Saturday, September 28, 2019

गौतम क्षत्रिय राजपूत वंश (The clan of Gautam Budha)


गौतम क्षत्रिय राजपूत वंश का सम्पूर्ण विवरण--

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गौतम राजपूत वंश का गौत्रोच्चार--
वंश--सूर्यवंश,इच्छवाकु,शाक्य
गोत्र- गौतम
प्रचर पाँच - गौतम , आग्डिरस , अप्सार,बार्हस्पत्य, ध्रुव
कुलदेवी- चामुण्ङा माता,बन्दी माता,दुर्गा माता
देवता - महादेव योगेश्वर,श्रीरामचन्द्र जी
वेद - यजुर्वेद
शाखा- वाजसनेयी
प्रसिद्ध महापुरुष--गौतम बुद्ध
सुत्र- पारस्करगृहासूत्र
गौतम वंश का महामंत्र--
रेणुका: सूकरह काशी काल बटेश्वर:।
कालिंजर महाकाय अश्वबलांगनव मुक्तद:॥
प्राचीन राज्य--कपिलवस्तु, अर्गल, मेहनगर, कोरांव,बारां(उन्नाव),लशकरपुर ओईया(बदायूं)
निवास---अवध,रुहेलखण्ड,पूर्वांचल,बिहार,मध्य प्रदेश
शाखाएं--कंडवार, गौनिहां, रावत,अंटैया,गौतमिया आदि
प्राचीन शाखाएं--मोरी(मौर्य),परमार(सम्भवत,शोध जारी)

अनुमानित जनसंख्या--1891 की जनगणना में यूपी में कुल 51970 गौतम राजपूत थे अब करीब दो से ढाई लाख होंगे,इसमें बिहार और मध्य प्रदेश के गौतम राजपूतो की संख्या भी जोड़ ले तो करीब 350000 गौतम राजपूतो की संख्या देश भर में होगी।।

गौतम सूर्यंवंशी राजपूत हैं ये अयोधया के सूर्यवंश से अलग हुई शाखा है इन्हें पहले शाक्य वंश भी कहा जाता है।

Note-- Alexander Cunningham (1871:349) relates the Sakya to the modern Gautam Rajputs, who were residing in the contemporary Indian districts Nagar & Amoddha of U.P.

गौतम ऋषि द्वारा दीक्षित होने के कारण इनका ऋषि गोत्र गौतम हुआ जिसके बाद ये गौतम क्षत्रिय कहलाए जाने लगे।

वंश भास्कर के अनुसार---भगवान राम के किसी वंशज ने प्राचीन काल मे अपना राज्य नेपाल मे स्थापित किया ।
इसी वंश मे महाराणा शाक्य सिंह हुए जिनके नाम से यह शाक्य वंश कहा जाने लगा। इसकी राजधानी कपिलवस्तु ( गोरखपुर ) थी। इसी वंश में आगे चलकर शुध्दोधन हुये जिनकी बडी रानी से सिद्धार्थ उत्पन्न हुये जो " गौतम " नाम से सुविख्यात हुये । जो संसार से विरक्त होकर प्रभु भक्ति में लीन हो गये । संसार से विरक्त होने से पहले इनकी रानी यशोधरा को पुत्र (राहुल ) उत्पन्न हो चुका था। इन्हीं गौतम बुद्ध के वंशज " गौतम " राजपूत कहलाते हैं । इस वंश में राव, रावत, राणा, राजा आदि पदवी प्राप्त घराने हैं ।

अश्वघोष के अनुसार-----गौतम गोत्री कपिल नामक तपस्वी मुनि अपने माहात्म्य के कारण दीर्घतपस के समान और अपनी बुद्धि के कारण काव्य (शुक्र) तथा अंगिरस के समान था| उसका आश्रम हिमालय के पार्श्व में था| कई इक्ष्वाकु-वंशी राजपुत्र मातृद्वेष के कारण और अपने पिता के सत्य की रक्षा के निमित्त राजलक्ष्मी का परित्याग कर उस आश्रम में जा रहे| कपिल उनका उपाध्याय (गुरु) हुआ, जिससे वे राजकुमार, जो पहले कौत्स-गोत्री थे, अब अपने गुरु के गोत्र के अनुसार गौतम-गोत्री कहलाये| एक ही पिता के पुत्र भिन्न-भिन्न गुरुओं के कारण भिन्न भिन्न गोत्र के हो जाते है, जैसे कि राम (बलराम) का गोत्र "गाग्र्य" और वासुभद्र (कृष्ण) का "गौतम" हुआ। जिस आश्रम में उन राजपुत्रों ने निवास किया, वह "शाक" नामक वृक्षों से आच्छादित होने के कारण वे इक्ष्वाकुवंशी "शाक्य" नाम से प्रसिद्ध हुये। गौतम गोत्री कपिल ने अपने वंश की प्रथा के अनुसार उन राजपुत्रों के संस्कार किये और उक्त मुनि तथा उन क्षत्रिय-पुंगव राजपुत्रों के कारण उस आश्रम ने एक साथ "ब्रह्मक्षत्र" की शोभा धारण की)।

एक अन्य मत के अनुसार श्रृंगी ऋषि का विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री से हुआ,उसके
दो पुत्र हुए,एक ने अर्गल के गौतम वंश की नीव रखी और दुसरे पदम से सेंगर वंश चला,इस मत के अविष्कारक ने लिखा कि 135 पीढ़ियों तक सेंगर वंश पहले सीलोन (लंका) फिर मालवा होते हुए ग्यारहवी सदी में जालौन में कनार में स्थापित हुए. किन्तु यह मत बिलकुल गलत है,क्योंकि पहले तो अर्गल का गौतम वंश,सूर्यवंशी क्षत्रिय गौतम बुध का वंशज है और दूसरी बात कि कन्नौज में गहरवार वंश का शासन ही दसवी सदी के बाद शुरू हुआ तो उससे 135 पीढ़ी पहले वहां के गहरवार राजा की पुत्री से श्रृंगी ऋषि का विवाह होना असम्भव है.

गौतम बुद्ध का जन्म भी इसी वंश में हुआ था।
शाक्य राज्य पर कोशल नरेश विभग्ग द्वारा आक्रमण कर इसे नष्ट कर दिया गया था जिसके बाद बचे हुए शाक्य गौतम क्षत्रियों द्वारा अमृतोदन के पुत्र पाण्डु के नेतृत्व में अर्गल राज्य की स्थापना की गयी।अर्गल आज के पूर्वांचल के फतेहपुर जिले में स्थित है।

प्रसिद्ध गौतम राजा अंगददेव ने अपने नाम का रिन्द नदी के किनारे "अर्गल" नाम की आबादी को आबाद करवाया और गौतम के खानदान की राजधानी स्थापित किया राजा अंगददेव. की लडकी अंगारमती राजा कर्णदेव को ब्याही थी राजा अंगददेव ने अर्गल से ३मील दक्षिण की तरफ एक किला बनवाया और इस किले का नाम "सीकरी कोट" यह किला गए में ध्वंसावशेष के रूप में आज भी विद्यमान है।
१- राजा अंगददेव
२- बलिभद्रदेव
३- राजा श्रीमानदेव
४- राजा ध्वजमान देव
५- राजा शिवमान देव :-
राजा शिवमान देव ने अर्गल से १मील दक्षिण रिन्द नदी के किनारे अर्गलेश्वर महादेव का मन्दिर बनवाया यहाँ आज भी शिवव्रत का मेला लगता है।
अर्गल राजा कलिंग देव ने रिन्द नदी के किनारे कोडे (कोरा) का किला बनवाया।
13वीं शताब्दी में भरो द्वारा अर्गल का हिस्सा दबा लिया था।उस समय अर्गल राज्य में अवध क्षेत्र के कन्नौज के रायबरेली फतेहपुर बांदा के कुछ क्षेत्र आते थे।
1320 के पास अर्गल के गौतम राजा नचिकेत सिंह व बैस ठाकुर अभय सिंह व निर्भय सिंह का जिक्र आता है। उस समय बैसवारा में सम्राट हर्षवर्धन के वंशज बैस ठाकुरों का उदय हो रहा था। उनके नाम पर ही इस क्षेत्र को बैसवारा क्षेत्र कहा गया। एक युद्ध में नचिकेत सिंह और उनकी पत्नी को गंगा स्नान के समय विरोधी मुस्लिम सेना ने घेर लिया तो निर्भय व अभय सिंह ने उन्हें बचाया था। इसमें निर्भय सिंह को वीर गति प्राप्त हुई थी। राजा ने अभय सिंह की बहादुरी से खुश होकर उन्हें अपनी पुत्री ब्याह दी और दहेज में उसे डौडिया खेड़ा का क्षेत्र सहित रायबरेली के 24 परगना (उस समय यह रायबरेली में आता था) और
फतेहपुर का आशा खेड़ा का राजा बनाया था। 1323 ईसवी में अभय सिंह बैस यहां के राजा हुए थे। यह पूरा क्षेत्र भरों से खाली कराने में अभय सिंह की दो पीढिया लगीं। इसके बाद आगे की पीढ़ी में मर्दन सिंह का जिक्र आता है।
अर्गल के गौतम राजा द्वारा चौसा के युद्ध में हुमायूँ को हराया गया जिससे शेरशाह सूरी को मुगलो को अपदस्थ कर भारत का सम्राट बनने में सहायता मिली।
जब मुगलों का भारत में दुबारा अधिपत्य हुआ तो उन्होंने बदले की भावना से अर्गल राज्य पर हमला किया और यह राज्य नष्ट हो गया।
फिर भी बस्ती गोरखपुर क्षेत्र में गौतम राजपूतो की प्रभुसत्ता बनी रही और ब्रिटिश काल तक गौतम राजपूतो के एक जमीदार परिवार शिवराम सिंह "लाला" को अर्गल नरेश की उपाधि बनी रही।
अर्गल के गौतम राजपूतो की एक शाखा पूर्वांचल गयी वहां मेहनगर के राजा विक्रमजीत गौतम ने किसी मुस्लिम स्त्री से विवाह कर लिया जिससे उन्हें राजपूत समाज से बाहर कर दिया गया।
विक्रमजीत की मुस्लिम पत्नी के पुत्र ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया जिसका नाम आजम खान रखा गया।
इसी आजम खान ने आजमगढ़ राज्य की नीव रखी।
बस्ती जिले में नगर के गौतम राजा प्रताप नारायण सिंह ने 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजो के विरुद्ध क्रांति में बढ़ चढ़कर भाग लिया तथा अंग्रेजो को कई बार मात दी।
लेकिन उनके कुछ दुष्ट सहयोगियों द्वारा विश्वासघात करने के कारण वो पकड़े गए तथा उन्हें अंग्रेजो द्वारा मृत्युदण्ड की सजा दी गयी।
इस क्षेत्र के गौतम राजपूतों ने ओरंगजेब का भी मुकाबला किया था।
उत्तराधिकार संघर्ष में शाह शुजा भागकर फतेहपुर आया था जिसे गौतम राजपूतो ने शरण दी थी।जिसके बाद ओरंगजेब की 90000 सेना ने हमला किया जिसका 2 हजार गौतम राजपूतो द्वारा वीरता से मुकाबला किया गया।इसमें हिन्दू राजपूतो के साथ मुस्लिम गौतम ठाकुरों ने भी कन्धे से कन्धा मिलाकर जंग लड़ी।बाद में यहाँ के गौतम राजपूतो ने अंग्रेजो का भी जमकर मुकाबला किया और बगावत के कारण एक इमली के पेड़ पर 52 गौतम राजपूतो को अंग्रेजो द्वारा फांसी की सजा दी गयी।

आज गौतम राजपूत गाजीपुर, फतेहपुर , मुरादाबाद , बदायुं, कानपुर , बलिया , आजमगढ़ , फैजाबाद , बांदा, प्रतापगढ, फर्रूखाबाद, शाहाबाद, गोरखपुर , बनारस , बहराइच, जिले(उत्तर प्रदेश )
आरा, छपरा, दरभंगा(बिहार )
चन्द्रपुरा, नारायण गढ( मंदसौर), रायपुर (मध्यप्रदेश ) आदि जिलों में बसे हैं ।

"कण्ङवार" - दूधेला, पहाड़ी चक जिला छपरा बिहार में बहुसंख्या में बसे हैं ।
चन्द्रपुरा, नारायण गढ( मंदसौर) में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर से आकर गौतम राजपूत बसे हैं ।
कुछ गौतम राजपूत पंजाब के पटियाला और हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर हमीरपुर कांगड़ा चम्बा में भी मिलते हैं
गौतम राजपूतों की एक शाखा.. गाज़ीपुर के जमानियां. करंडा बेल्ट में भी है। विधायक राजकुमार सिंह गौतम करंडा क्षेत्र के मैनपुर गांव के ही निवासी हैं जो गौतम ठाकुरों का काफी दबंग गांव है।.. बाकि गौतमों की एक पट्टी आजमगढ़ के मेंहनगर लालगंज बेल्ट में भी है।

गौतम क्षत्रिय की खापें निम्नलिखित हैं।
(१) गौतमिया गौतम :--
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गोरखपुर जिलों में हैं।
(२)गोनिहा गौतम :--
बलिया,शाहबाद (बिहार) आदि जिलों में हैं।
(३) कण्डवार गौतम :--
कण्डावेनघाट
के पास रहने वाले गौतम क्षत्रिय कण्डवार गौतम कहे जाने लगे। ये बिहार के छपरा आदि जिलों में हैं।
(४)अण्टैया गौतम :--
इन्होंने अपनी जागीर अंटसंट (व्यर्थ) में खो दी।इसीलिए अण्टैया गौतम कहलाते हैं।ये सरयू नदी के किनारे चकिया, श्रीनगर,जमालपुर,नारायणगढ़ आदि गांवों में बताये गए हैं।
(५) मौर्य गौतम:--
इस वंश के क्षत्रिय उत्तर प्रदेश के मथुरा,फतेहपुर सीकरी,मध्य प्रदेश के उज्जैन,इन्दौर,तथा निमाड़ बिहार के आरा जिलों में पाए जाते हैं।
(६) रावत क्षत्रिय -
गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। देवी -चण्डी। गौतम वंश की उपशाखा है। इन क्षत्रियों का निवास उन्नाव तथा फ़तेहपुर जिलों में हैं।
उन्नाव जिले में बारा की स्टेट गौतम राजपूतो की है इसके महिपाल सिंह जमिदार थे।।
कोरांव (कड़ा) का दुर्ग भी गौतम राजपूतो द्वारा ही बनवाया गया था।
बौद्ध ग्रंथ महायान के अनुसार मौर्य क्षत्रिय भी शाक्य गौतम क्षत्रियों की एक शाखा है.
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ईस्ट यूपी, बदायूं के आसपास,बिहार व् मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में गौतम राजपूत बड़ी संख्या में मिलते हैं..
अब बहुत से नीची जाति के लोग भी खुद को बौद्ध धर्मावलम्बी बताकर गौतम सरनेम लगाते हैं जिससे इन इलाको के बाहर के लोग किसी गौतम नामधारी को राजपूत नही बल्कि नीची जाति का समझने की भूल करते हैं
जबकि गौतम टाइटल राजपूत भूमिहार ब्राह्मण तीनो जातियो में मिलते है
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1-बदायूं के गौतम राजपूत अलवर में निकुम्भ राजपूतो के सामन्त थे जो 5 वी सदी के बाद बदायूं क्षेत्र में आए और हूणों को हराकर सत्ता स्थापित की।।।
ये हूण नामक विदेशी हमलावर आज गुज्जर जाती में मिलते हैं मेरठ जिले में 12 गांव हूँण गूजरों के आज भी आबाद हैं....

बदायूं क्षेत्र के गौतम राजपूतों पर स्थानीय पत्रकार श्री बीपी गौतम जी ने रोचक जानकारी दी है, इनके अनुसार
होली से जुड़ी है गौतम राजपूतों की शौर्य गाथा
कण-कण में इतिहास समाया है, पर बदले समय के कारण इतिहास में दर्ज सैकड़ों गौरव गाथाओं पर धूल जम चुकी है। इतिहास के पन्नों पर जमा धूल को साफ कर अतीत में झांका जाये, तो पूर्वजों की शौर्य गाथाओं को जान कर आज भी सीना चौड़ा हो जाता है। गौतम राजपूतों की ऐसी ही एक गौरव गाथा इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों की तरह चमक रही है, जो होली के अवसर पर अनायास ही याद आ जाती है।
चौथी या पांचवी ईसवी से पहले बदायूं जनपद में गौतम राजपूत नहीं थे। कहा जाता है कि उस दौरान यहां हूणों का शासन था। उस समय राजस्थान में स्थित अलवर के राजा भवानी सिंह जी अपने परिवार के साथ भारत यात्रा पर निकले हुए थे। बताया जाता है कि उस समय के न्योधना व आज के कस्बा इस्लामनगर के पास उस दौरान विशाल वन था। इस वन से राजा भवानी सिंह जी का काफिला निकल रहा था, तभी उनके रथ का पहिया मिट्टी में धंस गया। सेवकों ने रथ निकाला, तब तक शाम हो गयी। इस लिए राजा भवानी सिंह जी ने वन में ही पड़ाव डालने के साथ काफिले को आराम करने का आदेश दे दिया। रात में बीच वन में चहल-पहल और रोशनी देख कर आसपास के क्षेत्र की जनता उत्सुकता के चलते वन में देखने पहुंच गयी, तो जनता को पता चला कि यहां राजा का डेरा पड़ा है।
क्षेत्रीय जनता ने राजा भवानी सिंह जी को अवगत बताया कि इस क्षेत्र में हूणों का शासन है, जो बहुत अत्याचार करते हैं। जनता ने अत्याचार की दास्तां राजा को विस्तार पूर्वक बताई, तो जनता की परेशानी सुनकर राजा ने यात्रा पर आगे जाने का इरादा त्याग दिया और हूणों की शक्ति का आंकलन करने के लिए अपने गुप्तचर क्षेत्र में दौड़ा दिये। राजा भवानी सिंह जी ने रणनीति बना कर होली के अवसर पर रंग वाले दिन आक्रमण कर दिया। हूणों का इस्लामनगर (न्योधना) में किला था, जहां से उनका शासन संचालित होता था, उस भवन में आज पुलिस थाना चल रहा है। कहा जाता है कि कुछ सैनिकों के साथ उनकी पुत्री पड़ाव वाले स्थान पर ही रही और अलग-अलग दिशाओं में राजा ने सेना की टुकडिय़ों के साथ पांच पुत्रों को आक्रमण करने लिये भेजा, साथ ही उन्होंने स्वयं सैनिकों के साथ इस्लामनगर (न्योधना) पर आक्रमण किया।
हूणों के साथ भयंकर युद्ध हुआ और अंत में इस्लामनगर (न्योधना) क्षेत्र में गौतम राजपूतों का राज कायम हो गया, लेकिन एक दु:खद घटना भी घटी। राजा भवानी सिंह जी और उनके बेटे युद्ध कर रहे थे, तभी कुछ हूणों ने डेरे पर हमला बोल दिया, लेकिन मौके पर मौजूद सैनिकों के साथ राजकुमारी ने हूणों के साथ जमकर युद्ध किया और सभी हूणों को मार दिया। कहा जाता है युद्ध में राजकुमारी गंभीर रूप से घायल हो गयीं, जिससे उन्हें बचाया नहीं जा सका। गांव भवानी पुर में राजकुमारी की याद में मंदिर बना हुआ है, जिसे आज सती माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
गौतम राजपूतों का शासन स्थापित हो जाने के बाद शासक परिवर्तित होते रहे और बाद में गुलामी के बाद प्रजातंत्र तक का सफर तय हुआ, लेकिन इस क्षेत्र में गौतम राजपूतों का दब-दबा आज तक कायम है। इस्लामनगर क्षेत्र में राजनीति की जमीन आज भी गौतम राजपूतों के इशारे पर ही तैयार होती है। इस ब्लाक क्षेत्र में आजादी से अब तक अधिकतम समय गौतम वंशीय ही प्रमुख रहा है,
लश्करपुर ओइया रियासत और शहीद ठाकुर मोती सिंह-----------
बदायूं क्षेत्र में लश्करपुर ओइया गौतम राजपूतो की रियासत थी।
म वंशीय राजपूतों के साथ पूरे क्षेत्र की जनता के बीच स्वर्गीय ठाकुर मोती सिंह का नाम आज भी वंदनीय है, क्योंकि इन्होंने अपने जीवन काल में अंग्रेजों को क्षेत्र में घुसने भी नहीं दिया, पर षड्यंत्र के तहत खत्री वंश के एक स्वयं-भू राजा ने अंग्रेजों से मिल कर फांसी लगवा दी। लश्करपुर ओईया में आज भी उनकी समाधि बनी हुई है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग पूजा-अर्चना करते हैं। मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके चन्द्रविजय सिंह की जड़ें उसी खत्री परिवार से जुड़ी हुई हैं।
कहा जाता है कि लश्करपुर ओईया के राजा के संतान नहीं थी, जिससे उन्होंने खत्री जाति के एक बच्चे को गोद ले लिया था, लेकिन उस खत्री जाति के बच्चे को किसी ने राजा वाला सम्मान नहीं दिया, जिससे वह स्वयं को अपमानित महसूस करता था, तभी ठा. मोती सिंह से ईष्‍या करता था। खत्री परिवार के गोद लिये हुए स्वयं-भू राजा प्रद्युम्र के भी एक मात्र इन्द्रमोहनी नाम की पुत्री ही जन्मी, जिसका विवाह मुरादाबाद जनपद के राजा का सहसपुर कस्बे में हुआ। इन्द्रमोहनी प्रदेश सरकार में विद्युत मंत्री रह चुकी हैं और चन्द्रविजय सिंह की मां हैं। स्वयं-भू राजा प्रद्युम्र के निधन के बाद लश्करपुर ओईया की संपत्ति इन्द्रामोहनी को ही मिली, लेकिन क्षेत्र में सम्मान न मिलने के कारण लश्करपुर ओईया की समस्त संपत्ति बेच दी, जिससे अब कुछ अवशेष ही बचे हैं।
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लेखक--टीम राजपुताना सोच

74 comments:

  1. आपकी जानकारी सही है जय भवानी

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  2. Dheeraj Singh Gautam Mahoba U.P

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  3. Bahut achha prayaas hai , sabhi rajput vanshon ka itihaas sanjo ke rakhne ke liye hum sabko bauddhik ya aarthik sahayog karna hoga

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    1. धन्यवाद सर जी

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    2. प्रवीण सिंह गोतम आजमगढ़

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    3. जय भवानी

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    4. Siddhartha singh

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  4. Ashish pratap singh gautam lucknow nigohan

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  5. Shailendra singh Goutama ,,,kuch goutam barabanki up Mai bhi nivas karte hai sir

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  6. जय भवानी
    जय राजपूताना

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  7. Replies
    1. Bhai Santana mE wapas aa jao .

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  8. Hariom Singh rana har har mahadev 🙏

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  9. Behtreen jankari.... Kushagra singh gautam frm Raipur (kanpur)

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  10. Garima singh gautam ghazipur jai bhawani

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  11. Sujeet gautam from bihar buxar

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  12. Siddharth Singh Gautam from Argal State Fatehpur(Uttar Pradesh)

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  13. Yashwant singh gautam. Senior lecturer secondary education department rajasthan
    District-sawai madhopur rajasthan
    Hamare purvaj purvi uttarpradesh se 13vi sadi me allauudin ki sena me ranathambhaur fort par aakramn ke liye aaye the or yahi bas gaye

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  14. अटैया राजपूत सरयू नदी के किनारे बलिया जिले के मनियर कस्बे में भी है

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  15. Sumit singh gautam banda up me chandwara gav me sab gautam rajput hai

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  16. Sumit singh gautam banda up me chandwara gav me sab gautam rajput hai

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  17. Ashok singh goutam Rae bareli up

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  18. Ashok singh goutam and goutam pariwar

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  19. Pawan Kumar Singh Gautam. From Garh Gautam, Basti.

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  20. Proud be a Rajput. We should help eachother

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  21. Very good sir sanjay rajput gautam

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  22. शुभम सिंह गौतम जिला हरदा मध्यप्रदेश 8966047881

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  23. राजपूत लोगोको अब बुद्ध की फोटो आपने घरो मे लगानी चाहिए फिर

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  24. This comment has been removed by the author.

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  25. JAI RAJPUTANA JAI BHAVANI JAI SHREE RAM 🙏

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  26. बहुत अच्छी जानकारी पोस्ट करने की लिये धन्यवाद. अभिलाष सिंह गौतम. फतेहपुर.उत्तरप्रदेश

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  27. Ghutam Bareilly Uttar Pradesh

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  28. गंगा रतन सिंह गौतम उन्नाव

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  29. जय माँ भवानी
    कुँवर हिमांशु सिंह गौतम
    बाँदा

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  30. Jay Gautam Rajputana ki

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  31. बहुत अच्छी जानकारी है, अपनी जड़ जब भी खोजने की कोशिश की सही जानकारी नहीं मिल पाई,
    जानकारी उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद
    जय सिंह गौतम, सिंगरौली, मध्यप्रदेश

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  32. जय भवानी जय राजपुताना

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  33. Bilkul sahi jankari sahi hai

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  34. नयन है भारत के राजपूतों के

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  35. Suraj Singh Gautam 🚩
    Jay bhagwan Gautam Buddha ki Jay ho
    🙏🙏🙏🙏🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

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  36. Jay Mahakali Chandan Singh Gautam kausambi

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  37. Vijay Singh GautamMarch 7, 2023 at 8:57 AM

    Thanks for providing such detailed historical facts about Gautam Rajpoots.

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  38. Jai Bhavani jai rajputana jai Gautam 🙏

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  39. आपने बहुत अच्छा काम किया है मैं आपको किन शब्दों में धन्यवाद करूं हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और अपने पूर्वजों को जानने का मौका मिला। आपको धन्यवाद ।
    संजीव सिंह गौतम। फतेहपुर अर्गल ठिकाना।

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  40. jay bhawani jay bholenath

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  41. Vikky Singh Gautam Rajput Varanasi 9569950727

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  42. संजीव सिंह गौतम फतेहपुर

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  43. Bharat Pratap Singh Gautam Jila Hamirpur Gaon nivada

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  44. Raju singh gautam chapra

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  45. Aditya Pratap Singh Gautam District Allahabad

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  46. इतिहास के इस संस्करण में कुछ समस्या है, पहली बात तो यह कि वैदिक काल से पहले जाति व्यवस्था अस्तित्व में नहीं थी, दूसरे, बुद्ध से पहले कुल देवी और कुल देवता का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। निश्चित ही बुद्ध हमारे पूर्वज थे वह एक राजा के बेटे थे,उनको और हम सभी को एक जाति का नाम वैदिक काल के पश्चात मिला। कोई भूल हो तो कृपया सुधरे 🙏🏼

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  47. गोत्र का निर्माण ही क्षत्रियो को ब्राह्मणों का संतान सिद्ध करने के लिए हुआ है, काल्पनिक परशुराम के क्षत्रिय संहार को सही साबित करने के लिए। क्षत्रियों को इस पहचान से तुरंत ही खुद को अलग करना चाहिए, किसी ऋषि के नाम से गोत्र पहचान नहीं हमारी। हम मूलनिवासी हैं इस धरती के।

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  48. बहुत बढ़िया,
    हम भी गौतम (अन्टैया) राजपूत है सिवान बिहार से।
    जय भवानी 🚩🚩

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  49. Mukesh Singh ataiya rajput from gopalganj bihar

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