena laaye tab v bhaag khade hue
DeleteKya bat kahi hai.man gye Bhai tere ko .....
DeleteKi Rajput tumhare jaton se aamne samne nhi lad sakte the.
To bosdi ke tera jawahar kyon yudh se do bar bhag gya.
गलत लिख कर इतिहास को खत्म न किया जाए, जयपुर राजघराने ओर भरतपुर राजघराने के बीच बहुत अच्छे संबंध थे और बहुत बार दोनों ने एक दूसरे कि मदद कि है.
ReplyDeleteDono he Shiv ko mantra the . Phir kyun lada. Marathi bhi ISI baat ki dushmani nikaal rahe the ki panipat ki ladai mein dono me hee sath NAHI diya
ReplyDeleteकितना गलत लिख रहे हो तुम महाराज जवाहर के बारे में में एक जाट हूं और महाराणा प्रताप को अपना हीरो मानता हूं लेकिन बात अगर तुम्हारे जैसे राजपूतों की करू तो तुम वही हो जिन्होंने डर के मारे अकबर को अपना जीजा बना लिया था, हां मैं बात कर रहा हूं उसी अकबर कि जिसकी जाटों ने कब्र जला दी थी और औरंगजेब से लोहा लिया था एक घातक युद्ध के साथ उसके पैर उखाड़ दिए थे । महान बनने का चोला पहनते हो किया कुछ भी नहीं शिवाय जाटों को नीचा दिखाने के हिन्दुओं की सारी एकता तुमने तोड़ के रख दी और सुक्र मनाओ अगर उस युद्ध में महाराज सूरजमल नहीं थे अगर होते तो तुम्हारे इस नीच हरकत के कारण केवल महिलाएं ही शेष रह जाती
ReplyDeleteSurajmal Kai saal Tak Jaipur k samant rahe..konsi duniya me rhta h...
Deleteसूरजमल वीर था जवाहर तो कायर था रही बात अकबर को लड़की देने की तो सुन भाई
Deleteगयासुद्दीन तुगलक की माता पंजाब की जाटनी थी
Are mere Bhai chal teri baat badi Kari thamne raaj kad milya 16 sadi mein thik h jab desh K haalat badl chuke usse pehle 7vi sadi ho rahe aakrman kisne rooke ab to khvega ki rajput haargye are jo rajput haar gaye hote to to Aaj muslmaan Honda ar sun sach n svikarana suru kro apne pass te itihaas ni bnya krta thik marna padta aur rahi baat jodha ki chal teri baat mani jab akber itna hi takkatwar tha ki usne rajputo ki ladki se shaadi kr li to soch thari aaliyio ke sath ke hoya hoga ar aur sun tere itihaas ki pta sabne Aaj tak koi film ni bani na koi serial bnya thaare yodhao per ye jo dusri jaatiyo ke pass aur tumhare pass jamin khah se aayi ye sab rajputo ki pta hain tujhe rajput hote the jamindaar tum to kheto mein kaam krte the tere rajesthan ke jitne shehr vo rajputo ke naam per bade bade thikhaane rajputo ke thik h Bhai rajputo se to bado bado ki jalti hain
DeleteBhai main aapse mafi Mangta hun ismein Maharaja Jawahar Singh ke bare mein bahut galat shabdon ka prayog Kiya gaya hai Jivan mein bhi Shiromani Maharaja Surajmal ko bahut manta hun ab Hamen Jaath Paat Mein Nahin batana Ham Sab sanatani Hai AVam Apne Sanatan Dharm ki Raksha Karenge
DeleteBaat history ki ho rahi h ....kisko ye jhooth lag RHA h wo history padh le ek baar..do baar yudh hua..dono m bharatpur ki haar hue...
ReplyDeleteभाई यह झूठ लग नहीं रही है झूठी ही है पहली बात महारानी किशोरी का कोई बेटा ही नहीं था तो वह कौन से बेटे को गद्दी पर बैठाना चाहती थी उन्होंने जवाहर सिंह को गोद लिया था और उन्हें अपना बेटा मानती थी और जब जाट सेना दो पहाड़ के बीच में से एक पतली कतार में जा रही थी तब जयपुर राजा ने हमला किया था धोखे से हमला करना वीरता नहीं कहलाती और अगर जाटों की वीरता देखनी हो तो बगरू का युद्ध देख लेना और जो जयपुर में लूटपाट की बात की है तो जरा जान लो जवाहर सिंह ने कोई भी लूटपाट नहीं की थी बल्कि यात्रा शुरू करने से पहले माधव सिंह को शांति पत्र भी भेजा था लेकिन माधव सिंह के अंदर तो आग लगी हुई थी ।
Delete😂😂😂 तुमने तो इतिहास की बैंड बजा दी और भाई सबसे पहली बात रानी किशोरी अपने कौन से बेटे को राजा बनाना चाहती थी क्योंकि रानी किशोरी का तो कोई बेटा ही नहीं था इसलिए उन्होंने जवाहर सिंह को गोद लिया था और उन्हें अपना बेटा मानती थी । और जवाहर सिंह ने जयपुर में कोई लूटपाट नहीं मचाई थी बल्कि उन्होंने यात्रा शुरू करने से पहले माधव सिंह को शांति पत्र भी भेजा था लेकिन माधव सिंह के अंदर तो आग लगी हुई थी क्योंकि बगरू के युद्ध में 10,000 जाटों ने 200000 की सेना को हराया था । और जो समझ रहा है कि मंडोली का युद्ध जयपुर राज अपनी वीरता से जीता है तो भाई वह गलत है क्योंकि धोखे से हमला करना वीरता नहीं होती जब वह पतली सी कतार में चल रहे थे तब उन्होंने हमला किया था क्योंकि उन्हें पता था अगर खुले मैदान में करेंगे तो जीत नहीं सकेगी और जरा सेनाओं की संख्या भी देख लेना जहां एक तरफ 5000 जवाहर सिंह की सेना थी तो वहीं दूसरी तरफ 40000 के आसपास जयपुर की सेना थी । और अगर जाटों की वीरता को जानना हो तो बगरू के युद्ध के बारे में पढ़ लेना । और जो तुमने बोल्ड लेटर में लिखा है कि जाटों के एकमात्र राजा,तो भाई जरा इतिहास पढ़ लेना पता चल जाएगा कि जाटों के कितने राजा थे । इसलिए भाई आधे अधूरे ज्ञान के साथ कुछभी मत लिखा करो पहले पूरी जानकारी लिया करो ।
ReplyDeleteकुछ लोग जलने की
ReplyDeleteसवाई जयसिह ने बदन को अपना एक सामंत ही समझा था और डिंग के महलों के बनने में धन भी दिया था पर जवाहर ने अपने परदादा की औकात भुला दी और नतीजा ये निकला कि उसे मंडोली के युद्ध में अपनी इज्जत भी गवानी पड़ी
ReplyDeleteAre bhai jo bhi hoo phele yeh change karo Jadaun Vansh Karauli ka hai Bharatpur ka nhi. Aur Jadaun Rajput hotte hainn Jaat nhi.
ReplyDeletejat jawahar singh ki bewkoofi ki wajha se barbaad ho gye, kya jaroorat thi rajputane ko uksane ki, sher ke muh me haath daloge toh yahi hoga
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर इतिहास ।
ReplyDeleteJai ho💪💪💪💪💪
ReplyDeleteJai Shri ram 🚩
Jai kuldevi jamuvay mata ji ki sa
⚔️Jai jai Rajaputana⚔️
जलने वाले जलते रहेंगे,
ReplyDeleteहम राजपुतों ने राज किया था।
और करते रहेंगे।
सोमवीर सिंह मोकावत(कछवाहा)
वंशज आफ महाराज मोकाजी
मोकावत कछवाहा:-राव बालाजी के पुत्र महाराज मोकम जी के वंशज मोकावत कछवाहा कहलाते हैं।राव बालाजी आमेर के राजा महाराज उदयकरणजी के तीसरे पुत्र थे। महाराज मोकम जी राव बालाजी के पुत्र व महाराज उदयकरणजी के पौत्र थे।महाराज मोकम जी को महाराज मोका जी के नाम से भी जाना जाता है।
वर्तमान में मोकावत कछवाहा 100 से भी अधिक गांवों में निवास करते हैं।
जय जय राजपूताना
ReplyDeleteजय श्री राम जय कछवाहा वंश
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ReplyDeleteMaharaj Shivaji Bhonsle k dadaji bhi ek Mughal sena k general thhe. Lekin unhone muglon ko unki aukaat dikha di aur sarey bharat par Raj kara.
ReplyDeleteAchi khani h but kalpnik h ...apni choti soch se bhar niklo...or jo 8 saal khakr rhkar dhokha de wo neech h verr nhi
ReplyDeleteइस युद्ध में नवल सिंह मोकावत (कछवाह) बहुत बहादुरी से लड़ें।
ReplyDeleteऔर अनेक जाटों को मौत के घाट उतारा।
इस युद्ध में जयपुर की ओर से इतने अधिक राजपूत मारे गये थे की केवल 10-10 वर्ष के बालक ही बचे थे जयपुर में वंश चलाने के लिए और इस युद्ध के बाद ठिकानों में एक भी राजपूत घुड़सवार नहीं मिला। तीन तीन पीढ़िया ख़त्म हो गई थी जयपुर के जागीरदारों की इस युद्ध में। जयपुर का राजा माधव सिंह ख़ुद 4 दिन बाद सदमे से मार गया।
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